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11 फ़रवरी को इंटरनेशनल डे ऑफ विमेन ऐंड गर्ल्स इन साइंस मनाया जाता है. ये दिन STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्र के करियर में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की अपील करता है, ताकि इस अधिक विविधता वाला और समावेशी कामगार तबक़ा तैयार किया जा सके. इसके साथ ही साथ, ये दिन हमें ये भी याद दिलाता है कि विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक असमानता की समस्या से निपटने की ज़रूरत है. STEM की भागीदारी बढ़ाना आवश्यक है, क्योंकि भविष्य की नौकरियां ज़्यादातर तकनीक पर आधारित होने की संभावना है. ऐसे में STEM के हुनर, लंबे समय तक करियर में स्थिरता बनाए रखने के लिहाज से अहम है और ये विषय वेतन के मामले में पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर को कम करने में काफ़ी अहम भूमिका अदा कर सकते हैं. महिलाओं को सशक्त बनाने से न केवल व्यक्तियों को लाभ होगा, बल्कि इससे विविधता भरे नज़रियों और अब तक इस्तेमाल नहीं की गई संभावनाओं के द्वार भी खुलेंगे. ये बातें ग़रीबी उन्मूल, कुशल मज़दूरों की कमी और टिकाऊ आविष्कार जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए भी अहम हैं, और ये सब आर्थिक विकास को रफ़्तार देते हैं.
आंकड़े क्या बताते हैं?
शिक्षा में लैंगिक समानता, जिसका आकलन प्रति सौ लड़कों की तुलना में पढ़ाई के लिए आने वाली लड़कियों से किया जाता है, उसमें पिछले दो दशकों के दौरान ज़्यादातर देशों में लगातार सुधार आता देखा गया है. फिर भी, लड़कों और लड़कियों के स्कूल में प्रदर्शन में असमानता लगातार बनी हुई है और ये STEM विषयों में तो शुरुआती दौर से ही उजागर होने लगती है. 2022 के प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट एसेसमेंट (PISA) सर्वे में पाया गया था कि गणित में लड़कों को औसतन 9 अंकों की बढ़त हासिल थी. बहुत से क्षेत्रीय अंतरों के बावजूद लड़कों और लड़कियों के बीच ये फ़ासला 2015 से ही बना आ रहा है. इसी तरह, ट्रेंड्स इन इंटरनेशनल मैथमैटिक्स ऐंड साइंस स्टडी (TIMSS) 2019 से पता चला था कि लड़कों और लड़कियों के बीच गणित के मामले में फ़र्क़ चौथी कक्षा से ही शुरू हो जाता है. जिन देशों में लड़कियां, गणित में लड़कों के बराबर या उनसे भी बेहतर प्रदर्शन करती हैं, उन देशों में भी सवश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों की सूची में लड़कों का दबदबा दिखता है. वैसे तो विज्ञान में ये लैंगिक फ़ासला कम दिखता है. लड़कियां आम तौर पर बेहतर प्रदर्शन करती हैं और भौतिक विज्ञान की तुलना में उनका जीव विज्ञान पर भरोसा अधिक होता है. यही नहीं, लड़कियों की तुलना में लड़के STEM क्षेत्र में उच्च शिक्षा हासिल करने और करियर बनाने की ख़्वाहिश ज़्यादा जताते हैं. ये बात अलग अलग क्षेत्रों में किए गए तमाम अध्ययनों से निकलकर सामने आई है.
जिन देशों में लड़कियां, गणित में लड़कों के बराबर या उनसे भी बेहतर प्रदर्शन करती हैं, उन देशों में भी सवश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों की सूची में लड़कों का दबदबा दिखता है.
उच्च शिक्षा के मामले में STEM के ग्रेजुएट छात्रों में से केवल 35 प्रतिशत लड़कियां होती हैं. ये आंकड़ा पिछले एक दशक के दौरान नहीं बदला है. STEM विषयों में भी महिला कामगार ज़्यादातर देख-रेख वाली नौकरियों (मुख्य रूप से नर्सिंग) में दिखाई देती हैं. लेकिन, भौतिक विज्ञान, कंप्यूटिंग और इंजीनियरिंग जैसी नौकरियों में उनकी तादाद बेहद कम है.
