Published on Jun 30, 2022 Updated 0 Hours ago

मालदीव में योग दिवस के आयोजन में प्रदर्शनकारियों के व्यवधान डालने के साथ ही ‘इंडिया आउट’ अभियान ने एक नया रूप ले लिया है.

मालदीव: योग दिवस में व्यवधान की घटना क्यों भारत के लिये चिंता की एक नयी वजह हो सकती है?

21 जून को मालदीव की राजधानी माले में संदिग्ध इस्लामी दंगाइयों ने ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के कार्यक्रम पर धावा बोल दिया. इसे एक ‘राजनयिक घटना’ कहा जा सकता है जिसमें मेज़बान सरकार संलिप्त नहीं थी. पीपीएम-पीएनसी गठजोड़ ने अपनी किसी संलिप्तता से तुरंत इनकार किया, लेकिन घटना के बाद हुई पुलिस जांच ने दिखाया कि दंगाई जो सामग्री लिये हुए थे वह उनके दफ़्तरों से आयी थी, और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन से, उनके ‘इंडिया आउट’ अभियान से जुड़ी हुई थी.

नयी दिल्ली ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को आगे बढ़ाया था, जिसे 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 170 सदस्यों की बड़ी संख्या ने बेहिचक अंगीकार कर लिया, जिसके बाद से इस कार्यक्रम की मेज़बानी मालदीव का युवा एवं खेल मंत्रालय भारतीय उच्चायोग से संबद्ध भारतीय संस्कृति केंद्र के साथ मिलकर करता था.

गत 21 जून के आयोजन में, आम लोगों के साथ भारतीय उच्चायुक्त मुनु महावर, माले में तैनात संयुक्त राष्ट्र के राजनयिकों और मेज़बान सरकार के अधिकारियों ने हिस्सा लिया. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, पुलिस द्वारा दंगाइयों को हटाये जाने के बाद योग कार्यक्रम दोबारा शुरू हुआ.

गत 21 जून के आयोजन में, आम लोगों के साथ भारतीय उच्चायुक्त मुनु महावर, माले में तैनात संयुक्त राष्ट्र के राजनयिकों और मेज़बान सरकार के अधिकारियों ने हिस्सा लिया. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, पुलिस द्वारा दंगाइयों को हटाये जाने के बाद योग कार्यक्रम दोबारा शुरू हुआ. दंगाई हाथों में झंडे लिये हुए थे, जिन पर अरबी में इस्लामी ‘शहादा’ (गवाही) की पंक्ति लिखी हुई थी कि ‘अल्लाह के सिवा कोई उपासना-योग्य (माबूद) नहीं है, और मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं’. विघ्नकारियों ने कथित तौर पर ऐसे नारे भी लगाये कि योग हिंदू मत से जुड़ा हुआ है, और लिहाज़ा यह गैर-इस्लामी/ इस्लाम-विरोधी है.

गंभीर चिंता

राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह ने इस व्यवधान पर ‘गंभीर चिंता’ प्रकट करने में तनिक देरी नहीं की, और ट्वीट किया कि जो इसमें शामिल थे उन्हें ‘क़ानून के सामने पेश किया जायेगा.’ कैबिनेट ने घटना की जांच के लिए एक सात-सदस्यीय मंत्रीय दल गठित किया. ‘त्वरित कार्रवाई’ की मांग करते हुए, सत्तारूढ़ मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) ने भी एक बयान जारी किया.

हालांकि, सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल एमडीपी के तीन सहयोगियों- जम्हूरी पार्टी (जेपी), धर्म-केंद्रित अदालत पार्टी (एपी) और मामून रिफॉर्म मूवमेंट (एमआरएम) की चुप्पी ग़ौरतलब थी. पूर्व रक्षा मंत्री कर्नल मोहम्मद नाज़िम की नवगठित मालदीवियन नेशनल पार्टी (एमएनपी) ने एक बयान में यह शिकायत की कि यह कार्यक्रम ‘जनता की सुरक्षा के लिए चिंता किये बगैर’ आयोजित हुआ.

