-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
भले ही एनईपी 2020 के अंतर्गत चल रही भारत की प्रारंभिक शिक्षा क्रांति शनै शनै गति प्राप्त कर रही है, परन्तु, उसकी पूर्ण सक्षमता को खोलने हेतु गुणवत्ता, निवेश और तत्परता की जरुरत है.
Image Source: Getty
सभी प्रकार की शिक्षा के लिए प्रारंभिक शैशव (बाल) शिक्षा (ईसीई) एक अत्यंत आवश्यक आधार है. पहले छह वर्षों में, बच्चों का दिमाग काफी तेज़ी से विक्सित होती है, जिसके तहत भाषा तर्क और अन्य सामाजिक कौशल के बीच सम्बन्ध स्थापित करते है. उच्च गुणवत्तापरक ईसीई से बच्चों में स्कूल की तैयारी को प्रोत्साहन मिलती है, सुविधाओं से वंचित बच्चों के लिए जरुरी विकास सम्बन्धी खाइयों को पाटता है, और शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक उत्पादकता से दीर्घकालीन लाभ प्राप्त करने योग्य होता है.

मस्तिष्क के अनुकूलन करने की क्षमता – जिसे मस्तिष्क की लोच (प्लास्टिसिटी) कहते ही – से हमारी उम्र कम होती जाती है. ( 2009 में ) हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑन द डेवलपिंग चाइल्ड के सहयोग से पैट लेविट द्वारा बनाये गए ग्राफ से प्रेरित है.
इसकी महत्ता के बावजूद, भारत में ईसीई ऐतिहासिक रूप से अनौपचारिक और सीमित थी. 1950 – 51 में, मात्र 303 प्री-प्राइमरी स्कूलों नें चंद हज़ार से भी कम शिशुओं को अपनी सेवा प्रदान कर पाने में सफल हुई है. आईसीड़ीएस के 1975 की शुरुआत में हुई आईसीड़ीएस की शुरुआत नें, पोषण, स्वास्थ्य सेवा और पूर्वस्कूली शिक्षा प्रदान करने वाले आंगनवाडी केन्द्रों की स्थापना को एक अति महत्वपूर्ण मोड़ या फिर बदलाव के तौर पर चिन्हित किया है. 2021 आते आते एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीड़ी ये नेटवर्क 14 लाख सेंटरों की संख्या में तब्दील हो चुके होने के फलस्वरूप एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएएस)प्रारम्भिक बाल विकास देखभाल की दिशा में, प्रारंभिक बाल देखभाल के क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी सार्वजानिक प्रणाली बन चुकी है.
2021 आते आते एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीड़ी ये नेटवर्क 14 लाख सेंटरों की संख्या में तब्दील हो चुके होने के फलस्वरूप एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएएस)प्रारम्भिक बाल विकास देखभाल की दिशा में, प्रारंभिक बाल देखभाल के क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी सार्वजानिक प्रणाली बन चुकी है.
हालाँकि, बाद में, पोषण के समक्ष शिक्षा नें पिछली सीट ले ली, चूँकि आंगनवाडी कार्यकर्ताएं क्रीडा (खेल) आधारित शिक्षाशास्त्र के साथ साथ प्रशासनिक कर्तव्यों को संतुलित कर पाने में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ रहा था.एक तरफ जहाँ, बुनियादी साक्षरता में क्रमश: सुधर हो रहा था, बच्चों में समझ, प्रारंभिक गणित, और सामाजिक – भावनात्मक विकास जैसे गहरे आधारभूत कौशल की कमी रहती थी. भारतीय प्रारंभिक बाल शिक्षा प्रभाव सम्बन्धी अध्ययन की मदद से इन खतरनाक गैप अथवा खाई के बारे में ज्ञात हुआ. उनमे से मात्र 15 प्रतिशत ही बुनियादी वस्तुओं से मेल खाती थी, और 30 प्रतिशत ही इन वस्तुओं के आकर को पहचान सकने में सफल होती थी.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020) एक ऐतिहासिक नीतिगत ढांचा है, जिसने ईसीई को भारतीय शिक्षा विजन के बिलकुल दिल में ईसीई को रखकर एक आदर्श परिवर्तन का प्रतीक है. गुणवत्तापरक ईसीई स्थापना हेतु कई प्रभावशाली सिफारिशें प्रस्तुत करती है:
राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) की भी जरुरत पड़ती है, जिनकी मदद से 3 से 8 वर्ष की उम्र सीमा के बच्चों केलिए राष्ट्रिय स्तर पर ईसीसीई फ्रेमवर्क सेटिंग पाठ्यक्रम, शिक्षाशास्त्र, एवं मूल्यांकन के स्तरों को निर्धारित की जा सके.
