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अमेरिका के डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस (DNI) के दो संस्थानों, ऑफिस ऑफ इकोनॉमिक सिक्योरिटी एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी और नेशनल काउंटर इंटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी सेंटर ने जुलाई 2024 में नेवल क्रिमिनल इन्वेस्टिगेटिव सर्विसेज और एयर फोर्स ऑफ स्पेशल इन्वेस्टिगेशन्स के साथ मिलकर एक विस्तृत और गहन संयुक्त रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में विवादित और संदिग्ध निवेश वाले उभरती प्रौद्योगिकियों से संबंधित स्टार्टअप्स से समझौता करने वाली अमेरिकी व्यावसायिक संस्थाओं और कंपनियों को सावधान करते हुए चेतावनी जारी की गई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक़:
- यदि किसी स्टार्टअप से लाभ हासिल करने वालों की सूची में विदेशी निवेशक पाए जाते हैं, तो उस स्टार्टअप को अमेरिकी सरकार की परियोजनाओं से प्रतिबंधित किया जा सकता है;
- यदि विदेशी फंडिंग वाले स्टार्टअप्स के साथ अमेरिकी कंपनियां समझौता करती हैं, तो उन्हें इनके चालाक और धोखाधड़ी करने वाले विदेशी निवेशकों की वजह से डेटा और टेक्नोलॉजी की चोरी का सामना करना पड़ सकता है;
- ऐसे विदेशी निवेशक स्टार्टअप के फैसलों में दख़ल दे सकते हैं, हो सकता है कि उनकी ऐसी दख़लंदाज़ी अमेरिका के राष्ट्रीय हित में नहीं हो; और
- विदेशी निवेश हासिल करने वाले इन स्टार्टअप्स को अमेरिकी विदेशी निवेश समिति (CFIUS) द्वारा अपने निवेश की समीक्षा करानी होगी.
पिछले कुछ वर्षों में देखा जाए तो पेंटागन और अमेरिकी रक्षा औद्योगिक बेस द्वारा अमेरिकी स्टार्टअप्स में बढ़ते चीनी निवेश को लेकर काफ़ी चौकसी बरती जा रही है. इसी वजह से अमेरिकी स्टार्टअप्स में विदेशी निवेश लगातार कम हो रहा है. वर्ष 2013 में जो विदेशी निवेश 23% था वो वर्ष 2023 में केवल 13% रह गया. इस ताज़ा रिपोर्ट के बाद अमेरिकी स्टार्टअप्स में वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में और कमी आ सकती है. विदेशी निवेश में इस कमी के पीछे सबसे बड़ी वजह दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, यानी अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक मतभेद हैं, साथ ही इनके द्वारा की जा रही टेक्नो-पॉलिटिकल गुटबंदी है.
विदेशी निवेश में इस कमी के पीछे सबसे बड़ी वजह दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, यानी अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक मतभेद हैं, साथ ही इनके द्वारा की जा रही टेक्नो-पॉलिटिकल गुटबंदी है.
भारत को देश में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की गहन जांच-परख और निगरानी करने की आवश्यकता है. अमेरिकी की इस रिपोर्ट को डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलीजेंस के साथ ही अमेरिका की नौसेना और वायु सेना की काउंटर इंटेलिजेंस यूनिट्स द्वारा मिलकर तैयार किया गया है. इसका मतलब यह है कि उनके पास इस तरह की गोपनीय जानकारी हो सकती है, या फिर वहां ऐसे मामले हो सकते हैं, जिनमें डिफेंस टेक्नोलॉजी से जुड़ी कंपनियों में संदिग्ध विदेशी निवेश हो रहा हो. ख़ास तौर पर उन कंपनियों में जो ऐसी परियोजनाओं में कार्यरत हैं, जो अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से बहुत संवेदनशील हैं.
