Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

क्वॉन्टम कम्प्यूटिंग और तकनीक के युग में अपने साइबर संसार की हिफ़ाज़त के लिए भारत को सभी किरदारों के जुड़ाव वाला रुख़ तैयार करना होगा.

#Cyber Security: क्वॉन्टम युग में साइबर सुरक्षा
#Cyber Security: क्वॉन्टम युग में साइबर सुरक्षा

भारत में नेशनल मिशन ऑन क्वॉन्टम टेक्नोलॉजिज़ एंड ऐप्लिकेशंस (NM-QTA) के दो  साल पूरे हो रहे हैं. साइबर सुरक्षा पर क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी के प्रभावों की पड़ताल के लिए यही माकूल समय है. क्वॉन्टम कंप्यूटिंग अभी विकास के बेहद शुरुआती चरण में है. इस क्षेत्र में व्यापारिक मकसद से ऐप्लिकेशंस तैयार होने में अभी कुछ बरस लगने वाले हैं. ऐसे में घरेलू प्रतिभा, बुनियादी ढांचे और ज्ञान को बढ़ावा देकर भारत इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ कमा सकता है.

इसमें कोई शक़ नहीं है कि क्वॉन्टम कंप्यूटिंग से बेशुमार अवसर उपलब्ध होते हैं. हालांकि इन अवसरों के साथ-साथ साइबर संसार में इसके चलते कई तरह के संभावित जोख़िम भी आ गए हैं. ऐसा ही एक चिंताजनक पहलू क्रिप्टोग्राफ़ी से जुड़ा है. क्वॉन्टम कंप्यूटर्स दोधारी तलवार साबित हो सकते हैं. एक तरफ़ तो क्वॉन्टम आधारित क्रिप्टोग्राफ़ी प्रोटोकॉल (जिन्हें क्वॉन्टम की डिस्ट्रिब्यूशन यानी QKD के नाम से जाना जाता है) सुरक्षित, चुस्त-दुरुस्त संचार मुहैया कराने में कारगर साबित होगा, वहीं दूसरी तरफ़ क्वॉन्टम कंप्यूटर्स मौजूदा एनक्रिप्शन एल्गोरिदम को बाधित करने या उसे हैक करने में भी सक्षम साबित होंगे. इससे संचार असुरक्षित हो जाएगा. नतीजतन साइबर अपराधों में बढ़ोतरी होगी और राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी.

कुछ देशों ने क्वॉन्टम तकनीक के क्षेत्र में बढ़त हासिल कर ली है, ऐसे में दूसरों के साइबर हमलों का शिकार होने का जोख़िम कई गुना बढ़ जाएगा. भारत क्वॉन्टम के क्षेत्र में वर्चस्व हासिल करने की दौड़ में अभी-अभी शामिल हुआ है. इसके मद्देनज़र भारत को क्वॉन्टम तकनीक की दिशा में अपनी विकास यात्रा की पड़ताल करते हुए इसे ऐप्लिकेशन के अनुकूल बनाना होगा. इसके अलावा साइबर स्पेस पर तकनीक के दीर्घकालिक प्रभावों की दिशा में अपने प्रयासों को केंद्रित भी करना होगा.

भारत क्वॉन्टम के क्षेत्र में वर्चस्व हासिल करने की दौड़ में अभी-अभी शामिल हुआ है. इसके मद्देनज़र भारत को क्वॉन्टम तकनीक की दिशा में अपनी विकास यात्रा की पड़ताल करते हुए इसे ऐप्लिकेशन के अनुकूल बनाना होगा.

क्रिप्टोग्राफ़ी पर क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी के प्रभाव

फ़िलहाल दो  प्रमुख एन्क्रिप्शन  तकनीकों के इस्तेमाल से तमाम तरह के संचार सुरक्षित किए जाते हैं. ये तकनीक हैं- सिमेट्रिक एन्क्रिप्शन और एसिमेट्रिक  एन्क्रिप्शन. सिमेट्रिक  एन्क्रिप्शन में संदेश भेजने वाले और उसे ग्रहण करने वालों के पास एक समान एन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन कीज़ (keys) होते हैं. अगर संचार के लिए सुरक्षित तौर-तरीक़ा इस्तेमाल किया जाता है तो इस तरह का एन्क्रिप्शन क्वॉन्टम आधारित साइबर हमलों से मोटे तौर पर सुरक्षित होता है.

