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नई दिल्ली इस सम्भावना से खुश होगी कि डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस-दोनों ही चीन के खिलाफ अमेरिकी सख्त रुख को बरकरार रखेंगे.
अमेरिकी चुनावों में अब लगभग दो सप्ताह का समय बचा है. सभी विश्लेषक इस पर एकमत हैं कि इस बार कांटे का मुकाबला है और नतीजों की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. इसका यह भी अर्थ है कि अमेरिका की नीतियां क्या होंगी, इस पर सवालिया निशान लगे हैं. दोनों मुख्य उम्मीदवारों- डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस के बीच गर्भपात, टैरिफ, आर्थिक नीति और यूक्रेन जैसे कई मुद्दों पर मतभेद हैं.
लेकिन एक क्षेत्र ऐसा है, जिसमें भावी राष्ट्रपति की नीति में बहुत कम अंतर होगा, फिर चाहे वह रिपब्लिकन हो या डेमोक्रेट. यह चीन के प्रति अमेरिकी नीति है, जिस पर दोनों दलों की एक राय है. अमेरिकियों में चीन की औद्योगिक नीति के खिलाफ शिकायतें हैं, जिसने उनसे नौकरियां छीन ली हैं.
वे बीजिंग के पक्ष में असंतुलित ट्रेड को लेकर भी नाराज हैं और चीन के द्वारा बौद्धिक संपदा की चोरी के आरोपों पर भी. चीन द्वारा फेंटानिल दवा बनाने में प्रयुक्त होने वाले रसायनों के उत्पादक और निर्यातक के रूप में निभाई जाने वाली भूमिका पर भी खासा गुस्सा है, जिससे अमेरिका में नशे की लत एक विनाशकारी महामारी की तरह फैल गई है.
नीतिगत रूप से तीन प्रमुख क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें अमेरिका और चीन के बीच मतभेद जारी रहेंगे- ट्रेड, टेक्नोलॉजी और ताइवान.
नीतिगत रूप से तीन प्रमुख क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें अमेरिका और चीन के बीच मतभेद जारी रहेंगे- ट्रेड, टेक्नोलॉजी और ताइवान. चीन का मैन्युफैक्चरिंग दमखम उसके निर्यात को बढ़ावा दे रहा है, जिससे अमेरिका में लोगों से नौकरियां छिन रही हैं.
ट्रम्प चाहते हैं कि अमेरिका में आने वाले सभी चीनी उत्पादों पर 60 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया जाए. यही कारण है कि चीन अब अमेरिका में अपना सामान भेजने के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया, मैक्सिको, यूरोप के देशों का इस्तेमाल कर रहा है.
ना तो ट्रम्प और ना ही कमला, टेक्नोलॉजी- विशेष रूप से उन्नत सेमीकंडक्टर्स के चीन को निर्यात पर लगे नियंत्रण को हटाने वाले हैं. उलटे इस बात की पूरी संभावना है कि प्रतिबंधित टेक्नोलॉजी की सूची में एआई और क्वांटम कम्प्यूटिंग से संबंधित उत्पादों को भी शामिल किया जाएगा.
चीन द्वारा फेंटानिल दवा बनाने में प्रयुक्त होने वाले रसायनों के उत्पादक और निर्यातक के रूप में निभाई जाने वाली भूमिका पर भी खासा गुस्सा है, जिससे अमेरिका में नशे की लत एक विनाशकारी महामारी की तरह फैल गई है.
ताइवान का मुद्दा भी खासा महत्वपूर्ण है. कई अमेरिकी सैन्य अधिकारी भविष्यवाणी कर रहे हैं कि चीन 2027 तक ताइवान पर आक्रमण करने की योजना बना रहा है. चीन को रोकना एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि ऐसे किसी भी हमले की स्थिति में अमेरिका ताइवान की मदद के लिए मजबूर होगा, जिससे दोनों महाशक्तियों के बीच एक बड़ा और विनाशकारी संघर्ष हो सकता है.
पूरी दुनिया पर उसका असर होगा. अभी तक अमेरिका ताइवान को हथियारों की बिक्री बढ़ाकर चीन को रोकने की कोशिश कर रहा है, साथ ही वह बीजिंग को यह भरोसा भी दिला रहा है कि ‘वन-चाइना’ के विचार को लेकर अमेरिकी नीति में कोई बदलाव नहीं आया है.
दक्षिण चीन सागर में चीनी नीति को लेकर भी दोनों देशों के बीच मतभेद हैं, जहां चीन अब और आक्रामक हो गया है. चीन के तटरक्षक जहाज फिलीपींस के जहाजों को टक्कर मार कर उन्हें नुकसान पहुंचा रहे हैं. हाल के वर्षों में, अमेरिका ने फिलीपींस के साथ अपने सैन्य गठबंधन को मजबूत किया है और इसके परिणामस्वरूप अमेरिका को ताइवान के नजदीकी द्वीपों में कई ठिकानों तक पहुंच मिल गई है.
अप्रैल में दोनों देशों ने फिलीपींस के जलक्षेत्र के बाहर अपना पहला सैन्य-अभ्यास किया, जिसमें सैनिकों ने चीन और दक्षिण चीन सागर के सामने के क्षेत्रों में दुश्मन के कब्जे वाले इलाकों को वापस लेने की चेष्टा की. चीनी प्रवक्ता ने इसकी आलोचना करते हुए चेतावनी दी कि बाहरी ताकतें फिलीपींस की सुरक्षा नहीं बढ़ा सकेंगी.
नवम्बर में होने वाले अमेरिकी चुनाव परिणामों पर भारत की पैनी नजर होगी. नई दिल्ली इस सम्भावना से खुश होगी कि दोनों उम्मीदवार चीन के खिलाफ अमेरिकी सख्त रुख को बरकरार रखेंगे. भारत की इंडो-पैसिफिक नीति अमेरिका व अन्य क्वाड सहयोगियों के साथ आम सहमति पर आधारित है.
पिछले महीने, क्वाड नेताओं के शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि स्वतंत्र, खुला, समावेशी और समृद्ध इंडो-पैसिफिक क्षेत्र इस समूह की प्राथमिकता है. यकीनन, वे यहां चीन की ओर इशारा कर रहे थे. चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी सम्प्रभुता का दावा करता है और हाल के दिनों में भारत ने इस क्षेत्र में अपनी कूटनीति को आगे बढ़ाया है.
इस वर्ष भारत ने फिलीपींस के साथ नौसैनिक अभ्यास भी किया है. वहीं पिछले महीने की शुरुआत में मोदी ब्रुनेई की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री भी बने. ब्रुनेई भी एक ऐसा देश है, जिसका दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा है.
नवम्बर में होने वाले अमेरिकी चुनाव परिणामों पर भारत की पैनी नजर होगी. नई दिल्ली इस सम्भावना से खुश होगी कि डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस-दोनों ही चीन के खिलाफ अमेरिकी सख्त रुख को बरकरार रखेंगे.
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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...
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