Author : Preeti Kapuria

Published on Feb 27, 2021 Updated 0 Hours ago

संयुक्त राष्ट्र ने “बिल्डिंग बैक बेटर” योजना से जुड़ी रूपरेखा के दिशानिर्देशक सिद्धांत जारी कर दिए हैं. इनका मकसद कोविड-19 से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक-आर्थिक उत्तरदायित्व तय करना है.

भविष्य की दिशा: महामारी के बीच टिकाऊ और हरित विकास का रास्ता

दुनिया में कोविड-19 का प्रकोप शुरू हुए एक साल से ज़्यादा समय बीत गया है लेकिन अब भी इस महामारी की अंत होता नहीं दिख रहा. निकट भविष्य में भी हमारे बीच ये वायरस इसी तरह मौजूद रहने वाला है. इसी बीच संयुक्त राष्ट्र ने “बिल्डिंग बैक बेटर” योजना से जुड़ी रूपरेखा के दिशानिर्देशक सिद्धांत जारी कर दिए हैं. इनका मकसद कोविड-19 से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक-आर्थिक उत्तरदायित्व तय करना है. ज़ाहिर तौर पर अल्पकाल में इसका ज़ोर आर्थिक गतिविधियों को फिर से पटरी पर लाने पर है. इसके साथ-साथ संकट की इस घड़ी में दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को टिकाऊ रास्ते पर लेकर जाना भी इसका मकसद है. इससे पहले घोषित किए गए सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 2030 के एजेंडे में भले ही इस तरह की महामारी का कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया गया था लेकिन हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने की हमारी कोशिशों के प्रति एक दिशानिर्देशक सिद्धांत के रूप में ये लक्ष्य अब भी प्रासंगिक बने हुए है.

संयुक्त राष्ट्र के बिल्डिंग बैक बेटर (बीबीबी) का प्रमुख लक्ष्य है आर्थिक विकास को एक स्वच्छ, हरित और टिकाऊ स्वरूप देना और उसी के अनुरूप रोज़गार और कारोबार के नए अवसर उपलब्ध कराना. इसके तहत विकास के रास्ते के जोखिमों को कम करते हुए ग्रे से ग्रीन इकोनॉमी की तरफ़ झुकाव के साथ आगे बढ़ने की बात कही गई है. इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयुक्त सार्वजनिक नीतियों का निर्माण कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग का वातावरण बनाने की बात कही गई है. दीर्घकाल में इसके लिए टिकाऊ तकनीकी समाधानों में निवेश और जलवायु के विध्वंसकारी प्रभावों और बीमारियों से जुड़े जोखिमों को वित्तीय व्यवस्था में स्थान दिया जाना ज़रूरी है. फिलहाल कोविड-19 के तात्कालिक सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर संयुक्त राष्ट्र के खाके में “सरकारों की वित्त नीतियों में हरित विकास को बढ़ावा देने वाले प्रोत्साहन पैकेज को मदद करने वाली नीतियों का समर्थन करने की बात है. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र विकास व्यवस्था पार्टनरशिप फ़ॉर एक्शन ऑन ग्रीन इकोनॉमी (पीएजीई) के प्रति समर्थन जुटाना ज़रूरी है. इसके तहत रोज़गार के हरित अवसरों के लिए समग्र समर्थन के साथ-साथ संकट से निपटने और ज़रूरी जवाब देने के लिए आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़ी योजनाएं बनाने पर बल देना होगा”. इसी के मुताबिक “संयुक्त राष्ट्र की समेकित जानकारी का इस्तेमाल करते हुए अगले 12 से 18 महीनों में इस रूपरेखा को पूरी तरह से अमल में लाने पर ज़ोर दिया जाएगा.” पीएजीई संयुक्त राष्ट्र की पांच एजेंसियों का एक साझा प्रयास है. इसका मकसद राष्ट्रों और क्षेत्रों को अपनी आर्थिक नीतियां फिर से तैयार करने में मदद करना, हरित और पहले से अधिक समावेशी आर्थिक सुधारों को बढ़ावा देना, संसाधनों के इस्तेमाल की दक्षता बढ़ाना और रोज़गार के लिए पर्यावरण-अनुकूल अवसर पैदा करना है जो किसी भी संकट से निपटने और फिर मज़बूती से खड़े होने का आधार मुहैया करा सकें.