एक मजबूत ईसीई को स्पष्ट रूप से व्यक्त करके और उनके प्रमुख सक्षम स्थितियों को उचित आकार दे के, एनईपी 2020, प्रारंभिक शिक्षा के लिए सुदृढ़ नीतिगत ढांचों का निर्धारण करता है.
ईसीई के लिए एनईपी के विज़न अथवा दृष्टिकोण को अमल में लाने की दिशा में प्रगति एवं चुनौतियां.
एनईपी की शुरुआत के बाद से ही, भारत ने पूर्व – प्राथमिक शिक्षा तक पहुँच बना पाने की दिशा में अहम् प्रगति की है. 2024 तक, ग्रामीण भारत के तीन वर्ष से अधिक उम्र वाले तीन चौथाई से भी अधिक एवं चार साल के 83 प्रतिशत से अधिक के बच्चों का किसी भी प्रकार के प्री – स्कूल में नामांकन हो चुका होगा. एनईपी के तहत प्रस्तुत किये गए संशोधित शैक्षणिक निरंतरता से पहली कक्षा में, में निर्धारित उम्र सीमा से नीचे और आयु-अनुपयुक्त नामांकन में उल्लेखनीय तौर पर कमी आई है.
तालिका 1: ग्रामीण भारत में प्री-स्कूल / ईसीई कवरेज
एनईपी नें अक्टूबर 2022 में एनसीईआरटी द्वारा जारी, आधारभूत (फाउंडेशन) चरण (एनसीऍफ़-ऍफ़एस) के लिए, राष्ट्रिय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क के जरिये प्रारंभिक बाल शिक्षा क्षेत्र में ऐतिहासिक पाठ्यक्रम सुधार योजना की नींव रखी. इस फ्रेमवर्क नें ईसीई - को – औपचारिक स्कूली निरंतरता के सुदृढ़ीकरन किये, आंगनवाड़ियों को संशोधित आदर्शिला पाठ्यक्रम और ‘पोषण भी पढ़ाई भी’ पहल जैसे माध्यमों से शिक्षा को एकीकृत करने में सहायता प्रदान की, एवं निपुण भारत के अंतर्गत ईसीई समावेशन को अपना समर्थन प्रदान की. ‘पोषण भी पढाई भी’ पहल के अंतर्गत, 4.2 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को सोंशोधित ईसीई पाठ्यक्रम, शिक्षाशास्त्र एवं मूल्यांकन उपकरणों के तहत प्रशिक्षित किया गया है.
हालाँकि, एनईपी द्वारा परिकल्पित गुणवत्ता ईसीई के अमलीकरण की राह में कई बढ़ाएं है, जिनमें शामिल है:

स्रोतः सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन, 2024
गुणवत्तापूर्ण ईसीई सुनिश्चित करने की दिशा में एनईपी 2020 के दृष्टिकोण (विज़न) को साकार करने के लिए जरुरी पांच सिफारिशें
ईसीई में स्थित स्थायी चुनौतियों का सामना करने के लिए, भारत को एकीकृत, साक्ष्य-आधारित रणनीतियां जो को प्रणालीगत और कक्षा स्तरीय चुनौतियों को लक्षित करता है. गुणवत्तापूर्ण ईसीई तय करने की एनईपी के दृष्टिकोण को मूर्तरूप देने के लिए सरकार को पांच अनुशंसाओं को अमल में लाना होगा
सबसे पहले तो, खेल-आधारित-शिक्षा द्वारा स्कूल की तैयारी पर बल देने के उद्देश्य से 5–6 साल के बच्चों के लिए एक पूर्व-प्राथमिक (बाल वाटिका) कार्यक्रम को सार्वभौमिक बनाना होगा. 5 से 6 साल के बच्चों के लिए पूर्व-प्राथमिक कार्यक्रमों मे कक्षा 1 के बच्चों को तैयार करने के लिए, 3 से 6 वर्षीय बच्चों के साक्षरता पूर्व, संख्यात्मक्तापुर्व एवं सामाजिक भावनात्मक कौशल आदि पर पूर्ण बल देना चाहिए. उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, असम और गुजरात सरीखे राज्यों ने पूर्ण समर्पित प्री-स्कूल (बाल वाटिका) कार्यक्रम लांच किये, जहाँ गुजरात ने पांच वर्षों की उम्र वाले बच्चों के 93 प्रतिशत नामांकन दर्ज किये.
