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Published on Aug 03, 2024 Updated 0 Hours ago

दक्षिणपूर्व एशिया में फ़िलहाल चल रहे साइबर अपराधों का मुकाबला करने के लिए मजबूत व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बेहद आवश्यक हो गया है.

साइबर घोटाले और तस्करी: भारत की दक्षिण-पूर्व एशियाई चुनौती

इसी माह पहले हुई BIMSTEC के विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने म्यांमार और थाईलैंड के अपने समकक्षों के साथ ऑनलाइन घोटाले का मुद्दा उठाया था. उन्होंने इसे लेकर अपनी चिंताओं को एक बार फिर 27 जुलाई को लाओस में हुई एसोसिएशन ऑफ़ साउथईस्ट एशियन नेशंस (ASEAN) रिजनल फोरम की 31 वीं बैठक में भी दोहराते हुए इससे निपटने के लिए एक मजबूत व्यवस्था खड़ी करने का आवाहन किया था. उनका कहना था कि साइबर अपराध से जुड़े मामलों से निपटने में समन्वित प्रयास क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए बेहद आवश्यक है.

इंडियन साइबर क्राइम को-ऑर्डिनेशन सेंटर (I4C), के अनुसार जनवरी से अप्रैल 2024 के बीच दक्षिणपूर्व एशिया से संचालित होने वाले साइबर घोटालों के कारण भारत को भारी वित्तीय नुक़सान का सामना करना पड़ा था.

इंडियन साइबर क्राइम को-ऑर्डिनेशन सेंटर (I4C), के अनुसार जनवरी से अप्रैल 2024 के बीच दक्षिणपूर्व एशिया से संचालित होने वाले साइबर घोटालों के कारण भारत को भारी वित्तीय नुक़सान का सामना करना पड़ा था. एक अनुमान है कि निवेश संबंधी 62,587 घोटालों की वजह से 16.96 मिलियन अमेरिकी डालर, 20,043 ट्रेडिंग स्कैम की वजह से 2.65 मिलियन अमेरिकी डालर, 4,600 डिजिटल अरेस्ट स्कैम की वजह से1.43 मिलियन अमेरिकी डालर तथा 1,725 डेटिंग स्कैम्स की वजह से 0.16 मिलियन अमेरिकी डालर का नुक़सान हुआ है. नेशनल साइबर क्राइम पोर्टल के अनुसार 2023 में 100,000 से ज़्यादा निवेश संबंधी घोटाले और इससे जुड़े 10,000 FIRs हुए थे. ये आंकड़े इस तरह के अपराधों को लेकर चिंताओं को बढ़ाने वाले हैं.

 

साइबर ठगी, अब आधुनिक मानव तस्करी का रूप ले चुकी है. इसमें ट्रैफिकर्स यानी तस्कर नौकरी देने वाले अर्थात जॉब रिक्रूटर्स बनकर सोशल मीडिया पर अच्छी अंग्रेजी बोलने अथवा तकनीकी पृष्ठभूमि वाले लोगों को उच्च वेतन का लालच देकर अपना शिकार बनाते हैं. एक बार जब इनका शिकार दक्षिण पूर्व एशिया पहुंच जाता है तो उसे वहां साइबर घोटाले को अंजाम देने पर मजबूर कर दिया जाता है. इन लोगों को जेल जैसी स्थितियों में रखकर अपना ‘‘कर्ज़’’ उतारने के लिए अवैध गतिविधियों जैसे ऑनलाइन जुआ अथवा रोमांस स्कैम में शामिल होने पर मजबूर किया जाता है. ऐसे घोटालों से जुड़े ऑपरेशन म्यांमार में मौजूद अस्थिरता और COVID-19 महामारी की वजह से पड़े आर्थिक व्यवधान की वजह से पनप रहे हैं.

दक्षिण-पूर्व एशिया में ऑनलाइन घोटाले

ठगने के ऑपरेशन में हजारों लोग शामिल होते हैं. इसमें कुछ लोग लुभावने विज्ञापनों के झांसे में आकर फंस जाते हैं. ये विज्ञापन लुभावनी तकनीकी नौकरियों का वादा करते हैं. इनके झांसे में आने वाले फिर घोटाले की जटिलताओं में फंसकर रह जाते हैं. इस तरह लोगों को अपने जाल में फंसा कर कुछ अपनी इच्छा से काम करने वाले लोग इन घोटालो को अंजाम देते हैं. इसमें भारत समेत विश्व के 60 से ज़्यादा देशों के लोगों का समावेश है.

