Author : Manish Vaid

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 04, 2024 Updated 0 Hours ago

ISA के भीतर साझा कोशिशें, परमाणु ऊर्जा में प्रगति और ग्रीन हाइड्रोजन में तरक्की स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए भारत और फ्रांस की पारस्परिक प्रतिबद्धता को उजागर करती है. 

‘फ्रांस और भारत: हरित भविष्य के साझेदार’

दिल्ली में फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों का राजकीय दौरा ऐतिहासिक क्षण रहा क्योंकि फ्रांस और भारत ने जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई और स्वच्छ ऊर्जा को आगे बढ़ाने के लिए साझा प्रतिबद्धता पर हस्ताक्षर किए. दोनों देशों का सहयोग सौर ऊर्जा से जुड़ी पहल से लेकर परमाणु ऊर्जा में प्रगति तक स्थिरता को आगे बढ़ाने में ठोस कार्रवाई की तरफ बदलाव के बारे में बताता है

मैक्रों के दौरे का नतीजा इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA), ग्रीन हाइड्रोजन और परमाणु ऊर्जा समेत कई क्षेत्रों में समझौतों और घोषणाओं के रूप में निकला जो कि वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए महत्वपूर्ण हैं

ISA के भीतर भारत-फ्रांस के बीच सहयोग द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाता है और वैश्विक सौर ऊर्जा प्रगति को बढ़ावा देता है. ये सतत विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन की क्षमता को दिखाता है. 

ISA के भीतर भारत-फ्रांस के बीच सहयोग द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाता है और वैश्विक सौर ऊर्जा प्रगति को बढ़ावा देता है. ये सतत विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन की क्षमता को दिखाता है. 

तेज़ी से नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों की तरफ मुड़ रही दुनिया में ISA वैश्विक सौर ऊर्जा के परिदृश्य को निर्धारित करने में एक निर्णायक ताकत के तौर पर उभर रहा है. 2030 तक सौर ऊर्जा में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ ISA एक तेज़ी से बढ़ते उद्योग में सबसे आगे खड़ा है. 2022 के 310 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 380 अरब अमेरिकी डॉलर की अनुमानित छलांग सौर ऊर्जा में निवेश को प्रेरित करने की गतिशीलता को रेखांकित करती है

जलवायु परिवर्तन सम्मेलन

नई दिल्ली में G20 नेताओं के घोषणापत्र और COP28 (संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन) में नेट-ज़ीरो (शून्य उत्सर्जन) के लक्ष्य के अनुरूप 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता तीन गुना और ऊर्जा दक्षता दोगुना करने का समर्थन किया गया. ISA इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सौर ऊर्जा अपनाने में तेज़ी लाने में सदस्य देशों का समर्थन करता है. इसके लिए सरकारों, उद्योगों और लोगों से सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता होती है. नेट-ज़ीरो टारगेट को पूरा करने के लिए वैश्विक सोलर फोटोवोल्टिक (PV) क्षमता 2023 से 2030 के बीच बढ़कर 600 GW/वर्ष और फिर 2030 से 2050 के बीच बढ़कर 1,000 GW/वर्ष होना चाहिए. ध्यान देने की बात है कि दिसंबर 2023 तक भारत और फ्रांस की सोलर PV स्थापित क्षमता क्रमश: 70.09 GW और 2.3 GW रही है

इसके अलावा, सोलर PV पैनल, बैटरी एवं वेस्ट मैनेजमेंट और सोलर हाइड्रोजन पर ध्यान देने वाली पहल सौर ऊर्जा की तकनीक में इनोवेशन के लिए ISA के अथक प्रयासों को रेखांकित करती है. फिर भी, केवल इनोवेशन से आगे सौर ऊर्जा में दुनिया भर के लोगों के उत्थान की भारी क्षमता है. इस संबंध में सौर ऊर्जा सिर्फ एक स्थिर समाधान के तौर पर बल्कि सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए एक प्रेरक के तौर पर भी उभरती है जो ISA के व्यापक मिशन के साथ नज़दीकी तौर पर जुड़ती है