दूसरी ओर, एसिमेट्रिक एन्क्रिप्शन (जिसे पब्लिक की एन्क्रिप्शन के नाम से भी जाना जाता है) keys के जोड़े का इस्तेमाल करता है. एक का एन्क्रिप्शन के लिए जबकि दूसरे का डिक्रिप्शन के लिए इस्तेमाल होता है. मैसेज को एनकोड करने के लिए पब्लिक की  का, जबकि मैसेज को डिकोड करने के लिए प्राइवेट की  का इस्तेमाल होता है. RSA जैसी एसिमेट्रिक एन्क्रिप्शन प्रणालियों में एलगोरिदम्स का इस्तेमाल होता है. इससे प्राइवेट की  के वाजिब हक़दार को मैसेज को डिकोड करने का अधिकार मिल जाता है. आम इस्तेमाल में आने वाले कंप्यूटरों के लिए इस तरह की keys को हैक करना कठिन होता है. इसकी वजह ये है कि संदेश ग्रहण करने वालों के पब्लिक की  के लिए कूटबद्ध किया गया डेटा सिर्फ़ उसके प्राइवेट की  से ही डिकोड किया जा सकता है.

चित्र 1 और चित्र 2 में आधुनिक समय के संचार में इस्तेमाल होने वाले दो तरह के एन्क्रिप्शन को दर्शाया गया है. 

जब क्वॉन्टम कंप्यूटर्स हक़ीक़त बन जाएंगे तब एन्क्रिप्शन की ये व्यवस्था बीते दिनों की बात हो जाएगी. आधुनिक समय का पब्लिक की  क्रिप्टोग्राफ़ी इस धारणा पर आधारित है कि पारंपरिक कंप्यूटर्स बड़े आंकड़ों में आसानी से हेरा फेरी (मसलन बड़े पूर्णांकों को कई गुणा करना) कर सकते हैं, लेकिन इस विशाल आंकड़े के गुणांक को सालों की प्रोसेसिंग के बग़ैर हासिल नहीं कर सकते. इसका मतलब यह है कि भले ही पब्लिक-की क्रिप्टोग्राफ़ी को एक दिशा में संचालित करना आसान है लेकिन इसे आसानी से पलटा नहीं जा सकता. हालांकि 1990 के दशक में MIT में गणित के प्रोफ़ेसर पीटर शोर ने एक सिद्धांत विकसित किया. इसके मुताबिक क्वॉन्टम कंप्यूटरों के पास बड़ी संख्याओं (पूर्णांकों) को पलक झपकते ही अभाज्य संख्या में विभाजित करने की क़ाबिलियत होगी. इसे शोर के एलगोरिथम के नाम से जाता है. पब्लिक की क्रिप्टोग्राफ़ी पर इसका भारी प्रभाव है. चित्र 3 में शोर के एल्गोरिदम के बारे में ब्योरा दिया गया है.

चित्र 3. बड़े पूर्णांकों को उनके अभाज्य गुणकों में विभाजित करने की क्वॉन्टम कंप्यूटरों की क्षमता दर्शाता शोर का एलगोरिदम

Source: IBM.

विशेषज्ञों का विचार है कि इस प्रकार की गणना शक्ति से लैस क्वॉन्टम कंप्यूटरों के विकास में अभी व्यावहारिक रूप से कुछ वर्षों का समय बाक़ी है. हालांकि दुनिया भर की सरकारों ने क्वॉन्टम प्रतिरोधी क्रिप्टोग्राफ़ी पर भारी भरकम निवेश करना चालू कर दिया है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को 2021 में क्वॉन्टम संचार के क्षेत्र में अहम कामयाबी मिली थी. इसरो ने जटिलताओं पर आधारित सैटेलाइट संचार व्यवस्था का विकास किया था. बहरहाल चीन और अमेरिका के साथ क़दमताल करने के लिए भारत को पोस्ट-क्वॉन्टम क्रिप्टोग्राफ़ी के क्षेत्र में भी अपनी क्षमताओं का विस्तार करना होगा.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को 2021 में क्वॉन्टम संचार के क्षेत्र में अहम कामयाबी मिली थी. इसरो ने जटिलताओं पर आधारित सैटेलाइट संचार व्यवस्था का विकास किया था.

