अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस 2022 राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के उन प्रावधानों की समीक्षा का एक उपयुक्त समय है, जो कि भारत में सार्वभौमिक साक्षरता यानी सभी को साक्षर करने के लक्ष्य को हासिल करने के पिछले प्रयासों को आगे बढ़ाने की दिशा में किए गए हैं. राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को वर्ष 1988 में प्रारंभ किया गया था, जिसे अब साक्षर भारत कार्यक्रम (एसबीपी) के नाम से जाना जाता है. इसे राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण द्वारा संचालित किया जाता है और देखा जाए तो इसने उल्लेखनीय प्रगति दर्ज़ की है. स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1951 में देश में औसत साक्षरता दर बहुत कम 18.33 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक़ बढ़कर 74.04 प्रतिशत हो गई है. इसके बावज़ूद, भारत अभी भी सबसे अधिक निरक्षरों या अनपढ़ों की आबादी वाला देश बना हुआ है. वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में निरक्षरों की संख्या लगभग 28.7 करोड़ है.
अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस 2022 राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के उन प्रावधानों की समीक्षा का एक उपयुक्त समय है, जो कि भारत में सार्वभौमिक साक्षरता यानी सभी को साक्षर करने के लक्ष्य को हासिल करने के पिछले प्रयासों को आगे बढ़ाने की दिशा में किए गए हैं.
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (एनएलएम) के अंतर्गत साक्षरता की परिभाषा है, “पढ़ने, लिखने और जोड़ने-घटाने का कौशल हासिल करने और इसे अपने दैनिक जीवन में लागू करने की योग्यता.” राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के दस्तावेज़ों के मुताबिक़, “औपचारिक रूप से साक्षर” होने का मतलब है (i) पढ़ने, लिखने और जोड़-घटाव करने में आत्मनिर्भरता, (ii) ग़रीबी और अभाव के कारणों के बारे में ज़ागरूकता और विकास की प्रक्रिया में भागीदार बनकर अपने हालात में सुधार के लिए क़दम बढ़ाने की योग्यता, (iii) आर्थिक स्थिति और सामान्य जीवन में सुधार के लिए कौशल प्राप्त करना और (iv) राष्ट्रीय एकता, पर्यावरण संरक्षण, महिलाओं के प्रति समानता का व्यवहार और छोटे परिवार के महत्व को समझते हुए उसका पालन करने जैसे मूल्यों को अपने जीवन में उतारना. यूनेस्को भी अब साक्षरता की पारंपरिक परिभाषा से आगे निकल चुका है. यूनेस्को के लिए अब साक्षरता का मतलब, “बढ़ते डिजिटलीकरण और सूचनाओं से भरपूर माहौल के बीच तेज़ी से बदलते विश्व में पहचान, समझ, विवरण, सृजन और संचार एवं संपर्क का एक साधन है.” ज़ाहिर है कि यह सभी बातें एनईपी 2020 में भी समाहित हैं.
वर्ष 1991 की भारत की जनगणना में साक्षरता की एक व्यवहारिक परिभाषा के तहत सात वर्ष से अधिक आयु के साक्षर व्यक्तियों की संख्या की समान आयु से ऊपर की जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में गणना की गई है. नेशनल सैंपल सर्वे 75वां राउंड (जुलाई 2017- जून 2018) के अंतर्गत केवल 7 से 35 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्तियों का सर्वेक्षण किया गया है. इसके मुताबिक़ इस आयु वर्ग में औसत साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत होने का अनुमान है. इस सर्वेक्षण में शहरी और ग्रामीण आबादी के बीच औसत साक्षरता दर को लेकर स्पष्ट रूप से बहुत बड़ा अंतर देखने को मिला है. ग्रामीण इलाकों में जहां औसत साक्षरता दर 73.5 प्रतिशत दर्ज़ की गई, वहीं शहरी क्षेत्रों में यह 87.7 प्रतिशत है. इसी प्रकार से पुरुष और महिला साक्षरता दर में भी बड़ा अंतर दिखाई दिया है. ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पुरुष और महिला साक्षरता में यह अंतर 16.5 प्रतिशत है, वहीं शहरी क्षेत्रों में यह अंतर लगभग 10 प्रतिशत है. औसत साक्षरता दर की बात करें तो 81.5 प्रतिशत ग्रामीण पुरुषों और 92 प्रतिशत से अधिक शहरी पुरुषों की तुलना में इस आयु वर्ग की केवल 65 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं ही साक्षर हैं. हालांकि यह सभी जानते हैं कि वहां काफ़ी भौगोलिक भिन्नताएं भी हैं और यह ना सिर्फ़ ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर शिक्षा की सुविधाओं तक पहुंच की कमी के कारण हैं, बल्कि जातिगत और दूसरी अन्य असमानताओं के कारण भी हैं.
