Published on Aug 01, 2019 Updated 0 Hours ago

मौजूदा आर्थिक माहौल में किसी विकासशील देश में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश कोई आसान काम नहीं.

दक्षिण अफ्रीका में अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था को सब तक पहुंचाने की कोशिश

किसी भी देश की आबादी अगर स्वस्थ है, तो वो ख़ुश होती है और उसकी उत्पादकता भी बेहतर होती है. मेरा बचपन ग्रामीण परिवेश में गुज़रा है. इसलिए, लोगों के लिए अधकचरी स्वास्थ्य व्यवस्था के कितने बुरे नतीजे होते हैं, इसका मैंने ख़ुद अनुभव किया है. हालांकि मैं बड़े-बड़े अस्पतालों, आधुनिक, साफ़-सुथरी ड्रेस पहने हुए नर्सें और दवा के काउंटर के पीछे ढेर सारी दवाएँ देख कर बहुत हैरान होती थी. इसके बावजूद मैंने देखा था कि किस तरह मरीज़ों को इसलिए लौटा दिया जाता था कि अस्पताल में डॉक्टर नहीं हैं. या फिर इतने ही डॉक्टर हैं जो अभी मौजूद मरीज़ों का ध्यान रख सकें.

किसी भी स्वास्थ्य व्यवस्था की इन कमियों को दूर करने का मतलब है कई क़दम उठाना. लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था के बुनियादी ढांचे में सुधार लाना, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग और ज़िंदगी बचाने वाली दवाओं की सहज और सस्ती क़ीमत पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के अलावा अस्पतालों और क्लिनिक में इलाज के लिए ज़रूरी उपकरण मुहैया कराने की ज़रूरत होती है. जब मैंने स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के बारे में रिसर्च की, तो, मैंने देखा कि यही ख़ामियाँ दक्षिण अफ्रीका की स्वास्थ्य व्यवस्था में भी हैं. अफ्रीका के सहारा इलाक़े के देशों में दुनिया भर की 24 प्रतिशत बीमारियां होती हैं. लेकिन, इस इलाक़े में दुनिया भर के कुल डॉक्टरों के 3 प्रतिशत [i] ही उपलब्ध हैं. वहीं, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के लंबे इतिहास की वजह से यहां कि 43.6 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है. लेकिन, यहां केवल 12 प्रतिशत डॉक्टर ही उपलब्ध हैं. [ii] ऊपरी तौर पर तो स्वास्थ्य सेवाओं की हर नागरिक को बराबरी पर उपलब्धता मुहैया कराने का काम आसान दिखता है. इसके लिए जहां ज़रूरत हैं वहां डॉक्टर उपलब्ध कराना होता है. तमाम रिसर्च भी इस मसले का ऐसे हल की तरफ़ इशारा करते हैं. अगर हर दस हज़ार लोगों पर एक डॉक्टर से दो डॉक्टर कर दिए जाते हैं, तो इससे एचआईवी से जुड़ी मौतों में 27 प्रतिशत की कमी देखी गई है. [iii] लेकिन, ऐसे फॉर्मूले को ज़मीनी तौर पर लागू करना बहुत पेचीदा मसला है. दक्षिण अफ्रीका में इस वक़्त हर साल क़रीब 1,200 मेडिकल ग्रैजुएट तैयार होते हैं. इनमें से केवल 35 प्रतिशत ही लंबे समय के लिए ग्रामीण इलाक़ों में काम करने के लिए तैयार होते हैं. [iv]

दक्षिण अफ्रीका में इस वक़्त हर साल क़रीब 1,200 मेडिकल ग्रैजुएट तैयार होते हैंइनमें से केवल 35 प्रतिशत ही लंबे समय के लिए ग्रामीण इलाक़ों में काम करने के लिए तैयार होते हैं.

मुझे बेहतर मौक़े मुहैया कराने के लिए मेरे माता-पिता ने हर वो कोशिश की, जो वो कर सकते थे. वो परिवार के साथ शहरी इलाक़े में रहने आ गए, ताकि मुझे बेहतर पढ़ाई का अवसर मिल सके. वो अपनी रोज़मर्रा की ख़्वाहिशों की बलि चढ़ाकर मेरी पढ़ाई का ख़र्च उठाते थे. आज भी मेरे पिता के वो शब्द मेरे कानों में गूंजते हैं. वो कहा करते थे, ‘दुर्भाग्य से हमारे देश के हालात ने तुम्हें ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है कि तुम अश्वेत होने की वजह से कई सुविधाओं से महरूम हो. लेकिन, बेहतर तालीम वो ज़रिया है, जिससे तुम क़िस्मत का तराज़ू अपने हक़ में झुका सकती हो और इस देश में बराबरी का दर्ज़ा हासिल कर सकती हो. एक बात हमेशा याद रखना कि तुम अकेली नहीं हो. ख़ुद से हमेशा एक सवाल ज़रूर करो कि तुम ख़ुद को मिले मौक़ों का दूसरों की बेहतरी के लिए कैसे इस्तेमाल कर सकती हो? लोगों की सेवा का ये विचार हमेशा मेरे साथ रहा और इसने मुझे अपनी ज़िंदगी का मक़सद दिया. मैंने डॉक्टर बनने के लिए पढ़ाई की, ताकि अपनी दादी और दिव्यांग पिता जैसे लोगों की बेहतर और लंबा जीवन जीने में मदद कर सकूं. दुर्भाग्य से मैं ख़ुद बीमार पड़ गई. फिर प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए मेरे मां-बाप ने सारी पूँजी लगा दी. इस तज़ुर्बे ने मेरी सोच का दायरा और भी बढ़ाया. मैंने सोचा कि शायद डॉक्टर के तौर पर मैं ज़्यादा से ज़्यादा मरीज़ देख सकती हूं और उस जगह काम करने की सोच सकती हूं जहां मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. मुझे यक़ीन था कि मैं अगर व्यवस्था की ख़ामियों को दूर करने की कोशिश करती हूं, तो मैं वाक़ई बदलाव लाने में कामयाब हो सकूंगी.

