Author : Mihir Bhonsale

Published on Apr 03, 2024 Updated 0 Hours ago

भूटान ने अपने यहां ज़मीन पर सोलर पैनल लगाकर बनने वाले सोलर एनर्जी प्लांट का टेंडर जारी किया है. इसके ज़रिए भूटान ने पनबिजली के अलावा नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के अन्य विकल्पों का विकास करने की दिशा में क़दम बढ़ाया है.

भूटान में नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के स्रोतों में विविधता लाने की कोशिश

भूटान के चेले ला दर्रे में सूर्योदय की तस्वीर कॉपीराइट-इमाद अलजुमा/गेटी

ये बात सबको अच्छे से पता है कि भूटान के पास रिन्यूएबल एनर्जी यानी नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. नवीनीकरण योग्य ऊर्जा बिजली का वो प्राकृतिक स्रोत है, जिसके दोहन के बाद उसे दोबारा विकसित करके उससे बिजली हासिल की जा सकती है. जैसे कि, सूरज की रौशनी, हवा, बारिश, ज्वार, लहरें और ज़मीन के भीतर मौजूद गर्मी. अब दुनिया भर में इन स्रोतों से बिजली बनाने की लागत लगातार कम होती जा रही है. ऐसे में अब नवीनीकरण योग्य ऊर्जा की हिस्सेदारी, बहुत से देशों के एनर्जी प्रोडक्शन में बढ़ती जा रही है.

भूटान पिछले कई वर्षों से अपने पनबिजली के संसाधनों का सफलता से दोहन कर रहा है. आज भूटान में 2.33 गीगावाट (GW) बिजली का उत्पादन पानी के ज़रिए हो रहा है. इसका ज़्यादातर हिस्सा भूटान, भारत को निर्यात कर देता है. हालांकि, अब भूटान ने नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के अपने अन्य प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की ओर भी क़दम उठाया है. जैसे कि सौर ऊर्जा और हवा से बिजली बनाना. हाल ही में भूटान ने अपने यहां ज़मीन पर सोलर पैनल लगाकर बनने वाले सोलर एनर्जी प्लांट का टेंडर जारी किया है. इसके ज़रिए भूटान ने पनबिजली के अलावा नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के अन्य विकल्पों का विकास करने की दिशा में क़दम बढ़ाया है.

नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के प्लांट से बिजली उत्पादन और इसकी आपूर्ति का विकेंद्रीकृत सिस्टम विकसित होता है. ऐसे सिस्टम विकसित करने वाले देश, ग्रिड से अलग हटकर या ऑफ ग्रिड बिजली सप्लाई कर पाते हैं. और इससे वो पनबिजली के ज़रिए बिजली बनाने और उसकी आपूर्ति पर पड़ने वाले बोझ को भी कम कर पाते हैं.

विकेंद्रीकृत व्यवस्था

रिन्यूएबल एनर्जी के स्रोत जैसे कि सूरज की रौशनी, हवा, जैविक ऊर्जा और छोटी पनबिजली परियोजनाएं कम पेचीदा होती हैं और ज़्यादा भरोसेमंद भी. पनबिजली परियोजनाओं के उलट, किसी छोटी परियोजना में आए गतिरोध से बिजली का पूरा नेटवर्क प्रभावित नहीं होता. और इससे बड़े इलाक़े में बिजली जाने और फिर उसे बहाल करने की चुनौती खड़ी नहीं होती. इसीलिए, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के प्लांट से बिजली उत्पादन और इसकी आपूर्ति का विकेंद्रीकृत सिस्टम विकसित होता है. ऐसे सिस्टम विकसित करने वाले देश, ग्रिड से अलग हटकर या ऑफ ग्रिड बिजली सप्लाई कर पाते हैं. और इससे वो पनबिजली के ज़रिए बिजली बनाने और उसकी आपूर्ति पर पड़ने वाले बोझ को भी कम कर पाते हैं.

भूटान का नवीनीकरण योग्य ऊर्जा का मास्टर प्लान ये आकलन करता है कि भूटान में कम से कम 12 गीगावाट सौर ऊर्जा और 760 मेगावाट पवन ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है. लेकिन, अभी भी भूटान की रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन की कुल क्षमता केवल 9 मेगावाट है. ये क्षमता बड़ी पनबिजली परियोजनाओं से अलग है. इसीलिए अब भूटान सौर ऊर्जा, पवनचक्की, बायोगैस और छोटी पनबिजली परियोजनाओं के विकास पर ध्यान दे रहा है.