साइबर सुरक्षा जोख़िम और कमज़ोरियां

​जब क्वॉन्टम कंप्यूटर्स और उससे संबंधित क्रिप्टोग्राफ़ी आम बात हो जाएगी तब साइबर सुरक्षा में सेंधमारी के लिए कई तरीक़ों से उनका इस्तेमाल होने का ख़तरा रहेगा.

​भारत में दूसरी ज़्यादातर तकनीकों का प्रयोग जल्दबाज़ी में होता रहा है. ऐसे में इस बात के पूरे आसार हैं कि भारतीय संगठन और कारोबार जगत क्वॉन्टम प्रतिरोधी क्रिप्टोग्राफ़ी को भी हड़बड़ी में ही अपनाना शुरू करेंगे. इससे मौजूदा व्यवस्थाएं, बुनियादा ढांचा और साइबर सुरक्षा के लिए जोख़िम पैदा हो जाएंगे. लिहाज़ा क्वॉन्टम प्रतिरोधी क्रिप्टोग्राफ़ी की ओर पूरी तैयारी के साथ क़दम बढ़ाया जाना चाहिए. साथ ही चरणबद्ध तरीक़े से इसकी योजना बनाई जानी चाहिए.

इसके साथ ही एंड टू एंड सिस्टमों के और गहराई से जुड़ते जाने के साथ ही साइबर इकोसिस्टम की पूरी व्यवस्था को सुरक्षित बनाने की ज़रूरत सामने खड़ी हो गई है. संगठन संवेदनशील आंकड़ों और सूचनाओं की हिफ़ाज़त के लिए महज़ संचार मार्गों और उपकरणों की ही सुरक्षा करते नहीं रह सकते. उन्हें बेहद अहम साइबर बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के तौर-तरीक़े भी ढूंढने होंगे.

एक और नाज़ुक हालात की पहचान ज़रूरी हो जाती है. वो है क्वॉन्टम कंप्यूटरों द्वारा साइबर हमलों को अंजाम दिया जाना. ख़तरों की पहचान करने वाले मौजूदा सॉफ़्टवेयर, ऐसे हमलों की पहचान करने और उनके बर्तावों का पता लगा पाने के क़ाबिल नहीं हैं. हैकर्स बड़ी आसानी से उनकी पहचान छिपा सकते हैं. लिहाज़ा ऐसे चंद शुरुआती हमलों की पहचान कर पाना बेहद कठिन हो जाएगा.

क्वॉन्टम की दिशा में भारत की क़वायदों से तालमेल बिठाना

मौजूदा क्रिप्टोग्राफ़ी एल्गोरिदम के सामने क्वॉन्टम कंप्यूटरों द्वारा पेश ख़तरे बेहद अहम हैं. क्वॉन्टम कंप्यूटरों द्वारा पब्लिक की  क्रिप्टोग्राफ़ी को आसानी से भेद दिए जाने की सूरत में सरकार और कारोबार जगत, दोनों के सामने बेहद गंभीर चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी. मिसाल के तौर पर डिजिटल हस्ताक्षरों और पहचान की सुरक्षा से जुड़ी क़वायद बेहद अहम हो जाएगी. निजता और डेटा सुरक्षा के सामने कई तरह के जोख़िम पैदा हो जाएंगे. इस तरह से भारत के सामने अपने साइबर संसार की हिफ़ाज़त के दो प्रमुख रास्ते खुल जाते हैं.

