Image Source: Getty
प्रशांत द्वीप के देशों (पैसिफिक आइलैंड कंट्रीज़ या PIC) में 14 देश शामिल हैं जिन्हें तीन जातीय-भौगोलिक समूहों में बांटा जा सकता है: मेलानेशिया, माइक्रोनेशिया और पॉलीनेशिया. वैसे तो प्रशांत द्वीप के देश एक ही महासागर में एक-दूसरे के करीब हैं लेकिन संस्कृति, प्राकृतिक छटा और जलवायु में बहुत अधिक विविधता है. जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से PIC सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्रों में से एक है. ख़राब प्रभावों में बाढ़ एवं सूखा में बढ़ोतरी, चक्रवात, तूफान, ज़मीन का कटाव, तटीय ज़मीन का नुकसान और जैव विविधता एवं आजीविका की हानि शामिल हैं. जब तक ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी नहीं की जाती है, तब तक जलवायु प्रेरित घटनाएं बार-बार होती रहेंगी और उनकी तीव्रता में बढ़ोतरी जारी रहेगी.
हालांकि, PIC की हरित परिवर्तन की योजनाएं हैं जो न केवल ग्लोबल वॉर्मिंग को सीमित करने की दुनिया की कोशिशों को आगे बढ़ाएंगी बल्कि इन देशों को आर्थिक रूप से समर्थ भी बनाएंगी.
हालांकि, PIC की हरित परिवर्तन की योजनाएं हैं जो न केवल ग्लोबल वॉर्मिंग को सीमित करने की दुनिया की कोशिशों को आगे बढ़ाएंगी बल्कि इन देशों को आर्थिक रूप से समर्थ भी बनाएंगी. इन देशों में हरित परिवर्तन की योजनाओं में नवीकरणीय ऊर्जा एवं परिवहन समेत कम कार्बन वाले व्यवसायों में निवेश करना शामिल है क्योंकि ये देश अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए आयातित जीवाश्म ईंधन पर बहुत अधिक निर्भर हैं. स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव से इन देशों को जीवाश्म ईंधन की बढ़ती एवं कम-ज़्यादा होती लागत का सामना करने, महंगाई पर नियंत्रण करने और विदेशी मुद्रा बचाने में मदद मिलेगी.
PIC को जलवायु समर्थ बुनियादी ढांचा विकसित करने की ज़रूरत, पूजीं की दरकार
जलवायु ख़तरों का जवाब देने के लिए जलवायु समर्थ बुनियादी ढांचा तैयार करने के उद्देश्य से प्रशांत द्वीप के देशों को अगले कुछ वर्षों के दौरान बड़ी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होगी. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार केवल जलवायु समर्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए PIC की तरफ से औसत निवेश सालाना GDP के 6 से 9 प्रतिशत के बीच होना चाहिए जो कि अगले 10 वर्षों के लिए सालाना 1 अरब अमेरिकी डॉलर होगा. अगर राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के लक्ष्य और राहत प्रवाह (मिटिगेशन फ्लो) को शामिल किया जाता है तो ये आंकड़ा और भी बढ़ जाता है.
जलवायु समर्थ परियोजनाओं के लाभों के बावजूद वित्त व्यवस्था में हमेशा कमी
सीमित वित्तीय क्षमता और कम प्रति व्यक्ति आय अलग-अलग देशों की जलवायु समर्थ बुनियादी ढांचा और पूंजी प्रधान स्वच्छ ऊर्जा प्रणालियों को वहन करने की क्षमता में बाधा डालती हैं. PIC अपनी जलवायु वित्त से जुड़ी ज़रूरतों के लिए बाहरी पूंजी, विशेष रूप से रियायती सार्वजनिक पूंजी, की सहायता पर निर्भर है क्योंकि घरेलू पूंजी उनके जलवायु से जुड़े कदमों के लिए पर्याप्त नहीं होगी. ये देश हरित जलवायु की तरफ बदलाव के लिए वित्त व्यवस्था की भारी कमी का सामना करते हैं जो इस क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन की घटनाओं के लिए कमज़ोर बना सकती है और उनकी हरित परिवर्तन की योजनाओं को पटरी से उतार सकती है. यहां अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक जलवायु वित्त प्रदान करने वाले महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
इस लेख में हम कुछ वित्तीय साधनों की सिफारिश कर रहे हैं जिन्हें PIC में इस्तेमाल किया जा सकता है. ये साधन इन देशों की विशिष्ट वित्त व्यवस्था से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करते हुए सार्वजनिक वित्त की शक्तियों का लाभ उठा सकते हैं. बदले में ये PIC की हरित अर्थव्यवस्था की तरफ बदलाव में सहायता करते हुए उन्हें जलवायु समर्थ बुनियादी ढांचा में निवेश करने में मदद करेंगे.
