Expert Speak Health Express
Published on Dec 12, 2022 Updated 0 Hours ago

2030 तक एड्स का उन्मूलन एक बड़ी चुनौती लगती है क्योंकि स्वास्थ्य की देखभाल तक समान रूप से लोगों की पहुंच के रास्ते में सामाजिक बाधाएं खड़ी हैं.

Ending Aids: एड्स को मिटाने के लिए सम्मिलन के स्तर पर ‘बराबरी’ के नज़रिया की दरकार!

नीतिगत क्षेत्र में किसी भी संकट को अंतर-अनुभागीयता के दृष्टिकोण से देखने के बाद उस समस्या के मूल कारण को स्वीकार करके और उसका समाधान करके व्यापक रूप से उससे निपटा जा सकता है. विश्व एड्स दिवस (1 दिसंबर) की थीम ‘समानता’ भी HIV की देखभाल तक पहुंच को रोकने वाली संरचनात्मक असमानता को ख़त्म करने के लिए वैश्विक एकजुटता का निर्माण करके इसी बात का सुझाव देती है. इसमें एक-दूसरे से जुड़े और कई क्षेत्रों के प्रयास के माध्यम से राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करके टेस्टिंग और रोकथाम की बात की गई है. स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर इस संगठित दृष्टिकोण का परिवर्तनकारी स्वभाव सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को हासिल करके 2030 तक एड्स के उन्मूलन के मौजूदा प्रयासों को बढ़ा सकते हैं. दुनिया भर में मौजूदा रुझान 2030 तक लक्ष्यों को हासिल करने की संभावना पर सवाल उठाते हैं. इन वर्षों में हासिल की गई प्रगति महामारी की वजह से आई मुश्किलों और कई तरह के आर्थिक एवं मानवीय संकटों से आई अस्थिरता के कारण थम गई थी. कई लक्ष्य तो पुरानी स्थिति में पहुंच गए हैं.

स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर इस संगठित दृष्टिकोण का परिवर्तनकारी स्वभाव सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को हासिल करके 2030 तक एड्स के उन्मूलन के मौजूदा प्रयासों को बढ़ा सकते हैं.

 

महामारी के दौरान संरचनात्मक असमानता, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में, ने सभी स्तरों पर वर्तमान कमज़ोरियों में बढ़ोत्तरी की है. महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा में बढ़ोत्तरी, उनके स्कूल से दूर रहने और दूसरे कारणों ने HIV को लेकर महिलाओं और लड़कियों की कमज़ोरी और असुरक्षा में बढ़ोतरी की है. HIV से संक्रमित लोगों में लगभग 54 प्रतिशत लड़कियां और महिलाएं हैं. HIV से संक्रमित 15 साल से ऊपर की लड़कियों और महिलाओं में से 80 प्रतिशत एंटी रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट (ART) हासिल करने में सक्षम हैं लेकिन आंकड़े बताते हैं कि 15 साल से ऊपर के सिर्फ़ 70 प्रतिशत लड़कों और पुरुषों को ही ये इलाज मिल पाता है. इससे इलाज तक पहुंच को लेकर सवाल खड़े होते हैं. गहराई से इस पर नज़र डालने पर पता चलता है कि पितृसत्तात्मक मानदंड हानिकारक मर्दानगी और सुरक्षित यौन संबंध एवं HIV टेस्ट नहीं कराने के पीछे ज़िम्मेदार है.  

क्या प्रगति हुई है

पिछले दो दशकों के दौरान HIV की टेस्टिंग और इलाज में विस्तार ने 1 करोड़ 66 लाख लोगों की जान बचाई है. जिन गर्भवती महिलाओं को HIV है, उन्हें ART के ज़रिए मदद पहुंचाकर बच्चों में संक्रमण को लगभग 54 प्रतिशत कम किया गया है. हालांकि एशिया, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका के देशों और पूर्वी यूरोप के देशों के बीच इन घटनाक्रमों की तुलना करने पर असमान प्रगति का पता चलता है. संयुक्त राष्ट्र (UN) महासचिव की रिपोर्ट में की गई सिफ़ारिशें असमानता के नज़रिये से संभावित समाधानों को देखती हैं. ये सिफ़ारिशें संक्रमण के मूल कारण से निपट सकती हैं और जोख़िम वाली जनसंख्या पर असर डालने वाली क़ानूनी और नीतिगत बाधाओं को ख़त्म करके रोकथाम की रणनीति को बढ़ा सकती हैं. 

