Image Source: Getty
लैटिन अमेरिकी देश पेरू में चीन द्वारा चांके बंदरगाह का निर्माण किया गया है और इसे कहीं न कहीं इस क्षेत्र में एक नए दौर की शुरुआत के तौर पर देखा जाना चाहिए. यानी आज लैटिन अमेरिकी देश पेरू में बीजिंग का उतना ही दबदबा है, जितना वाशिंगटन का है. ज़ाहिर है कि चीन द्वारा अमेरिका के प्रभाव में रहने वाले देशों में अपना दख़ल बढ़ाने के लिए पिछले कई वर्षों से प्रयास किए जा रहे हैं और भू-राजनीतिक स्तर पर इसके लिए तमाम हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. देखा जाए तो पेरू में चीन के वर्चस्व में बढ़ोतरी उसकी इन्हीं कोशिशों का नतीज़ा है. मौज़ूदा समय में लैटिन अमेरिका में चीनी के बढ़ते प्रभाव के लिए कहीं न कहीं अमेरिका की नीतियां भी ज़िम्मेदार हैं. गौरतलब है कि अमेरिकी प्रशासन ने लैटिन अमेरिकी देशों पर टैरिफ लगाने और अवैध घुसपैठ रोकने के लिए सख़्त क़दम उठाने की बात कह कर एक प्रकार से इस क्षेत्र में अपने दबदबे को खुद ही कम करने का काम किया है. अमेरिका के इन क़दमों की वजह से लैटिन अमेरिकी देशों में नए आर्थिक रिश्ते क़ायम करना उसके लिए असंभव सा हो गया है. ऐसे में चीन के लिए लैटिन अमेरिका में अपने पैर पसारना बेहद आसान हो गया है. एक तरफ चीन इस क्षेत्र में अपनी भागीदारी बढ़ाना चाहता है और महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का निर्माण करना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ लैटिन अमेरिकी देशों की सरकारें भी अपने यहां ढांचागत विकास के लिए चीन की ओर टकटकी लगाकर देख रही हैं, यानी चीन की वर्चस्व बढ़ाने की कोशिशों को अपने लिए एक अवसर के रूप में देखती हैं. हालांकि, अभी यह देखना बाक़ी है कि क्या अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका और लैटिन अमेरिकी देशों के बीच पैदा हुई इस खाई को भरने और इस क्षेत्र में नए आर्थिक रिश्ते बनाने की दिशा में पहल करेंगे या नहीं.
एक तरफ चीन इस क्षेत्र में अपनी भागीदारी बढ़ाना चाहता है और महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का निर्माण करना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ लैटिन अमेरिकी देशों की सरकारें भी अपने यहां ढांचागत विकास के लिए चीन की ओर टकटकी लगाकर देख रही हैं.
पेरू में चीन का बढ़ता प्रभाव
पेरू में बना चांके पोर्ट चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है. ज़ाहिर है कि लैटिन अमेरिकी देशों में चीन की बीआरआई पहल के अंतर्गत बनाई जा रही परियोजनाओं की एक लंबी फेहरिस्त है. इस सूची में अन्य परियोजनाओं के अलावा "कोस्टा रिका के जंगलों से होकर गुजरती सड़कें, बोलीविया और अर्जेंटीना में रेलवे लाइनें, त्रिनिदाद और टोबैगो में औद्योगिक पार्क एवं एक कंटेनर पोर्ट, इक्वाडोर में सबसे बड़ा पनबिजली संयंत्र शामिल है. इसके साथ ही इस सूची में एशिया को सीधे दक्षिण अमेरिका से जोड़ने वाली पहली अंतर महासागरीय फाइबर-ऑप्टिक केबल भी शामिल है, जो की चीन से चिली तक फैली हुई है." फिलहाल 22 लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके अलावा, ज़ल्द ही कोलंबिया भी इन देशों की सूची में शामिल हो सकता है. चीन द्वारा बीआरआई के अंतर्गत जितनी भी परियोजनाओं का निर्माण किया गया है, उनमें पेरू का चांके बंदरगाह सबसे सफल परियोजनाओं में से एक हो सकता है. बीआरआई के तहत चीन की तमाम ऐसी परियोजनाएं भी हैं, जो राजनीतिक भ्रष्टाचार, श्रम क़ानूनों के उल्लंघन, पर्यावरणीय मुद्दों या फिर लोगों के विरोध की वजह से बहुत धीमी गति से चल रही हैं या ठप पड़ गई हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि बीआरआई के अंतर्गत जो अच्छा काम हुआ है, उसकी तारीफ नहीं की जाए. जिस परियोजना पर बेहतर काम किया गया है, उसकी तारीफ की जानी चाहिए.