पहला, क्वॉन्टम युग में साइबर अपराधों के ख़तरों को दूर करने के लिए क्वॉन्टम इकोसिस्टम के तीनों बड़े किरदारों- सरकार, उद्योग और शिक्षा जगत को एक छत के नीचे आकर साझा रूप से क्वॉन्टम प्रतिरोधी क्रिप्टोग्राफ़ी विकसित करनी होगी. इसे पोस्ट-क्वॉन्टम क्रिप्टोग्राफ़ी के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि इस तकनीक के औपचारिक रूप लेने, विकसित होने और मानकों के हिसाब से ढलने में अभी कई सालों का वक़्त लगेगा. भारत को पोस्ट-क्वॉन्टम क्रिप्टोग्राफ़ी से जुड़े रामानुजन के ग्राफ़ को और आगे बढ़ाने के लिए संसाधनों पर निवेश करना चाहिए. इससे क्वॉन्टम युग में अहम सरकारी और निजी सूचनाओं का बचाव करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा भारत होमोमॉर्फ़िक एन्क्रिप्शन के क्षेत्र में शोध और विकास के लिए भी निवेश कर सकता है. इससे संगठनों को सूचनाओं को डिकोड किए बग़ैर एन्क्रिप्टेड डेटा पर काम करने की सहूलियत हो जाती है. बहरहाल, पोस्ट-क्वॉन्टम क्रिप्टोग्राफ़ी को खड़ा करना कतई आसान साबित नहीं होने वाला है. ज़्यादा सघन क्वॉन्टम-प्रतिरोधी क्रिप्टोग्राफ़ी के इस्तेमाल से निकट भविष्य में सामने आने वाली चुनौतियां गणना के वक़्त को बढ़ाने और उनकी जांच परख पर ध्यान लगाने से जुड़ी होंगी.

भारत होमोमॉर्फ़िक एन्क्रिप्शन के क्षेत्र में शोध और विकास के लिए भी निवेश कर सकता है. इससे संगठनों को सूचनाओं को डिकोड किए बग़ैर एन्क्रिप्टेड डेटा पर काम करने की सहूलियत हो जाती है.

दूसरे, क्वॉन्टम आधारित क्रिप्टोग्राफ़ी (जिसे क्वॉन्टम की डिस्ट्रिब्यूशन यानी QKD भी कहा जाता है) का विकास किया जाना भी ज़रूरी है. इस प्रणाली में क्वॉन्टम मैकेनिक्स के तमाम विचारों (मसलन जटिलताओं और एक के ऊपर दूसरे को बिठाने की प्रक्रिया) को क्रिप्टोग्राफ़ी के एल्गोरिदम की बुनियाद के तौर पर इस्तेमाल में लाया जाता है. QKD के इस्तेमाल से होने वाले संचार को सैटेलाइट लिंक्स और ऑप्टिकल फ़ाइबर के ज़रिए सुरक्षित बनाया जा सकता है. QKD के लिए क्वॉन्टम आधारित बुनियादी ढांचे की दरकार होगी. मसलन इसके लिए ख़ास किस्म के हार्डवेयर की ज़रूरत होगी, जो इसकी लागत को काफ़ी बढ़ा देगी.

लिहाज़ा ज़्यादातर देश क्वॉन्टम के क्षेत्र में अपनी क़वायदों को क्वॉन्टम प्रतिरोधी क्रिप्टोग्राफ़ी तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं. चीन इसका अपवाद है. वो फ़ाइबर और सैटेलाइट लिंक्स- दोनों के इस्तेमाल से QKD में भारी भरकम निवेश भी कर रहा है.

दोनों प्रणालियों में QKD का विकास और उसके लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचा खड़ा करने की क़वायद एक दीर्घकालिक प्रक्रिया साबित होने वाली है. व्यावहारिक रूप से इसे अमल में लाए जाने से पहले इसमें कम से कम एक दशक का वक़्त लगने वाला है. लिहाज़ा संचार को सुरक्षित बनाने के लिए सरकारों, शिक्षा जगत और निजी क्षेत्र को क्वॉन्टम प्रतिरोधी क्रिप्टोग्राफ़ी पर समानांतर रूप से निवेश करना चाहिए.