दूसरी, बजटीय आवंटन में वृद्धि एवं संसाधन आवंटन में सुधार. भारत ईसीई पर, स्कूली शिक्षा में inr. 37,000 बनाम inr. 1,263 प्रति शिशु खर्च करता है. जिसके लिए शिक्षकों, संसाधनों एवं बुनियादी ढांचों के लिए लक्षित धन की आवश्यकता पड़ती है. पंजाब की समर्पित बजट लाईनों नें ईसीई के लिए उपयुक्त शिक्षकों की भर्ती, कक्षा अपग्रेडेशन (उन्नयन) और टीएलएम के प्रावधान को सक्षम बनाया. जिसकी वजह से 2017 के दौरान, नामांकन एवं सीखने के वातावरण में काफी सुधार हुआ.
तीसरी बात, प्रशिक्षित, एवं समर्पित ईसीई शिक्षकों का विस्तारण. गूढ़ खेल आधारित शिक्षाशास्त्र देनें के लिए, व्यापक प्रशिक्षण और मार्गदर्शन द्वारा, उत्तरप्रदेश नें 20,000 समर्पित ईसीई शिक्षकों की बहाली कर रही है. ओडिशा का ‘शिशु वाटिका’ कार्यक्रम एवं देखभाल करने के लिए, 45000 शिशु सेविकाओं की बहाली कर रहा है, जबकि शिक्षक शिक्षा प्रदान करने पर ध्यान केन्द्रित कर रहे है.
चौथी बात, शिक्षकों को विकास के लिए जरुरी टी.एल.एम. से सुसज्जित करना है. उत्तर प्रदेश ने एनसीएफ-एफएस और एक शैक्षिक पैकेज पर आधारित एक राज्य पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क की स्थापना की, जिनमे शिक्षक मार्गदर्शक और क्लासरूम संसाधन भी शामिल थे. ओडिशा ने स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करके एन.सी.इ.आर.टी.द्वारा विकसित खेल आधारित शैक्षणिक किट को ‘जादू पेटी’ में संदर्भित की.
व्हाट्सअप द्वारा आराम से इस्तेमाल किये जाने योग्य शैक्षणिक गतिविधियों और छोटे आकारों वाली सामग्रियों के साथ अंतत: माताओं और पिता को शामिल किये जाने वाले जागरूकता अभियान शुरू करें. मध्यप्रदेश की मासिक बाल चौपाल कार्यक्रम, माता पिताओं को खेल आधारित शिक्षा के महत्व बतलाती है और साथ ही उन्हें सीखने के सामग्री मुहैया कराती है जिन्हें घर भी ले जाया जा सकता है.
एक तरफ जहाँ नामांकन में वृद्धि दर्ज हुई दिख रही है और एनईपी 2020 ने अपने आगे एक साहसिक दृष्टिकोण बना रखा है, वहां ईसीई के वादे अब भी अधूरी ही रही है. भारत एक और पीढ़ी को अब इस मजबूत प्रारंभिक शिक्षा के लाभों से वंचित नहीं रख सकता है. गुणवत्ता, शिक्षकों और शिक्षाशास्त्र में निवेश, बढ़ते बजट, और आपस में जुड़ते समुदाय, प्रत्येक बच्चे को वो एक नयी शुरुआत सुनिश्चित करती है, जिसे की वे हकदार है. भारत का भविष्य उच्च-गुणवत्ता वाली प्रारंभिक बाल शिक्षा प्रदान करने पर आधारित है – यह वास्तविकता में तब्दील होनी चाहिए.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Anustup Nayak is a Project Director at Central Square Foundation and leads the Early Childhood Education and Classroom Instruction & Practices team. He works closely ...
Read More +
Sanjay Koushik is a Senior Program Lead at Central Square Foundation and works in the Early Childhood Education team. He works closely with multiple state ...
Read More +