अमेरिकी एजेंसियों की इस रिपोर्ट में दिए गए तथ्यों के आधार पर भारत में क्या हालात हैं, उनकी पड़ताल किया जाना बेहद कारगर होगा. ज़ाहिर है कि भारत में भी रक्षा, अंतरिक्ष और रणनीतिक क्षेत्र में तकनीक़ी स्टार्टअप्स तेज़ी से उभर रहे हैं और ऐसे में इसकी जांच करना बेहद ज़रूरी है कि ये संदिग्ध विदेशी निवेशकों से कितने सुरक्षित हैं. निसंदेह तौर पर रणनीतिक क्षेत्र में उभरती टेक्नोलॉजी से संबंधित स्टार्टअप्स ने देश में एक ख़ुशनुमा वातावरण बनाने का काम किया है. जब इन स्टार्टअप्स को विदेशी प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल (PE-VC) निवेश मिलता है, तो न केवल भारत सरकार इसे एक बड़ी क़ामयाबी बताती है, बल्कि मीडिया भी इसका जमकर ढिंढोरा पीटता है. लेकिन यह सिर्फ़ जश्न मनाने वाली बात नहीं है, बल्कि इस प्रकार के विदेशी निवेश की जांच-पड़ताल करना भी ज़रूरी है. ज़ाहिर है कि रणनीतिक क्षेत्र में काम करने वाले स्टार्टअप्स जिन परियोजनाओं पर काम करते हैं, उनमें से कई राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील हो सकती हैं.
हैरानी की बात यह है कि भारत में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी इनोवेशन इकोसिस्टम की सुरक्षा के लिए क्या किया जाना चाहिए, इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता है. यह तब और परेशानी पैदा करने वाला हो जाता है, जब कई नामी शिक्षण संस्थानों या लोगों द्वारा स्वतंत्र रूप से शुरू किए गए स्टार्टअप्स देश की रणनीतिक लिहाज से अहम राष्ट्रीय परियोजनाओं में कार्यरत हैं. इन रणनीतिक राष्ट्रीय परियोजनाओं में इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस, मिशन डेफस्पेस, नेशनल सुपरकंप्यूटिंग मिशन, नेशनल क्वांटम मिशन, इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन, डीप ओशन एक्सप्लोरेशन मिशन जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं. एक और बात है कि कई बार विदेशी PE-VC निवेशक, जो कि आर्थिक रूप से काफ़ी मज़बूत होते हैं, वे ऐसे स्टार्टअप्स में शुरुआती दौर में भारी-भरकम निवेश कर देते हैं, ताकि आगे चलकर वे उस पर अपना पूरा नियंत्रण हासिल कर सकें. कहने का मतलब है कि ऐसे स्टार्टअप्स में विदेशी निवेशक नियंत्रक भागीदारी हासिल कर लेते हैं और कहीं न कहीं फिर यह उनके लिए भारत में अपने स्वामित्व वाली एक कंपनी बन जाती है. ऐसे स्टार्टअप्स में भारतीय फाउंडर और कर्मचारी केवल दिखावे के लिए प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन वास्तविकता में इनकी बागडोर विदेशी निवेशकों के हाथ में होती. ऐसी कंपनियों या स्टार्टअप्स को चर्चा में लाने के लिए अक्सर तेज़ी से आगे बढ़ने और मीडिया की सुर्खियों में बने रहने की तमन्ना रखने वाले भारतीय संस्थापक और CXOs या फिर एनआरआई द्वारा तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं. यही उनकी सफलता का सबसे बड़ा तरीक़ा होता है. अफसोस की बात है कि इस सब पर ध्यान नहीं दिया जाता है और ‘जो जैसा चल रहा है वैसा चलने दो’ का रवैया अपनाया जाता है, जो कि काफ़ी ख़तरनाक है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि अगर देश के संवेदनशील क्षेत्रों में एक भी ऐसा संदिग्ध विदेशी निवेशक अपनी पैठ बना लेता है, तो इससे देश का काफ़ी नुक़सान हो सकता है, जिसके नतीज़े दशकों तक भुगतने पड़ सकते हैं.
अफसोस की बात है कि इस सब पर ध्यान नहीं दिया जाता है और ‘जो जैसा चल रहा है वैसा चलने दो’ का रवैया अपनाया जाता है, जो कि काफ़ी ख़तरनाक है.
भारत में संदिग्ध विदेशी PE-VC निवेश का पता लगाने और उससे निपटने के लिए कोई सटीक तंत्र या क़ानून मौज़ूद नहीं है. हालांकि, भारत में तीन ऐसे क़ानून ज़रूर हैं, जिनमें इन हालातों में विदेशी व्यापार और निवेश पर निगरानी रखने और कार्रवाई करने का प्रावधान है.