दुनियाभर में 77.1 करोड़ लोग निरक्षर हैं और जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं. यूनेस्को की अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस 2022 मनाने की घोषणा के पीछे प्रमुख वजह भी यही है. ये ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें बुनियादी तौर पर पढ़ना और लिखना तक नहीं आता है और वे अत्यधिक दयनीय हालातों का सामना कर रही हैं.
दुनियाभर में 77.1 करोड़ लोग निरक्षर हैं और जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं. यूनेस्को की अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस 2022 मनाने की घोषणा के पीछे प्रमुख वजह भी यही है. ये ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें बुनियादी तौर पर पढ़ना और लिखना तक नहीं आता है और वे अत्यधिक दयनीय हालातों का सामना कर रही हैं. लगभग 2.4 करोड़ विद्यार्थी, जिनमें से 1.1 करोड़ बच्चियों और किशोरियों के शामिल होने का अनुमान है, हो सकता है कि वे महामारी की वजह से भविष्य में कभी भी औपचारिक शिक्षा की तरफ ना लौट पाएं. अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस 2022 की थीम, ‘ट्रांसफॉर्मिंग लिटरेसी लर्निंग स्पेस’, ना सिर्फ़ सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण, समान और समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करने का एक अवसर है, बल्कि साक्षरता के स्थानों के मूलभूत महत्व पर भी पुनर्विचार करने का एक मौक़ा है. यूनेस्को की घोषणा में यह भी कहा गया है कि साक्षरता की इस मुहिम में कोई भी पीछे ना छूटे, यह सुनिश्चित करने के लिए हमें, “एक एकीकृत दृष्टिकोण के जरिए मौज़ूदा शिक्षा के स्थानों को समृद्ध करने और बदलने की ज़रूरत है, साथ ही साक्षरता को जीवनभर की शिक्षा के तौर पर सक्षम बनाने की आवश्यकता है.”
यूनेस्को द्वारा साक्षरता को लेकर इस प्रकार की जो भी सोच प्रदर्शित की गई है, वो एनईपी 2020 के साथ बहुत अच्छी तरह से मेल खाती है. एनईपी 2020 भी ना केवल ‘सभी तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए समान और समावेशी पहुंच’ को अपने केंद्र में रखती है, बल्कि सार्वभौमिक साक्षरता हासिल करना ही उसका भी एक बड़ा लक्ष्य है. एनईपी 2020 की प्रमुख सिफ़ारिशों में से एक है, ऐसे स्कूल कॉप्लेक्स का निर्माण करना, जो तमाम ज़रूरी संसाधन से लैस हों और उनका कई स्कूलों द्वारा उपयोग किया जा सकता हो. इतना ही नहीं एनईपी 2020 में इन कॉम्पलेक्स और संसाधनों को स्कूल के समय के बाद युवाओं और वयस्कों के लिए भी उपलब्ध कराने की सिफ़ारिश की गई है. नई शिक्षा नीति में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सभी समुदायों और शैक्षणिक संस्थानों, जैसे स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और सार्वजनिक पुस्तकालयों को सशक्त और आधुनिक बनाया जाएगा ताकि सभी छात्रों की आवश्यकताओं एवं हितों को पूरा करने वाली पुस्तकों की पर्याप्त आपूर्ति और उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके, जिनमें दिव्यांग विद्यार्थी भी शामिल हैं. एनईपी 2020 में उल्लेख किए गए अन्य उपायों में सभी मौज़ूदा पुस्तकालयों को विकसित कर उन्हें सशक्त करना, ग्रामीण इलाक़ों में पुस्तकालय स्थापित करना, वंचित क्षेत्रों में पढ़ाई के लिए कमरे स्थापित करना, पाठ्य सामग्री को भारतीय भाषाओं में आकर्षक और व्यापक रूप से उपलब्ध कराना, बच्चों के लिए लाइब्रेरी और मोबाइल पुस्तकालयों को खोलना, सभी विषयों पर देशभर में बुक क्लबों की स्थापना करना और शैक्षणिक संस्थानों एवं पुस्तकालयों के मध्य अधिक से अधिक सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है. नई शिक्षा नीति 2020 में इसका भी प्रावधान किया गया है कि सभी साझा स्थान, जैसे स्कूल, स्कूल कॉप्लेक्स, सार्वजनिक पुस्तकालय, विशेष प्रयोजन वाले प्रौढ़ शिक्षा केंद्र (एईसी) आदि आईसीटी से सुसज्जित होंगे और सामुदायिक जुड़ाव और संवर्धन गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे. प्रौढ़ शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी आधारित विकल्प, जैसे कि ऐप्स, ऑनलाइन पाठ्यक्रम/मॉड्यूल्स, सैटेलाइट आधारित टीवी चैनल, ऑनलाइन पुस्तकें और आईसीटी से लैस पुस्तकालय और एईसी विकसित किए जाएंगे. ये सभी बदलाव गुणवत्तापूर्ण प्रौढ़ शिक्षा को ऑनलाइन या मिलेजुले तरीके से संचालित करने में भी सक्षम बनाएंगे.