भारत और फ्रांस की सहयोग से भरी कोशिशों का नतीजा COP27 के दौरान एक दूरदर्शी योजना के रूप में निकली यानी ISA का सोलरएक्स ग्रैंड चैलेंज. पहला सोलरएक्स ग्रैंड चैलेंज अफ्रीका पर केंद्रित है जिसका लक्ष्य सौर ऊर्जा में नए विचारों और समाधानों को तलाशना है. अफ्रीका के सौर ऊर्जा उद्योग से 100 से ज़्यादा स्टार्ट-अप्स इसमें भागीदारी करेंगे जहां लगभग 20 सबसे अच्छे स्टार्ट-अप्स को पैसे और तकनीकी समर्थन- दोनों की मदद मिलेगी.

18 अक्टूबर 2022 को एक ऐतिहासिक कदम के तहत फ्रांस और भारत ने “ग्रीन हाइड्रोजन के विकास पर भारत-फ्रांस रोडमैप” को अपनाया जिसका उद्देश्य एक सतत वैल्यू चेन के लिए अपने हाइड्रोजन इकोसिस्टम को मिलाना है.

इसके अलावा दोनों देशों ने विकासशील क्षेत्रों, अफ्रीका पर विशेष ध्यान के साथ, में सोलर प्रोजेक्ट के लिए संसाधन इकट्ठा करने के मकसद से साझा कोशिशें शुरू की हैं. ध्यान देने की बात है कि STAR-C (सोलर टेक्नोलॉजी एप्लिकेशन रिसोर्स- सेंटर) प्रोग्राम के तहत सेनेगल में एक सोलर एकेडमी की घोषणा ISA फ्रेमवर्क के भीतर उनकी स्थायी साझेदारी का उदाहरण है. भारत और फ्रांस की साझा दूरदर्शिता से जन्म लेने वाली ये पहल प्रभावी ढंग से सौर ऊर्जा के इस्तेमाल के लिए आवश्यक जानकारी और कौशल से अलग-अलग देशों को लैस करने की उनकी अडिग प्रतिबद्धता का प्रतीक है और इस तरह वैश्विक स्तर पर सतत विकास को प्रेरित करती है

फ्रांस और भारत ग्रीन हाइड्रोजन में सहयोग के लिए भी तैयार दिखते हैं जिससे कार्बन तटस्थता (कार्बन न्यूट्रेलिटी) के लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए स्वच्छ ऊर्जा की तरफ उनका बदलाव तेज़ होगा. वॉटर इलेक्ट्रोलिसिस के ज़रिए सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त ग्रीन हाइड्रोजन परिवहन, उद्योग और बिजली उत्पादन जैसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों को कार्बन मुक्त करने का एक रास्ता पेश करता है

18 अक्टूबर 2022 को एक ऐतिहासिक कदम के तहत फ्रांस और भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन के विकास पर भारत-फ्रांस रोडमैपको अपनाया जिसका उद्देश्य एक सतत वैल्यू चेन के लिए अपने हाइड्रोजन इकोसिस्टम को मिलाना है. इस रोडमैप के तहत दोनों देशों ने रेगुलेटरी फ्रेमवर्क (विनियामक रूप-रेखा) के विकास, कार्बन-कंटेंट सर्टिफिकेशन, वैज्ञानिक रिसर्च में सहयोग और औद्योगिक साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्धता जताई है

जहां तक बात भारत के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की है तो इसका व्यापक बजट 19,744 करोड़ रु. का है. इसके तहत 2030 तक 8 लाख करोड़ रु. से ज़्यादा के निवेश और 6 लाख नौकरियों के निर्माण की परिकल्पना की गई है. इसके अलावा भारत ने 2030 तक सालाना 5 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की क्षमता तक पहुंचने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, ये ऐसा कदम है जो उसके ऊर्जा परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा. इस पहल से 50 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन कम होगा और ईंधन आयात पर 1 ट्रिलियन रु. की चौंका देने वाली रकम की बचत होगी. भारत का ऊर्जा आयात वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 373.4 अरब अमेरिकी डॉलर (या 31.07 ट्रिलियन रुपया) पहुंचने की उम्मीद है, ऐसे में ये रणनीतिक बदलाव आर्थिक और पर्यावरण से जुड़ी स्थिरता के लिए अपार संभावनाएं रखता है. इसके अलावा 2024-25 के केंद्रीय बजट में इस मिशन के लिए 600 करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण राशि का प्रावधान किया गया है जो पिछले वित्तीय वर्ष के 297 करोड़ रु. के आवंटन की तुलना में 102 प्रतिशत के उल्लेखनीय उछाल को दिखाता है

