यह लेखRaisina Edit 2023श्रृंखला का हिस्सा है.
यूरोपियन यूनियन (EU) और भारत दोनों ही, देखा जाए तो लगातार बढ़ रही एक प्रकार की साइबर सुरक्षा चुनौतियों का मुक़ाबला कर रहे हैं. सबसे पहली चुनौती यह है कि दोनों साझीदारों का सामना एक ऐसे पड़ोसी देश से है, जो अपनी भू-राजनीतिक महात्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए तरह-तरह के साइबर हमलों का इस्तेमाल करता है. दूसरी बात यह है कि ईयू और भारत दोनों ने ही एक वैश्विक और पारस्परिक तौर पर जुड़े हुए इंटरनेट की अवधारणा को अपनाया हैऔर इंटरनेट के जरिए बाहरी दुनिया से अपने देश की जनता और समाज के जुड़ाव के बीच कोई भीअवरोध खड़ा करने को अस्वीकार कर दिया है. आख़िर में, ऐसे में जबकि साइबरस्पेस अंतर्राष्ट्रीय क़ानून में सबसे ज़्यादा अनियंत्रित और अनियमित क्षेत्र बना हुआ है, दोनों ही भागीदार इसको लेकर वैश्विक नियमों को निर्धारित करना चाहते हैं. ऐसे में ज़ाहिर है कि यूरोपीय संघ और भारत दोनों के लिए साइबर सुरक्षा ऐसा क्षेत्र बन गया है, जिसमें वे अपनी रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ा सकते हैं.
साइबर सुरक्षा का मुद्दा पहली बार वर्ष 2003 में चौथी इंडिया-ईयू समिट के दौरान द्विपक्षी चर्चा के विषय के रूप में शामिल किया गया था. इसी के बाद से द्विपक्षी प्लेटफॉर्म और लीगल फ्रेमवर्क्स बनाए गए हैं, जो सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICTs) को लेकर यूरोपीय संघ एवं भारत के मध्य और अधिक सहयोग को बढ़ाने का काम करेंगे. आर्थिक और भू-राजनीतिक तौर पर उभरी बड़ी चुनौतियों के बावज़ूद भारत और ईयू के बीच द्विपक्षीय साइबर सुरक्षा सहयोग फिलहाल शुरुआती दौर में हैं. ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन और EWISA द्वारा किए गए एक ताज़ा विश्लेषण ने दोनों भागीदारों की ऐसी शीर्ष साइबर सुरक्षा प्राथमिकताओं को चिन्हित किया है, जिन्हें दोनों पक्ष वर्तमान समय में संबोधित करने की इच्छा रखते हैं. दोनों ही पक्ष इस बात से पूरी तरह से सहमत हैं कि क्षमता निर्माण और भरोसेका वातावरण बनाने जैसे उपायों के साथ-साथ वैश्विक मानकों और मानदंडों को लेकर एकमत होना ईयू-भारत साइबर सुरक्षा साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए बेहद ज़रूरी है. पारस्परिक सहयोग के लिए पहले से ही चिन्हित किए गए क्षेत्रों ही नहीं, बल्कि नए उभरते राजनीतिक अवसरों पर भी विचार करते हुए, यह लेख प्रमुख संस्थागत और क़ानूनी फ्रेमवर्क्स पर ध्यान केंद्रित करता है, जो आपसी विश्वास और भरोसा बढ़ाने की बुनियाद हो सकते हैं. नीचे दिए गए दो उदाहरण स्पष्ट तौर पर यह बताते हैं कि मौजूदा संस्थागत और क़ानूनी तंत्र द्विपक्षीय दायरे से परे रणनीतिक साझेदारी का लाभ उठाने के लिए हर लिहाज़ से मुनासिब हैं.
ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल का सशक्तिकरण
रायसीना डायलॉग 2022 के उद्घाटन के दौरान, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और यूरोपीय संघ आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने संयुक्त रूप से ईयू-इंडिया ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी काउंसिल (TTC) के गठन का ऐलान किया. इस साल फरवरी मेंदोनों भागीदारों ने घोषणा की है कि TTC के तीन कार्यकारी समूह होंगे.स्ट्रैटेजिक टेक्नोलॉजीस, डिजिटल गवर्नेंस और डिजिटल कनेक्टिविटी पर बने पहले कार्य समूह में साइबर सुरक्षा सहयोग पर चर्चा की जाएगी.
साइबर सुरक्षा का मुद्दा पहली बार वर्ष 2003 में चौथी इंडिया-ईयू समिट के दौरान द्विपक्षी चर्चा के विषय के रूप में शामिल किया गया था. इसी के बाद से द्विपक्षी प्लेटफॉर्म और लीगल फ्रेमवर्क्स बनाए गए हैं, जो सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICTs) को लेकर यूरोपीय संघ एवं भारत के मध्य और अधिक सहयोग को बढ़ाने का काम करेंगे.
