Published on Sep 06, 2023 Updated 0 Hours ago

राष्ट्रपति मैक्रों की हालिया श्रीलंका यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों को एक बड़ा राजनयिक कैनवास प्रदान करना है, ताकि वो अपने भू-राजनीतिक संबंधों में मज़बूती लाकर श्रीलंका के आर्थिक उभार की दिशा में काम कर सकें.

हिंद-प्रशांत में अपना मुकाम तलाशता फ्रांस: मैक्रों की श्रीलंका यात्रा के मायने

दक्षिण प्रशांत द्वीपों के दौरे के फ़ौरन बाद 28 जुलाई 2023 को फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की श्रीलंका यात्रा अपनी तरह की पहली क़वायद थी. वैसे तो ये यात्रा महज़ एक घंटे से थोड़ी ज़्यादा की रही, लेकिन इसने श्रीलंका में फ्रांस की बढ़ती दिलचस्पी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भीतर दक्षिण एशियाई देशों के बढ़ते महत्व और रुतबे को रेखांकित किया. दोनों देश अपने राजनयिक संबंधों की 75वीं सालगिरह मना रहे हैं, ऐसे में ये यात्रा महत्वपूर्ण है. ताज़ा दौरे का मक़सद रिश्तों के स्तर को ऊंचा उठाकर साझेदारी के एक नए युग की शुरुआत करना है. ज़ाहिर तौर पर दोनों नेताओं ने ऋण की नए सिरे से संरचना, पर्यटन, अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, समुद्री गतिविधियों, और राजनयिक मोर्चे पर उच्च-स्तरीय जुड़ाव शुरू करने पर चर्चा की. ये लेख श्रीलंका के साथ इस तरह संपर्क बढ़ाने की फ्रांसीसी क़वायदों के पीछे की दलीलों और इस दौरे की अहमियत पर रोशनी डालता है.

श्रीलंका से संपर्क बढ़ाने की फ्रांसीसी क़वायद के पीछे की दलीलें 

एक लंबे अर्से से फ्रांस ने श्रीलंका की ओर भू-राजनीतिक तौर पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया था; हालांकि, श्रीलंका में युद्ध अपराधों से संबंधित मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के कोर ग्रुप में फ्रांस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है. फ्रांस की इस क़वायद से श्रीलंका नाराज़ भी रहा है. दोनों देशों के आर्थिक संबंध भी बहुत निचले स्तरों पर हैं. 2021 में दोनों का कुल व्यापार 38.34 करोड़ अमेरिकी डॉलर था. हाल के वर्षों में दो घटनाक्रमों ने फ्रांस को श्रीलंका के प्रति अपने संपर्कों का नए सिरे से आकलन करने को प्रेरित किया है.

ये लेख श्रीलंका के साथ इस तरह संपर्क बढ़ाने की फ्रांसीसी क़वायदों के पीछे की दलीलों और इस दौरे की अहमियत पर रोशनी डालता है.

सबसे पहली बात ये है कि फ्रांस को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में श्रीलंका की अहमियत का एहसास हो गया है. दरअसल चीन के बढ़ते उभार से इस क्षेत्र में चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं, साथ ही अमेरिका-चीन के बीच तनातनी के चलते क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है. ज़ाहिर है फ्रांस इनके प्रभावों को लेकर चिंतित है. ये बात इस तथ्य से भी साफ़ होती है कि फ्रांस, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विशेष आर्थिक क्षेत्रों (जैसे प्रशांत क्षेत्र में फ्रेंच पॉलिनेशिया, फ़्यूचूना और न्यू कैलेडोनिया और हिंद महासागर में रीयूनियन द्वीप) पर बड़ा दावा करता है. इतना ही नहीं, अपनी यात्रा के दौरान राष्ट्रपति मैक्रों ने हिंद महासागर के देश के रूप में श्रीलंका के महत्व की ओर इशारा किया. उनके मुताबिक फ्रांस और श्रीलंका का साझा लक्ष्य है- स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत को संरक्षित करना. दरअसल, प्राथमिक रूप से रियूनियन द्वीप से श्रीलंका की भौगोलिक नज़दीकियों के चलते फ्रांस, श्रीलंका को अपना पड़ोसी मानता है. लिहाज़ा, क्षेत्रीय व्यवस्था में किसी भी तरह का खलल आने से फ्रांसी के हितों पर स्थायी प्रभाव पड़ेगा.

