Author : Samir Saran

Published on Apr 16, 2020 Updated 0 Hours ago

अगर, पूरे भारत में लॉकडाउन को लागू करने की चुनौती बहुत बड़ी थी, तो भारत में सामान्य गतिविधियों का दोबारा संचालन शुरू करना भी बहुत बड़ा चैलेंज है. लेकिन, भारत में आर्थिक गतिविधियों को किसी भी सूरत में इतने लंबे समय तक पूरी तरह से बंद नहीं रखा जा सकता जिससे कि अर्थव्यवस्था की रीढ़ की ही टूट जाए.

कोविड19 के साथ सह अस्तित्व: अर्थव्यवस्था और ज़िंदगियां बचाने की कोशिश

भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के विशेषज्ञों ने 9 अप्रैल को एक पेपर प्रकाशित किया था. इन पेपर के माध्यम से देश के उन 41 प्रतिनिधि ठिकानों के बारे में अध्ययन प्रकाशित किया था, जहां पर कोरोना वायरस के मामले सामने आए हैं. इस पेपर से ये बात सामने आई कि इन जगहों पर कुल 5911 लोग ऐसे पाए गए, जिनमें सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस (SARI) के लक्षण थे. इनमें से 1.8 प्रतिशत मरीज़ों को ही नए कोरोना वायरस ने संक्रमित किया था. जिन लोगों में सांस की ये भयंकर बीमारी थी, उनमें से 39.2 प्रतिशत लोगों के विदेश जाने का कोई रिकॉर्ड नहीं था. न ही वो विदेश से लौटे लोगों से संपर्क में आए थे. इससे इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण ‘कम्युनिटी ट्रांसमिशन’ शुरू हो चुका है. ये बात अपने आप में न तो असामान्य है और न ही चौंकाने वाली है. महामारियों के साथ ये बात आम तौर पर होती आई है कि वो धीरे-धीरे सामुदायिक स्तर पर जड़ें जमाते हैं.

11 अप्रैल तक भारत ने एक लाख 64 हज़ार 773 लोगों में से एक लाख 79 हज़ार 374 नमूनों में कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच की थी. इनमें से केवल 7 हज़ार 703 लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि की हुई है. भारत में हर रोज़ लगभग 17 हज़ार नमूनों की जांच हो रही है. भारत जैसे विशाल और एक अरब तीस करोड़ से ज़्यादा आबादी के लिहाज़ से टेस्ट की ये संख्या बेहद कम है. ख़ासतौर से तब और जब पूरे देश के आधे से अधिक ज़िलों में इस वायरस का संक्रमण फैल चुका है. ऐसे में इतनी कम जांच प्रति दिन होने का अर्थ ये निकलता है कि हमारे देश में कोरोना वायरस का संक्रमण किस हद तक फैल चुका है, इस बात से अभी देश अनभिज्ञ है. और जिन इलाक़ों में वायरस का संक्रमण पाया जा चुका है, वहां से इसके अन्य हिस्सों में भी फैलने की आशंका बनी हुई है. हम मुंबई, दिल्ली, जयपुर, इंदौर और अहमदाबाद में जितने बड़े पैमाने पर संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं, वो गंभीर चिंता का विषय हैं.

भारत ने पिछले कुछ हफ़्तों में अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था में नई जान डालने का प्रयास किया है. लेकिन, जो संकट हमारे सामने खड़ा है, उस लिहाज़ से ये उपाय साफ़ तौर से अपर्याप्त लग रहे हैं. सरकार के अनुसार, देश में वेंटिलेटर की भारी कमी को देखते हुए, 49 हज़ार वेंटिलेटर का ऑर्डर दिया गया है. लेकिन, अभी ये साफ़ नहीं है कि ये नए वेंटिलेटर सरकार  के पास कब पहुंचेंगे और कब इन्हें देश के अलग अलग हिस्सों में कोरोना वायरस के मरीज़ों के लिए बनाए गए विशेष केंद्रों तक पहुंचाया जाएगा.