क्वॉन्टम युग में साइबर संसार की हिफ़ाज़त

क्वॉन्टम युग में साइबर संसार की सुरक्षा सुनिश्चित करने में कुछ अहम विचार मददगार साबित हो सकते हैं. मसलन  वर्तमान में इस्तेमाल हो रहे पब्लिक की एन्क्रिप्शन इंफ़्रास्ट्रक्चर को औपचारिक रूप लेने, मानकों के रूप में तैयार होने और आम चलन में आने में कई दशकों का वक़्त लगा है. ऐसे में क्वॉन्टम प्रतिरोधी या क्वॉन्टम आधारित एन्क्रिप्शन की ओर ऐसा ही बदलाव चुनौतीपूर्ण साबित होने वाला है. इसके लिए सरकार को शिक्षा जगत और निजी क्षेत्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना चाहिए. इस सिलसिले में संचार अभियान तैयार करने और क्वॉन्टम के ज़रिए एन्क्रिप्शन हासिल करने की तकनीक की ओर वक़्त रहते क़दम बढ़ाने की अहमियत पर जागरूकता बढ़ाने में मदद किए जाने की ज़रूरत है. इसके लिए ख़ास किस्म के बुनियादी ढांचे की भी दरकार होगी. इससे भारत के कारोबार जगत, स्टार्ट अप्स और निवेशकों को व्यवस्थागत विकास की दिशा में योजना बनाने और निवेश करने का प्रोत्साहन मिलना तय है.

इसके साथ ही क्वॉन्टम कंप्यूटिंग में निवेश और तरक़्क़ी की क़वायद को टिकाऊ बनाने की दरकार है. NM-QTA के ज़रिए सरकार ने भारत में क्वॉन्टम तकनीकों के शोध और विकास की दिशा में 5 साल (2020-24) के कालखंड के लिए 8,000 करोड़ रुपये के बजट का आवंटन किया है. शोध को व्यावसायिक ऐप्लिकेशंस में बदलने और निवेशकों से जुड़े तंत्र को उभरते क्वॉन्टम स्टार्ट अप्स की मदद के लिए खड़ा करने के लिए सरकार को सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए. इसके साथ ही शोध और विकास की इस पूरी यात्रा की समय समय पर समीक्षा भी ज़रूरी है, ताकि दुनिया में इस क्षेत्र में हो रही तरक़्क़ी के हिसाब घरेलू क़वायद को भी गति दी जा सके.

इसके अलावा भारत के क्वॉन्टम इको सिस्टम में गठजोड़ और ज्ञान साझा करने की कोशिशों में सुधार लाने की दिशा में भी काफ़ी ज़ोर दिए जाने की दरकार है. भारत में क्वॉन्टम का परिदृश्य छोटा है. साथ ही ये विकास के शुरुआती चरण में है. भारतीय शिक्षा जगत के शीर्ष पर मौजूद विज्ञान और तकनीकी संस्थानों में महज़ कुछ सौ शोधकर्ता ही उपलब्ध हैं. भारत में क्वॉन्टम कम्युनिकेशन के क्षेत्र में अगुवा संस्थानों में से एक रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में ऑप्टिकल क्वॉन्टम तकनीक के क्षेत्र में काम को समर्पित एक लैब मौजूद है. द इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैथेमेटिकल साइंसेज़ और हरिश्चंद्र रिसर्च इंस्टीट्यूट में सैद्धांतिक कार्यदल हैं. दूसरी ओर आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी मद्रास, IISc बेंगलुरु, आईआईएसईआर पुणे, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च और आईआईएसईआर मोहाली के पास क्वॉन्टम तकनीकों के विकास के लिए प्रायोगिक और सैद्धांतिक दोनों तरह के कार्यदल मौजूद हैं. शोध और विकास की ऐसी क़वायदों के साथ-साथ केंद्रीय स्तर पर ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए औपचारिक ढांचा खड़ा किया जाना भी अहम हो जाता है. इससे इस पूरी क़वायद से जुड़े तमाम किरदारों को क्वॉन्टम एन्क्रिप्शन के क्षेत्र में हुए कामकाज की पड़ताल करने में मदद मिलेगी. साथ ही और मज़बूती के साथ गठजोड़ बनाने के नए-नए रास्ते भी खुल सकेंगे.