TTC का जो एक सबसे बड़ा फायदा नज़र आ रहा है, वो यह है कि यूरोपियन यूनियन और भारत साइबरस्पेस के लिए शांतिपूर्ण मानदंडों को निर्धारित करने के संबंध में अपनी स्थिति को समायोजित करने के लिए इस प्लेटफॉर्म का अच्छी तरह से उपयोग कर सकते हैं. जैसा कि यूरोपीय संघ और भारत दोनों सीआरआई के सदस्य हैं, ऐसे में भविष्य के रोडमैप को लेकर द्विपक्षीय बातचीत इस पूरी पहल की प्रगति को सुगम और सुविधाजन बना सकती है. दोनों पक्ष अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में साइबर स्पेस में देशों के ज़िम्मेदार व्यवहार के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र (UN), ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप (OEWG) और ग्रुप ऑफ गवर्नमेंटल एक्सपर्ट्स (GGE) के भीतर भी कार्य कर रहे हैं. मौजूदा परिस्थितियों में TTC एक खुले, मुक्त और सुरक्षित इंटरनेट को लेकर संभावित द्विपक्षीय झुकाव को समायोजित करने के लिए एक उपयुक्त और स्वीकार्य जगह होगी.संयुक्त राष्ट्र महासचिव का मिशन यूरोपीय संघ और भारत के बीच मज़बूत सामंजस्य स्थापित करना है, जो कि अंतर्राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा के संदर्भ में लोकतांत्रिक मानदंडों और मूल्यों के महत्त्व के संबंध में दृष्टिकोणों की जांच-परख एवं निगरानी कर सकता है.
ईयू और भारत दोनों के लिए एक और बड़ी चिंता का मुद्दा यह है कि दोनों को अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं के लचीलेपन को बढ़ाना है. सबसे अहम बात यह है कि भारत और यूरोपियन यूनियन को ज़िम्मेदार साइबर किरदारों के रूप में एक-दूसरे को मान्यता देनी चाहिए. इसके लिए एक विस्तृत रोडमैप की ज़रूरत है, जो सरकारी और निजी दोनों सेक्टरों के लिए मानदंडों और मानकों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करे. इस प्रकार से देखा जाए, तो TTC के पास उन अपेक्षाओं को पहचानने और सामने लाने का एक बेहतरीन अवसर है, जिनको लेकर दोनों पक्ष गोपनीयता, सीमा-पार डेटा प्रवाह और ओपन-कोड तकनीकों की ज़रूरतों पर सहमत हैं और जो विश्वसनीय भौगोलिक क्षेत्रों से जुड़ी हुई हैं.
रूस से टेक्नोलॉजी पर किसी भी प्रकार की निर्भरता को कम करने में भीTTC एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. यूक्रेन में युद्ध शुरू होने से पहले तक भारत और रूस के बीच विभिन्न प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर की अगुवाई वाली पहलों ने 6G प्रौद्योगिकी के विकास, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और टेलिकम्युनिकेशन में नए और संवर्धित सहयोग को बढ़ावा दिया. भारत सरकार को यह बात अच्छी तरह से मालुम है कि उसका सबसे पुराना रणनीतिक साझेदार आज के दौर की इन मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं होगा और इस फासले को भरने के लिए नए भागीदारों की ज़रूरत है. ज़ाहिर है कि मौज़ूदा हालात में यूरोपियन यूनियन और भारत को उन क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए, जहां रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से परेशानियां पैदा हुई हैं और जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की दिक़्क़तों की वजह से प्रभावित हुए हैं. ज़ाहिर है कि ऐसे सभी क्षेत्रों में साझा रिसर्च एवं विकास, शैक्षणिक संस्थानों की साझेदारी और निजी क्षेत्र की सहभागिता के लिए ज़बरदस्त अवसर उपलब्ध हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव का मिशन यूरोपीय संघ और भारत के बीच मज़बूत सामंजस्य स्थापित करना है, जो कि अंतर्राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा के संदर्भ में लोकतांत्रिक मानदंडों और मूल्यों के महत्त्व के संबंध में दृष्टिकोणों की जांच-परख एवं निगरानी कर सकता है.
आख़िर में TTC के भीतर प्राइवेट सेक्टर, सिविल सोसाइटी और अनुसंधान संस्थानों के हितधारकों को संरचनात्मक दृष्टि से शामिल करना साइबर सुरक्षा सहयोग की सफलता की कुंजी है.भारत में डेटा सिक्योरिटी काउंसिल ऑफ इंडिया और यूरोपियन यूनियन में साइबर पीस इंस्टीट्यूट जैसी पहलें घरेलू डिजिटल चर्चाओं को गति प्रदान करने के लिए ज़रूरी हैं. इतना ही नहीं गैर-सरकारी हितधारकों को शामिल करने से भी व्यवसायों और सिविल सोसाइटी के लिए अहम मुद्दों पर चर्चाओं को तत्काल निर्देशित करने में मदद मिलेगी.