भारतीय संदर्भ में देखें तो HIV का प्रसार वर्ष 2000 के 0.55 प्रतिशत के मुक़ाबले 2021 में घटकर 0.21 प्रतिशत रह गया है. प्रसार की दर इस बात का संकेत देती है कि जनसंख्या का कितना अनुपात किसी समय या किसी निश्चित समय में स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या से प्रभावित है और ये घटना की दर से अलग है क्योंकि घटना की दर किसी विशेष समय में स्वास्थ्य से जुड़ी नई समस्या के बार-बार होने को मापती है. NACO (नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइज़ेशन) की ताज़ा फैक्ट शीट सुझाव देती है कि वयस्क जनसंख्या में HIV प्रसार दर महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज़्यादा है. राज्य स्तर पर HIV की प्रसार दर पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में ज़्यादा है. इनमें मिज़ोरम में सबसे ज़्यादा (2.7 प्रतिशत), उसके बाद नागालैंड (1.36 प्रतिशत) और फिर मेघालय (.42 प्रतिशत) है. पिछले वर्षों की तुलना में आंकड़े बताते हैं कि नागालैंड को छोड़कर इन राज्यों में प्रसार दर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. दक्षिण के राज्यों आंध्र प्रदेश (.67 प्रतिशत), कर्नाटक (.46 प्रतिशत) और तेलंगाना (.47 प्रतिशत) में भी प्रसार दर ज़्यादा है. 

संयुक्त राष्ट्र (UN) महासचिव की रिपोर्ट में की गई सिफ़ारिशें असमानता के नज़रिये से संभावित समाधानों को देखती हैं. ये सिफ़ारिशें संक्रमण के मूल कारण से निपट सकती हैं और जोख़िम वाली जनसंख्या पर असर डालने वाली क़ानूनी और नीतिगत बाधाओं को ख़त्म करके रोकथाम की रणनीति को बढ़ा सकती हैं

कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) में वयस्क आबादी के बीच HIV की प्रसार दर राष्ट्रीय दर (.21 प्रतिशत) की तुलना में ज़्यादा है. ये राज्य/UT हैं दिल्ली (.31 प्रतिशत), गोवा (.31 प्रतिशत), हरियाणा (.22 प्रतिशत), महाराष्ट्र (.33 प्रतिशत), पंजाब (.28 प्रतिशत), तमिलनाडु (.22 प्रतिशत) और पुडुचेरी (.31 प्रतिशत). HIV की घटना की दर मिज़ोरम (1.31 प्रतिशत), नागालैंड (.51 प्रतिशत) और मेघालय (.37 प्रतिशत) में ज़्यादा है. मेघालय में घटना की दर में बढ़ोतरी का रुझान है. इन राज्यों में इंजेक्शन के ज़रिए ड्रग्स के इस्तेमाल की प्रसार दर भी अपेक्षाकृत ज़्यादा है. दिल्ली (.14 प्रतिशत), कर्नाटक (.04 प्रतिशत) और त्रिपुरा (.13 प्रतिशत) में पिछले वर्ष की तुलना में घटना दर में मामूली बढ़ोतरी हुई है. संख्या के मामले में HIV का बोझ सबसे ज़्यादा महाराष्ट्र (3.94 लाख) में है, उसके बाद आंध्र प्रदेश (3.21 लाख) और कर्नाटक (2.76 लाख) हैं. हालांकि, इन राज्यों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान सामान्य रूप से HIV से प्रभावित लोगों की संख्या में कमी आई है. मिज़ोरम, नागालैंड, मेघालय, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में वयस्क आबादी के बीच HIV के प्रसार का समाधान करने के मामले में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत में भी महामारी की वजह से HIV का पता लगाने में दिक़्क़त आई. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ज़्यादातर राज्यों में HIV के प्रसार में नियमित कमी दर्ज की गई है. मिज़ोरम, दादरा एवं नगर हवेली, सिक्किम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा जैसे राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में सालाना नये संक्रमण में प्रतिशत बदलाव बढ़ रहा है जबकि दूसरे राज्यों में कमी आ रही है (आंकड़ा 1 देखिए.)

आंकड़ा 1: 2010-2021 के बीच राज्य/UT के हिसाब से सालाना नये संक्रमण में प्रतिशत बदलाव

स्रोत: NACO इंडिया की HIV फैक्ट शीट का आकलन

संक्रमण की रोकथाम भारत के राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम और सिविल सोसायटी संगठनों के ज़रिए लोगों का जवाब इकट्ठा करने की दूसरी सामाजिक कोशिशों के केंद्र में है. UNAIDS के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 24 लाख लोग HIV के साथ ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं और लगभग 65 प्रतिशत मरीज़ों को ART मिल रही है. HIV पीड़ित 15 वर्ष से ज़्यादा के क़रीब 59 प्रतिशत लड़के एवं पुरुष ART हासिल कर रहे हैं जबकि इसी उम्र समूह की 70 प्रतिशत लड़कियों एवं महिलाओं को ART मिल रही है. इलाज हासिल करने की चुनौतियों को देखते हुए सामाजिक रुकावटों के मूल कारणों का समाधान करके इस अंतर को पाटना महत्वपूर्ण है. UNAIDS का लक्ष्य 2025 तक HIV टेस्टिंग, इलाज और विषाणु के संक्रमण को रोकने के मामले में 95-95-95 प्रतिशत दर को हासिल करना है. नीचे के आंकड़े से पता चलता है कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में विशेष क्षेत्रों में काम करके HIV पर नियंत्रण के मामले में प्रगति हासिल की है. 