अंतरराष्ट्रीय नवीनीकरण योग्य ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, रिन्यूएबल एनर्जी से जुड़ी तकनीकों की मदद से बिजली की ग्रिड सप्लाई को मज़बूत बनाया जा सकता है. और खाना पकाने और हीटिंग के लिए  ईंधन, लकड़ी और मिट्टी के तेल की खपत को कम किया जा सकता है. ऐसा करने वाले देश, पनबिजली परियोजनाओं के लिए एक सहयोगी ढांचा विकसित कर पाते हैं. भूटान में हर गांव तक बिजली पहुंचाने में वहां की पनबिजली परियोजनाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है. भूटान के डायरेक्टर ऑफ़ रिन्यूएबल एनर्जी डिपार्टमेंट, फुंटशो नामग्येल का कहना है कि अगर भूटान नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के अन्य संसाधनों से अपनी बिजली संबंधी ज़रूरत को पूरा कर लेता है. तो फिर वो पनबिजली परियोजनाओं द्वारा बनायी जा रही बिजली का निर्यात कर सकता है.

भूटान के डायरेक्टर ऑफ़ रिन्यूएबल एनर्जी डिपार्टमेंट, फुंटशो नामग्येल का कहना है कि अगर भूटान नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के अन्य संसाधनों से अपनी बिजली संबंधी ज़रूरत को पूरा कर लेता है. तो फिर वो पनबिजली परियोजनाओं द्वारा बनायी जा रही बिजली का निर्यात कर सकता है.

लेकिन, पनबिजली परियोजनाओं से इतर अन्य रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों का रुख़ करना इतना आसान काम नहीं है. नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के अन्य विकल्पों का इस्तेमाल करने के लिए ज़रूरी है प्रोत्साहन, जिसका काफ़ी अभाव है. इसके अलावा भूटान में ऊर्जा के वैकल्पिक संसाधनों का दोहन करने के लिए ज़रूरी इको-सिस्टम का भी अभाव है. इसके लिए नियम क़ायदे नहीं तय हैं. और न ही नीतियों का ढांचा तैयार है. इसी वजह से बिजली को अलग अलग स्रोतों से बनाने की दिशा में कई बाधाएं खड़ी नज़र आती हैं.

इस साल जुलाई महीने में भूटान के नवीनीकरण योग्य ऊर्जा विभाग ने एक एनजीओ भूटान इकोलॉजिकल सोसाइटी के साथ एक सहमति पत्र (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत सरकार और इस एनजीओ के बीच रिन्यूएबल एनर्जी और ऊर्जा उपयोग के क्षेत्र में कुशलता को बढ़ावा देने पर रज़ामंदी बनी थी. दोनों पक्षों ने ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देने, नई नीतियां लागू करने के लिए पैसे जुटाने में सहयोग का एक-दूसरे से वादा किया था. ये भूटान की शाही सरकार द्वारा उठाया गया एक स्वागत योग्य क़दम था. क्योंकि इसकी मदद से नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के दोहन में निजी क्षेत्र को भी भागीदार बनाया गया है.

अंतरराष्ट्रीय सहयोग

भूटान, इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) का भी सदस्य है. इसकी शुरुआत भारत और फ्रांस ने मिलकर 2017 में की थी. जब पेरिस में जलवायु समझौते को लागू करने के लिए COP21 पर चर्चा हो रही थी. भूटान ने भी इस फ्रेमवर्क समझौते पर दस्तख़त किए थे. इसमें 87 देश शामिल हैं. ये समझौता 20 जुलाई 2020 से लागू हुआ है.

इंटरनेशनल सोलर एलायंस का मक़सद तमाम देशों को एक साथ लाना है, जिससे कि वो सोलर एनर्जी के संसाधनों के व्यापक स्तर पर विकास की राह में आने वाली मुश्किलों को दूर करने के लिए आपस में सहयोग करें. और, तकनीक, पूंजी और अपनी क्षमताओं से एक दूसरे की मदद करें. इंटरनेशनल सोलर एलायंस का लक्ष्य ये है कि वो अपने सदस्य देशों को एकजुट करके, अंतरराष्ट्रीय संगठनों से इस संबंध में वचन ले, निजी क्षेत्र को इस गठबंधन से जोड़े. जिससे कि ग्रामीण क्षेत्रों में विकेंद्रीकृत उपायों को लागू करके, आसानी से पूंजी जुटाकर, द्वीपों और गांवों में सौर ऊर्जा पर आधारित मिनी ग्रिड विकसित किए जा सकें. इसके लिए घरों की छतों पर सोलर पैनल लगाए जाएं और सौर ऊर्जा से संचालित होने वाले आवाजाही के संसाधनों संबंधी तकनीक का विकास हो सके.

