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छत्तीसगढ़ के विशेष बल DRG ने बीते 18 महीनों में माओवादियों को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है. इसने न सिर्फ़ उनके शीर्ष कमांडरों को मार गिराया है, बल्कि उन इलाकों पर फिर से अधिकार भी जमा लिया है, जिनको कभी अभेद्य माना जाता था.
Image Source: Getty Images
लंबे समय से चले आ रहे माओवादी विद्रोह के ख़िलाफ़ भारत की ज़ंग में पिछला 18 महीना एक अहम मोड़ साबित हुआ है. इस दौरान सुरक्षा बलों ने माओवादी संगठनों पर जबरदस्त हमला किया है. उन्होंने न सिर्फ़ कई शीर्ष कमांडर सहित सैकड़ों माओवादी लड़ाकों को मार गिराया है, बल्कि बड़ी संख्या में उनकी गिरफ्तारियां भी की हैं. माओवादियों के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई में आए इस बड़े बदलाव का ही उदाहरण है बसवराजू का ख़ात्मा. बस्तर में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के इस ताक़तवर नेता को छत्तीसगढ़ के सुरक्षा बलों ने मार गिराया. ज़ाहिर है, इस अभियान में छत्तीसगढ़ ने अहम भूमिका निभाई है. मगर छत्तीसगढ़ में इस प्रेरणादायक बदलाव के पीछे जिस विशेष बल का हाथ है और जिसकी कम चर्चा होती है, वह है- डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG).
राज्य में बढ़ते माओवादी ख़तरे का मुकाबला करने के लिए एक विशेष बल के रूप में, DRG की संकल्पना 2000 के दशक के आख़िरी वर्षों में तब की गई, जब सर्वोच्च न्यायालय ने असफल साबित हुए सलवा जुडूम को गैरकानूनी बताया था.
राज्य में बढ़ते माओवादी ख़तरे का मुकाबला करने के लिए एक विशेष बल के रूप में, DRG की संकल्पना 2000 के दशक के आख़िरी वर्षों में तब की गई, जब सर्वोच्च न्यायालय ने असफल साबित हुए सलवा जुडूम को गैरकानूनी बताया था. सलवा जुडूम माओवादियों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए आदिवासी नौजवानों की बनाई गई फौज थी. 2011 के इस फ़ैसले में ही कुछ हद तक DRG की सोच छिपी थी, क्योंकि इसके बाद सैकड़ों विशेष पुलिस अधिकारियों (मुख्य रूप से आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों और आदिवासी युवाओं) के भविष्य पर सवाल उठ खड़े हुए थे, और स्थानीय आदिवासियों द्वारा चलाए जाने वाले आतंकवाद विरोधी संगठन की ज़रूरत महसूस की गई थी. इस तरह, मुख्यतः आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी और आदिवासी युवाओं को साथ लेकर DRG की स्थापना की गई, ताकि माओवादी विचारधारा और उसके दुष्प्रचार का मुकाबला किया जा सके. इसके अलावा, छत्तीसगढ़ सरकार का यह भी मानना था कि सुरक्षा बल (इनमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, यानी CRPF और अन्य सुरक्षा बल भी शामिल हैं) स्थानीय इलाके और जंगलों से बहुत ज़्यादा परिचित नहीं हैं, इसलिए DRG इस कमी को दूर करने में मदद कर सकेगा. राज्य सरकार यह मानकर चल रही थी कि ‘माओवादी रह चुके DRG जवान घने जंगली इलाकों में बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं और माओवादी ठिकानों के बारे में भी वे बेहतर बता सकेंगे’, इसीलिए उग्रवाद से भी वे अच्छी तरीके से निपट सकेंगे.
इस प्रकार से DRG का गठन हुआ, जिसकी पहली इकाई कांकेर और नारायणपुर (अबूझमाड़ भी इसमें शामिल था) जिलों में स्थापित की गई. इस बल की उपयोगिता को देखते हुए, राज्य सरकार ने 2013 में इसका दायरा बढ़ाकर बीजापुर और बस्तर जिलों तक कर दिया, जिसके बाद 2014 में सुकमा व कोंडागांव जिले और 2015 में दंतेवाड़ा भी इसकी कार्रवाइयों के अधीन कर दिया गया. 2025 तक DRG जवानों की संख्या बढ़कर 5,000 से अधिक हो गई.