सरकार ने भी ये माना है कि देश में कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच करने वाले केंद्रों की व्यवस्था बढ़ाने की ज़रूरत है. इसके अलावा स्वास्थ्य कर्मियों के लिए निजी सुरक्षा उपकरण (PPE), आइसोलेशन बेड, आईसीयू बेड, वेंटिलेटर और अन्य ज़रूरी संसाधनों की तादाद बढ़ाने की भी आवश्यकता है. इससे यही बात साबित होती है कि अगर देश में कोरोना वायरस के मामलों में अचानक तेज़ी आती है, तो हमारे देश की मौजूदा स्वास्थ्य व्यवस्था इसका बोझ नहीं बर्दाश्त कर सकेगी. इसीलिए, पूरे देश को लॉकडाउन करने का विकल्प ही पहले भी वायरस का प्रकोप थामने के लिए ज़रूरी था और आज भी भारत के लिए कोरोना वायरस की चुनौती का सामना करने के लिए यही सबसे कारगर उपाय दिखता है. क्योंकि भारी मात्रा में संक्रमण फैला तो हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरानी तय है.

लॉकडाउन से अभी तक के हालात ऐसे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठप हो गई है. इससे असंगठित क्षेत्र के कामगारों पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ रहा है. छोटे कारोबारियों और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों पर लॉकडाउन की सबसे बुरी मार पड़ी है. और उन्हें लंबे समय तक इसके कुप्रभाव झेलने होंगे

अगर हम अब तक घोषित किए गए आधिकारिक आंकड़ों की बात करें, तो देश के आधे से अधिक ज़िलों में कोरोना वायरस के संक्रमण का एक भी केस नहीं पाया गया है. लेकिन, हो सकता है कि नया कोरोना वायरस देश के कई समुदायों में अपनी पैठ बना चुका है. ये बात सच है या झूठ, इसका पता केवल ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का परीक्षण करके ही लगाया जा सकता है. और टेस्टिंग में दिख रही ख़ामी को तेज़ी से दूर किए जाने की ज़रूरत है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत ने इस संकट का सामना करने के लिए बड़ी तेज़ी से सख़्त क़दम उठाए और पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया था. ऑक्सफोर्ड कोविड-19 के सरकारी प्रतिक्रियाओं के ट्रैक के डेटाबेस के अनुसार, 25 मार्च को सख़्त क़दम उठाने के मामले में भारत छठवें नंबर पर था. क्योंकि देश में पूरी तरह से लॉकडाउन लागू किया था और सख़्त क़दम उठाने के मामले में 100 अंक हासिल किए हुए थे.

फिर भी ये बात भी सच है कि लॉकडाउन बहुत ही नुक़सान पहुंचाने वाला शस्त्र है. भारत जैसा देश इस लॉकडाउन को असीमित समय तक के लिए लागू नहीं रख सकता है. ख़ास-तौर से तब और जब भारत में सामुदायिक स्तर पर वायरस के संक्रमण के विस्तार का पता लगा पाना इसलिए संभव नहीं, क्योंकि जानकारी का अभाव है.

लॉकडाउन से अभी तक के हालात ऐसे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठप हो गई है. इससे असंगठित क्षेत्र के कामगारों पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ रहा है. छोटे कारोबारियों और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों पर लॉकडाउन की सबसे बुरी मार पड़ी है. और उन्हें लंबे समय तक इसके कुप्रभाव झेलने होंगे. लेकिन, कोरोना वायरस का प्रकोप थामने के लिए किसी और नीति पर चलना भारत के लिए संभव नहीं था. लॉकडाउन का ही विकल्प उपलब्ध था क्योंकि स्थानीय स्तर पर वायरस के संक्रमण के बारे में पता लगा पाने की संभावनाएं उपलब्ध नहीं थीं. चूंकि भारत के पास बड़े पैमाने पर लोगों का टेस्ट करने की क्षमता नहीं है. इसलिए पूरे देश में लॉकडाउन जैसा सख़्त क़दम उठाना पड़ा. दुर्भाग्य से इसकी भारी क़ीमत ग़रीब मज़दूर और छोटे कामगार जैसे समाज के सबसे कमज़ोर तबक़े के लोग सबसे ज़्यादा चुका रहे हैं.