विदेशी व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम 1992 में वर्ष 2010 में संशोधन किया गया था. इस अधिनियम के अंतर्गत सामूहिक विनाश के हथियारों की श्रेणी में वर्गीकृत की गईं वस्तुओं, सेवाओं और प्रौद्योगिकियों के आयात और निर्यात पर नियंत्रण का प्रावधान किया गया है. लेकिन इस अधिनियम के तहत संदिग्ध और गलत इरादे से किए गए विदेशी निवेशों पर नज़र रखने का कोई प्रावधान नहीं है. साथ ही इस अधिनियम में संदिग्ध निवेश वाले आयात और निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का भी कोई प्रावधान नहीं किया गया है.
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के विदेशी उद्यम पूंजी निवेशक अधिनियम, 2000 के अंतर्गत वेंचर कैपिटल निवेश के लिए नियम और शर्तें तय की गई हैं. इस अधिनियम के तहत अगर कोई वेंचर कैपिटल निवेशक "धोखाधड़ी का दोषी पाया जाता है या भ्रष्टाचार से संबंधित किसी अपराध का दोषी पाया जाता है" तो सेबी को यह अधिकार है कि वह उस निवेशक का पंजीकरण प्रमाणपत्र रद्द कर सकता है. लेकिन इस अधिनियम के अंतर्गत सेबी के पास डिफेंस-कॉर्पोरेट से संबंधित उच्च तकनीक़ी कंपनियों में जासूसी या किसी गड़बड़ी का पता लगाने, ख़ास तौर पर डिफेंस इनोवेशन स्टार्टअप्स के मामलों में किसी गड़बड़ी का पता लगाने और कार्रवाई का अधिकार है या नहीं इसके बारे में कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है.
भारत में तीसरा ऐसा क़ानून है विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) 1999. इस अधिनियम के अंतर्गत देश के भीतर और देश के बाहर विदेशी मुद्रा के लेन-देन पर नज़र रखी जाती है और उसे नियंत्रित किया जाता है, जिसमें वेंचर कैपिटल निवेश के ज़रिए आने वाली विदेशी मुद्रा पर नियंत्रण भी शामिल है. FEMA के प्रावधानों के मुताबिक़ विदेशी वेंचर कैपिटल फर्मों को अपनी निवेश सीमा, प्रत्यावर्तन प्रक्रियाओं और अनुपालन ज़रूरतों के बारे में पूरी जानकारी भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ साझा करना ज़रूरी होता है.
संदिग्ध विदेशी निवेशों की निगरानी को लेकर अमेरिका में जो हालिया रिपोर्ट जारी की गई है, उसमें काउंटर इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा चिन्हित किए गए संदिग्ध विदेशी निवेशों की समीक्षा करने की ज़िम्मेदारी अमेरिकी विदेशी निवेश समित (CFIUS) को दी गई है. ज़ाहिर है कि CFIUS में रक्षा, विदेश और वाणिज्य विभाग सदस्य होते हैं, साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद भी इसमें शामिल है. इस प्रकार से CFIUS में उभरते तकनीक़ी स्टार्टअप्स के रणनीतिक महत्व की समीक्षा करने की पूरी क्षमता है. CFIUS का गठन वर्ष 1965 में किया गया था, लेकिन 2018 के विदेशी निवेश जोख़िम समीक्षा आधुनिकीकरण अधिनियम (FIRRMA) आने के बाद इसका महत्व और बढ़ गया है. CFIUS ही अमेरिका में विदेशी PE-VC इक्विटी निवेशों की समीक्षा करती है और उनका पूरा लेखा जोखा अपने पास रखती है.
भारत की बात की जाए, तो विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल के ज़रिए भारतीय उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग संबंधित मंत्रालयों के साथ मिलकर काम करता है.