लैटिन अमेरिका में प्रशांत महासागर के किनारे बसे चांके और शंघाई समेत चीन के अलग-अलग आर्थिक केंद्रों के बीच की दूरी सिमट गई है. देखा जाए तो चांके पोर्ट कई मायनों में बेहद आकर्षक प्रतीत होता है.
जहां तक दक्षिण अमेरिका के साथ चीन के व्यापारिक रिश्तों की बात है, तो एक दशक से अधिक समय से चीन दक्षिण अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बना हुआ है. ऐसे में यह चांके बंदरगाह दक्षिण अमेरिका और चीन के बीच होने वाले व्यापार को और अधिक बढ़ाने में बेहद अहम साबित हो सकता है. पेरू में 'चांके से शंघाई' कहावत इन दिनों काफ़ी लोकप्रिय हो चुकी है. ज़ाहिर है कि इससे पता चलता है कि लैटिन अमेरिका में प्रशांत महासागर के किनारे बसे चांके और शंघाई समेत चीन के अलग-अलग आर्थिक केंद्रों के बीच की दूरी सिमट गई है. देखा जाए तो चांके पोर्ट कई मायनों में बेहद आकर्षक प्रतीत होता है. राजधानी लीमा से 80 किलोमीटर दूर स्थित चांके को पहले एक मछली पकड़ने वाले छोटे से गांव के रूप में जाना जाता था, लेकिन आज यह दक्षिण अमेरिका के सबसे बड़े बंदरगाहों में से एक बन चुका है. इस व्यापक बदलाव का श्रेय चीन को जाता है, जिसकी कॉस्को शिपिंग कंपनी ने इस बंदरगाह परियोजना के पहले चरण में 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है. चांके पोर्ट से हर साल 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई होने की उम्मीद है. इससे न केवल 8,000 से अधिक नौकरियों का सृजन होगा, बल्कि पेरू और चीन के बीच होने वाले व्यापार की लागत में भी 20 प्रतिशत की कमी आएगी. इसी हफ्ते पेरू के चांके पोर्ट से चीन के लिए पहला जहाज रवाना होगा, जिसके ज़रिए इंडियन देशों यानी दक्षिण अमेरिकी देशों से फलों को चीन भेजा जाएगा. चांके बंदरगाह की दूसरी ख़ूबियों की बात की जाए तो, अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस पोर्ट को इस प्रकार विकसित किया गया है कि यह 8.5 तीव्रता का भूकंप आसानी से झेल सकता है. इसके अतिरिक्त, चांके बंदरगाह लगभग पूरी तरह से स्वचालित है. यहां कंटेनरों को एक जगह से दूसरी जगह लाने-ले जाने के लिए मानव रहित इलेक्ट्रिक वाहन हैं, सामान को लोड करने और उतारने के लिए स्वचालित क्रेनें हैं. यहां सुरक्षा के भी पुख्ता इंतज़ाम किए गए हैं और फेशियल रिकग्निशन सिस्टम लगाया गया है यानी चेहरे को पहचानने के बाद ही अंदर प्रवेश दिया जाता है. इसके अलावा, सामान पर नज़र रखने के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी सिस्टम लगाया गया है, साथ ही पूरा बंदरगाह 5G इंटरनेट की सुविधा से लैस है. चांके पोर्ट में जो भी तकनीक़ी सिस्टम लगे हुए हैं और जो भी इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित किया गया है, उसे चीन से लाया गया है. इसमें BYD पिक-अप ट्रक और हुआवेई 5G टावर शामिल हैं. चांके बंदरगाह का नियंत्रण चीन की कॉस्को शिपिंग कंपनी के हाथों में है. चांके पोर्ट में हिस्सेदारी की बात करें, तो इसमें चीन की कॉस्को शिपिंग कंपनी की 60 प्रतिशत, जबकि पेरू की वोल्कन खनन कंपनी की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
आगे की राह