दूसरा घटनाक्रम है प्रमुख देशों द्वारा श्रीलंका की ओर पहुंच में बढ़ोतरी करना. भारत, अमेरिका, चीन और जापान विभिन्न स्तरों पर श्रीलंका के साथ जुड़ रहे हैं. वैसे तो भारत, श्रीलंका के साथ पारंपरिक संबंध साझा करता है, लेकिन उसने भी हाल के दिनों में इस साझेदारी को परिवर्तनकारी बनाने के लिए लगातार प्रयास किए हैं. इसी तरह, जापान ने भी श्रीलंका के साथ अपनी विकासात्मक साझेदारी और निवेशों में बढ़ोतरी कर दी है, जबकि अमेरिका ने श्रीलंका में अपनी राजनयिक पहुंच बढ़ा दी है. इन तमाम देशों द्वारा श्रीलंका के साथ जुड़ावों और संपर्कों में बढ़ोतरी की ये क़वायद, इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधि से भी प्रभावित है. दरअसल चीन, श्रीलंका को हिंद महासागर में अपने पूर्व-पश्चिम व्यापार मार्ग पर एक अहम और सामरिक रूप से मज़बूत स्थिति वाले देश समझता है. इस तरह श्रीलंका उसके बेल्ट एंड रोड पहल में एक महत्वपूर्ण भागीदार बन सकता है. चीन ने श्रीलंका को अरबों डॉलर के ऋण के रूप में भी सहायता दी है. लिहाज़ा, फ्रांस के लिए श्रीलंका की ओर संपर्कों की ये क़वायद राष्ट्रपति मैक्रों की उस योजना का हिस्सा मालूम होता है, जिसका मक़सद हिंद-प्रशांत के इस अहम क्षेत्र में फ्रांस के लिए एक स्वतंत्र भूमिका की तलाश करना है.

यही वजह है कि फ्रांस ने श्रीलंका को आर्थिक संकट के दौरान क़रीब 15 लाख अमेरिकी डॉलर की मदद की पेशकश की. एक ऐसे वक़्त में जब दुनिया की प्रमुख ताक़तें उस देश में निवेश करने से हिचक रही थीं और अपनी परियोजनाओं में विराम लगा रही थीं, फ्रांस ने श्रीलंका में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए अनुदानों का प्रस्ताव कर दिया. इसने श्रीलंका को मानवतावादी और मेडिकल सहायता भी मुहैया कराई. इसके अतिरिक्त यूरोपीय संघ ने श्रीलंका को 60 लाख अमेरिकी डॉलर की सहायता का प्रस्ताव किया और वहां हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने का वादा भी किया. इतना ही नहीं, पेरिस क्लब सदस्यों और G7 के साथ ऋण की पुनर्संरचना के ज़रिए श्रीलंका को बहुपक्षीय सहायता भी हासिल हुई. क्लब के साथ इन वार्ताओं से श्रीलंका को ऋण के पुनर्गठन से जुड़े भरोसे मिले, जिससे वो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मिलने वाले पैकेज की पहली किस्त तक पहुंच बनाने में सक्षम हुआ.

श्रीलंका का चौथा सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता होने के नाते फ्रांस ने भारत और जापान के साथ मिलकर एक साझा मंच/ऋणदाता समिति भी लॉन्च की है. वो इसकी अध्यक्षता भी कर रहा है. इस समिति का मक़सद क़रीब 17 अन्य देशों के साथ श्रीलंका के ऋण पुनर्गठन योजना पर चर्चा करना है. इस पहल से श्रीलंका को एक साझा ऋण पुनर्गठन योजना तैयार करने में मदद मिली है, साथ ही अपने सभी द्विपक्षीय आधिकारिक ऋणदाताओं की ओर बर्ताव की तुलनीयता (बराबरी का बर्ताव) में भी मददगार है. ये पहल श्रीलंका को अपने ऋणों का पुनर्गठन करने, अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने को बढ़ावा देने और IMF के पैकेज के बाक़ी बचे किस्तों को आगे हासिल करने में भी मदद करेगी.

श्रीलंका को हिंद महासागर में अपने पूर्व-पश्चिम व्यापार मार्ग पर एक अहम और सामरिक रूप से मज़बूत स्थिति वाले देश समझता है. इस तरह श्रीलंका उसके बेल्ट एंड रोड पहल में एक महत्वपूर्ण भागीदार बन सकता है.

