Published on Nov 20, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत के संघीय व्यवस्था में दरार तब दिखी जब बगैर किसी पूर्व परामर्श के तीन राज्यों में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में विस्तार कर दिया गया.

राज्यों में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र के विस्तार पर केंद्र व राज्य के बीच संघर्ष:  संक्षिप्त विवेचना

हाल ही में तीन राज्यों में, जिसकी सरहद अंतर्राष्ट्रीय सीमा  से लगती है, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अधिकार क्षेत्र को विस्तार देने के फैसले ने भारत में केंद्र और राज्य के बीच ताजा विवाद पैदा कर दिया है. असम, पश्चिम बंगाल और पंजाब में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया गया है, पंजाब और पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं जहां गैर बीजेपी विपक्षी दल का शासन है, जिन्होंने केंद्र में बीजेपी शासित सरकार के इस फैसले का विरोध किया था और आरोप लगाया कि यह शक्ति का केंद्रीयकरण है.

असम, पश्चिम बंगाल और पंजाब में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया गया है, पंजाब और पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं जहां गैर बीजेपी विपक्षी दल का शासन है, जिन्होंने केंद्र में बीजेपी शासित सरकार के इस फैसले का विरोध किया था 

हाल ही में 1968 के सीमा सुरक्षा बल कानून के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय ने निर्देश जारी किया कि, बीएसएफ केंद्र के तहत, जो भारत के अंतर्राष्ट्रीय सरहद की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है, उसका अधिकार क्षेत्र अब इन तीन राज्यों की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 50 किलोमीटर अंदर तक होगा. बीएसएफ की शक्तियां, जिसके तहत उन्हें गिरफ़्तार और सर्च करने का अधिकार होगा. इससे पहले तक उनका 15 किलोमीटर के दायरे तक ही अधिकार क्षेत्र हुआ करता था. इसी आदेश में, बीएसएफ के ऑपरेशन का क्षेत्र गुजरात में 80 किलोमीटर से घटाकर 50 किलोमीटर कर दिया गया. लेकिन, आपराधिक दंड प्रक्रिया (सीआरपीसी), 1920 पासपोर्ट (भारत में दाखिल होने के लिए) एक्ट और 1920 के पासपोर्ट एक्ट के तहत बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में काफी बढ़ोतरी हुई है. एनीडीपीएस (नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सब्सटांसेज) एक्ट, आर्म्स एक्ट और कस्टम एक्ट के तहत सर्च और ज़ब्त करने के अधिकारों में कोई बदलाव नहीं हुआ.

राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम राज्य की स्वायत्तता को लेकर बहस

पंजाब और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने केंद्र पर संघीय शक्तियों के बंटवारे को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया, जबकि केंद्र ने नए आदेश का इस आधार पर बचाव किया कि बीएसएफ की क्षमता में विस्तार कर भारत के अंतर्राष्ट्रीय सीमा से अवैध कब्ज़ा और  सीमा पार अपराध को रोका जा सकेगा “जिसमें ड्रग्स, हथियार, मवेशियों की तस्करी और जाली नोटों के रैकेट पर अंकुश लगाना शामिल है”. हाल में कानून में किए गए संशोधनों का मक़सद सीमावर्ती राज्यों पंजाब, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान  और असम में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र के विस्तार को लेकर एक समान दृष्टिकोण अपनाना है, जिससे सीमा से लेकर 50 किलोमीटर तक बीएसएफ ऑपरेट कर सके. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने इस बदलाव के लिए यह तर्क भी दिया कि हाल के दिनों में सीमावर्ती राज्यों जम्मू-कश्मीर और पंजाब में ड्रोन के जरिए हथियार गिराने और ड्रग्स ट्रैफिकिंग की घटना में काफी बढ़ोतरी हुई है. इसके साथ ही यह तर्क भी दिया गया कि अपने पहले के सीमित अधिकार क्षेत्र के चलते बीएसएफ इन राज्यों में अंदरूनी सीमा के तहत अपराध के जड़ तक कार्रवाई नहीं कर सकती थी, जहां सामानों की तस्करी और इससे संबंधित नेटवर्क तक पहुंच पाना बीएसएफ के लिए आसान नहीं था. पुलिस शक्तियों में बढ़ोतरी की आशंकाओं के ख़िलाफ़ आश्वासन के रूप में इस बात पर जोर दिया गया कि पहले के कानून के तहत बीएसएफ को अपराध की जांच का अधिकार नहीं मिलता है और संदिग्धों को पकड़ने के बाद उन्हें उस राज्य की स्थानीय पुलिस अधिकारियों को सौंपना पड़ता है.

बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में बढ़ोतरी के चलते क्षेत्राधिकार और परिचालन अस्पष्टता को लेकर राज्य की पुलिस में ज़्यादा भ्रम की स्थिति पैदा होगी. इन राज्यों को शिकायत है कि केंद्र सरकार ने उनसे परामर्श किए बिना ये फैसला ले लिया और भारत के संघीय ढांचे को नज़रअंदाज़ कर दिया. 

हालांकि, संबंधित विपक्षी पार्टी के सत्ता वाले राज्यों में हाल के इन बदलावों को लेकर संदेह होना कुछ हद तक जायज़ भी है. इन राज्यों को संदेह है कि प्रस्तावित बदलाव के चलते राज्य के कानून व्यवस्था में केंद्र का हस्तक्षेप बढ़ेगा. पश्चिम बंगाल जिसकी अंतर्राष्ट्रीय सीमा बांग्लादेश, भूटान और नेपाल से लगती है, इस संशोधित अधिसूचना से “बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में करीब राज्य की एक तिहाई, और संवेदनशील उत्तरी बंगाल के ज़्यादातर इलाके आ जाते हैं”. पंजाब जिसकी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पाकिस्तान से लगती है, “उस राज्य के कम से कम नौ ज़िले”, पूरी तरह या आंशिक रूप से  बीएसएफ के बढ़े हुए अधिकार क्षेत्र के तहत आते हैं. पहले से ही ऐसे कई उदाहरण हैं जिसके तहत बीएसएफ और पंजाब पुलिस के बीच समन्वय की कमी देखी गई है. इसके साथ ही बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में बढ़ोतरी के चलते क्षेत्राधिकार और परिचालन अस्पष्टता को लेकर राज्य की पुलिस में ज़्यादा भ्रम की स्थिति पैदा होगी. इन राज्यों को शिकायत है कि केंद्र सरकार ने उनसे परामर्श किए बिना ये फैसला ले लिया और भारत के संघीय ढांचे को नज़रअंदाज़ कर दिया. टीएमसी ने नगा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले (27 नवंबर, 1997) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को फिर से लागू किया, जिसमें सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय बलों की तैनाती की प्रक्रिया का यह मतलब कतई नहीं है कि इससे राज्य में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में राज्य और केंद्र के बीच सहयोग की कमी हो.

आशंकाएं व्यक्त  की  गई कि बगैर किसी सुरक्षात्मक मानकों के बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में विस्तार से अपनी शक्तियों का वह मनमाना इस्तेमाल करेगी जो संभवत: मानवाधिकारों के उल्लंघन को बढ़ावा देगी. चिंताएं तो इस बात को लेकर भी जाहिर की जा रही हैं कि इन राज्यों में बीएसएफ की बढ़ी हुई शक्तियों का इस्तेमाल विरोधी पक्ष के नेताओं को झूठे ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के केस में फंसाने के लिए किया जा सकता है.

केंद्रीयकरण की निरंतरता

राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर केंद्र सरकार की इस तरह की केंद्रीयकरण की प्रवृति हमेशा से मौजूद रही है जो सभी राजनीतिक पार्टियों की सत्ता के वक्त कमोबेश देखी गई है. कांग्रेस नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौरान राज्य सभा में मार्च 2012 में सीमा सुरक्षा बल (संशोधन) कानून लाया गया, जो बीएसएफ को देश के किसी भी हिस्से में जहां इसकी तैनाती है वहां सर्च करने, ज़ब्त करने और गिरफ्तारी करने का अधिकार प्रदान करती है. तब इस फैसले का बीजेपी शासित राज्यों द्वारा जमकर विरोध किया गया था और आरोप लगाया गया था कि सरकार राज्यों की स्वायत्तता ख़त्म करने पर तुली हुई है. यूपीए सरकार के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर दूसरी नीति केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित आतंकी रोधी सुरक्षा प्रक्रिया थी. नेशनल काउंटर टेररिज़्म सेंटर (एनसीटीसी),जिसका विरोध ना सिर्फ बीजेपी शासित राज्यों ने बल्कि क्षेत्रीय दलों  द्वारा शासित राज्यों की सरकारों ने भी यह कहकर जमकर विरोध किया था कि यह संघीय ढांचे पर हमला है. जैसा कि यूपीए सरकार बिना बहुमत की गठबंधन की सरकार थी, विपक्ष के राजनीतिक विरोध के चलते सरकार को इन दोनों प्रस्तावित नीतियों को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप करने की मंशा यूपीए समेत एनडीए सरकारों के दौरान समान रूप से देखी गई.