बीमा की पेशकश
जलवायु घटनाओं की बढ़ती तीव्रता और बार-बार होना PIC को और अधिक असुरक्षित बनाता है. मौसम से जुड़ी चरम घटनाओं (एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स) में राहत के लिए बीमा के समाधान इन देशों और स्थानीय एवं कमज़ोर समुदायों को तत्काल वित्तीय समर्थन प्रदान कर सकते हैं. पारंपरिक बीमा समाधान मौसम से जुड़ी चरम घटनाओं से होने वाले नुकसान को कवर करते हैं लेकिन नुकसान के लिए दावा करना खर्चीला और समय लेने वाला हो सकता है जो कमज़ोर समुदायों के लिए असुविधाजनक है जिन्हें तुरंत वित्तीय समर्थन की आवश्यकता होती है. इसलिए पैरामीट्रिक इंश्योरेंस एक अधिक उपयुक्त समाधान है. ये एक प्रकार का कवरेज है जो बीमा धारकों को वास्तविक नुकसान होने के बाद क्षतिपूर्ति प्रदान करने के बदले पहले से निर्धारित घटनाओं (जैसे कि तूफान) के आधार पर मुआवज़ा देता है. पैरामीट्रिक बीमा का सबसे बड़ा लाभ है जल्द भुगतान. पैरामीट्रिक बीमा का प्रीमियम महंगा है जो उसे कमज़ोर क्षेत्रों के लिए पहुंच से बाहर बनाता है. विकास वित्तीय संस्थानों और विकसित देशों को बीमा प्रीमियम की लागत का बोझ उठाने के लिए सब्सिडी और वित्तीय सहायता मुहैया कराना चाहिए. वो उन संस्थानों को पूंजी मुहैया करा सकते हैं जो सीमांत (फ्रंटियर) बाज़ारों में मुद्रा समाधान प्रदान करते हैं जहां मुद्रा बाज़ार मौजूद नहीं है. इससे लागत कम करने में मदद मिलेगी, पहुंच बढ़ेगी और ये सुनिश्चित होगा कि जोखिम का सामना करने वाले समुदायों को जलवायु से जुड़ी आपदाओं के दौरान समय पर भुगतान का लाभ मिले.
पारंपरिक बीमा समाधान मौसम से जुड़ी चरम घटनाओं से होने वाले नुकसान को कवर करते हैं लेकिन नुकसान के लिए दावा करना खर्चीला और समय लेने वाला हो सकता है जो कमज़ोर समुदायों के लिए असुविधाजनक है जिन्हें तुरंत वित्तीय समर्थन की आवश्यकता होती है.
करेंसी स्वैप विकल्पों पर सब्सिडी
PIC के लिए विदेशी पूंजी उधार लेना महत्वपूर्ण है लेकिन जलवायु से जुड़े कदम उठाने के लिए वित्त जुटाने में वो कई चुनौतियों का सामना करते हैं. एक चुनौती मुद्रा का जोखिम है क्योंकि विदेशी करेंसी की तुलना में घरेलू करेंसी का अवमूल्यन अधिक तेज़ी से होता है जो PIC समेत अधिकतर फ्रंटियर मार्केट में देखा जाता है. मुद्रा में ये तेज़ अवमूल्यन कर्ज़ लेने वालों के लिए विदेशी मुद्रा ऋण धारकों (करेंसी डेट होल्डर) की सेवा असुरक्षित बनाता है. इस जोखिम का समाधान आम तौर पर बाज़ार में करेंसी स्वैप ख़रीदकर किया जाता है. वैसे तो प्रशांत के देशों समेत फ्रंटियर बाज़ारों के लिए करेंसी स्वैप का विकल्प उपलब्ध है लेकिन इन देशों के लिए लागत बहुत अधिक है जिसकी वजह से वो कर्ज़ के रूप में विदेशी पूंजी लेने से बचते हैं. एक संभावित समाधान है स्वैप की लागत पर सब्सिडी प्रदान करना. विकसित देश और फाउंडेशन PIC के कर्ज़दारों के लिए करेंसी स्वैप की लागत पर सब्सिडी देने के लिए पूंजी मुहैया करा सकते हैं. संरचना तैयार करने के लिए किसी सलाह देने वाली कंपनी की सेवा ली जा सकती है. इसी मॉडल को बहुत कम विकसित और छोटे द्वीपीय देशों में भी दोहराया जा सकता है.