चित्र 1: STEM क्षेत्र की स्टडी में लैंगिकता के आधार पर उच्च शिक्षा में भागीदारी

Source: Changing the Equations, Securing STEM Futures for Women, UNESCO, 2024
G20 देशों में कुल STEM नौकरियों में से केवल 22 फ़ीसद महिलाओं के पास थीं. G20 के जिन दस देशों के आंकड़े उपलब्ध हैं, उनमें से आठ देशों में STEM क्षेत्र के रोज़गार में महिलाओं की तनख़्वाह पुरुषों की तुलना में 85 प्रतिशत कम थी. महिलाओं के मामले में लैंगिकता पर आधारित अन्य कमियों का उल्लेख करते हुए यूनेस्को (UNESCO) कहता है कि महिला रिसर्चरों का करियर छोटा और कम आकर्षक होता है और उनको अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में रिसर्च के लिए कम सहायता मिलती है और नेतृत्व वाले पदों के चुनाव में अक्सर महिलाओं की अनदेखी कर दी जाती है. हिस्पैनिक और अश्वेत महिलाओं की भागीदारी तो और भी कम होती है और उनका वेतन भी बाक़ी महिलाओं की तुलना में कम होता है.
ऐसे में, भले ही आज ज़्यादा लड़कियां पढ़ने के लिए स्कूल जा रही हैं. लेकिन, शिक्षा में मामले में उनकी ये उपलब्धियां अर्थपूर्ण नौकरियों के रूप में करियर को आगे बढ़ाने के काम नहीं आ रही हैं. उच्च शिक्षा और करियर में आगे बढ़ने के मामले में महिलाओं और लड़कियों को लगातार संस्थागत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे STEM क्षेत्र में लैंगिक असमानता और बढ़ जाती है.
ये अंतर क्यों बना हुआ है?
2013 से 2023 के बीच प्रकाशित किए गए 165 अध्ययनों की संस्थागत समीक्षा करने से साफ़ तौर पर पता चलता है कि STEM क्षेत्र में लड़कियों की भागीदारी पर असर करने वाले कारणों में निजी, माहौल सबंधी और बर्ताव से जुड़ी वजहें हैं. इनमें से माहौल यानी की सांस्कृतिक अपेक्षाएं, लड़कियों की STEM के उपकरणों तक पहुंच न होना, महिला रोल मॉडल की कमी और दूसरे कारणों की तरफ़ 60 फ़ीसद अध्ययनों में इशारा किया गया है. केवल 17 अध्ययन (10 प्रतिशत) ही ऐसे हैं जो STEM में लड़कियों की कम भागीदारी के पीछे निजी कारण जैसे कि इन विषयों में कम दिलचस्पी और उनको लेकर लड़कियों की नकारात्मक सोच को ज़िम्मेदार बताते हैं.
2013 से 2023 के बीच प्रकाशित किए गए 165 अध्ययनों की संस्थागत समीक्षा करने से साफ़ तौर पर पता चलता है कि STEM क्षेत्र में लड़कियों की भागीदारी पर असर करने वाले कारणों में निजी, माहौल सबंधी और बर्ताव से जुड़ी वजहें हैं.
इसी तरह, यूनेस्को का जेंडर स्कैन सर्वे पांच स्तरों पर उन कारणों की चर्चा करता है, जो STEM में महिलाओं और लड़कियों की भागीदारी को प्रभावित करते हैं. इनमें व्यक्तिगत, पारिवारिक और हम उम्र लोग, स्कूल, काम की जगह और सामाजिक स्तर के कारण शामिल हैं (चित्र 2 देखें).
चित्र 2: STEM में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित करने वाले कारणों की रूप-रेखा

Source: Changing the Equations, Securing STEM Futures for Women, UNESCO, 2024
व्यक्तिगत स्तर की बात करें, तो ख़ुद की सोच, धारणाएं और सामाजिक अनुभव STEM से जुड़े विषयों में लड़कियों के सीखने की क्षमता और प्रदर्शन पर असर डालते हैं. परिवार और हम उम्र लोग ही लड़कियों की सोच, उनकी प्रेरणा और आकांक्षाओं को ढालते हैं. क्योंकि, सामाजिक स्तर पर की जाने वाली अपेक्षाओं की वजह से लड़कियों को STEM से जुड़ाव का एहसास कम होने लगता है. स्कूलों में पाठ्यक्रम, पढ़ने के मैटेरियल, पढ़ाने के तरीक़े, छात्रों और अध्यापकों के बीच संवाद और मूल्यांकन की प्रक्रियाएं ही ये निर्धारित करती हैं कि कोई लड़की STEM में अपना करियर बनाएगी या नहीं. कामकाज की जगह पर जो कारण असर डालते हैं, उनमें नौकरी पर रखने और प्रमोशन देने के तौर-तरीक़े, जीवन और कामकाज के बीच संतुलन को लेकर लचीलापन, लैंगिकता पर आधारित शोषण और हिंसा से निपटने की व्यवस्थाएं ही ये तय करती हैं कि STEM में करियर बनाने वाली महिलाएं अपने करियर में आगे काम करना जारी रखेंगी, और तरक़्क़ी कर पाएंगी अथवा नहीं. आख़िर में सामाजिक और सांस्कृतिक नियम क़ायदे, भूमिकाएं और हैसियत भी ये निर्धारित करते हैं कि STEM क्षेत्र की पढ़ाई करने और करियर बनाने में लड़कियों को किस तरह की सहायता की आवश्यकता होगी. वैसे तो नीतिगत क़दम उठाकर इन चुनौतियों से निपटना जा सकता है. लेकिन, बहुत सी महिलाएं इन्हीं कारणों के चलते STEM क्षेत्र में आगे नहीं आ रही हैं.