भूटान, इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) का भी सदस्य है. इसकी शुरुआत भारत और फ्रांस ने मिलकर 2017 में की थी. जब पेरिस में जलवायु समझौते को लागू करने के लिए COP21 पर चर्चा हो रही थी. भूटान ने भी इस फ्रेमवर्क समझौते पर दस्तख़त किए थे. इसमें 87 देश शामिल हैं. ये समझौता 20 जुलाई 2020 से लागू हुआ है.

भारत द्वारा ‘वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड’ नाम की पहल के ज़रिए देशों की सीमाओं के आर-पार आपसी सहयोग से सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है. इस कोशिश के ज़रिए सौर ऊर्जा संबंधी संसाधनों को आपस में साझा किया जा रहा है. भूटान को भी इस नीति से अपने बिजली बनाने के विकल्पों में विविधता लाने में मदद मिलेगी. भूटान, पहले ही भारत के साथ बिजली का कारोबार करता रहा है. और बिजली के आदान-प्रदान के लिए ज़रूरी दिशा निर्देश पहले से ही मौजूद हैं. भले ही पनबिजली परियोजनाओं से बनने वाली बिजली ही भूटान से भारत को अधिक निर्यात होती रहे. लेकिन, आने वाले समय में भूटान में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से चलने वाली पावर ग्रिड का भी विकास किया जा सकता है. 

कोविड-19 से मुक़ाबले का अनुभव

जब कोरोना वायरस का प्रकोप थामने के लिए दुनिया के तमाम देशों ने अपने अपने यहां लॉकडाउन लगाया. तब घरेलू स्तर पर बिजली की खपत में वृद्धि देखी गई. भूटान ने भी घरेलू स्तर पर बिजली की बढ़ती मांग का दबाव झेला है. लॉकडाउन के दौरान, अगस्त महीने में भूटान में कई बार बिजली की आपूर्ति ठप होने की घटना हुई. ऐेसे में नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के अन्य संसाधनों का अलग अलग विकास करके भूटान अपने ग्रिड को विकेंद्रीकृत करने का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है. भविष्य में बिजली की आपूर्ति ठप न हो, इसके लिए ऐसे छोटे पावर प्लांट काफ़ी अहम भूमिका निभा सकते हैं.

भारत द्वारा ‘वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड’ नाम की पहल के ज़रिए देशों की सीमाओं के आर-पार आपसी सहयोग से सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है. इस कोशिश के ज़रिए सौर ऊर्जा संबंधी संसाधनों को आपस में साझा किया जा रहा है. भूटान को भी इस नीति से अपने बिजली बनाने के विकल्पों में विविधता लाने में मदद मिलेगी. 

कोविड-19 की महामारी के प्रकोप से जूझते भूटान ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर एक सोलर एनर्जी प्लांट लगाने का फ़ैसला किया है. जो उसकी कोविड-19 से निपटने और दोबारा आर्थिक प्रगति की रफ़्तार हासिल करने की नीति का ही एक हिस्सा है. 180 किलोवाट बिजली बनाने वाले सौर ऊर्जा के इस बिजली घर के निर्माण में भूटान को जापान से वित्तीय मदद मिलेगी. इसके अलावा भूटान के रूबेसा वैंगडू में भी 600 किलोवाट के सौर ऊर्जा प्लांट के निर्माण की भी योजना है.

कोविड-19 ने लोगों की रोज़ी रोटी पर बहुत बुरा असर डाला है. उनकी अर्थव्यवस्थाएं तो इस महामारी के कारण चौपट हुई ही हैं. ऐसे में रिन्यूएबल एनर्जी के ऐसे प्रोजेक्ट के माध्यम से लोगों के लिए ज़मीनी स्तर पर रोज़गार के अवसरों का भी सृजन हो सकेगा.


यह लेख ओआरएफ़ की साउथ एशिया वीकली रिपोर्ट में प्रकाशित हो चुका है.

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