संयुक्त मेज़बान, युवा मामलों के मंत्री अहमद महलूफ़ ने कहा कि इस आयोजन में ‘राजनीतिक कारणों से बाधा डाली गयी’. उन्होंने पूछा, ‘जो तब हराम या निषिद्ध नहीं था, वह अब कैसे हो गया?’ इस्लामी मंत्रालय, जो अदालत पार्टी की देखरेख में हैं, ने लोगों से अपील की कि ‘इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद की हिफ़ाज़त की आड़ में राजनीतिक फ़ायदे के लिए की गयी इन पाखंडी गतिविधियों के झांसे में न आएं.

इस्लामी मंत्रालय, जो अदालत पार्टी की देखरेख में हैं, ने लोगों से अपील की कि ‘इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद की हिफ़ाज़त की आड़ में राजनीतिक फ़ायदे के लिए की गयी इन पाखंडी गतिविधियों के झांसे में न आएं.’

संयोगवश, विद्वानों के एक धार्मिक संगठन ‘Ilmuveringe Gulhun’ ने योग दिवस मनाये जाने पर ‘चिंता जताते’ हुए आयोजन से एक दिन पहले इस्लामी मंत्रालय को एक पत्र भेजा था. इसमें दावा किया गया था कि योगाभ्यास हिंदू मत से जुड़ा है – और इस तरह इस्लाम तथा संविधान (जो केवल सुन्नी इस्लाम को इस द्वीपसमूह राष्ट्र में अनुमति देता है) के लिए ख़तरा है. हालांकि, इस बात की कोई व्याख्या नहीं आयी है कि मालदीव, जो अब भी एक ‘नरम इस्लामी राष्ट्र’ है, वहां विरोध क्यों होना चाहिए, जबकि रूढ़िवादी इस्लामी राष्ट्र ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में न सिर्फ़ योग दिवस के लिए वोट किया था, बल्कि बिना किसी घटना के इसके वार्षिक आयोजन की अनुमति देते/मेज़बानी करते रहे हैं. हालांकि, ‘Ilmuveringe Gulhun’ और एक अन्य कट्टरपंथी संगठन जमीयत सलाफ़ 21 जून की घटना में अपनी संलिप्तता से इनकार कर चुके हैं.

इस मामले में दोषी पाये गये राजनीतिक दलों को दंडित करने की स्वतंत्र चुनाव आयोग की धमकी ही है जिसने उनमें से कुछ को रक्षात्मक स्थिति में डाल दिया है- या, कम-से-कम ऐसा लगता है. विपक्षी पीएनसी के नेता अब्दुल रहीम अब्दुल्ला ‘अधूरे’ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, इस हमले की निंदा की और दावा किया यह सरकार और पुलिस का रचा हुआ नाटक था, ताकि उनके गठबंधन साझेदार पीपीएम पर आरोप मढ़ा जा सके. हालांकि, पीपीएम के महासचिव मोहम्मद थोलाल ने यह माना कि दंगाइयों के झंडे उन झंडों जैसे थे जिन्हें उनकी पार्टी द्वारा हाल की एक रैली में इस्तेमाल किया गया था, और वे इस मामले की जांच करेंगे. यह अलग बात है कि पीपीएम-नियंत्रित माले नगर परिषद द्वारा अंतिम क्षणों में योग कार्यक्रम के लिए एक अन्य स्थल ‘रासफन्नू’ के लिए दी गयी अनुमति रद्द किये जाने (शायद लोगों की शिकायतों पर) के बाद, इसे गलोल्हू नेशनल स्टेडियम में स्थानांतरित किया गया. 

पुलिस ने शुरू में, 21 जून की घटना में संलिप्त छह लोगों को गिरफ़्तार किये जाने का एलान किया. उसके बाद से वह चार और लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है, जिसमें पीपीएम के सांसद मोहम्मद इस्माइल और धार्मिक विद्वान अल-शेख फ़ज़लून बिन मोहम्मद शामिल हैं. उन सभी को अदालत के समक्ष पेश किया गया और फटकार लगायी गयी. योग दिवस घटना की कई कोणों से जांच करते हुए, पुलिस ने धार्मिक विद्वान शेख अहमद समीर को दी गयी मौत की धमकियों के मामले में भी जांच शुरू कर दी है. फेसबुक पर ख़ुद को योग के ख़िलाफ़ बताने के बाद उन्हें धमकी दी गयी. 