 

दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे तमिलनाडु (केरल को छोड़कर) और उत्तर भारतीय राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार के ग्रामीण इलाके में रहने वाले युवाओं को दक्षिणपूर्व एशियाई देश ज़्यादा पसंद आते हैं. इसका कारण यह है कि ये क्षेत्र भौगोलिक रूप से उनके करीब हैं और इन देशों में आकर्षक वेतन भी मिलता है. इन युवाओं को आमतौर पर ‘‘डिजिटल सेल्स एंड मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव’’ अथवा ‘‘कस्टमर सपोर्ट सर्विस’’ का काम करने के लिए नियुक्त किया जाता है. 

म्यांमार में कानून विरहित माहौल के कारण अवैध गतिविधियां जैसे जुआ और फिशिंग तेजी से बढ़ी हैं. थाईलैंड की सीमा के करीब कायिन राज्य के म्यावाडी क्षेत्र में रुक-रुक कर विद्रोही गतिविधियां देखी जाती हैं. 

 

म्यांमार में कानून विरहित माहौल के कारण अवैध गतिविधियां जैसे जुआ और फिशिंग तेजी से बढ़ी हैं. थाईलैंड की सीमा के करीब कायिन राज्य के म्यावाडी क्षेत्र में रुक-रुक कर विद्रोही गतिविधियां देखी जाती हैं. यहां विद्रोही अभियान और सैन्य शासकों के बीच होने वाले संघर्ष की घटनाओं के कारण स्कैमिंग हब यानी घोटाले का अड्डा भी पनपा है. सीमा सुरक्षा बलों की ख़बरों के अनुसार इन क्षेत्रों की भारी सुरक्षा की जाती है. कंबोडिया में अबाउंडेड यानी परित्यक्त जगह, विशेषत: कैसीनो और होटल्स को पुर्नसज्जित किया गया है. इनका अब ऑनलाइन ठगी के लिए उपयोग किया जा रहा है. इन जगहों को आपराधिक नेटवर्क्स का संरक्षण हासिल है. आपराधिक नेटवर्क्स इन्हें अब अधिकारियों की निगाहों अथवा कार्रवाई से बचाते है. लाओस में SEZs जैसे झाओ वेई का कुख़्यात गोल्डन ट्राएंगल SEZ इस तरह के अवैध गतिविधियों का प्रमुख अड्डा है. 

 

चूंकि इन देशों के भीतर आपराधिक नेटवर्क्स के बीच मजबूत अंतर संबंध हैं, अत: वे गिरफ्तारी अथवा कानून से बचने के लिए अपने ठिकानों को बदलते रहते हैं. उदाहरण के लिए चीनी कानून प्रवर्तन एजेंसी की ओर से 2023 में चीन-म्यांमार सीमा से सटे एक अवैध अड्डे पर की गई कार्रवाई पर नज़र डाली जा सकती है. इस कार्रवाई की वजह से अवैध गतिविधियां चलाने वालों ने अपने ठिकाने यहां से बदलकर दक्षिण में म्यांमार के कायिन राज्य, जो थाईलैंड की सीमा पर है में स्थापित कर लिया था. इसके साथ ही कुछ लोग कंबोडिया और लाओस भी चले गए थे.

भारतीय अधिकारियों की ओर से किए जाने वाले उपाय

भारतीय नागरिकों को निशाना बनाने वाले अंतरराष्ट्रीय साइबर अपराधों को देखते हुए भारतीय सरकार ने एक अंतर-मिनिस्ट्रियल कमेटी यानी अंतर-मंत्रालय समिति का गठन किया है. 2020 में गठित इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) कानून प्रवर्तन एजेंसियों को साइबर अपराधों से व्यापक तरीके से निपटने के लिए एक तंत्र मुहैया करवाता है. 

 

राज्य एजेंसियों के साथ समन्वय साधते हुए I4C ने अनेक अहम कदम उठाए हैं. इसमें 325,000 म्यूल अकाउंट, 3,000 URLs, 595 एप्लीकेशन को IT कानून के सेक्शन 69A के तहत ब्लॉक करना शामिल है. इसके अतिरिक्त 530,000 सिम कार्ड्‌स और 80,848 IMEI नंबर्स को IT कानून के सेक्शन 79 (3)(b) के तहत कुछ ही माह में निरस्त कर दिया गया था.