मिली-जुली वित्त व्यवस्था
जैसा कि नाम से ही पता चलता है, मिली-जुली वित्त व्यवस्था जोखिम समायोजित लाभ में सुधार करके निजी निवेशकों के लिए परियोजना को आकर्षक बनाने के उद्देश्य से स्मार्ट तरीके से प्राइवेट और रियायती सार्वजनिक पूंजी को मिलाती है. नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छ परिवहन जैसे कुछ विशेष व्यवसाय हैं जो PIC में वाणिज्यिक रूप से व्यावहारिक होने के करीब हैं लेकिन उन्हें भी कुछ रियायती वित्त व्यवस्था की आवश्यकता है ताकि निजी वित्त को आकर्षित करने के लिए वो वाणिज्यिक तौर पर मज़बूत बन सकें. यहां निजी वित्त आकर्षित करने के उद्देश्य से सार्वजनिक पूंजी का इस्तेमाल करने के लिए मिली-जुली वित्त व्यवस्था का उपयोग किया जा सकता है. सार्वजनिक वित्त रियायती ऋण पूंजी (डेट कैपिटल), अनुदानों और आंशिक क्रेडिट गारंटी के रूप में हो सकता है जो इन व्यवसायों के लिए बड़े पैमाने पर निजी पूंजी आकर्षित कर सकता है.
जलवायु स्वैप के लिए कर्ज़
‘डेट फॉर क्लाइमेट’ (DFC या जलवायु के लिए ऋण) स्वैप (डेट स्वैप का एक रूप) एक और वित्तीय समाधान है जो अलग-अलग देशों के हरित परिवर्तन में सहायता करते हुए उनकी तत्काल वित्तीय चुनौतियों को कम करता है. डेट स्वैप विशेष रूप से उन देशों के लिए तैयार किया गया है जो कर्ज़ के संकट से जूझ रहे हैं. डेट स्वैप के तौर-तरीकों में देनदारों के द्वारा कुछ कदम उठाने के बदले में मौजूदा कर्ज़ को छूट पर या भारी छूट पर वापस ख़रीदना (बाई बैक) शामिल है. विशेष रूप से DFC के लिए सामान्य तौर-तरीकों में लेनदार के द्वारा कर्ज़ लेने वाले देश को जलवायु अनुकूल परियोजनाओं में निवेश करने की शर्त के साथ भारी छूट की पेशकश करना या कर्ज माफ करना शामिल है. डेट स्वैप से बेहद ज़रूरी तरलता (लिक्विडिटी) आती है और कर्ज़ का बोझ कम होता है जिससे इन देशों को बाहरी कमज़ोरियों को कम करने में मदद मिल सकती है. कई प्रशांत द्वीपीय देशों पर कर्ज़ का भारी बोझ है जो उन्हें सामाजिक और जलवायु समर्थ बुनियादी ढांचे पर खर्च करने से रोकता है. DFC स्वैप अंतर्राष्ट्रीय वित्त तक उनकी पहुंच बनाकर जलवायु समर्थ अर्थव्यवस्था बनाने में मदद कर सकता है जिसका इस्तेमाल कर्ज़ की चिंताओं को कम करते हुए जलवायु समर्थ परियोजनाओं में निवेश करने में किया जा सकता है. एक समझौते का तौर-तरीका तैयार किया जा सकता है जो इन देशों में सरकारों को जलवायु से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा. उदाहरण के लिए, PIC को कोरल रीफ (मूंगे की चट्टान) की सुरक्षा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है जो जलवायु परिवर्तन से नष्ट हो सकती है. इस क्षेत्र में कोरल रीफ प्रशांत महासागर और दुनिया को काफी फायदा पहुंचाती है क्योंकि ये जैव विविधता, समुद्री आवास (हैबिटैट) और वैश्विक मछली पकड़ने के उद्योग में योगदान करती है. DFC को इस क्षेत्र की रक्षा करने के साथ-साथ दुनिया की भलाई में योगदान करने के उद्देश्य से PIC को प्रोत्साहित करने के लिए तैयार किया जा सकता है.
DFC स्वैप अंतर्राष्ट्रीय वित्त तक उनकी पहुंच बनाकर जलवायु समर्थ अर्थव्यवस्था बनाने में मदद कर सकता है जिसका इस्तेमाल कर्ज़ की चिंताओं को कम करते हुए जलवायु समर्थ परियोजनाओं में निवेश करने में किया जा सकता है.
PIC को जलवायु से जुड़ी घटनाओं को नाकाम करने और जलवायु के मामले में अपने राहत के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था और समाज में संरचनात्मक और संस्थागत परिवर्तन लाने की आवश्यकता है. इस बदलाव के लिए बड़े पैमाने पर पूंजी की ज़रूरत है लेकिन जलवायु पर कदम उठाने के लिए पूंजी इकट्ठा करने में कमी आई है. इन देशों को हरित अर्थव्यवस्था की तरफ बदलाव के दौरान जलवायु परिवर्तन को लेकर सामर्थ्य तैयार करने के लिए विकसित देशों से अतिरिक्त वित्तीय समर्थन की आवश्यकता है. अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक जलवायु वित्त नए वित्तीय साधनों का इस्तेमाल करके इस अंतर को भरने में एक उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकता है.
लाबण्या प्रकाश जेना क्लाइमेट पॉलिसी इनिशिएटिव (CPI) में सेंटर फॉर सस्टेनेबल फाइनेंस के प्रमुख हैं.
[1] Less developed markets compared to emerging markets
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.