भारत की बात की जाए, तो विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल के ज़रिए भारतीय उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग संबंधित मंत्रालयों के साथ मिलकर काम करता है. ये विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल विदेशी निवेश को मंज़ूरी देने के लिए एकल-खिड़की के तौर पर काम करता है. हालांकि, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है कि विदेशी निवेश को मंज़ूरी देने की प्रक्रिया में यह सुविधा पोर्टल जो मापदंड अपनाता है, उसमें संदिग्ध PE-VC विदेशी निवेशों पर लगाम लगाने के लिए काउंटर इंटेलिजेंस को तवज्जो दी जाती है या नहीं. इसके अलावा भी कई दूसरे अहम मुद्दे हैं:
- एक अहम मुद्दा यह है कि क्या हर मंत्रालय के पास अलग-अलग सेक्टरों में आने वाले विदेशी निवेश की समीक्षा करने के लिए ज़रूरी तंत्र है और इसमें काउंटर इंटेलिजेंस पर पूरा ध्यान दिया जाता है? इसके साथ ही ऐसा ज़रूरी नहीं है कि स्टार्टअप नवाचार सिर्फ़ एक ही सेक्टर में कार्य कर रहा है या केवल एक ही एप्लीकेशन पर निर्भर हो. ज़ाहिर है कि आमतौर पर अधिक पैसा कमाने के लिए स्टार्टअप द्वारा विकसित की जाने वाली टेक्नोलॉजियों का कई तरह से और कई क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में कोई स्टार्टअप सिर्फ़ एक ही मंत्रालय के अंतर्गत आए, यह ज़रूरी नहीं है, क्योंकि अपनी तकनीक़ के उपयोग के आधार पर ये कई मंत्रालय के कार्यक्षेत्र में आ सकते हैं.
- विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (FIPB) को फिलहाल समाप्त किया जा चुका है, लेकिन जब यह अस्तित्व में था, तब 11 अधिसूचित सेक्टरों, यानी अंतरिक्ष और अंडरवाटर सेक्टरों के अलावा ऑटोनॉमस गाड़ियों, बायोटेक्नोलॉजी, सिंथेटिक बायोलॉजी, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि जैसी संवेदनशील उभरती टेक्नोलॉजियां, जो अभी नवाचार को दौर से गुजर रही हैं, में विदेशी निवेश की जांच-पड़ताल का कोई प्रावधान नहीं था.
- क्या FEMA और SEBI के पास रणनीतिक रूप से उभरते प्रौद्योगिकी क्षेत्र से संबंधित स्टार्टअप्स में विदेशी निवेश की पड़ताल के दौरान सैन्य और कॉर्पोरेट जासूसी के बारे में पता लगाने का कोई तरीक़ा मौज़ूद है?
- इसके अलावा, भारत में वर्तमान में काउंटर इंटेलिजेंस यानी प्रति-खुफिया तंत्र विकसित करने तथा अन्य संबंधित मंत्रालयों और विभागों की बातों को समाहित करने के लिए कोई तंत्र मौज़ूद नहीं है. यानी कोई ऐसा साझा तंत्र नहीं है, जो संदिग्ध विदेशी निवेश पर निगरानी के लिए क्या किया जाए और क्या न किया जाए के बारे में एक व्यापक सार्वजनिक रिपोर्ट पेश कर सके, जैसा कि अमेरिका में DNI ने वहां की वायुसेना और नौसेना के सहयोग से किया है.
रणनीतिक तकनीक़ी क्षेत्रों में काम करने वाले स्टार्टअप्स के साथ ऐसे हालात भी बन सकते हैं, जिसमें जाने-अनजाने में उन पर विदेशी निवेशकों का पूर्ण नियंत्रण हो जाए और वे PE-VC निवेशकों की वैश्विक मौज़ूदगी का ही एक हिस्सा बन जाएं. ज़ाहिर है कि अगर विदेशी निवेशकों की पूरी जांच पड़ताल की जाती है और उनके सत्यापन की प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो हो सकता है कि रणनीतिक प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास और उत्पादन के लिए अहम आपूर्ति श्रृंखलाओं पर इसका असर पड़े. हालांकि ऐसे हालातों के बारे में सटीक रूप पता लगाना काफ़ी मुश्किल भरा हो सकता है.