कौन सी बातें कारगर हैं?
STEM में पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी लाने के लिए बहुआयामी नज़रिया अपनाने की ज़रूरत है और इसके लिए नीतिगत क़दम उठाने, पाठ्यक्रम में सुधार करने, अध्यापकों को प्रशिक्षित करने, लड़कियों को गाइड करने और सामुदायिक संपर्क बढ़ाने जैसे क़दम उठाने होंगे. इन रणनीतियों से STEM में बचपन से लेकर करियर में आगे बढ़ने तक लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाली तमाम वजहों से निपटा जा सकता है.
एक बुनियादी क़दम जो लड़कियों को STEM में ख़ुद को कमतर समझने की सोच से उबारने के लिए उठाया जा सकता है वो उनको शुरुआती दौर से ही इन विषयों से परिचित कराना और सीखने के आसान मौक़े मुहैया कराना हो सकता है, जिससे घिसी-पिटी सोच आने से पहले ही लड़कियों में इन विषयों को लेकर दिलचस्पी और आत्मविश्वास पैदा हो सके. अमेरिका में टीचगर्ल्स, भारत में गर्ल्स व्हू कोड और गर्ल्स गो सर्कुलर जैसे प्रयास इस बात की सफल मिसाल हैं कि कैसे शिक्ष के कार्यक्रम लड़कियों को प्रेरित करते हैं, प्रशिक्षण और प्रोत्साहन देते हैं. ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासी समुदाय की लड़कियों के लिए STEM एकेडमी एक अनूठा कार्यक्रम है, जो ख़ास आदिवासी लड़कियों को सहायता उपलब्ध कराता है और उन्हें STEM से जुड़े पेशों में पढ़ाई करने और करियर बनाने के लिए प्रेरित करता है.
2021 के जेंडर स्कैन सर्वे में पाया गया था कि रिश्तेदार, दोस्त और अध्यापक ही मूल रूप से लड़कियों की पढ़ाई और करियर के चुनाव को प्रभावित करते हैं. ऐसे में रोल मॉडल तैयार करने और मेंटरिंग के कार्यक्रम बेशक़ीमती दिशा निर्देश और प्रेरणा प्रदान कर सकते हैं.
2021 के जेंडर स्कैन सर्वे में पाया गया था कि रिश्तेदार, दोस्त और अध्यापक ही मूल रूप से लड़कियों की पढ़ाई और करियर के चुनाव को प्रभावित करते हैं. ऐसे में रोल मॉडल तैयार करने और मेंटरिंग के कार्यक्रम बेशक़ीमती दिशा निर्देश और प्रेरणा प्रदान कर सकते हैं. बहुत से देश मेंटरशिप के कार्यक्रम चलाते हैं. मिसाल के तौर पर कज़ाख़िस्तान में STEM4ALL x mentoring her और भारत का विज्ञान ज्योति कार्यक्रम विज्ञान और इंजीनियरिंग को मुख्य शिक्षा का हिस्सा बनाकर महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देता है. जर्मनी में मेंटरिंग के ऑनलाइन कार्यक्रम साइबरमेंटर के मूल्यांकन में पाया गया कि सिर्फ एक साल की ऑनलाइन मेंटरिंग से भागीदारों के बीच STEM विषयों की जानकारी बढ़ाने और उससे जुड़े करियर को अपनाने के आत्मविश्वास में 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गई.