संकट की इस घड़ी में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों को बढ़ावा देने, कचरा प्रबंधन में सुधार लाने और वस्तुओं और सेवाओं के वितरण में कार्यदक्षता लाने के लिए आर्थिक उपायों के प्रयोग का एक सुनहरा अवसर है. 

संकट की इस घड़ी में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों को बढ़ावा देने, कचरा प्रबंधन में सुधार लाने और वस्तुओं और सेवाओं के वितरण में कार्यदक्षता लाने के लिए आर्थिक उपायों के प्रयोग का एक सुनहरा अवसर है. इसके लिए तमाम संबद्ध पक्षों द्वारा तीव्र गति से और पूरी तालमेल के साथ कार्रवाई सुनिश्चित कराना एक चुनौती के समान है. इन संबद्ध पक्षों में राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारी नेतृत्व, वित्तीय संस्थाएं और विभिन्न प्रकार के सेवा प्रदाताओं की एक विशाल फ़ौज शामिल है. महामारी से निपटने के लिए दुनिया भर की सरकारों ने अल्पकालिक तौर पर बाज़ारों में नक़दी या तरलता में बढ़ोतरी करने, बेरोज़गारों के लिए नक़दी और वस्तुओं की सहायता (जैसे खाने के पैकेट आदि) और महामारी से निपटने के लिए आवश्यक विशिष्ट संसाधन मुहैया करवाकर स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत करने का रास्ता अपनाया. प्राकृतिक आपदा के दौरान इस तरह की मानवीय सहायता ज़रूरी भी थी लेकिन दीर्घकालिक तौर पर टिकाऊ आर्थिक विकास की अनिवार्यता से हम नज़र नहीं फेर सकते.

प्रोत्साहन पैकेज का दौर

पिछले करीब साल भर से कोरोना की मार कभी कम, तो कभी ज़्यादा पड़ रही है. ऐसे में सरकारों के पास अपनी अर्थव्यवस्थाओं को फिर से खड़ा करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन पैकेजों की घोषणाओं के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह गया. दुनिया भर की सरकारों, बहुपक्षीय संस्थाओं और निजी क्षेत्रों द्वारा अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं में नई जान फूंकने के लिए 11 खरब अमेरिकी डॉलर या उससे भी ज़्यादा रकम लगाई गई है. लेकिन इस भारी-भरकम रकम में से जलवायु और पर्यावरण क्षेत्र के नाम प्रति वर्ष सिर्फ 600 अरब अमेरिकी डॉलर ही रखी रही है. इस समय दुनिया भर में जिस बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन पैकेज दिए जा रहे हैं उनके मद्देनज़र 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य पर लाने के लिए ज़रूरी प्रोत्साहन कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करने का अभी एक सुनहरा अवसर मिल रहा है.