वर्तमान में इस्तेमाल हो रहे पब्लिक की एन्क्रिप्शन इंफ़्रास्ट्रक्चर को औपचारिक रूप लेने, मानकों के रूप में तैयार होने और आम चलन में आने में कई दशकों का वक़्त लगा है. ऐसे में क्वॉन्टम प्रतिरोधी या क्वॉन्टम आधारित एन्क्रिप्शन की ओर ऐसा ही बदलाव चुनौतीपूर्ण साबित होने वाला है.

एक और अहम विचार इस क्षेत्र के लिए समर्पित नीतिगत उपायों को लेकर है. वैसे तो NM-QTA का ताल्लुक़ क्वॉन्टम से जुड़े तमाम मसलों से है, लेकिन क्वॉन्टम युग में साइबर सुरक्षा से जुड़ी ज़रूरतों के निपटारे के लिए अलग से एक नीति तैयार किया जाना ज़रूरी है. क्वॉन्टम युग में डेटा की निजता और साइबर अपराधों से सुरक्षा के लिए तमाम किरदारों के जुड़ाव से एक व्यवस्था तैयार करने की ज़रूरत है. इस सिलसिले में साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों, क्वॉन्टम क्रिप्टोग्राफ़ी शोधकर्ताओं, तकनीकी नीति विशेषज्ञों और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा क़ायम रखने में शामिल तंत्र (मसलन रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों) को एकजुट होकर राष्ट्रीय स्तर की नीति का निर्माण करना चाहिए.

आख़िर में वक़्त रहते जोख़िमों का आकलन करने की क़वायद बेहद अहम साबित होने वाली है. क्वॉन्टम एन्क्रिप्शन तकनीकों से जुड़े जोख़िमों और नाज़ुक परिस्थितियों का वक़्त रहते पता लगा लिया जाना चाहिए. साथ ही इनकी रोकथाम के लिए ज़रूरी नीतियों का भी निर्माण किए जाने की दरकार है. इस सिलसिले में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम डेटासेट के आकलन को भी शामिल किया जाना चाहिए. साथ ही संवेदनशील निजी सूचनाओं को भी तवज्जो दिए जाने की ज़रूरत है. इसके अलावा क्वॉन्टम प्रतिरोधी और QKD एल्गोरिदम की व्यवहार्यता की पड़ताल भी ज़रूरी है. चूंकि, मानकीकरण की प्रक्रिया में काफ़ी वक़्त लगने वाला है, लिहाज़ा प्रासंगिक एजेंसियों को क्वॉन्टम आधारित एनक्रिप्शन के सचमुच साकार होने तक इंतज़ार नहीं करना चाहिए. इसके विपरीत उन्हें पहले से ही सचेत और सक्रिय रहने की दरकार है.

चलते चलते…

क्वॉन्टम कम्प्यूटिंग के ऐप्लिकेशंस, सरकारों और कारोबार जगत को अपनी ख़ुफ़िया सूचनाओं को सुरक्षित रखने को लेकर फिर से सोच विचार करने को मजबूर कर देंगे. इतना ही नहीं आम इंसान से जुड़ी सूचनाओं को भी सुरक्षित रखने का सवाल खड़ा होगा. क्वॉन्टम तकनीक की आमद से कम्प्यूटिंग और संचार और भी ज़्यादा जटिल हो जाएगा. लिहाज़ा सभी क्वॉन्टम पहलों के मध्य साइबर सुरक्षा से जुड़े प्रभावों को अहमियत देना ज़रूरी है. ऐसे में तमाम प्रासंगिक किरदारों को पोस्ट-क्वॉन्टम क्रिप्टोग्राफ़ी के विकास की प्रक्रिया में और तेज़ी लाने के लिए कमर कस लेनी चाहिए.

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