हम बस यही उम्मीद कर सकते हैं कि इस वायरस की रोकथाम के उपाय तलाशने के लिए सरकार जिन विशेषज्ञों की सलाह ले रही है, वो सरकार को इस महामारी से निपटने के वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर के उन अनुभवों की जानकारी भी दे रहे होंगे, जो पिछले कुछ महीनों में दुनिया ने प्राप्त किए हैं. और अगले एक या दो हफ़्तों में न तो हमारे पास जानकारी का अभाव होगा और न ही मज़बूत इरादों का. इस महामारी से निपटने के लिए जो क़दम उठाए जाने हैं, उनके विकल्प भी हमारे पास सीमित नहीं होंगे, बस यही अपेक्षा है. लेकिन, इस मोड़ पर बस ये बात साफ़ है कि पहले 21 दिनों और ज़रूरत महसूस होने पर फिर 20 दिनों का जो राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया गया है, वो पूरी तरह से उचित क़दम है. और यही वक़्त की मांग भी है.

अगर लॉकडाउन की बात करें तो इसकी व्यापकता और दायरे के लिहाज़ से भारत अन्य देशों से बहुत अलग है. अगले पंद्रह दिनों में हमें चाहिए कि वायरस का संक्रमण कहां-कहां फैला है इसका जल्द से जल्द पता लगाया जाए. इसके लिए ऐसे तौर तरीक़े अपनाने की ज़रूरत है जिससे देश भर में सैंपल लेकर और सबका पूल बना कर परीक्षण किया जाए

लेकिन, अब तक हम लॉकडाउन से मिले उस अवसर का लाभ उठाने में चूक गए हैं, जो इसके कारण हमें प्राप्त हुआ था. हमें इस महामारी को थामने के लिए हर विकल्प पर ग़ौर करना होगा. हर संसाधन का इस्तेमाल करना होगा. और, इस लॉकडाउन से निकलने की एक रणनीति तैयार करनी होगी. वरना देश की बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था की भारी क़ीमत देश के ग़रीब तबक़े के लोग चुकाते रहेंगे. साथ ही साथ हमें कल्पनाहीन नीतियों के कारण, संसाधनों को होने वाली क्षति पर भी अपना ध्यान केंद्रित करना होगा. ये समय ऐसा है जब सरकार को सरकारी संस्थानों में उपलब्ध प्रतिभाओं से आगे जाकर अन्य विकल्पों को भी आज़माना चाहिए. ताकि ऐसी नीति बनाने के लिए ताज़ा विचार आ सकें, जो देश की अर्थव्यवस्था में नई जान फूंक पाने में सक्षम हों. ताकि हम दुनिया को ये संदेश दे सकें कि भारत के विकास का रथ अभी रुका नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस अवसर का लाभ उठाने से चूकना नहीं चाहिए.

कोरोना वायरस के बाद की दुनिया कैसी होगी, इस बारे में कई आकलन किए जा चुके हैं. इन आकलनों से इस आशंका को बल मिलता है कि हमने ग़रीबी उन्मूलन की दिशा में जो सफलताएं प्राप्त की हैं, वो कोरोना वायरस की महामारी के विश्व अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले कुप्रभाव के चलते हाथ से निकल जाएंगी. अगर ऐसा होता तो भारत भी इसके बुरे असर से अछूता नहीं रहा. अगर हम भारत की अर्थव्यवस्था पर इस महामारी के आर्थिक कुप्रभावों से पूरी तरह नहीं बच सकते, तो कम से कम इस बुरे असर को कम करने के लिए आवश्यक क़दम ज़रूर उठाने चाहिए.