श्रीलंका में ऐसी दिलचस्पी के मद्देनज़र इस बात में कोई अचरज नहीं कि राष्ट्रपति मैक्रों ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे को फ्रांस आकर न्यू ग्लोबल फाइनेंसिंग पैक्ट पर सामूहिक परिचर्चा को संबोधित करने का न्योता दिया. यात्रा के दौरान श्रीलंका के राष्ट्रपति ने पेरिस क्लब के अनेक सदस्यों से मुलाक़ात की. साथ ही फ्रांसीसी राष्ट्रपति के साथ द्विपक्षीय रिश्तों की प्रकृति पर भी चर्चा की. दोनों देशों के बीच इस तरह के संपर्कों से मैक्रों की ताज़ा श्रीलंका यात्रा की अहमियत रेखांकित हुई है.

श्रीलंका: नए साथियों की तलाश में

दूसरी ओर श्रीलंका भी अपने यहां फ्रांस की बढ़ती दिलचस्पियों में भारी फ़ायदे देख रहा है. सबसे पहली बात तो ये है कि इस इलाक़े में फ्रांस के हितों से श्रीलंका को नई विश्व व्यवस्था में अपने लिए नए मौक़े मिलते हैं और वो इनका भरपूर फ़ायदा उठा सकता है. आज़ादी के बाद के अपने पूरे इतिहास में श्रीलंका ने पाकिस्तान, अमेरिका और चीन जैसे देशों से हमेशा बेहतर रिश्तों की चाह रखी है. इस क़वायद का मक़सद भारत के ख़िलाफ़ संतुलनकारी उपाय तैयार करना और उसपर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता (राजनीतिक और आर्थिक) वाले हालात से परहेज़ करना है. इस तरह श्रीलंका ने व्यावहारिक रूप से अपनी विदेश नीति और विकास भागीदारियों में “ज़्यादा है, तो बेहतर है” का रुख़ बरक़रार रखा है. अब जबकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र का रुतबा बढ़ता जा रहा है, श्रीलंका इस इलाक़े की बड़ी ताक़तों (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, चीन और रूस) के साथ एक संतुलन क़ायम रख रहा है. उसे ऐसी क़वायदों के लिए कभी-कभी कुछ निश्चित कूटनीतिक और आर्थिक क़ीमत भी चुकानी पड़ती है. इस सिलसिले में श्रीलंका को फ्रांस की संतुलनकारी (टकरावों भरी नीति के उलट) विदेश नीति, अपने हितों के लिए फ़ायदेमंद और पहले से मौजूद अपने साथियों के लिए कम रुकावटों भरी लगती है.

दूसरी बात ये है कि श्रीलंका के ऋण पुनर्गठन से जुड़ी क़वायद में फ्रांस एक अहम साझेदार है. एक ओर भारत, जापान और फ्रांस ने साझा मंच लॉन्च किया है और चीन से इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने को कहा है, लेकिन भूराजनीति ने इस पहल की कामयाबी को सीमित कर दिया है. हक़ीक़त ये है कि चीन ने इस प्रस्ताव से मना करते हुए श्रीलंका को द्विपक्षीय सौदे की पेशकश की है. ये बात श्रीलंका की ऋण पुनर्गठन प्रक्रिया में एक बड़ी चुनौती है क्योंकि पेरिस क्लब के देशों ने श्रीलंका से किसी भी तरह की द्विपक्षीय वार्ताओं से परहेज़ करने को कहा है. चीन की प्रतिक्रिया की एक और संभावित वजह भारत, जापान और पश्चिमी जगत के साथ उसके ख़राब रिश्ते और संदेहों से भरा वातावरण है. चीन इस कार्यक्रम को अपने ऋणों और अदायगियों के प्रति अन्यायपूर्ण समझता है क्योंकि चीन ही श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता है. यही वजह है कि चीन के साथ इन वार्ताओं में प्रगति के लिए फ्रांस को “संतुलित करने” पर ज़िम्मेदारी आ जाती है; और राष्ट्रपति मैक्रों ने भी राष्ट्रपति विक्रमसिंघे को ऋण पुनर्गठन पर चीन के साथ अपने निरंतर जारी जु़ड़ावों के बारे में बताया है.