बुडापेस्ट कन्वेंशन के ज़रिए साइबर अपराध को मिलकर संबोधित करना
देखा जाएतो बीते 20 वर्षों से साइबर क्राइम के लिए बुडापेस्ट कन्वेंशन इकलौती ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जो सुझाव देती है कि साइबर अपराध से जुड़ी चुनौतियों को मिलजुल कर किस प्रकार से संबोधित किया जाए. मौलिक रूप से पहली बार काउंसिल ऑफ यूरोप कंट्रीज और उसके कुछ नजदीकी सहयोगियों द्वारा तैयार किए गए बुडापेस्ट कन्वेंशन में आज अर्जेंटीना, घाना एवं श्रीलंका जैसे अलग-अलग साइबर क्राइम के ख़तरों से जूझने वाले देशों के साथ दुनिया के सभी क्षेत्रों से 68 पार्टियां शामिल हैं.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रतिष्ठानों के सरकारी प्रतिनिधियों के बीच बढ़ते समर्थन के साथ अक्सर नई दिल्ली में बुडापेस्ट कन्वेंशन में भारत के शामिल होने के मुद्दे पर चर्चा की जाती थी. हाल के वर्षों में दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील के इस कन्वेंशन में शामिल होने बाद से भारत को इसमें शामिल होने के लिए एक नई प्रेरणा मिली है. पहले के वर्षों में, बुडापेस्ट कन्वेंशन में शामिल होने को लेकर ब्रिक्स देशों की तरफ़ से पैदा किए गए संदेह बहुत बड़े अवरोध बने रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय मानदंड और नियम-क़ानूनों के निर्माण की प्रक्रियाओं को सक्रिय रूप से आकार देने की भारत की कूटनीतिक आकांक्षाओं के साथ, उसका बुडापेस्ट कन्वेंशन का एक पक्षकार बनना काफ़ी लाभकारी सिद्ध हो सकता है.
जहां तक यूरोपीय संघ-भारत संबंधों की बात है, तो बुडापेस्ट कन्वेंशन में नई दिल्ली के शामिल होने से दोनों भागीदारों को पारस्परिक तौर पर सीखने के अपने अनुभवों का फायदा उठाने का मौक़ा मिलेगा.
जहां तक यूरोपीय संघ-भारत संबंधों की बात है, तो बुडापेस्ट कन्वेंशन में नई दिल्ली के शामिल होने से दोनों भागीदारों को पारस्परिक तौर पर सीखने के अपने अनुभवों का फायदा उठाने का मौक़ा मिलेगा. सबसे बड़ी बात यह है कि बुडापेस्ट कन्वेंशन और इसके प्रोटोकॉल के ज़रिए जो सहयोग स्थापित होगा, वह निश्चित तौर पर साइबर अपराध पर संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई वाले कन्वेंशन के निर्माण के मौजूदा प्रयासों को लेकर साझा हितों की बेहतर समझ विकसित करने में मददगार साबित होगा. दूसरा यह कि भारत के एक पक्षकार बनने से बुडापेस्ट कन्वेंशन को और अधिक वैधता प्राप्त होगी और उसका मकसद भी पूरा होगा. बुडापेस्ट कन्वेंशन में भारत के प्रवेश से यूरोपीय संघ और भारत दोनों को उन मानदंडों और प्रथाओं पर एक नई बातचीत शुरू करने का अवसर उपलब्ध होगा, जिसके बारे में दोनों भागीदार साइबर अपराध के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष के भविष्य को लेकर सोचते हैं.
दृष्टिकोण
यूरोपियन यूनियन और भारत की रणनीतिक साझेदारी की क्षमता को सामने लाने हेतु TTC और बुडापेस्ट कन्वेंशन साइबर सुरक्षा के क्षेत्र के लिए उपयोगी रास्ता तैयार करते हैं. इसके लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति जुटाने हेतु दोनों भागीदारों के लिए यह बेहद अहम है कि वे भू-राजनीतिक रूप से अस्थिरिता वालेइस मौज़ूदा दौर में मज़बूत साइबर साझेदारी की भू-राजनीतिक और आर्थिक अहमियत को गंभीरता से समझें. ज़ाहिर है कि ईयू-इंडिया साइबर सिक्योरिटी पार्टनरशिप ना सिर्फ़ द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ कर सकती है, बल्कि बहुपक्षीय मंचों पर दोनों भागीदारों की राजनीतिक मौज़ूदगी का और अधिक विस्तार कर सकती है.
अगर व्यापक रूप से और उचित अंतर्राष्ट्रीय चैनल्स के माध्यम से प्रयास किया जाता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि साइबर सुरक्षा सहयोग साझा तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा हितों में सुधार के कहीं आगे बढ़ सकता है. इतना ही नहीं, यह भरोसा पैदा करने, तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने और यूरोपियन यूनियन एवं भारत की सोसाइटियों में डिजिटल लचीलेपन को मज़बूत करने का एक कारगर कूटनीतिक उपकरण भी साबित हो सकता है.
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