अगर लॉकडाउन की बात करें तो इसकी व्यापकता और दायरे के लिहाज़ से भारत अन्य देशों से बहुत अलग है. अगले पंद्रह दिनों में हमें चाहिए कि वायरस का संक्रमण कहां-कहां फैला है इसका जल्द से जल्द पता लगाया जाए. इसके लिए ऐसे तौर तरीक़े अपनाने की ज़रूरत है जिससे देश भर में सैंपल लेकर और सबका पूल बना कर परीक्षण किया जाए. ये उत्साह बढ़ाने वाली बात है कि महाराष्ट्र जैसे राज्य ऐसी नीतियों पर अमल करने के बारे में सोच रहे हैं. हमें एक ऐसी योजना का ख़ाका तैयार करने की ज़रूरत है, जिससे हम इस देशव्यापी लॉकडाउन की मुश्किल से बाहर निकल सकें, क्योंकि इसे लंबे समय तक लागू नहीं रखा जा सकता है.

भारत एक ऐसा देश नहीं बन सकता, जो चमत्कार की उम्मीद में अधर में लटका रहे. क्योंकि कोई चमत्कार नहीं होने जा रहा है, भले ही हम कितनी भी शिद्दत से प्रार्थना करें. जान लेने वाला वायरस किसी चमत्कार से नहीं ख़त्म होता. दुनिया, कोरोना वायरस की महामारी से किसी चमत्कार के भरोसे नहीं निपट रही है. इस पर विजय प्राप्त करने के लिए एक व्यवहारिक और वैज्ञानिक तरीक़े पर अमल करने की आवश्यकता है. तभी हम इस महामारी के मायाजाल से बाहर निकल सकेंगे. चाइनीज़ चेकर्स के खेल में सधे हुए दांव से ही जीत प्राप्त की जा सकती है.

पिछले दो हफ़्तों में तीन बिल्कुल अलग तरह के तुलनात्मक अध्ययन काम आए हैं. संक्रमण के आंकड़ों को देखें, तो स्वास्थ्य व्यवस्था के कमज़ोर बुनियादी ढांचे के बावजूद भारत, दुनिया के अन्य बहुत से देशों की तुलना में कोरोना वायरस की चुनौती से बहुत अच्छे से निपट रहा है. ख़ास तौर से उन यूरोपीय देशों और अमेरिका से तो भारत काफ़ी अच्छी स्थिति में है, जहां की स्वास्थ्य सेवाओं का दुनिया में अब तक डंका बजता रहा था. फिर चाहे संक्रमण की बात हो, अस्पतालों में मरीज़ों की भर्ती का मामला हो, आईसीयू में भीड़ हो या फिर मरने वालों की संख्या ही क्यों न हो.

दूसरी बात ये है कि भारत में केंद्र और राज्य सरकारों ने इस महामारी से निपटने में आपसी सहयोग की शानदार मिसाल पेश की है. (भारत में स्वास्थ्य का विषय राज्यों के अधीन है, इस तथ्य की अक्सर अनदेखी की जाती है और टिप्पणीकार भी इस बात को अनदेखा कर देते हैं.) इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने इस संकट से निपटने के लिए जो क़दम उठाए हैं, उन्हें हर दल ने पूरा समर्थन दिया है. जबकि अन्य लोकतांत्रिक देशों में कोरोना वायरस से निपटने के दौरान तमाम दलों के बीच ज़बरदस्त राजनीतिक संघर्ष देखने को मिल रहा है. और तीसरी बात ये है कि भारत दुनिया की इकलौती बड़ी अर्थव्यवस्था है, जहां पर लॉकडाउन से पूरी अर्थव्यवस्था ठप हो गई है. जहां नौकरियों में कमी आ रही है. उत्पादकता घटी है और सरकार की आमदनी में भी कमी आई है.

