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तालिबान तक भारत की बढ़ती पहुंच के सामरिक ख़तरे हैं क्योंकि चीन और पाकिस्तान के गहरे होते संबंध के बीच अफ़ग़ानिस्तान, भारत और पाकिस्तान के बीच फंसा हुआ है.
Image Source: Getty
एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक घटनाक्रम के तहत भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने 15 मई को अफ़ग़ानिस्तान के अंतरिम विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी से फोन पर बात की. ऑपरेशन सिंदूर - जो कि पहलगाम हमले के जवाब में पाकिस्तान के भीतर मौजूद आतंकवाद के बुनियादी ढांचे के ख़िलाफ़ भारत की बदले की कार्रवाई है - जिसके ठीक बाद हुई इस बातचीत में भारत के विदेश मंत्री ने अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दोहराई और पहलगाम में आतंकी हमले की निंदा के लिए अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री का धन्यवाद किया. उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के द्वारा भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच “अविश्वास पैदा करने की हाल की कोशिशों को अफ़ग़ानिस्तान के द्वारा खारिज करने” की बात को भी स्वीकार किया. ये भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष में अफ़ग़ानिस्तान को शामिल करने की पाकिस्तान की कोशिश के संदर्भ में था.
10 मई को भारत और पाकिस्तान सभी तरह की सैन्य कार्रवाई - ज़मीन, आसमान और समुद्र में- रोकने पर सहमत हुए. ऑपरेशन सिंदूर के स्थगित होने के साथ ही भारत ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद के लिए पाकिस्तान के समर्थन देने को लेकर अपने सिद्धांतों को फिर से परिभाषित किया. उसी दिन पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज़ पब्लिक रिलेशंस (ISPR) के महानिदेशक ने भारत पर आरोप लगाया कि संपूर्ण युद्ध के साथ वो उपमहाद्वीप को ख़तरे में डाल रहा है. ISPR के महानिदेशक ने दावा किया कि भारत की तरफ से दागी गई एक मिसाइल ने अफ़ग़ानिस्तान को निशाना बनाया. इस बयान को अफ़ग़ानिस्तान के रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया. भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने भी इस दावे का खंडन किया और चुटकी लेते हुए कहा कि “अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को ये याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है कि किस देश ने बार-बार उनके नागरिक बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया और आम लोगों की हत्या की.” भारतीय विदेश सचिव का ये बयान दिसंबर 2024 में अफ़ग़ानिस्तान पर पाकिस्तान के हवाई हमलों के संदर्भ में था जिसमें कई आम लोग मारे गए थे. पिछले तीन वर्षों के दौरान पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच जैसे-जैसे संबंध बद से बदतर होते गए, वैसे-वैसे तालिबान ने अपनी कूटनीतिक भागीदारी का विस्तार करने का प्रयास किया है. इस कोशिश में भारत उसका एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में उभरा है.
ISPR के महानिदेशक ने दावा किया कि भारत की तरफ से दागी गई एक मिसाइल ने अफ़ग़ानिस्तान को निशाना बनाया. इस बयान को अफ़ग़ानिस्तान के रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया.
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान ने एक बयान जारी कर इस घटना की निंदा की और “क्षेत्रीय सुरक्षा एवं स्थिरता” पर इसके ख़राब असर को उजागर किया. दो हफ्ते बाद, जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत की, अफ़ग़ानिस्तान ने एक बार फिर तनाव में बढ़ोतरी की निंदा की और दोनों पक्षों से “संयम बरतने एवं बातचीत और कूटनीति के माध्यम से मुद्दों का समाधान” करने की अपील की. हाल के संघर्ष को लेकर तालिबान के संदेश में अफ़ग़ानिस्तान की “संतुलित और अर्थव्यवस्था केंद्रित विदेश नीति” पर ज़ोर दिया गया. अफ़ग़ानिस्तान ने ख़ुद को एक ज़िम्मेदार क्षेत्रीय ताकत के रूप में पेश करने का प्रयास किया है जो सभी पड़ोसी देशों के साथ संबंध बरकरार रखने और इस क्षेत्र में संघर्ष का विरोध करने के लिए प्रतिबद्ध है. भारत और पाकिस्तान के मामले में तालिबान दावा करता है कि दोनों देशों के साथ उसकी “समानताएं और सकारात्मक संबंध” हैं. तालिबान के इस तरह के बयान अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अपनी छवि को सुधारने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता हासिल करने के उसके प्रयास को मज़बूत करने और सभी देशों के साथ भागीदारी के ज़रिए लाभ हासिल करने की उसकी कोशिशों का हिस्सा हैं.