वैसे तो भारत का परमाणु ऊर्जा सेक्टर मौजूदा समय में सालाना बिजली उत्पादन में 2 प्रतिशत से कम योगदान देता है लेकिन इसमें विकास की संभावनाएं बहुत ज़्यादा हैं. इसके विपरीत फ्रांस असैन्य परमाणु ऊर्जा में दुनिया में अग्रणी स्थान रखता है और अपने 65 प्रतिशत से 70 प्रतिशत बिजली उत्पादन के लिए परमाणु रिएक्टर पर निर्भर है जो दुनिया में उच्चतम अनुपात है.

दूसरी तरफ फ्रांस की दूरदर्शी राष्ट्रीय रणनीति का लक्ष्य हाइड्रोजन सेक्टर को बढ़ाना है और फ्रांस को यूरोप में एक बड़ी ताकत के तौर पर पेश करना है. प्लान फ्रांस 2030 के तहत वर्ष 2030 तक सालाना 7,00,000 टन नवीकरणीय या कम-कार्बन हाइड्रोजन के उत्पादन का लक्ष्य है और इसके अनुरूप 6.5 GW की इलेक्ट्रोलाइज़र क्षमता का उद्देश्य रखा गया है. इसके अलावा इस रणनीति ने 2030 तक 1.6 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम का महत्वाकांक्षी मूल्य लक्ष्य (प्राइस टारगेट) निर्धारित किया है.

 

नवीकरणीय ऊर्जा

फ्रांस की महत्वाकांक्षी रणनीति 2030 तक 7.2 अरब यूरो (या 641 अरब रु.) की सार्वजनिक निवेश योजना का दावा करती है. इसमें से 2 अरब यूरो (या 178 करोड़ रु.) 2022 तक और 3.4 अरब यूरो (या 302.6 अरब रु.) 2023 तक पूरा करने के लिए रखे गए हैं. तीन निर्णायक उद्देश्यों से प्रेरित ये रणनीति एक मज़बूत फ्रांसीसी इलेक्ट्रोलिसिस उद्योग को विकसित करने, भारी उद्योग एवं परिवहन सेक्टर को कार्बन मुक्त बनाने और आने वाले समय में हाइड्रोजन के उपयोग के लिए कौशल बढ़ाने के साथ रिसर्च और डेवलपमेंट को प्रोत्साहन देना चाहती है. फ्रांस अपने औद्योगिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 34 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य भी रखता है जो सतत औद्योगिक पद्धतियों की तरफ एक महत्वपूर्ण प्रगति है

इस तरह भारत और फ्रांस ने ग्रीन हाइड्रोजन में अपनी मददगार ताकत को पहचान कर एक रणनीतिक गठबंधन बनाया है. भारत जलवायु कार्रवाई के लिए दृढ़ प्रतिबद्धता और अपने प्रचुर सौर एवं पवन संसाधनों और ऊर्जा की बढ़ती मांग के साथ हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण और वितरण में फ्रांस की आधुनिक तकनीक और विशेषज्ञता में सहायक है. मिल-जुलकर कोशिशों और साझा विशेषज्ञता के ज़रिए दोनों देश व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हुए कार्बन मुक्त हाइड्रोजन की तरफ वैश्विक बदलाव का नेतृत्व करने का लक्ष्य रखते हैं