प्रौढ़ शिक्षा
पूर्व में सभी को साक्षर बनाने के लिए एनएलएम यानी राष्ट्रीय साक्षरता मिशन और सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) सरकार के प्राथमिक साधन रह चुके हैं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी सभी उम्र के बच्चों के साथ-साथ युवाओं और वयस्कों के लिए शिक्षा के अवसरों तक पहुंच की कमी की चुनौती से निपट रही है. उदाहरण के लिए, एनईपी 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों को औपचारिक शिक्षा के दायरे में ला रही है और आठ वर्ष की आयु तक के हर बच्चे को मूलभूत साक्षरता और अंक ज्ञान (एफएलएन) प्राप्त करने को लेकर काफ़ी बल दे रही है. इसमें बच्चों की शुरुआती देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) दोनों पर समान रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है. इसमें यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी बच्चे कक्षा 12 तक स्कूल में रहें, इसके लिए तमाम तरह के प्रयास किए गए हैं, ताकि बच्चों के स्कूल छोड़ने के संकट से पूरी तरह से निजात पाई जा सके. इस लेख में हमारा फोकस प्रौढ़ शिक्षा पर है.
एनईपी 2020 में साफ तौर पर कहा गया है कि स्वयंसेवकों और समुदाय की सहभागिता और उनका मिलकर आगे बढ़ना प्रौढ़ साक्षरता कार्यक्रमों की सफ़लता के लिए सबसे अहम कड़ी है. भारत और पूरी दुनिया में व्यापक रूप से इस क्षेत्र को लेकर किए गए अध्ययन और विश्लेषण भी इस तथ्य को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं.
जैसा कि एनईपी 2020 में साफ तौर पर कहा गया है कि स्वयंसेवकों और समुदाय की सहभागिता और उनका मिलकर आगे बढ़ना प्रौढ़ साक्षरता कार्यक्रमों की सफ़लता के लिए सबसे अहम कड़ी है. भारत और पूरी दुनिया में व्यापक रूप से इस क्षेत्र को लेकर किए गए अध्ययन और विश्लेषण भी इस तथ्य को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं. इसके साथ ही राजनीतिक इच्छाशक्ति, संगठनात्मक संरचना, उपयुक्त योजना बनाना, पर्याप्त वित्तीय सहायता और उच्च गुणवत्ता वाले योग्य एवं क्षमतावान शिक्षकों और स्वयंसेवकों को तैयार करना भी इन कार्यक्रमों की सफ़लता के लिए बेहद ज़रूरी हैं. नई शिक्षा नीति में आगे कहा गया है कि प्रौढ़ शिक्षा में समुदाय के सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे. इसके तहत गैर-नामांकित छात्रों और स्कूल छोड़ने वाले छात्रों को चिन्हित करने और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अपने समुदायों के माध्यम से यात्रा करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं/परामर्शदाताओं से अनुरोध किया जाएगा कि वे अपने दौरों के दौरान माता-पिता, किशोरों और वयस्क शिक्षा के अवसरों में रुचि रखने वाले अन्य लोगों के शिक्षार्थियों के रूप में और शिक्षक रूप में भी आंकड़े एकत्र करें. फिर वे इन आकांक्षी लोगों को स्थानीय प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों (एईसी) से जोड़ेंगे. विज्ञापन और घोषणाओं के माध्यम से प्रौढ़ शिक्षा के अवसरों का व्यापक प्रचार-प्रसार भी किया जाएगा और इसके लिए गैर सरकारी संगठनों एवं अन्य स्थानीय संगठनों की मदद भी ली जाएगी.