हमने ये तो देख लिया कि लॉकडाउन का कितनी कड़ाई से पालन किया गया. लेकिन, नीति का ये जो हथौड़ा देश की जनता पर चला है, उससे राहत के आर्थिक उपाय अब तक नहीं दिखे हैं. भारत के ही नहीं, विदेशों के भी आर्थिक जानकार इस बात पर एकमत हैं कि आज सरकार की ओर से बड़े पैमाने पर निवेश और व्यय बढ़ाने की आवश्यकता है

अगर भारत ने इस महामारी से निपटने के लिए बचाव को ही अपना प्रमुख हथियार बनाया है, तो कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए केवल लॉकडाउन के उपाय के भरोसे नहीं रहा जा सकता. तकनीक और आंकड़ों पर आधारित जानकारी भी चाहिए, जो ये बताए कि देश में कितने बुज़ुर्ग लोग हैं, जो असंक्रामक बीमारियों (NCds) के शिकार हैं. इस जानकारी को जुटाने का व्यापक अभियान चलाने की ज़रूरत है. इसके लिए आधार से लेकर, नगर निगम के आंकड़ों और अस्पताल के डिजिटल डेटा की पड़ताल करके इस बात का पता लगाने की ज़रूरत है कि महामारी से बचने के लिए किन लोगों के घर में रहने की सबसे अधिक आवश्यकता है. और जिन्हें आगे चल कर मदद की ज़रूरत पड़ेगी. इसके अलावा इस बात के भी ठोस आंकड़े जुटाने की ज़रूरत है कि कौन से लोग हैं जो कम प्रतिबंधों वाले, हल्के लॉकडाउन के दौरान काम पर लौट सकते हैं. गांवों और शहरी बस्तियों में रहने वाले उन बुज़ुर्गों का पता लगाने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मियों को काम पर लगाने की ज़रूरत है, जो गंभीर रूप से बीमार हैं. लेकिन, जिनकी बीमारी के बारे में सरकार के पास ठोस जानकारी आंकड़े नहीं हैं. क्योंकि उन लोगों का पता लगाया जाना बहुत आवश्यक है, जिनके स्वास्थ्य और बीमारी के बारे में कोई डिजिटल आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. इन लोगों के बारे में पता लगाए जाने के दौरान नागरिकों की निजता के अधिकारों का भी ध्यान रखना होगा.

हमने ये तो देख लिया कि लॉकडाउन का कितनी कड़ाई से पालन किया गया. लेकिन, नीति का ये जो हथौड़ा देश की जनता पर चला है, उससे राहत के आर्थिक उपाय अब तक नहीं दिखे हैं. भारत के ही नहीं, विदेशों के भी आर्थिक जानकार इस बात पर एकमत हैं कि आज सरकार की ओर से बड़े पैमाने पर निवेश और व्यय बढ़ाने की आवश्यकता है. और जो रक़म ख़र्च की जाए, वो तयशुदा समय पर अपने लक्ष्य हासिल कर ले, ये सुनिश्चित करना भी बहुत ज़रूरी है. इन लक्ष्यों में जीवन यापन के संसाधनों का संरक्षण, सप्लाई चेन नियमित करने में सहयोग के साथ साथ घरेलू स्तर पर मांग बढ़ाने के मुद्दे भी शामिल होने चाहिए, ताकि संपत्तियों का क्षरण नहीं, बल्कि संरक्षण हो. राज्य सरकारों को चाहिए कि वो विशेषज्ञ संस्थानों से संवाद स्थापित करें, ताकि स्थानीय स्तर की चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सके. जो हर नागरिक की व्यक्तिगत और संस्थागत आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके. और ऐसी आर्थिक वृद्धि के लिए सामुदायिक कार्यक्रमों को भी लागू किया जाना चाहिए.