इसके अलावा, भारत और फ्रांस कम कार्बन और विश्वसनीय ऊर्जा के स्रोत के रूप में परमाणु ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में एक मज़बूत साझेदारी बना रहे हैं. वैसे तो भारत का परमाणु ऊर्जा सेक्टर मौजूदा समय में सालाना बिजली उत्पादन में 2 प्रतिशत से कम योगदान देता है लेकिन इसमें विकास की संभावनाएं बहुत ज़्यादा हैं. इसके विपरीत फ्रांस असैन्य परमाणु ऊर्जा में दुनिया में अग्रणी स्थान रखता है और अपने 65 प्रतिशत से 70 प्रतिशत बिजली उत्पादन के लिए परमाणु रिएक्टर पर निर्भर है जो दुनिया में उच्चतम अनुपात है. दोनों देशों के मौजूदा परमाणु ऊर्जा के हालात में ये स्पष्ट अंतर अलग-अलग रास्तों और परमाणु ऊर्जा तकनीक एवं उपयोग को आगे बढ़ाने में उनके बीच सहयोग के संभावित मार्ग पर प्रकाश डालता है

उनकी सहयोग वाली कोशिशें स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) के रिसर्च और डेवलपमेंट तक जाती है. SMR 1 MWe (मेगावॉट इलेक्ट्रिकल) से लेकर 300 MWe तक की विविध ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए बहुमुखी, मापनीय (स्केलेबल) समाधान पेश करता है. SMR जीवाश्म ईंधन से चलने वाले प्लांट और डीज़ल जेनरेटर की जगह ले सकता है. इस तरह वो ग्रिड स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा की मदद करते हुए नौकरियां बचा सकता है और उत्सर्जन कम कर सकता है. SMR नवीकरणीय ऊर्जा के साथ अपने एकीकरण के माध्यम से अलग-अलग इस्तेमाल के लिए हीट, विशेष रूप से उत्सर्जन से परहेज करने के मामले में मुश्किल औद्योगिक क्षेत्र में, भी मुहैया कराता है. इस तरह वो नेट-ज़ीरो टारगेट में मदद करता है

इसके समानांतर जैतापुर परमाणु ऊर्जा प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की गई है. छह EPR रिएक्टर, जिनमें से हर रिएक्टर की क्षमता 1650 MW है और इस तरह कुल उत्पादन क्षमता 9900 MW है, के साथ ये परियोजना दुनिया में सबसे बड़ी बनने वाली है. ये प्रोजेक्ट दोनों देशों के बीच तकनीकी सहयोग का सबूत है. EPR या यूरोपियन प्रेशराइज़्ड रिएक्टर तीसरी पीढ़ी का प्रेशराइज़्ड रिएक्टर है जो अपने आधुनिक सुरक्षा विशेषताओं के लिए जाना जाता है जैसे कि डबल कन्टेनमेंट बिल्डिंग, कोर कैचर और सहनशील सुरक्षा प्रणाली.  

इसके अलावा, भारत और फ्रांस ने परमाणु ऊर्जा से जुड़ी पहल को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित एक विशेष टास्क फोर्स स्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई है जो परमाणु सहयोग के अलग-अलग पहलुओं की निगरानी करेगा. ये टास्क फोर्स छोटे और विकसित मॉड्यूलर रिएक्टर में साझेदारी  स्थापित करने पर ध्यान देगा और रिएक्टर की सुरक्षा, रिसर्च, वेस्ट मैनेजमेंट और गैर-इलेक्ट्रिकल इस्तेमाल में आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा. इसके अलावा, टास्क फोर्स जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना की प्रगति की निगरानी करेगा और इस तरह स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन को कम करने की कोशिशों में योगदान करेगा

जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई और स्थिरता की तलाश में फ्रांस और भारत के बीच गठबंधन उम्मीद की किरण के रूप में उभरता है. ISA के भीतर उनकी साझा कोशिशें, परमाणु ऊर्जा में तरक्की और ग्रीन हाइड्रोजन में छलांग इनोवेशन और पर्यावरण से जुड़ी प्रगति के लिए संयुक्त निष्ठा दिखाता है. जैसे-जैसे वो एक स्वच्छ भविष्य की तरफ रास्ते का नेतृत्व कर रहे हैं, फ्रांस और भारत सहयोग की परिवर्तनकारी संभावना दिखाते हैं और इस तरह एक स्थिर विरासत और एक बेहतर कल के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं


मनीष वैद ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में जूनियर फेलो हैं

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