नई शिक्षा नीति के कार्यान्वयन का एक केंद्रीय पहलू वह महत्वपूर्ण कार्य है, जो वर्तमान में नए नेशनल पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) बनाने को लेकर किया जा रहा है. इसके तहत तैयार किए जा रहे चार पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क में से एक असाधारण और बेहतरीन वयस्क शिक्षा पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क है. एनईपी 2020 में कहा गया है कि वयस्क शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क में कम से कम पांच प्रकार के कार्यक्रम शामिल होंगे, जिनमें से प्रत्येक कार्यक्रम में स्पष्ट रूप से परिभाषित परिणाम होंगे, जैसे (ए) मूलभूत साक्षरता और अंक ज्ञान; (बी) महत्वपूर्ण जीवन कौशल (वित्तीय साक्षरता, डिजिटल साक्षरता, वाणिज्यिक कौशल, स्वास्थ्य देखभाल एवं ज़ागरूकता, बच्चों की देखभाल और शिक्षा और परिवार कल्याण); (सी) व्यावसायिक कौशल विकास (स्थानीय रोज़गार प्राप्त करने के नज़रिए से); (डी) बुनियादी शिक्षा (प्रारंभिक, मध्य और माध्यमिक स्तर की समकक्षता समेत); और (ई) सतत् शिक्षा (कला, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, संस्कृति, खेल, और मनोरंजन में समग्र वयस्क शिक्षा पाठ्यक्रम, साथ ही स्थानीय शिक्षार्थियों के लिए रुचि या उपयोग के अन्य विषयों, जैसे महत्वपूर्ण जीवन कौशल पर अधिक विकसित सामग्री समेत). अगले एक साल के भीतर यह फ्रेमवर्क तैयार होने की उम्मीद है.
एनईपी 2020 इस बात की सिफ़रिश करती है कि वयस्क शिक्षा पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क को इस तथ्य को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिए कि उनकी ज़रूरतें बच्चों के लिए डिज़ाइन की गई शैक्षणिक सामग्रियों से अलग होंगी. यह इसलिए भी आवश्यक होगा क्योंकि वयस्कों की शिक्षा के लिए प्रशिक्षकों/शिक्षकों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाएगा. प्रशिक्षकों/शिक्षकों की भर्ती और प्रशिक्षण राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर के संसाधन सहायता संस्थानों द्वारा विशेष रूप से बनाए गए प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों (एईसी) में शिक्षण की गतिविधियों को व्यवस्थित करने और उनकी अगुवाई करने के साथ-साथ स्वयंसेवी प्रशिक्षकों के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए किया जाएगा. प्रत्येक एचईआई के अपने स्थानीय समुदायों के साथ जुड़ने के मिशन के हिस्से के रूप में कुछ एचईआई समेत योग्य और अहर्ता प्राप्त समुदाय के सदस्यों को प्रोत्साहित किया जाएगा. साथ ही उन्हें वयस्क साक्षरता प्रशिक्षक या एक शिक्षक के रूप में सेवा करने के लिए एक लघु प्रशिक्षण कोर्स करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. उन्हें राष्ट्र के लिए उनकी महत्वपूर्ण सेवा के लिए विशेष तौर पर पहचाना जाएगा और मान्यता दी जाएगी. बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों की भागीदारी और जन समर्थन ही वो मुख्य वजह थी, जिसने एनएलएम के दौरान साक्षरता दर में भारी वृद्धि दर्ज़ करने में प्रमुख भूमिका निभाई. ऐसे में राज्य सरकारों से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वे साक्षरता बढ़ाने और वयस्क शिक्षा की दिशा में प्रयासों को बढ़ाने के लिए गैर सरकारी संगठनों और अन्य सामुदायिक संगठनों के साथ मिलकर कार्य करें.
इस पूरे विश्लेषण से यह साफ है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से सार्वभौमिक साक्षरता के इस बड़े अंतर को पाटने के लिए एक सशक्त मंच तैयार कर दिया गया है. ऐसे में अब यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि क्या राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रभावी तरीक़े से कार्यान्वित कर और इसके प्रावधानों का लाभ उठाकर सभी को साक्षर करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा या नहीं.
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