2020 से 2022 तक कई जवानों की भर्ती DRG पुलिस बल में की गई, जिनमें से ज़्यादातर पूर्व माओवादी थे. इसमें तीन स्तरों पर भर्तियां की जाती हैं- पहला- सहायक कांस्टेबल, जो ज़्यादातर विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) होते हैं और जो पहले सलवा जुडूम के सदस्य थे. दूसरा- कांस्टेबल, जिनकी औपचारिक रूप से भर्ती की जाती है, और तीसरा- आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी, जिनकी भर्ती ‘गोपनीय सैनिक’ के रूप में की जाती है. DRG का मूल दर्शन माटी, गति और न्यूनतम क्षति पर टिका है. माटी का अर्थ है- ऑपरेशन ख़ुफिया जानकारी के आधार पर किए जाते हैं, जो सुदूर इलाकों और घने जंगलों में होते हैं. गति का मतलब है, DRG जवानों में अदम्य सहनशक्ति और गति होती है, जो रात भर में 30-35 किलोमीटर तक चलने में सक्षम होते हैं. और जहां तक न्यूनतम क्षति की बात है, तो DRG रंगरूटों को इस तरह प्रशिक्षित किया जाता है कि उनको कम से कम नुकसान हो. भर्ती होने के बाद DRG कैडेट राज्य पुलिस अकादमी में एक साल का प्रशिक्षण लेते हैं, जिसके बाद उनको विभिन्न प्रशिक्षण केंद्रों में दो महीने के पाठ्यक्रम के तहत जंगल में लड़ने का गुर सिखाया जाता है, ख़ास तौर से कांकेर जंगल वारफेयर कॉलेज में.
चूंकि DRG उग्रवाद-रोधी विशेष बल के रूप में काम करता है, इसलिए इसके जवानों को जंगल युद्ध, गुरिल्ला-विरोधी रणनीति, बॉडी ट्रैप डिटेक्शन और ख़ास इलाकों में घात लगाकर किए जाने वाले हमलों को विफल करने की रणनीति सिखाई जाती है. DRG के ज़्यादातर जवान खुद माओवादी रह चुके हैं, इसलिए वे माओवादियों की गतिविधियों को अच्छी तरह जानते हैं. इस कारण उनकी हरकतों और अभियानों के ख़िलाफ़ DRG बल को कार्रवाई करने में आसानी होती है. DRG जवान उन ठिकानों का पता लगाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो माओवादी मौसम के अनुसार जंगलों में जहां-तहां बनाते हैं. ये जवान अनुमान लगा सकते हैं कि माओवादी कब अपने ठिकानों को बदलेंगे. वे स्थानीय ग्रामीणों की मदद से माओवादियों को मिलने वाली रसद सहायता पर भी नज़र बनाकर रखते हैं. संक्षेप में कहें, तो पिछले एक दशक में, DRG माओवादियों के ख़िलाफ़ एक अजेय बल के रूप में विकसित हुआ है.
DRG जवान उन ठिकानों का पता लगाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो माओवादी मौसम के अनुसार जंगलों में जहां-तहां बनाते हैं. ये जवान अनुमान लगा सकते हैं कि माओवादी कब अपने ठिकानों को बदलेंगे.
बीते 18 महीनों में DRG ने अन्य सुरक्षा बलों के साथ मिलकर जो प्रमुख सुरक्षा अभियान चलाए हैं, उनका विवरण नीचे दिया गया है-
16 अप्रैल 2024
एक बड़े सुरक्षा अभियान में, DRG ने 16 अप्रैल 2024 को 29 माओवादियों को मार गिराया. इनमें से कई खूंखार माओवादी थे, जिन पर भारी इनाम घोषित था. इस अभियान का नेतृत्व करते हुए DRG ने बता दिया कि किस तरह से खुफ़िया सूचना के आधार पर सामरिक कार्रवाई की जा सकती है. इससे सैनिकों को माओवादियों के गढ़ में उनको निशाना बनाने में मदद मिली.
30 अप्रैल 2024
इसी पखवाड़े में, DRG ने अबूझमाड़ के पास 10 अन्य माओवादियों को मारकर अपनी श्रेष्ठ उग्रवाद-विरोधी क्षमता और मारक क्षमता का प्रदर्शन किया. DRG के नेतृत्व में हुए इस ख़ुफिया-आधारित अभियान में कुछ शीर्ष माओवादी गुरिल्लाओं का सफ़ाया हुआ और भारी मात्रा में हथियार व विस्फोटक बरामद किए गए.
10 मई 2024
इसके एक हफ़्ते के बाद ही 10 मई 2024 को DRG ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई)- माओवादी को एक और बड़ा झटका दिया और बीजापुर में उसके 12 लड़ाकों को मार गिराया. DRG के नेतृत्व में विशेष कार्य बल और कोबरा इकाई ने मिलकर बीजापुर के आसपास के घने जंगलों में माओवादी दल पर यह हमला किया था.
