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Published on Aug 18, 2025 Updated 0 Hours ago

भारत के अपने भविष्योन्मुखी कॉम्बैट व्हीकल को चीन और पाकिस्तान के साथ विवादित सीमाओं पर परिचालन संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए गतिशीलता को प्राथमिकता देनी होगी. 

भविष्य का युद्धक वाहन: आधुनिक युद्ध में गतिशीलता को प्राथमिकता

Image Source: Press Information Bureau, Government of India

'ज़ोरावर' लाइट बैटल टैंक (LBT), जिसका प्रारंभिक प्रोटोटाइप अभी परीक्षण और जांच के दौर से गुजर रहा है, के अलावा इंडियन आर्मी (IA) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने पहले ही एक उच्च भार वर्ग के उन्नत मैन बैटल टैंक (MBT) को विकसित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इसे फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल (FRCV) या 'रंजीत' के नाम से भी जाना जाता है.  उम्मीद है कि 'रंजीत' 2030 के बाद  इंडियन आर्मी में रूसी मूल के T-72 MBT का स्थान ले लेगा और यह बहुत ही आशावान स्थिति है.  सितंबर 2024 में रक्षा मंत्रालय (MoD) द्वारा इसके लिए आवश्यकता की स्वीकृति यानि एक्सेप्टेन्स ऑफ़ नेसेसिटी (AON) जारी की गई थी और इस तरह FRCV विकसित करने के IA के प्रयास को मंजूरी मिली.

जैसा कि नीचे विस्तार से चर्चा की गई है, IA, DRDO और उनके निजी क्षेत्र के सहयोगियों को अपनी कुछ तकनीकी आवश्यकताओं को कम करने और लचीलापन दिखाने की आवश्यकता हो सकती है परिणामस्वरूप, यदि उन्हें मध्यम-भार वाले MBT का डिज़ाइन, उत्पादन और कमीशन करना है, तो उन्हें IA की क्वालिटी रिक्वायरमेंट्स (QR) के तहत कुछ तकनीकी प्रतिबंधों को कम करने के लिए कार्य करना पड़ सकता है. टैंक डिजाइन में अनिवार्य रूप से तीन मुख्य सिद्धांतों के बीच के समझौते या तालमेल होते हैं. सुरक्षा यानी सर्वाइव करने की क्षमता, गतिशीलता और मारक क्षमता. ये बात FRCV के मामले में साफ़ नज़र आती है. इनमें से, गतिशीलता भारत की सीमाओं, विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ की सीमा पर FRCV की परिचालन प्रभावशीलता के लिए महत्वपूर्ण है. 

यह दावा कुछ हद तक अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकता है क्योंकि गतिशीलता रक्षात्मक अभियानों के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी आक्रामक अभियानों के लिए है.

बहरहाल, भारत के घरेलू टैंक के विकास का रास्ता खासकर 'अर्जुन' टैंक के मामले में सामरिक और आघातकारी विशेषताओं की ओर झुकाव नज़र आता है. इसमें गतिशीलता की बजाय सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है. धीमे, कठिन और यहां तक कि रक्षात्मक युद्ध की ओर यह झुकाव, भारतीय सेना के लैंड वारफेयर डॉक्ट्रिन (LWD) में निहित युद्ध में गतिशीलता की आवश्यकताओं के विपरीत है. यह दावा कुछ हद तक अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकता है क्योंकि गतिशीलता रक्षात्मक अभियानों के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी आक्रामक अभियानों के लिए है. डिफेंसिव मैन्युवर वारफेयर (DMW) क्षेत्र की रक्षा और उसे अपने नियंत्रण में रखने के लिए नहीं बल्कि यह दुश्मन को अपने क्षेत्र में खींच कर लाता है और फिर हमलावर दुश्मन सेना को दोनों साइड से और पीछे से घेर कर कब्ज़े को रोक लेता है. DMW स्पेनिश बुलरिंग में देखे जाने वाले 'मेटाडोर साइडस्टेप' को अपने कमान के सभी स्तरों पर अपनाता है और यह काफ़ी गहराई तक जाने की क्षमता रखता है. यह विरोधी को सभी और से घेरने के लिए सावधानीपूर्वक तरीके से पीछे हटने की कला है जिससे दुश्मन न सिर्फ घिर जाता है बल्कि उसका ख़ात्मा भी संभव हो जाता है. 

