Published on Aug 09, 2023 Updated 0 Hours ago
उत्तर कोरिया का नॉर्दन ट्राइएंगल रणनीति: अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती!

शीत युद्ध के दौरान ऐसे कई क्षेत्रीय धड़े थे, जिनके हित अलग-अलग थे. नॉर्दन या उत्तरी ट्राइएंगल में उत्तर कोरिया, चीन और पूर्व सोवियत संघ शामिल थे और साउदर्न या दक्षिणी ट्राइएंगल में दक्षिण कोरिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान. हालांकि मौजूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य में, रूस-यूक्रेन संघर्ष के अलावा अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने नॉर्दन ट्राइएंगल को फिर उभरने का बड़ा मौका दिया है, जो शीत युद्ध के बाद बिखर गया था. इन परिस्थितियों के कारण एक नए भू-राजनीतिक परिदृश्य ने जन्म लिया है, जहां प्योंगयांग, मॉस्को और बीजिंग के बीच नए सिरे से आपसी सहयोग और एकता देखने को मिल रही है.

हालिया समय में, अमेरिका के खिलाफ़ दुश्मनी लगातार बढ़ रही है. और 2022 से लेकर अब तक उत्तर कोरिया द्वारा 100 से ज्यादा मिसाइलों का परीक्षण करने और किम जोंग द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण समझौते को ठुकराने के कारण द्विपक्षीय संबंध ख़राब हुए हैं.


अमेरिका से दुश्मनी


हाल ही में, कोरियाई युद्ध की 73वीं सालगिरह के मौके पर, उत्तर कोरिया ने प्योंगयांग में बड़े पैमाने पर सभाएं आयोजित की, जहां लगभग 120,000 लोगों ने अमेरिका की “साम्राज्यवादी” कार्रवाईयों की कड़ी निंदा की और “बदले की लड़ाई” में शामिल होने का प्रण लिया. उन्होंने अमेरिका पर जानबूझकर कोरियाई युद्ध को भड़काने और कोरियाई लोगों को स्थाई रूप से चोट पहुंचाने का आरोप लगाया. इसके अलावा, प्रदर्शनकारियों ने उत्तर कोरिया के परमाणु एवं मिसाइल कार्यक्रमों की प्रगति पर गर्व जताया. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि उनके देश के पास अब “एक ऐसा मज़बूत हथियार है” जो अमेरिकी “साम्राज्यवादियों” को सबक सिखाने में सक्षम है. उनका था कि परमाणु हथियार एक डिटरेंट की तरह काम करता है, जिससे संभावित दुश्मन उन्हें उकसाने से डरेंगे.

हालिया समय में, अमेरिका के खिलाफ़ दुश्मनी लगातार बढ़ रही है. और 2022 से लेकर अब तक उत्तर कोरिया द्वारा 100 से ज्यादा मिसाइलों का परीक्षण करने और किम जोंग द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण समझौते को ठुकराने के कारण द्विपक्षीय संबंध ख़राब हुए हैं. उत्तर कोरिया का कहना है कि उसके परमाणु हथियार अमेरिका के खिलाफ़ एक डेटरेंट का काम करते हैं.

इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) परीक्षणों को फिर से शुरू करने का मकसद अमेरिका को निशाना बनाना है, जबकि छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइलों के परीक्षण का उद्देश्य क्षेत्रीय ताकतों का मुकाबला करना और अमेरिकी सहयोगियों और उनके ठिकानों को निशाना बनाना है. ख़ासकर, परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता की असफलता के बाद, नई भू-राजनीतिक परिस्थितियों जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध और ताईवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनाव के कारण प्योंगयांग की विदेश नीति में हाल ही में काफ़ी परिवर्तन देखने को मिला है.

बहरहाल, मौजूदा भू-राजनीतिक परिस्थितियों, ख़तरों, नियमित सैन्य अभ्यासों, देश पर लगाए गए व्यापक प्रतिबंधों के चलते उत्तर कोरिया एक चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना कर रहा है. वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अस्थिरता की स्थिति को देखते हुए, उत्तर कोरिया रणनीतिक रूप से रूस और चीन के साथ मिलकर काम कर रहा है. इसका उद्देश्य एक ऐसे संयुक्त मोर्चे का निर्माण करना है, जो मौजूदा अमेरिकी नीतियों के खिलाफ़ डिटरेंट के रूप में काम कर सके. इसके अलावा