यूरोपियन ग्रीन डील “विकास की एक नई रणनीति है जिसका लक्ष्य यूरोपीय संघ को एक आधुनिक, संसाधनों की कार्यकुशलता युक्त और प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था के तौर पर एक समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज में तब्दील करना है. एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें 2050 में ग्रीन हाउस गैसों का शुद्ध रूप से शून्य उत्सर्जन हो और जहां की आर्थिक प्रगति संसाधनों के अंधाधुंध इस्तेमाल का परिणाम न हो.” इसी तरह अमेरिकी सरकार ने 2 खरब अमेरिकी डॉलर के संघीय निवेश के ज़रिए चार वर्षों में एक हरित आर्थिक सुधार योजना का प्रस्ताव रखा है. यूनाइटेड किंगडम की सरकार ने पर्यावरण अनुकूल विकास की 10 सूत्रीय योजना पेश की है. इसके ज़रिए 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को शुद्ध रूप से शून्य तक लाने के मकसद के प्रति निजी क्षेत्र से बड़े पैमाने पर निवेश को आकर्षित करने का लक्ष्य रखा गया है. इस कार्यक्रम के ज़रिए ढाई लाख नई नौकरियों के अवसर पैदा होने का भी अनुमान है. फ्रांस और जर्मनी ने भी कार्बन उत्सर्जन को कम रखते हुए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया है. इसके तहत नवीकरणीय ऊर्जा, हरित परिवहन, प्रकृति को उसके असल रूप में बहाल करने और पर्यावरण के लिए फ़ायदेमंद दूसरी परियोजनाओं को वरीयता दी गई है. चीन ने 2060 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य तक लाने का लक्ष्य रखने का वादा किया है और ये भरोसा दिलाया है कि कार्बन उत्सर्जन का उसका स्तर 2030 से पहले अपने शीर्ष तक पहुंच जाएगा और उसके बाद उसमें गिरावट चालू हो जाएगी. दुनिया में कोयला क्षेत्र को वित्तीय सहायता पहुंचाने वाले दो प्रमुख देशों- जापान और दक्षिण कोरिया ने भी हाल ही में 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य तक लाने का लक्ष्य रखा है. इसके साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़), विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा संस्था (आईईए) ने हरित सुधार के प्रयासों और उपायों के प्रस्ताव सामने रखा है.

एक तरफ़ इस महामारी के प्रभाव से जैसे-जैसे नौकरियां जाने के मामले बढ़ रहे हैं, सरकारों पर मौजूदा उद्योग धंधों को उसी प्रकार जारी रखने का दबाव बढ़ता जा रहा है. मुमकिन है कि इसमें से कई उद्योग जीवाश्म आधारित ईंधनों से संचालित हो रहे हों.

हालांकि, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकारों को इस रास्ते में सामंजस्य बिठाने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. एक तरफ़ इस महामारी के प्रभाव से जैसे-जैसे नौकरियां जाने के मामले बढ़ रहे हैं, सरकारों पर मौजूदा उद्योग धंधों को उसी प्रकार जारी रखने का दबाव बढ़ता जा रहा है. मुमकिन है कि इसमें से कई उद्योग जीवाश्म आधारित ईंधनों से संचालित हो रहे हों. वहीं दूसरी ओर आर्थिक मोर्चे पर खुद को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रही कुछ सरकारें और कारोबारी जलवायु परिवर्तनों से जुड़े नियमों समेत पर्यावरण संरक्षण से जुड़े तमाम कायदों को वापस लिए जाने पर ज़ोर लगा रहे हैं. मिसाल के तौर पर अमेरिका, चीन और दक्षिण कोरिया में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को फिर से खड़ा करने के लिए घोषित पैकेज में हरित प्रावधानों से कहीं ज़्यादा उच्च-कार्बन उत्सर्जन वाले तत्व शामिल हैं. इनमें जीवाश्म ईंधन उद्योग को राहत पहुंचाने वाला पैकेज भी शामिल है. जबकि इन्हीं सरकारों के घोषित लक्ष्यों में कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने की बात है. अमेरिका भी पर्यावरण संबंधी थोड़े से एहतियातों के साथ करीब 3 खरब अमेरिकी डॉलर खर्च करने की योजना बना रहा है. इतनी बड़ी रकम में से शायद ही कुछ धनराशि कम-कार्बन उत्सर्जन वाले प्रयासों की तरफ़ जाए. इतना ही नहीं पर्यावरण को बचाने वाले कई नियम कायदों को भी हटा दिया गया है. अमेरिका के इस समूचे प्रोत्साहन पैकेज में से सिर्फ़ करीब 39 अरब अमेरिकी डॉलर ही हरित परियोजनाओं के लिए समर्पित किए गए हैं. चीन ने तो अपनी जीडीपी का सिर्फ़ 0.3 प्रतिशत नवीकरणीय और टिकाऊ विकास की दूसरी परियोजनाओं के नाम किया है. जीवाश्म आधारित ईंधनों का इस्तेमाल बढ़ाकर शायद ही कोई राष्ट्र संकट से बाहर निकल सके. दक्षिण पूर्व एशियाई देश- जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन पर आधारित अर्थव्यवस्थाएं हैं- उनके मामले में भी ऐसा ही देखा गया था. कार्बन पर निर्भरता में कमी, विकेंद्रीकरण और डिजिटाइज़ेशन ही इस क्षेत्र को स्वच्छ उर्जा की ओर ले जाने के मुख्य कारकों के रूप में बताए गए हैं. इनके साथ ही रोज़गार के अवसरों का निर्माण और पर्यावरण और जन स्वास्थ्य की चिंताओं पर भी ध्यान देने की बात कही गई है.