कुल मिलाकर DMW मूल रूप से तभी प्रभावी होगा जब डिफेंडिंग फ़ोर्स  गतिशील हो और अगर उसके पास पर्याप्त ऑपरेशनल रिज़र्व हो. कुछ  बेजोड़ ऐतिहासिक उदाहरण जहां आर्मर को डिफेंसिव मैन्युवर और मोबाइल ऑपरेशनों में प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया गया है, उनमें 1943-1945 के बीच सोवियत बख्तरबंद हमलों को मंद कर देने वाले जर्मन बख्तरबंद जवाबी हमले शामिल हैं. एक और उल्लेखनीय उदाहरण 1973 के योम किप्पुर युद्ध के दौरान गोलान हाइट्स पर सीरियाई सेना के ख़िलाफ़ इजरायली मोबाइल रक्षा का है. इन दोनों घटनाओं में सोवियत के ख़िलाफ़ जर्मन और सीरिया के ख़िलाफ़ इजरायली हथियार और संख्या बल कम थे. 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान असल उत्तर की लड़ाई डिफेंसिव मैन्युवर वारफेयर (DMW) का एक मजबूत एम्पिरिकल उदाहरण है, जिसमें भारतीय सेना (IA) ने 260 से अधिक पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया था. अर्जुन टैंक भी अपने प्रतिकूल रूप से उच्च नॉमिनल ग्राउंड प्रेशर (NGP), जो मूवमेंट के दौरान जमीन पर लगाए गए दबाव को दर्शाता है,  कुछ हालातों में अपनी उत्कृष्ट क्रॉस-कंट्री मोबिलिटी के कारण डिफेंसिव मैन्युवर वारफेयर में साथ दे सकता है. यह बात विशेष रूप से भारत-पाकिस्तान सीमा के साथ लगे कुछ चुनिंदा क्षेत्रों के लिए सही है. मैदानी इलाकों या रेगिस्तान में DMW के लिए हैवी आर्मर उतना ही प्रासंगिक है जितना कि पहाड़ी इलाकों में हल्की पैदल सेना ज़रूरी है.  इसके ठीक विपरीत, ओफ्फेंसिव मैन्युवर वारफेयर (OMW) दुश्मन की सुरक्षा को भेदने और दुश्मन की सुरक्षा में गैप का फ़ायदा उठाकर क्षेत्र पर कब्ज़ा करने का प्रयास करता है. यह जर्मन शब्द श्वेर्पंकट का जीता जागता उदहारण है इस शब्द का मतलब होता है, दुश्मन के महत्वपूर्ण लेकिन कमज़ोर रूप से संरक्षित पोजीशन या उसके बचाव में मौजूद गैप पर भारी बल से हमला करके उसका फ़ायदा उठाना और सफ़लता हासिल करना. इस स्थिति में FRCV की गतिशीलता OMW और DMW दोनों के लिए महत्वपूर्ण है. पाकिस्तान के ख़िलाफ़ युद्ध की स्थिति में, भारतीय नौसेना को डिफेंसिव मैन्युवर वारफेयर में अर्जुन का उपयोग या तैनाती करने से बचना पड़ सकता है, क्योंकि इसके भारी लॉजिस्टिकल बर्डन और रेगिस्तानी ऑपरेशन में आने वाली NGP संबंधी बाधाओं के कारण इसको मुश्किलों सामना करना पड़ सकता है. पूरी तरह से तैनात होने के बाद FRCV, OMW में अर्जुन से भी अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार रहेगा.