 

इसके अलावा विदेश मामलों के मंत्रालय ने एक परामर्श पत्र जारी करते हुए फ़र्ज़ी नौकरी देने वाले रैकेट्‌स को लेकर सावधान रहने को कहा है. इस पत्र के अनुसार ये रैकेट्‌स भारतीय युवाओं को निशाना बनाते हैं. परामर्श पत्र में कहा गया है कि बगैर पुष्टि के ऐसे जॉब ऑफर्स के झांसे में नहीं आना चाहिए. परामर्श पत्र के अनुसार यह बात विशेष रूप से म्यांमार में जाकर नौकरी करने के मामले में लागू होती है. इस तरह के किसी भी प्रस्ताव को लेकर म्यांमार, कंबोडिया, थाईलैंड और लाओस स्थित भारतीय दूतावासों से पुष्टि करनी चाहिए. यहां के दूतावास स्थानीय प्रशासन के साथ नज़दीकी रूप से संबंध बनाकर इस तरह के अपराधों को रोकने और विदेश में फंसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षा मुहैया करवाने का काम करते हैं. 

 

मई 2024 में म्यांमार में भारतीय दूतावास ने जानकारी दी कि हपा लू, म्यावड्डी में नौकरी घोटाले के शिकार आठ भारतीय नागरिकों को सुरक्षित बचा लिया गया है. इन नागरिकों को सुरक्षित रूप से म्यांमार पुलिस तथा आव्रजन विभाग यानी इमीग्रेशन ऑथॉरिटी को सौंप दिया गया है. इसके अलावा म्यावड्डी में इसी तरह घोटाले के अड्डों से 19 भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकाला गया था. कंबोडिया के नोम पेन्ह स्थित भारतीय दूतावास सक्रियता के साथ भारतीय नागरिकों को वापस स्वदेश भेज रहा है. इसने अब तक लगभग 650 लोगों को स्वदेश भेजा है. लाओस में भी 518 भारतीय नागरिकों को बचाया गया है. इन कोशिशों के बावजूद ऐसे अड्डों पर फंसे लोगों की संख्या अब भी काफ़ी है.

 

भारतीय अधिकारियों ने इस तरह की अवैध भर्ती गतिविधियों से जुड़े अनेक लोगों को गिरफ्तार किया है. मई माह में विशाखापट्टनम साइबर अपराध पुलिस ने कुछ लोगों को साइबर अपराध अड्डों पर भेजने वाले तीन एजेंट को गिरफ्तार किया था. 

भारतीय अधिकारियों ने इस तरह की अवैध भर्ती गतिविधियों से जुड़े अनेक लोगों को गिरफ्तार किया है. मई माह में विशाखापट्टनम साइबर अपराध पुलिस ने कुछ लोगों को साइबर अपराध अड्डों पर भेजने वाले तीन एजेंट को गिरफ्तार किया था. इसी तरह के मामलों में जुड़ी गिरफ्तारी ओडिशा में भी की गई., हरियाणा, चंडीगढ़ और गुजरात से भी पांच लोगों को धरा गया था. 

 

भारतीय सरकार को उम्मीद है कि 1 जुलाई 2024 से लागू होने वाली भारतीय न्याय संहिता (BNS) के सेक्शन 111 से दोषियों के ख़िलाफ़ मामला चलाने में और आसानी होगी. इसका कारण यह है कि इस सेक्शन में अब संगठित अपराध की पुख़्ता व्याख्या की गई है. इस कानून के तहत एक संयुक्त कार्यबल का गठन करने की अनुमति है. इसमें CBI, NIA तथा राज्य पुलिस बल के लोग शामिल होंगे, ताकि बेहतर समन्वय और विस्तृत जांच की जा सकें. इस कानून की वजह से अब मजबूत व्यवस्था तैयार की गई है ताकि ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने और राष्ट्रीय तथा राज्य एजेंसियों के बीच जानकारी का आदान-प्रदान सुगम हो सकें.

