Author : Kabir Taneja

Published on Dec 30, 2019 Updated 0 Hours ago

हक़ीक़त तो ये है कि ओआईसी या 5 मुस्लिम देशों की स्वतंत्र हैसियत को दुनिया तभी सलाम करेगी, जब ये भारत में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से परे, दुनिया के मुसलमानों के असल मुद्दों पर अपना मुंह खोलेंगे.

सीएए के ख़िलाफ़ 5 मुस्लिम देशों का सम्मेलन और ओआईसी का नज़रिया

पिछले हफ़्ते मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर बिन मोहम्मद ने इस्लामिक देशों के एक नए मंच का उद्घाटन किया. इस नए मंच का मक़सद सऊदी अरब के प्रभुत्व वाले संगठन ओआईसी (OIC) यानी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशनको चुनौती देना था. इस संगठन में सऊदी अरब की दादागीरी चलती है. इस संगठन के माध्यम से अब तक सऊदी अरब ही इस्लामिक देशों का अगुवा बना रहा है. सऊदी अरब की राजधानी रियाद स्थित इसके बैनर तले ही तमाम मुद्दों पर इस्लामिक देशों की आवाज़ें उठाई जाती रही हैं. ओआईसी की स्थापना 1969 में हुई थी. अब महाथिर मोहम्मद, मलेशिया की राजधानी कुलाला लम्पुर में 5 मुस्लिम देशों के शिखर सम्मेलन का आयोजन कर के सऊदी अरब से इतर इस्लामिक देशों का एक नया और ज़ोर-शोर से बोलने वाला मंच स्थापित करना चाहते हैं.

इस बाग़ी मंच के मक़सद के बारे में जो बात प्रचारित की गई, वो ये है कि ये मंच मुस्लिम देशों के बीच आपसी आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देगा. लेकिन, 5 मुस्लिम देशों के शिखर सम्मेलन (M5S)में शामिल देशों के नाम पर ग़ौर करें तो इस नए इस्लामिक मंच के गठन की वजह ज़्यादा स्पष्ट हो जाती है. इस मंच के मेज़बान मलेशिया के अलावा इस शिखर सम्मेलन में ईरान, क़तर और तुर्की शामिल हुए. मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने कहा कि, ‘इस शिखर सम्मेलन के आयोजन के पीछे विचार ये था कि तमाम मुस्लिम देश साथ आ कर एक-दूसरे की ताक़त और कमज़ोरियों को समझें. ताकि, हम अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल कर के अपनी कमज़ोरियों से पार पा सकें.’ लेकिन, सम्मेलन में शामिल हुए ईरान, तुर्की और क़तर अलग-अलग वजहों से ओआईसी में सऊदी अरब के प्रभुत्व को अपने लिए ख़तरे के तौर पर देखते हैं.

तुर्की की ख़्वाहिश है कि वो पश्चिमी एशिया में सऊदी अरब की जगह ख़ुद को सुन्नी मुसलमानों के अगुवा के तौर पर स्थापित करे.

हालांकि 5 मुस्लिम देशों के सम्मेलन के सदस्यों के बीच कई समानताएं हैं. इसी वजह से इस्लामिक देशों के इस नए मंच को बनाने की वजह आर्थिक से ज़्यादा राजनीतिक नज़र आती है. ईरान के अलावा इस मंच के बाक़ी चार सदस्य देश सऊदी अरब की अगुवाई वाले ओआईसी के सदस्य हैं. सऊदी अरब और ईरान के बीच दुश्मनी जगज़ाहिर है. इसीलिए, सऊदी अरब की अगुवाई वाले ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशन को ईरान अपने अस्तित्व के लिए ही ख़तरा मानता है. लेकिन, बात सिर्फ़ ईरान की नहीं है. क़तर और तुर्की के संबंध भी सऊदी अरब से अच्छे नहीं हैं. वो ओआईसी में सऊदी अरब के प्रभुत्व को नापसंद करते हैं. दोनों ही देश पश्चिमी एशिया की क्षेत्रीय राजनीति में सऊदी अरब के एजेंडे से भी सहमत नहीं हैं. तुर्की की ख़्वाहिश है कि वो पश्चिमी एशिया में सऊदी अरब की जगह ख़ुद को सुन्नी मुसलमानों के अगुवा के तौर पर स्थापित करे. वहीं, क़तर पर अब भी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने आर्थिक पाबंदी लगा रखी है. वो भी इसलिए क्योंकि सऊदी अरब ने क्षेत्रीय सियासी समीकरण में क़तर ने सऊदी अरब का साथ नहीं दिया था. इसी वजह से क़तर अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा की ज़रूरतों के लिए तुर्की और ईरान के क़रीब होता जा रहा है.