अपना कर्तव्य निभाने का मज़बूत इरादा कर के मुझे लगा कि किसी ऐसी संस्था से जुड़ना बेहतर होगा जो मेरे ख़यालात जैसे मिशन के लिए काम करती हो. फिर मेरी तलाश पूरी हुई जब मैंने अफ्रीका हेल्थ प्लेसमेंट यानी AHP को खोज निकाला. ये ऐसा संगठन है जो दक्षिण अफ्रीका के ग्रामीण इलाक़ों में डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए वर्ष 2005 से काम कर रहा है. एएचपी में एक युवा अस्थायी कार्यकर्ता के तौर पर जुड़ने के बाद जब मैंने संस्था की मज़बूत बुनियादी कारोबारी व्यवस्था को देखा तो मैं हैरान रह गई. मैंने देखा कि अपने सामाजिक दायित्व को पूरा करने के लिए ये संस्था कितनी गंभीर है. संगठन के नेता दूरदर्शी थे. सामाजिक न्याय के लिए उनकी प्रतिबद्धता क़ाबिल-ए-तारीफ़ थी. एएचपी में पिछले आठ वर्षों में मेरी तरक़्क़ी केवल एक कर्मचारी के तौर पर नहीं हुई है, बल्कि मैं एक बेहतर इंसान भी बनी हूं.

दुर्भाग्य से हमारे देश के हालात ने तुम्हें ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है कि तुम अश्वेत होने की वजह से कई सुविधाओं से महरूम होलेकिनबेहतर तालीम वो ज़रिया हैजिससे तुम क़िस्मत का तराज़ू अपने हक़ में झुका सकती हो और इस देश में बराबरी का दर्ज़ा हासिल कर सकती हो.

ग्रामीण इलाक़ों में 4,350 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मुहैया करा कर एएचपी आज 3.5 करोड़ दक्षिण अफ्रीकी नागरिकों की सेवा कर रहा है. अगर ये संस्था नहीं होती, तो आज इन लोगों को जीवन देने वाली दवाओं की उपलब्धता शायद नहीं होती. मुझे गर्व है कि मैं इस मिशन का हिस्सा हूं और अब मैं इस संगठन की अगुवाई करती हूं. अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए मैंने एक बात का हमेशा ध्यान रखा है कि मेरा जीवन दूसरों की सेवा के लिए है. आज भी मैं उन लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध हूं, जिन्हें इनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. इसका नतीजा ये हुआ है कि आज परेशानियों का व्यवहारिक तरीक़े से हल निकालना हमारे बिज़नेस मॉडल का मूल मंत्र बन गया है. पिछले कुछ वर्षों में हमारे काम में प्रगति भी हुई है और बदलाव भी आया है. लेकिन, हमारे ग्राहक और उनकी ज़रूरतों को पूरा करना ही आज भी हमारा बुनियादी काम है.

मौजूदा आर्थिक माहौल में किसी भी विकासशील देश में सामाजिक तौर पर गहरा असर डालने वाला बदलाव लाना आसान काम नहीं है. आज अटल इरादा और अपने रवैये में लचीलापन लाना रोज़मर्रा की असल चुनौती बन चुका है. स्थायी असर छोड़ने के लिए किसी भी व्यवस्था के साझीदारों के साथ मिलकर काम करना और सकारात्मक बदलाव लाना ज़रूरी है. हालांकि मैं रोज़ाना एक ही लक्ष्य के लिए काम करती हूं, ताकि अफ्रीका के हर नागरिक को स्वास्थ्य सेवा मिल सके. पर, मुझे लगता है कि ये लक्ष्य हासिल कर पाना मेरी ज़िंदगी में संभव नहीं होगा. न ही इसे अकेले मेरी कोशिश के दम पर हासिल किया जा सकता है. आज ज़रूरत है कि अफ्रीकी संस्थाओं की अगुवाई में अगर सभी लोग नेक इरादों से मिल कर काम करें, तो ही असल बदलाव लाना मुमकिन होगा.


संदर्भ

[i] https://www.who.int/whr/2006/overview/en/

[ii] http://www.hst.org.za/publications/South%20African%20Health%20Reviews/SAHR%202018.pdf

[iii] https://journals.plos.org/plosone/article?id=10.1371/journal.pone.0160206

[iv] https://www.hst.org.za/publications/South%20African%20Health%20Reviews/SAHR%202018.pdf

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