लॉकडाउन के समर्थन में ये तर्क दिया जा सकता है कि आज अर्थव्यवस्था से ज़्यादा ज़रूरी है ज़िंदगियां बचाना. ये तर्क काफ़ी हद तक सही भी है. क्योंकि अर्थव्यवस्था का तो पुनर्निर्माण किया जा सकता है. इस भाव से लॉकडाउन के समर्थन में भारी जनसमर्थन तो जुटाया जा सकता है. ये कहा जा सकता है कि महामारी को पीछे धकेलने के लिए सख़्त उपाय करने की आवश्यकता आज वक़्त की मांग है. लेकिन, इस तर्क से अर्थव्यवस्था को लेकर, जो गंभीर चिंताएं जताई जा रही हैं, उनसे जुड़े तथ्यों की अनदेखी नहीं की जा सकती. क्योंकि ये मामला लोगों की रोज़ी रोटी से जुड़ा है. और अंतत: बात वहीं पर यानी लोगों की ज़िंदगी पर जा ठहरती है, क्योंकि रोज़ी रोटी के बिना ज़िंदगियां नहीं बचाई जा सकती हैं.

इसीलिए हमारा मानना है कि इस लॉकडाउन से बाहर निकलने के उपाय क्रमश: लागू किए जाने चाहिए. और इन्हीं के साथ संदिग्ध लोगों की जांच का दायरा भी लगातार बढ़ाए जाने की ज़रूरत है. रोग की व्यापकता को सीमित करने की नीति बना ली गई है और कई राज्यों में  वायरस के संक्रमण के ‘हॉट स्पॉट’ की पहचान करके इसे लागू भी किया जा रहा है. इस बात पर सर्वसम्मति है कि क्या नहीं किया जाना चाहिए. जैसे कि ट्रेन, बस या हवाई जहाज़ से अंतरराज्यीय यात्रा को अभी शुरू होने नहीं दिया जा सकता.

ऐसे में अब समय की ये मांग है कि क्या किया जा सकता है उस पर सर्वसम्मति बनाई जाए. इस सूची में कृषि से जुड़ी गतिविधियों को तुरंत शुरू करने को प्राथमिकता के आधार पर शामिल किया जाना चाहिए. क्योंकि फसलों की कटाई को अनिश्चित काल के लिए स्थगित नहीं किया जा सकता है. कुछ सूक्ष्म, लघु, छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों को भी पुन: प्रारंभ किए जाने की ज़रूरत है. ताकि नौकरियों और आमदनी पर पड़े बुरे प्रभाव को कम किया जा सके. इसके साथ साथ, अभी रुकी हुई कुछ मूलभूत आर्थिक गतिविधियों को भी आरंभ किया जा सकता है. जैसे कि आपूर्ति श्रृंखला में आई बाधाओं को दूर किया जाना और खुदरा व्यापार को शुरू किया जाना. ताकि ज़रूरी सामान को लेकर आने वाले समय में उत्पन्न होने वाले संकट को टाला जा सके. साथ ही साथ सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन भी होते रहना चाहिए. अगले चरण में अन्य गतिविधियों जैसे कि निर्माण कार्य और कुछ वाणिज्यिक एवं व्यापारिक उद्यमों को खोलने के विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए. इसके बाद उद्योंगों को बेहद सख़्त नियमों के साथ अपने काम दोबारा शुरू करने चाहिए. इससे सभी लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी.

अगर, पूरे भारत में लॉकडाउन को लागू करने की चुनौती बहुत बड़ी थी, तो भारत में सामान्य गतिविधियों का दोबारा संचालन शुरू करना भी बहुत बड़ा चैलेंज है. लेकिन, भारत में आर्थिक गतिविधियों को किसी भी सूरत में इतने लंबे समय तक पूरी तरह से बंद नहीं रखा जा सकता जिससे कि अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही टूट जाए. ज़िंदगियां बचाना अहम है. इसमें कोई दो राय नहीं. लेकिन, अर्थव्यवस्था को भी बचाना ज़रूरी है. हमें अपने आपको ऐसी मुश्किल में डालने से बचना चाहिए जिसमें हम झूठे विकल्प अपनाने को मजबूर हो जाएं.

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