निष्कर्ष
देखा जाए तो पिछले दस वर्षों से भारत को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की कोशिशें की जा रही हैं और इसके लिए स्टार्टअप्स को ख़ूब बढ़ावा दिया जा रहा है, साथ ही उन्हें एफडीआई की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है. भारत में स्टार्टअप इकोसिस्टम अब अच्छी तरह से अपने पैर जमा चुका है. ऐसे में अब ज़रूरत है कि ऐसे स्टार्टअप्स, जो रणनीतिक प्रौद्योगिकी सेक्टर से जुड़ी नवाचार और उत्पादन गतिविधियों में कार्यरत हैं, उन्हें रिसर्च, औद्योगिक और कार्पोरेट जासूसी से सुरक्षित रखा जाए. वर्तमान में जो परिस्थितियां हैं, वे बहुत चिंताजनक हैं और भारत सरकार को यह स्पष्ट रूप से बताती हैं कि ऐसे स्टार्टअप्स, जो रक्षा तकनीक़, ड्रोन टेक, स्पेस टेक, एआई, सिंथेटिक बायोलॉजी, क्वांटम टेक्नोलॉजी, सिस्लुनर आर्किटेक्चर, मल्टी एवं हाइपर-स्पेक्ट्रल इमेजिंग, वैक्सीन आदि पर काम कर रहे हैं, उनकी सुरक्षा बेहद ज़रूरी है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि इन सेक्टरों में काम करने वाले स्टार्टअप्स कहीं न कहीं 2.5 फ्रंट वार यानी चीन और पाकिस्तान जैसे देशों का सामना करने के लिए भारत की बढ़ती सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं.
ऐसे में इकोनॉमिक इंटेलिजेंस काउंसिल यानी आर्थिक ख़ुफिया परिषद (EIC) की काउंटर इंटेलिजेंस ऐसी होनी चाहिए, जो हर मामले को गंभीरता से परखने और सोच-समझ कर कार्रवाई करने में सक्षम हो.
ऐसे में इकोनॉमिक इंटेलिजेंस काउंसिल यानी आर्थिक ख़ुफिया परिषद (EIC) की काउंटर इंटेलिजेंस ऐसी होनी चाहिए, जो हर मामले को गंभीरता से परखने और सोच-समझ कर कार्रवाई करने में सक्षम हो. EIC को इस बात का भी आकलन करने की ज़रूरत है कि उसे रणनीतिक रूप से उभरती तकनीक़ के क्षेत्र में विदेशी निवेश पर निगरानी के लिए क्या विभिन्न मंत्रालयों की भागीदारी से अमेरिका की CFIUS जैसी समीक्षा समिति बनाना चाहिए, या फिर इसके लिए FIRRMA जैसा क़ानून बनाना चाहिए. इतना ही नहीं, आर्थिक ख़ुफिया परिषद को इसका भी आकलन करने की ज़रूरत है कि क्या उसे एक ऐसा साझा काउंटर इंटेलिजेंस तंत्र शुरू करने की आवश्यकता है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय, रणनीतिक एजेंसियों, सशस्त्र बलों और दूसरी ख़ुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर वह अमेरिका की तर्ज पर एक भारतीय- CFIUS जैसी समिति बना सके और इसके ज़रिए भारत में इनोवेशन से जुड़े कार्यों में जुटे लोगों और स्टार्टअप्स के बारे में गहन पड़ताल कर सके, साथ ही कुछ ग़लत पाए जाने पर उन्हें चेतावनी दे सके और उनकी सुरक्षा के उपाय कर सके. ज़ाहिर है कि अगर दुनिया में ग्लोबलाइजेशन का सबसे बड़ा पैरोकार अमेरिका अपने देश में नवाचार इकोसिस्टम की सुरक्षा के लिए गंभीरता से कार्य कर रहा है, तो यह न केवल बढ़ती वैश्विक तकनीक़ी-राजनीतिक बहुध्रुवीयता को ज़ाहिर करता है, बल्कि यह भारत के लिए भी एक सबक है कि उसे भी अपने तेज़ी से पैर जमाते नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र की रिसर्च एवं औद्योगिक सुरक्षा को हर हाल में सशक्त करना चाहिए.
चैतन्य गिरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रैटेजी एंड टेक्नोलॉजी में फेलो हैं.
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