कैप्टन अमरिंदर सिंह, जो पहले कांग्रेस पार्टी में थे, और अब जिन्होंने कांग्रेस से बगावत कर नई पार्टी बना ली है, और जिन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन करने की कोशिश भी की थी, उन्होंने भी केंद्र के इस आदेश का समर्थन किया है. हालांकि पंजाब में साल 2016 में जब उनके नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी तब उन्होंने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया था.

मुख्य परिचालक के तौर पर राजनीतिक गठबंधन

राष्ट्रीय सुरक्षा और राज्य स्वायत्तता की नैरेटिव ना सिर्फ इस बात पर निर्भर करती है  कि केंद्र में कौन सी पार्टी की सरकार है बल्कि केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार और वहां के नेतृत्व के कैसे संबंध हैं. इसलिए यह मामला राजनीतिक गठबंधन पर ज़्यादा निर्भर करता है ना कि किसी और वजह से  प्रभावित होता दिखता है. बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस सरकार के दौरान ऐसे किसी प्रस्ताव का भारी विरोध किया था जो केंद्र के क्षेत्राधिकार बढा़ने के साथ-साथ संघीय ढांचे पर हमला था. उसी प्रकार विपक्ष में बैठी कांग्रेस आज ख़ास कर पांजाब में सत्ताधारी बीजेपी की शक्तियों के केंद्रीयकरण की ऐसी कोशिश का विरोध करती नजर आ रही है. हालांकि, एक ओर जहां गैर-बीजेपी शासित पश्चिम बंगाल और पंजाब में इस प्रस्ताव का राज्य सरकारें विरोध कर रहीं हैं तो असम जहां बीजेपी की सत्ता है वो केंद्र के इस प्रस्ताव का स्वागत हो रहा है. मजेदार बात तो यह है कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, जो पहले कांग्रेस पार्टी में थे, और अब जिन्होंने कांग्रेस से बगावत कर नई पार्टी बना ली है, और जिन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन करने की कोशिश भी की थी, उन्होंने भी केंद्र के इस आदेश का समर्थन किया है. हालांकि पंजाब में साल 2016 में जब उनके नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी तब उन्होंने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया था.

आगे का रास्ता

इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत जैसे महत्व और आकार वाले देश जिसकी अंतर्राष्ट्रीय सीमा बेहद संवेदनशील है और आसानी से जिसके अंदर और बाहर आया जा सकता है, उस देश के साथ-साथ दक्षिण एशिया की अस्थिर हालत की वजह से अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को लेकर काफी सचेत रहने की ज़रूरत है. यह बेहद अहम है क्योंकि सीमा पार आतंकवाद और दूसरे किस्म के अपराध भारत की सुरक्षा चिंताओं पर प्रतिकूल असर डालने में सक्षम हैं. लेकिन एक ही समय में, जैसे कि भारत की संघीय नीति के तहत राज्यों के ऊपर उनके क्षेत्राधिकार के तहत कानून व्यवस्था के प्रबंधन की प्राथमिक ज़िम्मेदारी होती है, जबकि सभी तरह की सुरक्षा चिंताएं जो कि राज्य को प्रभावित करती हैं, उसे लेकर व्यवस्था के लिए राज्य सरकार को केंद्र के साथ चर्चा करनी होती है. ऐसे में पुलिस की क्षमता को बढ़ाने और बीएसएफ  और राज्य पुलिस के बीच ज़्यादा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए साझा तौर पर केंद्र और राज्य सरकार को आगे आने की ज़रूरत है. संघीय संवाद के संस्थागत चैनलों जैसे, अंतर्राज्यीय काउंसिल को केंद्र और राज्य सरकार के बीच संवाद और सहमति बढ़ाने के लिए फिर से मज़बूत बनाना चाहिए. जिससे राजनीतिक गठबंधन की मजबूरी को कम किया जा सके. क्योंकि भारत की प्रजातांत्रिक व्यवस्था तभी मज़बूत हो सकेगी जबकि परामर्श के साथ संघीय व्यवस्था को लागू किया जाए.

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