ये उम्मीद तो पहले से ही की जा रही थी कि कुछ मुद्दों पर 5 मुस्लिम देशों के शिखर सम्मेलन का आग़ाज़ ज़्यादा शोर मचाने से होगा. इस की वजह साफ़ है. ये नया संगठन अपना अलग राजनीतिक नज़रिया दुनिया के सामने पेश करना चाहता है, ताकि नई और आक्रामक पहचान के बूते दुनिया भर के मुसलमानों तक पहुंच बना सके. महाथिर मोहम्मद ने कश्मीर मसले को लेकर सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भारत के ख़िलाफ़ तल्ख़ बयानी की थी. महाथिर मोहम्मद ने कहा था कि भारत ने कश्मीर पर हमला कर के उस पर क़ब्ज़ा कर लिया है. जबकि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने भारत के जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद हटाने के बाद सधी हुई प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि ये भारत का अंदरूनी मसला है. हाल ही में, भारत में नए और विवादास्पद नागरिकता क़ानून को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. ये क़ानून, मुसलमानों के अलावा अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सताए हुए अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान करता है. तो, विरोध प्रदर्शनों के हवाले से 5 मुस्लिम देशों के सम्मेलन से इस मुद्दे पर खुलकर भारत के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी की. वहीं, दूसरी तरफ़ ओआईसी से यही अपेक्षा की जा रही थी कि या तो नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों पर वो कोई बयान ही नहीं देगा और देगा भी तो वो एक औपचारिक और सधा हुआ बयान ही होगा.

वहीं, नए बने अंतरराष्ट्रीय मंच को शोहरत दिलाने के लिए, मौक़ा देख कर महाथिर मोहम्मद ने भारत में चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बारे में कहा कि, ‘मुझे अफ़सोस है कि जो भारत ख़ुद को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र कहता है, नो कुछ मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रतिक्रियावादी नीति पर चल रहा है और उन्हें नागरिकता देने से इनकार कर रहा है. अगर यही काम हम यहां अपने देश मलेशिया में करते, तो आप को पता है क्या होता? यहां अराजकता फैल जाती.’ क़तर को छोड़ कर इस नए संगठन के सभी सदस्य देशों ने कश्मीर मसले पर हाल के दिनों में भारत की कड़ी आलोचना की है. हालांकि क़तर ने सीधे तौर पर तो भारत की आलोचना नहीं की है. लेकिन, क़तर की सरकार के चैनल अल जज़ीरा ने कई बार भारत की आलोचना वाली रिपोर्ट दिखाई हैं. कश्मीर मसले और वहां के मुसलमानों के हालात पर कई बार तो अल जज़ीरा की रिपोर्ट भारत की सरकार के ख़िलाफ़ बेहद सख़्त रवैये वाली रही हैं. 5 मुस्लिम देशों के सम्मेलन के बयान के तुरंत बाद ओआईसी ने भी एक बयान जारी किया. जिसमें इस संगठन ने नागरिकता क़ानून को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर की.

अपने बयान में ओआईसी ने कहा कि, ‘ओआईसी का महासचिवालय भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को लेकर हाल में हुए घटनाक्रम पर क़रीब से नज़र रख रहा है. संगठन, नागरिकता के अधिकारों और बाबरी मस्जिद केस में आए हालिया फ़ैसले पर अपनी चिंता ज़ाहिर करता है. हम अपनी बात फिर से दोहराते हैं कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो और भारत में पवित्र इस्लामिक ठिकानों के संरक्षण के भी उचित इंतज़ाम हों.’

आम तौर पर उग्र रहने वाले ओआईसी ने महाथिर मोहम्मद के नए संगठन के मुक़ाबले कमज़ोर प्रतिक्रिया ही दी थी.

भारत के ख़िलाफ़ इन बयानों के बावजूद 5 मुस्लिम देशों और ओआईसी की आलोचना को हमें पश्चिमी एशिया के सामरिक समीकरणों और मुस्लिम देशों के मतभेदों और आपसी खींचतान के नज़रिए से देखना चाहिए. सऊदी अरब ने मलेशिया में 5 मुस्लिम देशों के शिखर सम्मेलन के आयोजन की आलोचना की थी. सऊदी अरब का कहना था कि ऐसे अलग अलग मंच बनने से इस्लामिक देशों की एकता और शक्ति कमज़ोर होगी. इस बारे में मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद और सऊदी अरब के किंग सलमान के बीच फ़ोन पर बात भी हुई थी. जिस में दोनों नेताओं के मतभेद खुल कर सामने आए थे. महाथिर मोहम्मद ने सऊदी अरब के उठाए सवालों और चिंताओं को सिरे से ख़ारिज कर दिया था.