पाठ्यक्रम और पढ़ाने के तौर-तरीक़ों में सुधार करके STEM में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने के प्रयासों का भी काफ़ी सकारात्मक असर देखने को मिला है. मिसाल के तौर पर अमेरिका में नेशनल गर्ल्स कोलैबोरेटिव प्रोजेक्ट (NGCP) संगठनों को आपस में जोड़ता है, ताकि लड़कियों को STEM में बेहतर अवसर प्राप्त हो सकें. 2002 से ये कार्यक्रम लगभग 2 करोड़ भागीदारों को जोड़ चुका है. इसके अलावा, गर्लस्टार्ट कार्यक्रम, लड़कियों को STEM के सहज तजुर्बे उपलब्ध कराने पर ज़ोर देता है और उनके लिए एक मुफ़ीद माहौल मे अन्वेषण करने के लिए प्रोत्साहित करता है. यूरोपीय संघ के साइंटिक्स, हाईपैटिया प्रोजेक्ट और एरास्मस+FMEST जैसे कार्यक्रों ने दिखाया है कि लैंगिकता के प्रति संवेदनशील पाठ्यक्रम और पढ़ाने के प्रासंगिक तरीक़े प्रभावी ढंग से लड़कियों को STEM में आने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं और रूढ़िवादी बेड़ियां तोड़कर उनकी भागीदारी को बढ़ावा देते हैं.
कुछ और कार्यक्रम भी हैं, जो STEM में महिलाओं को कक्षा में आने से लेकर करियर के तौर पर अपनाने या फिर पारिवारिक अंतराल के बाद दोबारा इस धारा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन देते हैं. इन पहलों के तहत महिलाओं को वज़ीफ़े, इंटर्नशिप के मौक़े या फिर अप्रेंटिस बनने के अवसर दिए जाते हैं और साथ ही साथ काम-काज के ठिकानों में भेदभाव को ख़त्म करके समावेशी माहौल तैयार करते हैं. इसके कुछ उदाहरण टेकवुमेन (अमेरिका), वुमेन इन STEMM (ऑस्ट्रेलिया) और KIRAN (भारत का नॉलेज इन्वॉल्वमेंट इन रिसर्च एडवांसमेंट थ्रू नर्चरिंग कार्यक्रम) शामिल हैं.
निष्कर्ष
इन कार्यक्रमों के बावजूद प्रगति अपर्याप्त रही है और लैंगिक विभेद बना हुआ है. इसकी वजह ये है कि पहले तो ये कार्यक्रम और क़दम आम तौर पर बहुत छोटे स्तर पर उठाए गए हैं और ये सभी सामाजिक आर्थिक समुदायों की लड़कियों और महिलाओं के लिए उपलब्ध नहीं हैं. दूसरा ये पेचीदा मसला है जिसे सिर्फ़ व्यक्तिगत (लड़कियों) स्तर पर दखल देकर नहीं सुधारा जा सकता है. लोगों की सोच बदलने और STEM में काम-काज का माहौल सुधारने के लिए गिने चुने ही संस्थागत क़दम उठाए गए हैं और ऐसे में संस्थागत स्तर की बाधाएं बनी हुई हैं और जस की तस हैं.
अर्थपूर्ण बदलाव लाने के लिए हमें STEM में करियर बनाने वाली लड़कियों से जुड़े बेहतर आंकड़े जुटाने होंगे, तभी उनके जीवन की गुणवत्ता में वास्तविक सुधार लाया जा सकेगा.
STEM में पढ़ाई के लिए आगे आने और लड़कियों और महिलाओं के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के आंकड़े भी पर्याप्त नहीं हैं. अर्थपूर्ण बदलाव लाने के लिए हमें STEM में करियर बनाने वाली लड़कियों से जुड़े बेहतर आंकड़े जुटाने होंगे, तभी उनके जीवन की गुणवत्ता में वास्तविक सुधार लाया जा सकेगा. आख़िर में नीतियां बनाने के लिए जुटाए जा रहे आंकड़ों को इकट्ठा करने की प्रक्रिया पर लगातार नज़र बनाए रखने की ज़रूरत है, ताकि प्रभावी नीतिगत क़दम उठाए जा सकें. STEM में महिलाओं के संपूर्ण अनुभव की नुमाइंदगी करने वाले आंकड़े जुटाने के लिए व्यापक मानक तय करके नीतिगत निर्माता ऐसी अधिक प्रभावी रणनीतियां तैयार कर सकते हैं, जो लैंगिक समानता को बढ़ावा दें और इस क्षेत्र में समावेशी माहौल को मज़बूती प्रदान करें.
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