एक रणनीतिक ‘नॉर्दन’ ट्राइएंगल का निर्माण


“नॉर्दन ट्राइएंगल” इन तीनों देशों (रूस, चीन, उत्तर कोरिया) के बीच सकारात्मक द्विपक्षीय संबंधों को दर्शाता है, ख़ासकर अमेरिका से मिलने वाली चुनौतियों के खिलाफ़ यह ट्राइएंगल और मज़बूत नज़र आता है. इसके बाद, उत्तर कोरिया ने यूक्रेन संकट को लेकर कई मौकों पर अलग-अलग मंचों से खुलकर स्पष्ट शब्दों में रूस को समर्थन किया है, रूस की वैध सुरक्षा मांगों के प्रति अमेरिका की उपेक्षा की आलोचना की. इसके अलावा, समूह ने उत्तरी-प्रशांत क्षेत्र में चीन को सबसे अलग-थलग करने के लिए एक पुरानी दीर्घकालिक योजना को नए सिरे से लागू करने के अमेरिका की आलोचना की है. हालांकि, अमेरिका द्वारा जापान और दक्षिण कोरिया के साथ अपने संबंधों को मज़बूत बनाने की कोशिशों का नतीज़ा ये है कि इससे चीन, रूस और उत्तर कोरिया के बीच साझा हितों और आपसी सहयोग को बढ़ावा मिला है. इन नीतियों के अलावा अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा और रूस-यूक्रेन संघर्ष के परिणामस्वरूप नॉर्दन ट्राइएंगल का फिर से उभार हुआ है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में अमेरिका के प्रभाव को कम करना है और एक बहुध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना के लिए प्रयास करना है.

चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को मज़बूत बनाने के लिए प्योंगयांग अकेले कोई प्रयास नहीं कर रहा, बल्कि कोरियाई सरकार के लिए दोनों देशों का समर्थन बढ़ता जा रहा है. यह 20 जनवरी 2022 को स्पष्ट रूप से देखने को मिला जब चीन और रूस ने अपनी वीटो की ताकत का इस्तेमाल करके उत्तर कोरिया पर अतिरिक्त प्रति कर लगाने के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था. बीते सालों में रूस और चीन दोनों ही मानवतावादी कारणों से उत्तर कोरिया से अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हटाने की मांग की है और सक्रिय रूप से कूटनीतिक समझौते के लिए प्रोत्साहित किया है. इन साझा उपायों ने उत्तर कोरिया को बार-बार तुलनात्मक स्वतंत्रता के साथ मिसाइल परीक्षणों के लिए अवसर प्रदान किया, जिसने न्यूनतम परिणामों के साथ देश को अपनी मिसाइल क्षमताओं के विकास का मौका दिया.

बीते सालों में रूस और चीन दोनों ही मानवतावादी कारणों से उत्तर कोरिया से अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हटाने की मांग की है और सक्रिय रूप से कूटनीतिक समझौते के लिए प्रोत्साहित किया है.


साथ में, हालिया दिनों में, उत्तर कोरिया और रूस के साथ वार्ता के माध्यम से उसके साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाने के लिए लगा हुआ है और जिससे हमें यह संकेत मिलता है कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ आंशिक रूप से फिर से व्यापार शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं. जुलाई 2022 में, उत्तर कोरिया ने पूर्वी यूक्रेन से अलग हुए दो क्षेत्रों को आधिकारिक रूप से मान्यता दी, जिन्हें “पीपल्स रिपब्लिक” के नाम से जाना जाता है और इन्हें स्वतंत्र राज्य के रूप में रूस का समर्थन प्राप्त है. यह अन्य देशों द्वारा दी गई प्रतिक्रियाओं के विपरीत थी, क्योंकि केवल उत्तर कोरिया और सीरिया ही रूसी कब्जे को स्वीकार करते हैं. जून 2023 में, किम जोन उन ने राष्ट्रपति पुतिन को संबोधित करते हुए यह कहा कि वे उनसे “हाथ मिलाकर” चलने को प्रतिबद्ध हैं. यह दोनों देशों के बीच गहरे होते संबंधों और बढ़ते आपसी सहयोग को दर्शाता है. इसके अलावा, ऐसे आरोप लगाए गए कि प्योंगयांग ने रूस को हथियारों की आपूर्ति की है, और साथ ही वह अपने बैलिस्टिक मिसाइलों और परमाणु हथियारों के जखीरे को बढ़ाने की कोशिश रहा है.

जबकि, प्योंगयांग का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार होने के नाते बीजिंग ने पिछले कुछ वर्षों में किम शासन को फलने-फूलने का मौका दिया है. हालांकि, प्योंगयांग के परमाणु परीक्षणों और मिसाइल प्रक्षेपणों के कारण बीजिंग के साथ उसके संबंध चुनौतीपूर्ण  हो गए हैं. बीजिंग प्योंगयांग के परमाणु निरस्त्रीकरण के मसले पर छह-पक्षीय वार्ता” यानी एक बहुपक्षीय ढांचे का समर्थक रहा है. हालांकि, दक्षिणी चीन सागर और ताईवान स्ट्रेट में चीन की बेलगाम हरकतों और अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा के कारण एक ऐसा रणनीतिक माहौल तैयार हुआ है, जहां उसके और उत्तर कोरिया के संबंधों को और मज़बूती मिली है. उदाहरण के तौर पर हाल ही में कोरिया द्वारा एक स्पाई सैटेलाइट के प्रक्षेपण की असफल कोशिश की गई, जिसकी निंदा करने से चीन ने इनकार कर दिया. इससे यह पता चलता है कि चीन या तो उत्तर कोरिया की कार्रवाई का कुछ हद तक समर्थन करता है या फिर उसके प्रति सहिष्णुता रखता है. इसके अलावा, प्योंगयांग ने महामारी से जुड़े प्रतिबंधों में ढील देते हुए सिनुइजू और डांडोंग के बीच ट्रेन संचालन को फिर से शुरू किया था ताकि वह बीजिंग से मानवीय सहायता प्राप्त कर सके. चीन और रूस के साथ संबंधों की मज़बूती उत्तर कोरिया के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह है, जो उसे अमेरिका द्वारा किसी संभावित दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षित करता है.