भविष्य का युद्धक वाहन

इस लेख का उद्देश्य जहां एक ओर IA के डॉक्ट्रिन और उसकी क्वालिटी रिक्वायरमेंट्स (QRs) के बीच विसंगति को उजागर करना है और दूसरी ओर DRDO और भारतीय निजी रक्षा इंजीनियरिंग फर्मों की इन QRs को पूरा करने की क्षमता को उजागर करना है. इसमें किसी तरह की मेल की कमी से FRCV कार्यक्रम के लिए काफ़ी जोख़िम पैदा होते हैं. जैसा कि अर्जुन MBT में सामने आई असफ़लताओं से लेकर दीर्घकालिक मुश्किल की स्थिति पैदा होने तक में हमने पाया. भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान के कुछ आलोचकों ने पहले से ही IA के अवास्तविक QRs और अभी तक निर्मित न हुए FRCV टैंक के लिए प्रदर्शन के मानकों की ओर ध्यान आकर्षित करके FRCV के संबंध में चेतावनी दी है. 

इस लेख का उद्देश्य जहां एक ओर IA के डॉक्ट्रिन और उसकी क्वालिटी रिक्वायरमेंट्स (QRs) के बीच विसंगति को उजागर करना है और दूसरी ओर DRDO और भारतीय निजी रक्षा इंजीनियरिंग फर्मों की इन QRs को पूरा करने की क्षमता को उजागर करना है.

IA द्वारा मई 2021 के रिक्वेस्ट फॉर इनफार्मेशन (RFI) में निर्धारित कुछ QRs पर एक सरसरी विश्लेषणात्मक नज़र डालने पर यह एहसास होता है कि उन्हें पूरा करना तकनीकी तौर पर एक कठिन लक्ष्य है.  सबसे पहले, QRs के मापदंड को पूरा करने के लिए आवश्यक है कि FRCV टैंक का NGP 'हाई ट्रेसेब्लिटी' के साथ 'दलदली इलाके' में प्रभावी ढंग से काम करें. QRs में यह भी आवश्यक शर्त है कि टैंक 'मध्यम वजन' का हो, जिसके लिए मूल रूप से यह आवश्यक होगा कि यह 58 टन के कॉम्बैट वेट (CW) से अधिक न हो. यदि यह CW इतना रखेंगे तो यह भी आवश्यक होगा कि FRCV को डिजाइन करने में सुरक्षा के साथ समझौता कर गतिशीलता पर अधिक जोर दिया जाए.  हालांकि, QRs में यह अनिवार्य रखा गया है कि FRCV में 800 mm का फ्रंटल रोल्ड होमोजीनस आर्मर (RHA) हो और इसके किनारों पर 600 mm RHA हो. कोई भी टैंक, जो FRCV से बहुत अधिक वजन वर्ग का है, इस QR से मेल नहीं खाता है जैसा कि ब्रिटिश चैलेंजर, अमेरिकी अब्राम, जर्मन तेंदुआ -2 और जैसा कि अर्जुन के साथ हुआ. इन सब टैंको में लगातार वजन में वृद्धि हुई जिससे इन्हें तैनात करना मुश्किल और तार्किक रूप से बोझिल हो गया. QRs के अनुसार, FRCV की क्षमता 5 मीटर तक होनी चाहिए, जिसका अर्थ है कि उसे इतनी गहराई पर जलभराव से होकर गुजरने की क्षमता रखनी होगी. टैंक के वजन को देखते हुए यह लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं है. इसके अलावा, शुरू में जारी QRs में FRCV के लिए दो या तीन लोगों का चालक दल अनिवार्य तय किया गया था, हालांकि, अब यह स्पष्ट है कि FRCV में चार लोगों का चालक दल होगा जिसमें एक गनर, एक लोडर, एक कमांडर और एक कॉम्बैट ऑपरेटर शामिल होगा. यह तब है जब MBT में एक ऑटोलोडर है, जो दुनिया भर में विकसित होने वाली या प्रयोग में ली जाने वाली किसी भी ऐसे टैंक के संस्करण में नहीं पाया जाता है, जिसमें जापानी टाइप 10, फ्रांसीसी लेक्लेर और कोरियाई के-2 शामिल हैं. DRDO और IA ने निष्कर्ष निकाला है कि सशस्त्र ड्रोनों से ऊपर से हमले और फर्स्ट पर्सन व्यू (FPV) एंटी-टैंक ख़तरे के कारण उन्हें एक चौथे चालक दल के सदस्य की आवश्यकता है. टरेट की कमज़ोरी FRCV में एक चौथे चालक दल के सदस्य को शामिल करने का एक महत्वपूर्ण कारण रही है, जो ख़तरों के ख़िलाफ़ एक विजुअल स्काउट की भूमिका निभाता है या निभाने की उम्मीद की जाती है. हालांकि, टरेट के आकार को सीमित करने और चालक दल को हल में जगह देने से भी वजन कम हो जाएगा.