पुलिस ने शुरू में, 21 जून की घटना में संलिप्त छह लोगों को गिरफ़्तार किये जाने का एलान किया. उसके बाद से वह चार और लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है, जिसमें पीपीएम के सांसद मोहम्मद इस्माइल और धार्मिक विद्वान अल-शेख फ़ज़लून बिन मोहम्मद शामिल हैं.

पुलिस ने अपनी सक्रियता के आकलन के लिए एक आंतरिक समीक्षा भी शुरू की है. इस दौरान सोशल मीडिया यूजर्स ने आरोप लगाया है कि बीते साल 6 मई को संसद अध्यक्ष व पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद पर बम हमले के बाद यह एक और बड़ी ‘ख़ुफ़िया विफलता’ है. देश के पुलिस प्रमुख, कमिश्नर मोहम्मद हमीद ने योग कार्यक्रम में पुलिस इंतज़ाम पर ‘चिंता’ जताते हुए ट्वीट किया और ‘कामकाज में सुधार’ का वादा किया.

‘भारत-विरोधी’ नहीं, लेकिन…

यह संयोग ही होगा कि, योग दिवस की घटना संसद की ‘241 राष्ट्रीय सुरक्षा समिति’ द्वारा, यामीन ख़ेमे के ‘इंडिया आउट’ अभियान को रोकने के वास्ते, क़ानूनों में संशोधन के लिए ‘प्रासंगिक प्राधिकारियों को निर्देश देने’ का निर्णय लेने के एक दिन बाद हुई. इससे पहले अप्रैल में राष्ट्रपति सोलिह ने ‘इंडिया आउट’ पर रोक लगाने का आदेश दिया था. गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के हवाले से समिति ने कहा कि किस तरह ‘इंडिया आउट’ अभियान पर सोशल मीडिया पोस्ट्स ने हिंसा का आह्वान भी किया था. गृह मंत्रालय की रिपोर्ट ने कहा कि ऐसी धमकियां भारत में रहने वाले और इलाज के लिए वहां जाने वाले मालदीवी लोगों पर ‘प्रतिकूल असर’ डाल सकती हैं. इसी तरह, विदेश मंत्रालय ने ‘241 समिति’ को सौंपी एक रिपोर्ट में कहा कि ‘इंडिया आउट’ अभियान देश की आंतरिक स्थिरता और सुरक्षा को ‘प्रतिकूल ढंग से प्रभावित’ कर सकता है.

इसके बाद अटॉर्नी जनरल के कार्यालय ने राष्ट्रपति कार्यालय को एक मसौदा विधेयक भेजा है. यह राष्ट्र के ‘राजनयिक हितों’ को नुक़सान पहुंचाने के कृत्यों को एक अलग अपराध के रूप में संहिताबद्ध करने के लिए, दंड क़ानूनों में संशोधन का प्रस्ताव करता है. ‘इंडिया आउट’ जैसे अभियानों पर रोक के राष्ट्रपति आदेश ने इस विषय की ज़्यादा व्याख्या नहीं की, शायद यह उम्मीद थी कि यह अकेला ही कारगर साबित होगा. यह सवाल बना रहेगा कि क्या होगा अगर प्रदर्शनकारी ‘इंडिया आउट’ के नारे लिखी टी-शर्ट पहने हों, जैसा कि यामीन और उनकी पार्टी के लोग राष्ट्रपति आदेश के बावजूद सार्वजनिक रूप से करते आ रहे हैं.

गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के हवाले से समिति ने कहा कि किस तरह ‘इंडिया आउट’ अभियान पर सोशल मीडिया पोस्ट्स ने हिंसा का आह्वान भी किया था. गृह मंत्रालय की रिपोर्ट ने कहा कि ऐसी धमकियां भारत में रहने वाले और इलाज के लिए वहां जाने वाले मालदीवी लोगों पर ‘प्रतिकूल असर’ डाल सकती हैं.