तीसरा, फ्रांस को श्रीलंका एक संभावित विकास साझीदार के तौर पर देखता है. 2005 से फ्रांस की विकास एजेंसी (AFD) श्रीलंका को तक़रीबन 36 करोड़ यूरो की मदद की पेशकश कर चुकी है. AFD ने श्रीलंका में हरित ऊर्जा, स्वास्थ्य, शिक्षा, वाटर ट्रीटमेंट, मछली पकड़ने के बंदरगाहों और गांवों, शहरी विकास, खेती आदि को बढ़ावा देने की क़वायदों में निवेश करना जारी रखा है. श्रीलंका, धीरे-धीरे उबरती अर्थव्यवस्था है, जो ग़ैर-टिकाऊ और अस्थिर ऋणों के कुप्रभावों को महसूस कर रही है. उसके लिए फ्रांस की सहायता और साझेदारी अहम होगी. फ्रांस से मिलने वाली मदद, श्रीलंका की सामाजिक-आर्थिक विकास में मददगार हो सकती है और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा दे सकती है। संयोग से मैक्रों की हालिया यात्रा से श्रीलंका में AFD कार्यालय की स्थापना का आश्वासन मिला है. इसने जल और ऊर्जा के क्षेत्र में फ्रांस के साथ सहयोग की ज़रूरत को एक बार फिर सतह पर ला दिया है. नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने की उम्मीद के साथ विक्रमसिंघे ने लोगों और पृथ्वी के लिए फ्रांस के पेरिस एजेंडे में भाग लेने में भी दिलचस्पी दिखाई है.

चीन की प्रतिक्रिया की एक और संभावित वजह भारत, जापान और पश्चिमी जगत के साथ उसके ख़राब रिश्ते और संदेहों से भरा वातावरण है. चीन इस कार्यक्रम को अपने ऋणों और अदायगियों के प्रति अन्यायपूर्ण समझता है क्योंकि चीन ही श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता है.

इसी तरह, श्रीलंका भी समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में फ्रांस को एक संभावित भागीदार के रूप में देखता है. मौजूदा वक़्त में श्रीलंका रक्षा सुधारों को बढ़ावा दे रहा है और समुद्री सुरक्षा और ख़तरों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. ऐसे में हिंद महासागर के रेज़िडेंट पावर के रूप में फ्रांस एक व्यवहार्य भागीदार हो सकता है. इससे दोनों देशों के लिए समुद्री और साझा सुरक्षा को मज़बूत करने में मदद मिलेगी. यहां तक कि मैक्रों की हालिया यात्रा के साथ भी फ्रांस, श्रीलंका में समुद्री संरक्षा और सुरक्षा के लिए एक स्कूल स्थापित करने और मानव तस्करी से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने पर रज़ामंद हुआ है. ग़ौरतलब है कि श्रीलंका फ़िलहाल IORA की अध्यक्षता कर रहा है, ऐसे में मैक्रों ने श्रीलंका के साथ सहयोग करने में भी दिलचस्पी जताई है. दूसरी ओर श्रीलंका भी हिंद महासागर आयोग में एक पर्यवेक्षक राष्ट्र बनने पर विचार कर रहा है.

निष्कर्ष 

सौ बात की एक बात ये है कि राष्ट्रपति मैक्रों की इस धुआंधार यात्रा ने श्रीलंका में फ्रांसीसी भागीदारी की बढ़ती अहमियत और अपने संबंधों में विविधता लाने की उसकी उत्सुकता के संकेत दे दिए हैं. इस यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों को अपने भू-राजनीतिक संबंधों को मज़बूत करने और श्रीलंका के आर्थिक सुधार की दिशा में काम करने के लिए एक बड़ा राजनयिक कैनवास प्रदान करना था. इस दौरे ने दोनों देशों के संबंधों को सकारात्मक दिशा की ओर आगे बढ़ाया है. हालांकि, आगे चलकर इन द्विपक्षीय संबंधों की हदें कई मसलों से तय होंगी. इनमें तमिल सुलह या मेल-मिलाप और मानवाधिकार के मुद्दे; श्रीलंका के साथ मज़बूती से निवेश और बातचीत करने की फ्रांस की क्षमताएं और दिलचस्पियां; और फ्रांस के हितों और संवेदनशीलताओं को प्रभावित किए बिना अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ संतुलन बनाने की श्रीलंका की क्षमता, शामिल है.

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