FRCV की बढ़ी हुई गतिशीलता के लिए एक ऐसे इंजन की आवश्यकता होगी जो इसे विविध तरह के भूभागों पर कार्य करने की क्षमता प्रदान करें. 

आगे की राह 

एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम (APS), जिसे DRDO आजकल विकसित कर रहा है, एक हार्ड किल सिस्टम है और QR द्वारा FRCV द्वारा एंटी-टैंक प्रोजेक्टाइल को बेअसर करने के लिए उपयोग में लिया जाता है. इसके अलावा, IA के T-90 MBT जो अभी भी सेवा में हैं, DRDO द्वारा विकसित की जा रही APS से लैस किए जाएंगे. यह प्रणाली और इसके उन्नत फॉलो-ऑन वैरिएंट FRCV के वजन में इज़ाफ़ा करेंगे, और यह स्पष्ट नहीं है कि APS का वजन कितना है. इज़राइल द्वारा निर्मित ट्रॉफी APS, जो कि अधिक व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली APS क्षमताओं में से एक है, का अनुमान है कि यह US आर्मी M1A2 अब्राम्स में 3.2 टन भार का इज़ाफ़ा कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप CW 70 टन से अधिक का हो जाएगा. लेज़र और हाई पावर्ड माइक्रोवेव वेपन (HPMW) जैसे डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) ड्रोन के ख़तरों को बेअसर कर सकते हैं. DEW आमतौर पर KEWS से हल्के होते हैं, जिससे टैंक का वजन सीमित रहता है, लेकिन उन्हें उच्च स्तर की ऊर्जा की आवश्यकता होती है. वजन बढ़ाए बिना FRCV की सुरक्षा या सर्वाइवेबिलिटी बढ़ाने के अन्य साधनों में इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (EW) के साथ-साथ सेंसरों की एक पूरी श्रृंखला शामिल होगी, जैसा कि QRs के अनुसार अनिवार्य है. FRCV को ऑप्टिमम गतिशीलता बनाए रखने के लिए, जो कि राइन मेटल द्वारा निर्मित जर्मन KF-51 और हुंडई Rotem द्वारा निर्मित दक्षिण कोरियाई K-2 जैसे टैंकों के बराबर है, इसमें नॉन मैटेलिक और मैटेलिक सुरक्षात्मक कवच के मिश्रण की आवश्यकता होती है, जो वजन बढ़ाए बिना सुरक्षा को बेहतर बनाता है. FRCV की बढ़ी हुई गतिशीलता के लिए एक ऐसे इंजन की आवश्यकता होगी जो इसे विविध तरह के भूभागों पर कार्य करने की क्षमता प्रदान करें. अर्जुन और FRCV दोनों के लिए डिज़ाइन किया गया डेट्रॉन-1500 इंजन वर्तमान में परीक्षण के दौर में है और अभी तक उसने सुसंगत और विश्वसनीय प्रदर्शन नहीं किया है. हालांकि यह लेखक कुछ विश्लेषकों के सजग ऑप्टिमिस्म से सहमत है कि हाइड्रो-न्यूमेटिक सस्पेंशन सिस्टम के विकास में भारत का सफ़ल अनुभव और अर्जुन में इसका प्रभावी एकीकरण FRCV की गतिशीलता के भविष्य के लिए शुभ संकेत है, लेकिन अधिक सुरक्षा और सर्वाइवेबिलिटी की अपनी खोज में, IA को गतिशीलता को कम न करने के बारे में सावधान रहना चाहिए, भले ही यह FRCV को टैंक-रोधी ख़तरों के प्रति कुछ हद तक कमज़ोर बना दे, जिसका सामना भारत के उभरते इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप (IBG) के हिस्से के रूप में युद्ध में FRCV के साथ आने वाले अन्य प्लेटफार्मों द्वारा किया जाना चाहिए.


कार्तिक बोम्माकांति ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडी प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.

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