तालिबान के आतंकवाद को समर्थन देकर लाभ हासिल करने की पाकिस्तान की उम्मीदें धराशायी हो गई हैं. सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद से पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच संबंध सबसे निचले स्तर पर है. पाकिस्तान ने तालिबान से अनुरोध किया है कि वो तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को नियंत्रण में रखे और इस संगठन से अपना समर्थन वापस ले लेकिन तालिबान ने इन आरोपों को ठुकरा दिया है. इसके जवाब में तालिबान ने पाकिस्तान पर अपनी घरेलू मुश्किलों के लिए ज़िम्मेदारी उठाने से बचने का आरोप लगाया है. दोनों देशों के बीच तनाव ने उस समय हिंसक रूप अख्तियार कर लिया जब पाकिस्तान ने दिसंबर 2024 में TTP के संदिग्ध अड्डों पर हवाई हमले किए. हथियारों के साथ संघर्ष और सीमा पार गोलाबारी की घटनाएं भी हुई हैं. पिछले साल अफ़ग़ान शरणार्थियों को वापस भेजने के पाकिस्तान के फैसले ने संबंधों को और ख़राब किया है.
पाकिस्तान ने तालिबान से अनुरोध किया है कि वो तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को नियंत्रण में रखे और इस संगठन से अपना समर्थन वापस ले लेकिन तालिबान ने इन आरोपों को ठुकरा दिया है. इसके जवाब में तालिबान ने पाकिस्तान पर अपनी घरेलू मुश्किलों के लिए ज़िम्मेदारी उठाने से बचने का आरोप लगाया है.
तालिबान अब पाकिस्तान को उसी तरह से देखता है जिस तरह भारत लंबे समय से देखता आया है यानी छद्म आतंकी संगठनों का प्रायोजक जिसका मक़सद अफ़ग़ानिस्तान को अपने अधीन बनाए रखना है. इस साल की शुरुआत में जारी केंद्रीय सुरक्षा और निकासी (क्लीयरेंस) मामलों के आयोग की सालाना रिपोर्ट में तालिबान ने बलोचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा प्रांतों में आतंकवादियों को शरण देने के लिए पाकिस्तान में कुछ विशेष ‘तत्वों’ को ज़िम्मेदार ठहराया है. रिपोर्ट के अनुसार ये आतंकवादी “कुछ विशेष पक्षों की मौन स्वीकृति, सहिष्णुता और अप्रत्यक्ष समर्थन के साथ फिर से संगठित हो रहे हैं” और इनका इस्तेमाल इस क्षेत्र के दूसरे देशों में हमले की योजना बनाने के लिए किया जा सकता है. जब ट्रंप प्रशासन ने 2021 के काबुल हवाई अड्डे पर हमले के लिए ज़िम्मेदार मास्टरमाइंड की गिरफ्तारी में पाकिस्तान की भूमिका को स्वीकार किया तो तालिबान ने ये कहकर जवाब दिया कि इससे पाकिस्तान में इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रांत (ISKP) के कैंप के अस्तित्व में होने की पुष्टि होती है. तालिबान ने आगे ये दलील भी दी कि पाकिस्तान अमेरिका का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है, भले ही असली मास्टरमाइंड को पहले ही “ख़त्म” कर दिया गया हो.