अर्थव्यवस्था दोबारा खड़ी करने की चुनौती

आज दुनिया भर की सरकारों के सामने ये प्रश्न खड़ा है कि अर्थव्यवस्थाओं को पटरी पर लाने के लिए 12 खरब अमेरिकी डॉलर के प्रोत्साहन पैकेज को इस महामारी द्वारा सामने लाई गई सामाजिक और आर्थिक मुश्किलों के समाधान के लिए कैसे इस्तेमाल में लाया जाए और इसके साथ-साथ पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों का कैसे निर्वाह किया जाए. पर्यावरण अनुकूल विकास को पटरी पर लाने के कई संभावित तरीके हो सकते हैं लेकिन इस समय हमें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को जीवाश्म ईंधन से हटाकर कम कार्बन उत्सर्जन वाले ईंधनों की ओर ले जाकर बेहद तेज़ रफ़्तार से रोज़गार के नए अवसर पैदा करने होंगे. नवीकरणीय ऊर्जा पर निवेश से जीवाश्म ईंधनों के मुक़ाबले ढाई गुणा ज़्यादा नौकरियां पैदा की जा सकती हैं. पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत सुधारने की दिशा में निवेश के रूप में एक डॉलर का खर्च करने पर बदले में पारिस्थितकी तंत्र से जुड़ी सेवाओं और आजीविका के रूप में करीब 9 डॉलर की वापसी होती है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि अगर दुनिया के देश विकास के हरित रास्ते पर चलते हैं तो आने वाले सालों में रोज़गार के 90 लाख नए अवसर पैदा किए जाने की संभावना है. दुनिया के देश अगर विकास के इस हरित विकल्प को अपनाते हैं तो सतत विकास के कुछ चुनिंदा लक्ष्यों की प्राप्ति में भी मदद मिल सकती है. इन लक्ष्यों में शामिल हैं- ऊर्जा के इस्तेमाल में कार्यकुशलता, बिजली से चलने वाले परिवहन के साधनों और बुनियादी ढांचे के इस्तेमाल की ओर बढ़ना, ब्रॉडबैंड की मूलभूत सुविधाओं में सुधार, प्रकृति को फिर से बहाल करना, जलवायु परिवर्तनों को आसानी से सह लेने वाले मूलभूत ढांचे का निर्माण, शहरों को नए सांचे में ढालना, नवीकरणीय ऊर्जा के अनुरूप इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड में सुधार लाना, रिसाइक्लिंग तकनीक को अपनाना, कचरा प्रबंधन, हाइड्रोजन ऊर्जा पर निवेश और कार्बन कैप्चर और स्टोरेज.

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि अगर दुनिया के देश विकास के हरित रास्ते पर चलते हैं तो आने वाले सालों में रोज़गार के 90 लाख नए अवसर पैदा किए जाने की संभावना है.

भले ही इस महामारी ने निर्धनता, लैंगिक समानता और स्वास्थ्य के मोर्चे पर दशकों की मेहनत से हासिल की गई तरक्की पर पानी फेर दिया हो लेकिन फिर भी इसने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पर्यावरण अनुकूल आर्थिक उपायों पर निवेश के नए दरवाज़े भी खोले हैं. एक बार फिर से एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए समावेशी, सतत और मज़बूत स्वरूप वाले हरित विकास पर निवेश करना होगा.

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