 

इस कानून का एक अहम पहलू है अंतरराष्ट्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय साधकर संगठित अपराध में शामिल लोगों का पता लगाकर उनको गिरफ्तार कर उन्हें स्वदेश लाना. इसके अलावा एक समग्र विटनेस प्रोटेक्शन प्रोग्राम यानी गवाह सुरक्षा कार्यक्रम भी तैयार किया जा रहा है जिसमें गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित कर उनकी गुमनामी की गारंटी दी जाएगी. यह सुविधा आवश्यक जानकारी देने के लिए आगे आने वाले गवाहों को मुहैया कराई जाएगी.

कार्रवाई की आवश्यकता

भारतीय और कंबोडियाई सरकार ने 2018 में एक मेमोरैंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग (MoU) पर हस्ताक्षर करते हुए मानव तस्करी को रोकने का वादा करते हुए यूनाइटेड नेशंस कंवेंशन ऑन ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम (UNCTOC) की पुष्टि भी की थी. UNCTOC मानव तस्करी, विशेषत: महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने का आवाहन करता है. इस तरह के समझौते म्यांमार सरकार के साथ भी किए गए है. अब मानव तस्करी को लेकर लाओस के साथ भी इस तरह का एक MoU ज़रूरी हो गया है.

 

म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता और चल रहे संघर्ष के कारण तस्करी को रोकने और इसके शिकार लोगों की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगता है. इस स्थिति के कारण मानव तस्करी रोकने और लोगों को सुरक्षित रखने के लिए तैयार किए गए उपाय लागू करना मुश्किल हो जाता है. सैन्य अधिकारी भारतीय नागरिकों के बचाव और स्वदेश वापसी में सहायता करते हैं, लेकिन इस मामले में सभी हितधारकों से बातचीत करने पर ही धोखाधड़ी का शिकार हुए लोगों को बचाना और उनकी स्वदेश वापसी सुनिश्चित की जा सकती है. 

 

संगठित अपराध समूह अब कानून की निगाहों से बचने के लिए अत्याधुनिक तकनीक का सहारा ले रहे हैं. ऐसे में साइबर अपराध से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए भी विशेष कौशल विकसित कर उसे हासिल करना ज़रूरी हो गया है. इसके लिए पर्याप्त फंडिंग और प्रशिक्षित कर्मियों की आवश्यकता है. ऐसा होने पर ही साइबर अपराध से प्रभावी अंदाज में निपटा जा सकेगा. बचाव प्रयासों के अलावा इस तरह के घोटाले का शिकार होने वाले नागरिकों के पुनर्वास और उन्हें मानसिक तौर पर सहायता उपलब्ध करवाना भी आवश्यक है. ऐसा होने पर ही वे इस तरह के सदमे से उबरकर समाज की मुख़्य धारा में लौट सकेंगे.

इस तरह की गतिविधियों को निरंतर और संयुक्त/एकजुट प्रयासों से ही ख़त्म किया जा सकता है. ऐसा होने पर ही इसका शिकार हुए लोगों को उनका आत्मसम्मान लौटाकर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकेगा.

इस तरह के जटिल मुद्दे से निपटने के लिए भारत, म्यांमार और कंबोडिया को आपसी स्तर पर बेहतर समन्वय साधने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वय स्थापित करना होगा. ऐसा होने पर ही धोखाधड़ी के शिकार हुए नागरिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए मानवाधिकार उल्लंघन की इस गंभीर समस्या से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकेगा. इस दिशा में क्षेत्रीय संगठन, ASEAN की ओर से भी कोशिश होना ज़रूरी है. 2023 में ASEAN नेताओं ने सीमा पर्यवेक्षण, सुरक्षा प्रवर्तन, कानूनी कार्रवाई और धोखाधड़ी के शिकार लोगों की स्वदेश वापसी पर सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई थी. लेकिन इस दिशा में और अधिक प्रयास होना ज़रूरी है. इसके अलावा ऐसे नेटवर्क्स का ख़ात्मा करने के लिए मजबूत अंतरराष्ट्रीय दबाव और सहयोग आवश्यक है. इस तरह की गतिविधियों को निरंतर और संयुक्त/एकजुट प्रयासों से ही ख़त्म किया जा सकता है. ऐसा होने पर ही इसका शिकार हुए लोगों को उनका आत्मसम्मान लौटाकर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकेगा.


श्रीपर्णा बैनर्जी, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में जूनियर फेलो हैं.

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