इन मतभेदों के बावजूद पिछले कुछ महीनों के दौरान दोनों पक्षों ने फिर से जुड़ने के प्रयास किए हैं. पिछले महीने संयुक्त समन्वय समिति की बैठक हुई जिसके बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद इसहाक़ डार ने अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री के साथ बातचीत के लिए अफ़ग़ानिस्तान का दौरा किया. ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत के एक दिन पहले दोनों विदेश मंत्रियों ने फ़ोन पर बातचीत की जिस दौरान बैठक के नतीजों की समीक्षा की गई और भारत एवं पाकिस्तान के बीच उभरती स्थिति का जायज़ा लिया गया.
पिछले तीन वर्षों के दौरान भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच ख़राब होते रिश्ते की पृष्ठभूमि में तालिबान सरकार ने भारत तक पहुंचने की कोशिश तेज़ की है. अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के असर में गिरावट ने भी भारत के लिए संभावनाएं पैदा की हैं. पहलगाम हमले के पांच दिन बाद 27 अप्रैल को भारतीय विदेश मंत्रालय के पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (PAI) डिवीज़न के संयुक्त सचिव के नेत़ृत्व में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अफ़ग़ानिस्तान की यात्रा के दौरान मुत्ताक़ी से मुलाकात की. अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मामलों के मंत्रालय (MoFA) की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया कि दोनों पक्षों ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और अफ़ग़ानिस्तान में भारत की भूमिका का विस्तार करने के संबंध में चर्चा की. इस बैठक के समय- आतंकी हमले और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत की दंडात्मक कार्रवाई के बाद - ने इस बात को लेकर एक मज़बूत राजनीतिक संदेश दिया कि भारत, पाकिस्तान के साथ अपने संघर्ष को लेकर अफ़ग़ानिस्तान को किस तरह देखता है.
अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़ा करने के बाद से तालिबान इस बात की कोशिश कर रहा है कि भारत उसके साथ अपनी भागीदारी बढ़ाए. उसकी मांगें दोनों देशों के लोगों के बीच आवागमन को सुविधाजनक बनाने, कारोबारियों एवं छात्रों को वीज़ा जारी करने, बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को फिर से शुरू करने और अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय निवेश को प्रोत्साहन देने के इर्द-गिर्द केंद्रित हैं. हाल ही में हुई बैठक के दौरान अटारी-वाघा सीमा को बंद करने का मुद्दा उठाया गया. इस सीमा, जो कि भारत को अफ़ग़ानी सामान के निर्यात के लिए महत्वपूर्ण एकतरफा व्यापार का रास्ता है, को पिछले दिनों बंद किया गया जब भारत ने 22 अप्रैल के आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया और उसके बाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कई दंडात्मक कूटनीतिक कदम उठाए. बैठक के बाद भारत ने एक “विशेष संकेत” देते हुए इस सीमा के ज़रिए 160 अफ़ग़ानी ट्रकों के प्रवेश को मंज़ूरी दी.
अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़ा करने के बाद से तालिबान इस बात की कोशिश कर रहा है कि भारत उसके साथ अपनी भागीदारी बढ़ाए. उसकी मांगें दोनों देशों के लोगों के बीच आवागमन को सुविधाजनक बनाने, कारोबारियों एवं छात्रों को वीज़ा जारी करने, बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को फिर से शुरू करने और अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय निवेश को प्रोत्साहन देने के इर्द-गिर्द केंद्रित हैं.
भारत ने धीरे-धीरे तालिबान के साथ अपने संबंधों को बढ़ाया है जिसके तहत अपनी सुरक्षा चिंताओं के बारे में तालिबान को बताते हुए मानवीय सहायता पर ध्यान दिया गया है. दिसंबर 2024 में, जब पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान के भीतर हमले किए, भारत ने पाकिस्तान की कार्रवाई की ‘स्पष्ट रूप से आलोचना की’ और इस बात के लिए निंदा की कि वो अपनी आंतरिक समस्याओं को बाहरी रूप दे रहा है. विदेश सचिव मिसरी ने जनवरी 2025 में अफ़ग़ानिस्तान के अंतरिम विदेश मंत्री से मुलाकात भी की. ये अभी तक दोनों पक्षों के बीच सबसे बड़े स्तर की बैठक थी. भारतीय विदेश मंत्री के साथ फोन पर बातचीत के दौरान तालिबान ने एक बार फिर वीज़ा सुविधा का मुद्दा उठाया और भारतीय जेलों में अफ़ग़ानी क़ैदियों की रिहाई की मांग की.
भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच बढ़ते संबंध से पाकिस्तान में एक बेचैनी की भावना पैदा हो रही है क्योंकि उसे अफ़ग़ानिस्तान में सामरिक गहराई हासिल करने की अपनी उम्मीद पर पानी फिरता हुआ दिख रहा है. दूसरी तरफ तालिबान भारत के साथ अपने बढ़ते संबंध को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एक असरदार हथियार के रूप में देखता है जिससे उसे पाकिस्तान से स्वतंत्र होकर काम करने की अनुमति मिलती है.
जिस समय भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम के लिए मध्यस्थता की जा रही थी, उसी समय चीन और पाकिस्तान के प्रतिनिधि अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और चीन के बीच त्रिपक्षीय बातचीत के पांचवें संस्करण के लिए अफ़ग़ानिस्तान में इकट्ठा हुए. चीन और पाकिस्तान के विशेष दूतों ने अफ़ग़ानिस्तान के आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी से भी मुलाकात की और आपसी हितों के मुद्दों पर चर्चा की.
अफ़ग़ानिस्तान के द्वारा ख़ुद को एक तटस्थ शक्ति के रूप में पेश करना, सभी पड़ोसी देशों के साथ संबंध बनाने की उसकी इच्छा और पाकिस्तान के साथ बातचीत की शुरुआत से संकेत मिलता है कि तालिबान अपना दांव सुरक्षित रख रहा है.
वैसे तो अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के आधिकारिक बयानों में इस बिंदु का कोई हवाला नहीं दिया गया लेकिन पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के कई अख़बारों ने इस ख़बर को सुर्खियों में रखा कि तीनों पक्ष इस बात को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत की भूमिका केवल कूटनीतिक मोर्चे तक सीमित है और पहलगाम आतंकी हमले के सवाल पर अफ़ग़ानिस्तान तटस्थ बना हुआ है. जैसा कि ख़बरों में बताया गया, ये ‘क्षेत्रीय पुनर्व्यवस्था’ एक प्रकार की बेचैनी के बारे में बताती है क्योंकि भारत की सैन्य कार्रवाई के बाद पाकिस्तान जूझ रहा है. कुछ ख़बरों में ये भी बताया गया है कि इन मांगों को स्वीकार करने की अफ़ग़ानिस्तान की इच्छा नहीं है.
ऑपरेशन सिंदूर और मुश्किल से हुए युद्धविराम के बाद भारत बेहद सतर्क बना हुआ है. पाकिस्तान के साथ तालिबान के बिगड़ते संबंधों के बीच तालिबान के साथ बढ़ती नज़दीकी भारत के लिए अनुकूल है. हालांकि चुनौतियां बरकरार हैं. अफ़ग़ानिस्तान के द्वारा ख़ुद को एक तटस्थ शक्ति के रूप में पेश करना, सभी पड़ोसी देशों के साथ संबंध बनाने की उसकी इच्छा और पाकिस्तान के साथ बातचीत की शुरुआत से संकेत मिलता है कि तालिबान अपना दांव सुरक्षित रख रहा है. 21 मई को मुत्ताक़ी भी चीन में मौजूद थे जहां उन्होंने एक और त्रिपक्षीय बैठक के दौरान चीन और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों से मुलाकात की. चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ता सहयोग अफ़ग़ानिस्तान में भारत के सामरिक हितों के लिए महत्वपूर्ण चुनौती पेश करता है. भारत तालिबान के साथ अपनी भागीदारी तो जारी रखेगा, जिसका प्रमाण हाल की बातचीत से मिलता है, लेकिन उसे उभरते ख़तरों को भी ध्यान में रखना चाहिए.
शिवम शेखावत ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में जूनियर फेलो हैं.
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Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...
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