3 सितंबर 2024
इसके कुछ महीनों के बाद 3 सितंबर, 2024 को DRG ने बस्तर फाइटर्स और कोबरा के साथ मिलकर दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों की सीमा पर माओवादियों के ख़िलाफ़ एक सफल अभियान चलाया, जिसमें 9 विद्रोही मारे गए.
04 अक्टूबर 2024
4 अक्टूबर 2024 को बस्तर क्षेत्र में माओवादियों के ख़िलाफ़ एक बड़ा अभियान चलाया गया और एक भीषण मुठभेड़ में 38 विद्रोहियों को मार गिराया गया. मारे गए उग्रवादियों में उर्मिला भी शामिल थी, जो दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (DKSZC) की एक ताक़तवर महिला थी. यह पहला मौका था, जब एक दिन में इतनी बड़ी संख्या में माओवादियों को मार गिराया गया था.
16 जनवरी 2025
साल 2025 की शुरुआत भी DRG के नेतृत्व में हुए एक बड़े सुरक्षा अभियान के साथ हुई और 16 जनवरी को दक्षिण बस्तर के घने जंगलों में 18 माओवादी विद्रोहियों का सफ़ाया किया गया. DRG को यह सफलता भाकपा-माओवादी की सबसे मजबूत सैन्य इकाई पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की बटालियन संख्या 01 के ख़िलाफ़ मिली, जिससे पता चलता है कि माओवादियों की कमर कितनी टूट गई है.
21 जनवरी 2025
DRG ने छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा के पास 14 माओवादियों को मार गिराया. मारे गए माओवादियों में भाकपा-माओवादी की सर्वोच्च फ़ैसले लेने वाली इकाई- सेंट्रल कमिटी का सदस्य चलपति भी शामिल था.
20 मार्च 2025
जनवरी से लगातार मिल रही सफलता की अगली कड़ी में DRG ने 20 मार्च को एक और बड़ी मुठभेड़ शुरू की, जिसमें उसने छत्तीसगढ़ की मेहदा-फरसेगढ़ सीमा के पास 31 विद्रोहियों को मार गिराया. एक बार फिर, DRG की सामरिक रणनीति का पूरा लाभ मिला. इसी रणनीति का हिस्सा था, जिलाओं के सीमावर्ती इलाकों में इनकी त्वरित तैनाती और जंगल युद्ध का कौशल.
इतना ही नहीं, DRG ने हाल के महीनों में अपनी क्षमता ‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ में खूब दिखाई, जो 21 दिनों तक चले सुरक्षा अभियान का कोड नाम था. 21 अप्रैल 2025 और 11 मई 2025 के दौरान यह कार्रवाई की गई थी, जिसका मक़सद था, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में फैले कर्रेगुट्टा पर्वत श्रृंखला पर फिर से अधिकार जमा लेना. इस अभियान में शीर्ष स्तर के माओवादी नेताओं का सफ़ाया किया गया, जिनमें 27 खूंख़ार माओवादी भी शामिल थे. इन्हीं माओवादियों में एक था- भाकपा-माओवादी का महासचिव बसवराजू, जिसे घने जंगलों में 50 घंटे तक चले मुठभेड़ के बार ख़त्म किया जा सका था. DRG ने इन अभियानों का नेतृत्व करने में प्रभावी भूमिका निभाई, जिस कारण न सिर्फ़ दो दर्जन से अधिक माओवादियों को मार गिराया गया, बल्कि 54 को गिरफ़्तार किया गया और 84 ने आत्मसमर्पण किए.