ध्रुवीय और तनावपूर्ण माहौल के कारण अमेरिका और उसके सहयोगियों के सामने यह बड़ी चुनौती है कि वे उत्तर कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को कैसे तैयार करेंगे.


हालांकि, उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार विकास से चीन और रूस को मिलने वाले रणनीतिक लाभ अस्पष्ट हैं. उत्तर कोरिया का मिसाइल परीक्षण कई उद्देश्यों को पूरा करता है, जिसमें उसकी नई बैलिस्टिक मिसाइलों के खिलाफ़ THAAD जैसी अमेरिकी और दक्षिण कोरियाई मिसाइल रक्षा प्रणालियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना भी शामिल है. यह आंकड़े चीन और रूस के लिए भी मूल्यवान हो सकते हैं क्योंकि वे अपनी मिसाइल क्षमताओं को बढ़ाने और अमेरिकी रक्षा प्रणालियों से आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं. आधिकारिक तौर पर, चीन और रूस उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार तंत्र का विरोध करते हैं लेकिन रणनीतिक दृष्टिकोण से किम शासन के अस्तित्व को महत्वपूर्ण समझते हैं, क्योंकि यह अमेरिकी प्रभाव के खिलाफ़ एक बफर राज्य के रूप में कार्य करता है. उत्तर कोरिया का विनाशकारी हथियारों का जखीरा उसके शासन तंत्र के खिलाफ़ किसी संभावित अमेरिकी कार्रवाई के लिए एक डेटरेंट का काम करता है, और ऐसा लगता है कि चीन और रूस उसकी लागत को उठाने को तैयार हैं.

प्रभाव और निष्कर्ष


चीन, रूस और अमेरिका के बीच तनावपूर्ण रिश्तों से किम जोंग उन को काफी फायदा होगा. यूक्रेन में हालिया घटनाएं (जहां दशकों पहले उसके परमाणु निरस्त्रीकरण के फ़ैसले ने संघर्ष की स्थिति को जन्म दिया) यह दर्शाती हैं कि परमाणु क्षमता का होना किसी शासन की सुरक्षा के लिए कितना महत्त्वपूर्ण हैं. बीजिंग और मॉस्को ने परमाणु निरस्त्रीकरण से ऊपर प्योंगयांग के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता दी है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी प्रभाव के विस्तार और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों को रोकना है. बहरहाल, उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार कार्यक्रम को अनियंत्रित छोड़ देने से उसके मध्यकालिक से लेकर दीर्घकालिक भू-राजनीतिक प्रभाव होंगे और चीन और रूस को इस बिंदु पर सावधानी से विचार करने की आवश्यकता है. इन चिंताओं को देखते हुए चीन, रूस और अमेरिका को उत्तर-पूर्व एशिया में तत्काल एक हथियार नियंत्रण वार्ता को शुरू करने पर ज़ोर देना चाहिए. इस वार्ता का उद्देश्य सियोल और टोक्यो में परमाणु हथियारों के विकास को रोकना, उत्तर कोरिया की परमाणु क्षमताओं के निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना चाहिए, और साथ ही क्षेत्र में अमेरिकी परमाणु हथियारों की तैनाती पर रोक लगानी चाहिए क्योंकि इससे सुरक्षा संबंधी जटिलताएं और बढ़ जाएंगी.

हालांकि, ध्रुवीय और तनावपूर्ण माहौल के कारण अमेरिका और उसके सहयोगियों के सामने यह बड़ी चुनौती है कि वे उत्तर कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को कैसे तैयार करेंगे. साथ ही, हाल ही में अमेरिका द्वारा दक्षिण कोरिया में परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती जैसी कार्रवाईयां इस दिशा में हुई कुछ प्रगति को दर्शाती हैं. ऐसा हो सकता है कि आगे चलकर सामरिक परमाणु हथियारों, परमाणु मिसाइल सुरक्षा प्रणाली की तैनाती या यहां तक कि शीत युद्ध की तरह अंततः परमाणु हथियारों की तैनाती को क्षेत्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से व्यवहार्य और अस्थायी समाधान के तौर देखा जाने लगे.

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