आंकड़ा 2: राज्य/UT के हिसाब से 2018-19 से 2021-22 के बीच 95-95-95 पर प्रगति

स्रोत: NACO इंडिया HIV फैक्ट शीट| नोट: PLHIV का अर्थ है पीपुल लिविंग विद HIV (HIV के साथ ज़िंदगी गुज़ारने वाले लोग)

आगे का रास्ता

जेनेरिक HIV दवाओं के उत्पादन और वितरण के ज़रिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सहायता करने में भारत का प्रयास बेहद महत्वपूर्ण है. सेक्स वर्कर्स के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा के संवैधानिक अधिकारों की मान्यता के संदर्भ में उचित क़ानूनी और नीतिगत सुधार से जोख़िम वाली जनसंख्या के लिए HIV देखभाल तक सुरक्षित पहुंच का दरवाज़ा खुल जाएगा. बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल सरकार, 2022 में आपराधिक अपील संख्या 135, के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यौन हिंसा का सामना करने वालों के लिए सुरक्षा एवं समर्थन और पीड़ित के लिए उचित कार्यप्रणाली की बात कही थी. इसके अलावा इस फ़ैसले में सेक्स वर्कर्स के क़ानूनी अधिकारों के बारे में जागरुकता को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है. इस तरह के क़ानूनी फ़ैसले समुदाय के नेतृत्व वाले प्रयासों के माध्यम से नीतिगत लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच के मामले में कलंक को ख़त्म करने के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा बढ़ा सकते हैं. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में समुदाय के नेतृत्व वाली संगठित परियोजनाएं जैसे कि मैसूर में महिला सेक्स वर्कर्स के लिए आशोदय प्री-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PrEP) प्रदर्शन परियोजना को प्रभावशाली और सफल माना जाता है. इस तरह के प्रयास सामुदायिक स्तर पर लोगों को इकट्ठा करने और उन तक पहुंचने की वजह से सफल रहे. 2030 तक एड्स को ख़त्म करने को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च-स्तरीय बैठक में जो प्रतिबद्धता जताई गई थी, उसे हासिल करने के लिए इस तरह के प्रयासों का जोख़िम वाली जनसंख्या तक विस्तार करना आवश्यक है. 

दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत में भी महामारी की वजह से HIV का पता लगाने में दिक़्क़त आई. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ज़्यादातर राज्यों में HIV के प्रसार में नियमित कमी दर्ज की गई है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव की रिपोर्ट में 2030 तक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सामाजिक बाधाओं को ख़त्म करने में उपायों की संयुक्त सूची की सिफ़ारिश की गई है. इन उपायों में से एक है HIV प्रभावित लोगों और जोख़िम वाली जनसंख्या की पूरी तरह से फंडिंग और उनके साथ भागीदारी के ज़रिए समुदाय के नेतृत्व में जवाब देना. द्विपक्षीय दानकर्ताओं से फंडिंग की कमी इसे प्रभावशाली ढंग से लागू करने के पीछे बड़ी बाधा है. आंकड़े बताते हैं कि पिछले दशक के दौरान अमेरिका की तरफ़ से फंडिंग में 57 प्रतिशत की कमी आई है. दवाओं और स्वास्थ्य तकनीक तक समान पहुंच जैसी सिफ़ारिशों को पूरा करने के रास्ते में असमानता खड़ी है. UNAIDS की रिपोर्ट बताती है कि इथियोपिया, कैमरून और ज़ांबिया जैसे देशों में संक्रमण की रोकथाम के मामले में अमीरों और ग़रीबों के बीच अंतर अस्वीकार्य रूप से ज़्यादा है. 

इन अंतरों को दूर करने के लिए काफ़ी ज़्यादा समय की आवश्यकता हो सकती है और इसलिए 2030 तक एड्स का उन्मूलन एक बड़ी चुनौती दिख रही है. प्रोफिलैक्सिस का विकल्प अधिक आमदनी वाले देशों में उपलब्ध है और इसका विस्तार पूरी दुनिया में जोख़िम वाली जनसंख्या तक करना इस वक़्त की ज़रूरत है. संक्षेप में कहें तो क़ानूनी और नीतिगत क्षेत्र में ठोस प्रयास के साथ-साथ लैंगिक समानता को प्रोत्साहन देने के लिए समुदाय के नेतृत्व में प्रतिक्रिया और वैश्विक साझेदारी के ज़रिए सतत वित्त पोषण असमानता एवं अड़चनों से निपटने के लिए आवश्यक हैं. इसके अलावा, जैसा कि थीम से भी पता चलता है, प्रयासों की दक्षता समानता को सुधारने की क्षमता और असमानता को स्वीकार करने और उसके समाधान में अधिकार आधारित एवं अंतरअनुभागीयता के दृष्टिकोण के अनुसार लैंगिक कायाकल्प को अपनाने पर निर्भर करेगी.   


आदित्य एम (NLSIU से मास्टर्स इन पब्लिक पॉलिसी) ORF हेल्थ इनिशिएटिव के साथ एक इंटर्न हैं. 

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