तालिका- DRG द्वारा चलाए गए प्रमुख सुरक्षा अभियान (जनवरी 2024 से जून 2025 तक)
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साल/ दिनांक |
कार्रवाई |
स्थान |
मारे गए माओवादियों की संख्या |
|---|---|---|---|
|
16 अप्रैल 2024 |
DRG का एक बड़ा संयुक्त अभियान, जिसमें 20 माओवादियों को मार गिराया गया |
कांकेर जिला, छत्तीसगढ़ |
29 |
|
30 अप्रैल 2024 |
DRG टीम का बस्तर के अबूझमाड़ में संयुक्त सुरक्षा अभियान |
अबूझमाड़, बस्तर |
10 |
|
10 मई 2024 |
DRG के नेतृत्व में एक संयुक्त टीम की बीजापुर में माओवादियों से बड़ी मुठभेड़ |
बीजापुर, छत्तीसगढ़ |
12 |
|
3 सितंबर 2024 |
DRG का संयुक्त अभियान (बस्तर फाइटर और कोबरा के साथ), जिसमें 9 माओवादियों को ख़त्म किया गया |
दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले |
9 |
|
4 अक्टूबर 2024 |
10,000 से अधिक सुरक्षाकर्मियों के साथ चलाया गया सबसे बड़ा सुरक्षा अभियान, जिसमें DRG ने 38 माओवादियों को मार गिराया |
अबूझमाड़, बस्तर |
38 |
|
16 जनवरी 2025 |
माओवादियों के गढ़ दक्षिण बस्तर में DRG का साहसिक अभियान, 18 PGLA कमांडर ढेर |
दक्षिण बस्तर |
18 |
|
21 जनवरी 2025 |
DRG ने सेंट्रल कमेटी के सदस्य चलपति सहित 14 माओवादियों को मार गिराया |
छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा क्षेत्र |
14 |
|
20 मार्च 2025 |
अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ (ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के तहत) में DRG ने 31 माओवादियों को मार गिराया, जिनमें भाकपा-माओवादी का महासचिव बसवराजू भी शामिल था |
कर्रेगुट्टा पहाड़ी |
31 |
स्रोत- साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल
कुल मिलाकर कहें, तो DRG के गठन के समय भले ही कानूनी (प्रतिबंधित सलवा जुडूम का हाल देखते हुए) और कार्रवाई संबंधी सवाल सामने थे, लेकिन यह अब छत्तीसगढ़ में माओवादी उग्रवाद के ख़िलाफ़ जंग में एक महत्वपूर्ण हथियार बन गया है. एक दशक पहले तक एक बड़े इलाके पर माओवादियों के क़ब्ज़े के कारण यह राज्य संकटों से घिरा हुआ था, लेकिन आज ख़ास तौर से DRG की अभूतपूर्व सफलताओं के बाद यहां के हालात पूरी तरह से बदल गए हैं. पिछले 18 महीनों में कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों पर फिर से अधिकार जमाना और अबूझमाड़ जैसे माओवादी गढ़ों को भेदना, साथ ही कुछ शीर्ष कमांडरों सहित सैकड़ों विद्रोहियों को मार गिराना, छत्तीसगढ़ के हालात सुधरने के संकेत हैं. हालांकि, DRG की इन सफलताओं में CRPF, कोबरा, STF जैसे अन्य बलों के योगदान को भी भूला नहीं जा सकता.
भारत और छत्तीसगढ़ में माओवादी विद्रोह करीब-करीब समाप्त होता दिख रहा है, इसलिए इस नए दौर में DRG जवानों के भविष्य के बारे में सोचने का यह उचित समय है.
हमें यह याद रखना चाहिए कि DRG को भी कई मौकों पर अपने जवानों का बलिदान (भले उनकी संख्या बहुत कम है) देना पड़ा है. फिर, यह देखते हुए कि यह एक विशेष बल है (तेलंगाना के ग्रेहाउंड, महाराष्ट्र के सी-60 कमांडो, ओडिशा के विशेष कार्य बल जैसे अन्य विशेष बलों के विपरीत, जिनमें मुख्य रूप से राज्य पुलिस के जवान भर्ती किए जाते हैं), जिसका गठन मुख्य रूप से आत्मसमर्पण कर चुके माओवादियों से हुआ है, इसलिए इसकी सीमाएं हैं. फिर भी इसने सफलता हासिल की है, जिसका सम्मान होना चाहिए. इसके अलावा, विवादास्पद सलवा जुडूम प्रयोग से (जिसमें आदिवासी सशस्त्र गुटों को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा किया गया था और जिसके कारण बड़े पैमाने पर हत्याएं हुईं व मानवाधिकारों के मुद्दे उठे थे) सीख लेते हुए राज्य ने यह सुनिश्चित किया है कि DRG इस रास्ते पर न जाए. हालांकि, इस पर भी फ़र्जी मुठभेड़ करने के आरोप हैं, लेकिन यह सलवा जुडूम जैसा नहीं है. और आख़िरी बात, भारत और छत्तीसगढ़ में माओवादी विद्रोह करीब-करीब समाप्त होता दिख रहा है, इसलिए इस नए दौर में DRG जवानों के भविष्य के बारे में सोचने का यह उचित समय है. चूंकि ये नियमित पुलिस बल नहीं हैं, इसलिए इन जवानों का पुनर्वास आज का विचारणीय सवाल होना चाहिए.
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Avinnea Ghosal is a Research Intern at the Observer Research Foundation ...
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