ये देश ये ज़ाहिर करने में कामयाब होना चाहते थे कि जब मुसलमानों पर हो रहे ज़ुल्म को लेकर ओआईसी यानी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ख़ामोश थे, तो इन्हीं देशों ने मुसलमानों के हक़ में आवाज़ बुलंद की थी.

इस्लामिक देशों के बीच चल रही इस हालिया उठा-पटक को हम पाकिस्तान की मिसाल से और बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. पाकिस्तान ने शुरू में 5 मुस्लिम देशों के शिखर सम्मेलन में शामिल होने का एलान किया था. पाकिस्तान के इस एलान से ही इस्लामिक देशों की आपसी लड़ाई उजागर हो गई थी. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने 5 मुस्लिम देशों के सम्मेलन में शामिल होने के लिए कुआला लम्पुर जाने का एलान किया, तो सऊदी अरब ख़ुश नहीं हुआ. पाकिस्तान पर सऊदी अरब का काफ़ी असर है. उस के इस सम्मेलन पर सार्वजनिक रूप से चिंताएं ज़ाहिर करने के बावजूद इमरान ख़ान ने मलेशिया जाने का इरादा जताया था. इससे सऊदी अरब और भी नाराज़ हो गया. यहां तक कि तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोआन ने आरोप लगाया कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान को धमकी दी है कि अगर वो मलेशिया में आयोजित 5 मुस्लिम देशों के सम्मेलन में शामिल हुआ तो, सऊदी अरब उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा देगा. बाद में इमरान ख़ान ने मलेशिया का अपना दौरा रद्द कर दिया था. 5 मुस्लिम देशों के सम्मेलन में शामिल होने की पाकिस्तान की ख़्वाहिश की कई वजहें हैं. एक तो, पाकिस्तान और तुर्की के बीच ऐतिहासिक रूप से क़रीबी संबंध रहे हैं. तुर्की, कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का खुल कर समर्थन करता रहा है. इसके अलावा, हाल ही में जब पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति ख़राब थी, तो क़तर से उसे तीन अरब डॉलर की फ़ौरी मदद दे कर उस की अर्थव्यवस्था को तबाह होने से बचाया था. क़तर ने पाकिस्तान को ये मदद इसलिए भी दी थी, ताकि वो इमरान सरकार पर सऊदी अरब के प्रभाव को कम कर सके. क्योंकि आज की तारीख़ में पाकिस्तान को सऊदी अरब के एक सूबे के तौर पर देखा जाता है. तो अगर पाकिस्तान 5 मुस्लिम देशों के सम्मेलन में शामिल होता तो इसे सऊदी अरब से पाकिस्तान की बग़ावत के तौर पर देखा जाता. साथ ही इस से पाकिस्तान, सऊदी अरब के ऐतिहासिक दुश्मनों ईरान और तुर्की के और भी क़रीब हो जाता. क्योंकि ये दोनों ही देश मलेशिया में हो रहे 5 मुस्लिम देशों के सम्मेलन में शामिल हुए थे.

भारत के नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ देश के तमाम हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इन प्रदर्शनों ने महाथिर मोहम्मद और 5 मुस्लिम देशों के अन्य सदस्यों को अपनी राजनीति चमकाने का सुनहरा मौक़ा दे दिया. भारत की आलोचना करके ये देश ये ज़ाहिर करने में कामयाब होना चाहते थे कि जब मुसलमानों पर हो रहे ज़ुल्म को लेकर ओआईसी यानी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ख़ामोश थे, तो इन्हीं देशों ने मुसलमानों के हक़ में आवाज़ बुलंद की थी. इस में कोई दो राय नहीं कि ये इस्लामिक देशों के बीच दादागीरी का खेल है. हक़ीक़त तो ये है कि ओआईसी या 5 मुस्लिम देशों की स्वतंत्र हैसियत को दुनिया तभी सलाम करेगी, जब ये भारत में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से परे, दुनिया के मुसलमानों के असल मुद्दों पर अपना मुंह खोलेंगे. मसलन, चीन के वीगर मुसलमानों को लेकर. चीन पर इल्ज़ाम है कि वो अपने शिन्जियांग सूबे में लाखों वीगर मुसलमानों को नज़रबंद कर के रखे हुए है. उन्हें इस्लाम से विमुख करने के लिए नए सिरे से तालीम दी जा रही है. लेकिन, इस्लामिक देश, वीगर मुसलमानों की बुरी स्थिति पर अब तक कुछ भी बोलने और चीन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने में नाकाम रहे हैं.

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