इस विश्वस्तरीय बंदरगाह की वजह से वर्तमान में चांके और पेरू पूरी दुनिया में चर्चा का केंद्र बने हुए हैं, लेकिन इस परियोजना के ज़रिए चीन की निगाहें पेरू से आगे भी अपने हित साधने पर टिकी हुई हैं. चांके पोर्ट का प्रमुख मकसद लैटिन अमेरिका के पैसिफिक कोस्ट से एशिया के बीच यात्रा के लिए एक शुरुआती बिंदु के तौर पर काम करना है. इस बंदरगाह के निर्माण से अब पेरू से चीन पहुंचने में काफ़ी कम समय लगेगा, यानी पहले जिस यात्रा में 35 दिन लगते थे, वो घटकर महज 23 दिन रह जाएंगे. अगर दुनिया भर में समुद्र के ज़रिए होने वाले व्यापार के लिहाज़ से देखा जाए, तो चांके पोर्ट के दो महत्वपूर्ण फायदे हैं. पहला लाभ थोड़े समय के लिए कहा जा सका है. दक्षिण एशिया के पैसिफिक कोस्ट से एशिया की ओर जाने के लिए जहाजों को पहले मैक्सिको के मंज़ानिला बंदरगाह, या फिर कैलिफोर्निया के लॉन्ग बीच बंदरगाह से होकर गुजरना पड़ता था. ज़ाहिर है कि अब इन दोनों बंदरगाहों पर दक्षिण अमेरिका की ओर से आने वाले जहाजों की संख्या में कमी आएगी. चांके पोर्ट के निर्माण का दूसरा लाभ आने वाले वर्षों में दिखेगा, लेकिन अभी इसके बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. यह फायदा इस क्षेत्र में बनने वाली एक दूसरी बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजना से जुड़ा है. इस बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का मकसद पेरू की पड़ोसी देशों से बेहतर कनेक्टिविटी स्थापित करना है, ताकि इन देशों का प्रशांत क्षेत्र के ज़रिए एशिया तक सुगम आवागमन सुनिश्चित हो सके.
इस बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का मकसद पेरू की पड़ोसी देशों से बेहतर कनेक्टिविटी स्थापित करना है, ताकि इन देशों का प्रशांत क्षेत्र के ज़रिए एशिया तक सुगम आवागमन सुनिश्चित हो सके.
पेरू के चांके चैंबर ऑफ कॉमर्स के निदेशक के मुताबिक़, " इस बड़े बंदरगाह को विकसित करने के पीछे चीन की मंशा इसके पड़ोस में स्थित ब्राज़ील तक आसान पहुंच स्थापित करना था. ब्राज़ील में सोयाबीन का उत्पाद बहुतायत में होता है और लौह अयस्क भी भरपूर मात्रा में है, ऐसे में ब्राज़ील से निर्यात होने वाली इन वस्तुओं को बंदरगाह तक ले जाने के लिए एक नई रेलवे लाइन बनाने की योजना बनाई गई है." ब्राज़ील और पेरू के बीच बनने वाली इस नई रेल लाइन की लागत $3.5 बिलियन तक हो सकती है. हालांकि, फिलहाल यह रेल परियोजना हक़ीक़त से कोसों दूर है. इसी प्रकार से पेरू के परिवहन मंत्री राउल पेरेज़ रेयेस का कहना है कि "उनके देश का लक्ष्य लैटिन अमेरिका का सिंगापुर बनना है, ताकि एशिया जाते समय मालवाहक जहाज यहां से होकर गुजरें. इसके अलावा, ब्राज़ील, वेनेजुएला, बोलीविया, पैराग्वे और अर्जेंटीना से अगर कोई व्यक्ति एशिया जाना चाहता है, तो उनके दिमाग में सबसे पहले पेरू का नाम आए और वो यहीं से अपनी यात्री शुरू करने के बारे में सोचे." ऐसा भी हो सकता है कि प्रशांत महासागर के तट पर स्थित दूसरे लैटिन अमेरिकी बंदगाहों से पहले कुछ माल इस चांके पोर्ट तक पहुंचे और फिर यहां से नए समुद्री व्यापार मार्ग के ज़रिए एशिया की ओर ले जाए जाए. इस सबके बावज़ूद, पेरू के तट को ब्राज़ील एवं दूसरे पड़ोसी देशों के साथ सड़क व रेल मार्ग से जोड़ने वाली महत्वाकांक्षी परियोजना, जिसे ‘बाई-ओसीनिक रेलवे’ यानी दो महासागरों को जोड़ने वाली रेलवे परियोजना भी कहा जाता है, जो कि अटलांटिक में ब्राज़ील के दक्षिण-पूर्वी तट से पेरू के चांके फैली हुई है, अभी भी एक सपना बनी हुई है और इसके धरातल पर उतरने के बारे में फिलहाल पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है.
हरि शेषशायी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में विजिटिंग फेलो हैं एवं कंसीलियम ग्रुप के सह-संस्थापक हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.