सूची में ‘किसी दूसरे देश के राष्ट्रीय झंडे या राष्ट्रीय चिह्न को क्षतिग्रस्त करना या उसमें फेरबदल करना, विदेशी संस्थाओं को नष्ट करना या उनके विनाश के लिए आह्वान करना, किसी विदेशी को उसकी राष्ट्रीयता के आधार पर प्रताड़ित करने के लिए उसे नुक़सान पहुंचाना या पहुंचाने का आह्वान करना, या किसी विदेशी से उसकी राष्ट्रीयता के आधार पर मालदीव छोड़ने की मांग करना’ शामिल है. याद दिला दें कि, पुलिस ने यामीन के घर की छत से लटके हुए लंबे-लंबे बैनरों और पीपीएम पार्टी दफ़्तर को ज़ब्त किया जिन्होंने भारतीय झंडे को ग़लत ढंग से पेश किया, मानो यह दंड-मुक्ति (इम्युनिटी) का दावा करने के लिए हो, लेकिन साथ ही भारतीय भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए हो.

बीते पखवाड़े अपनी सार्वजनिक उपस्थितियों में, यामीन यह दावा करते हुए अपने सुर बदलते दिखे कि वह ‘भारत-विरोधी नहीं, बल्कि मालदीव-समर्थक’ हैं, और केवल देश में भारतीय सैन्य कर्मियों की मौजूदगी के ख़िलाफ़ हैं. एक मीडिया इंटरव्यू में, उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार ने उनकी सरकार के अनुरोधों के बावजूद अपने सैन्य कर्मियों को नहीं हटाया. एक बड़े आरोप में, उन्होंने दावा किया कि हिंदुत्ववादी संगठन ‘अमानवीय कृत्यों’ पर पर्दा डालने के लिए ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ख़ासकर अमेरिका में जनसंपर्क (पीआर) अभियान चला रहे हैं, और रत्ती भर सबूत के बगैर कहा कि भारत में ‘मुसलमानों का नरसंहार’ संभव है.

बीते पखवाड़े अपनी सार्वजनिक उपस्थितियों में, यामीन यह दावा करते हुए अपने सुर बदलते दिखे कि वह ‘भारत-विरोधी नहीं, बल्कि मालदीव-समर्थक’ हैं, और केवल देश में भारतीय सैन्य कर्मियों की मौजूदगी के ख़िलाफ़ हैं.

संयोगवश, यह मौजूदा विमर्श सत्तारूढ़ एमडीपी को ध्यान बंटाने का साधन मुहैया करा सकता है, जो बार-बार टूट की ओर बढ़ती लगती है. इस सिलसिले में सबसे ताज़ा है, संसद अध्यक्ष नशीद से जुड़े पार्टी गुट से आने वाले महा-अभियोजक हुसैन शहीम को हटाने के लिए सदन में प्रस्ताव लाने का एमडीपी के संसदीय समूह का बहुमत वाला फैसला. यह नशीद के समर्थकों को सरकार और पार्टी में मुख्य पदों से हटाने/बदलने के लिए, राष्ट्रपति सोलिह के लिए अगला बड़ा क़दम है. शहीम को मतदान के ज़रिये हटाने के लिए तीन-पंक्ति के पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने की नशीद ख़ेमे की योजना के लिए, 87 सदस्यीय संसद में एमडीपी के 65 सांसदों में से 18 ने वोट किया. सोलिह की टीम ने उसके बाद योजना से बाहर हुए सदस्यों में से कुछ से बात होने का दावा किया है. दोनों पक्ष मध्य-अगस्त में होने वाले पार्टी सम्मेलन के लिए तैयारी में जुटे हैं. इसके बाद सितंबर में, यामीन के ख़िलाफ़ धन-शोधन के दो लंबित मुकदमों में से एक में निचली अदालत का फैसला आना है, जो उन्हें अगले साल होने वाला राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराने की क्षमता रखता है.   

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