ये लेख रायसीना एडिट 2022 श्रृंखला का हिस्सा है.
इतिहास के लिए ये एक महत्वपूर्ण क्षण है और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त इसके केंद्र में होना चाहिए. कोविड-19 महामारी के बाद एक मज़बूत एवं टिकाऊ आर्थिक बहाली और बेहतर निर्माण करने की न सिर्फ़ ज़रूरत है बल्कि अवसर भी है. नेट-ज़ीरो (शून्य उत्सर्जन), टिकाऊ, समावेशी और समृद्ध भविष्य की ओर बदलाव को तेज़ करने के लिए कायापलट की भी सख़्त ज़रूरत है. इन सबके बीच हम एक ऊर्जा संकट का सामना कर रहे हैं जो जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से दूर भागने की ज़रूरत के बारे में बताता है.
जब बात जलवायु परिवर्तन के बहुत बड़े काम का सामना करने की आती है तो देरी होने का सिर्फ़ ये आसान सा मतलब नहीं होता कि एक वांछित परिणाम को टाल दिया गया है या लक्ष्य बाद में हासिल होंगे. ये अब पूरी तरह से ख़तरनाक है.
ये अतीत के मुक़ाबले विकास की नई और अलग कहानी है. अतीत में विकास के लक्ष्यों को आकांक्षापूर्ण माना जाता था क्योंकि मुख्य प्राथमिकता विकास की दिशा को समझा जाता था. अब पहले से अलग ये है कि ज़रूरत के मुताबिक़ ताक़त लगाकर तुरंत और सामूहिक क़दम उठाने का गंभीर दबाव है. जब बात जलवायु परिवर्तन के बहुत बड़े काम का सामना करने की आती है तो देरी होने का सिर्फ़ ये आसान सा मतलब नहीं होता कि एक वांछित परिणाम को टाल दिया गया है या लक्ष्य बाद में हासिल होंगे. ये अब पूरी तरह से ख़तरनाक है. 2 डिग्री सेल्सियस तापमान तक पहुंचने या उससे आगे बढ़ने का नतीजा विनाशकारी हो सकता है. दुनिया भर के करोड़ों नहीं बल्कि अरबों लोगों के जीवन और आजीविका के अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो जाएगा. अब हम इस बात को समझ रहे हैं कि 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य समझदारी भरा है.
कम होते अवसर के बीच इस महत्वपूर्ण एजेंडे पर प्रदर्शन करने के लिए असाधारण स्तर पर ज़ोर लगाने और काफ़ी पैसे की ज़रूरत होगी. लेकिन इस पैसे को हर हाल में एक निवेश की तरह देखा जाना चाहिए, न कि लागत की तरह. जितना ज़्यादा मेलजोल भरा, शुरुआत में ज़्यादा और तेज़ी के साथ हमारा काम होगा उतनी कम उसकी लागत होगी.
जलवायु को लेकर क़दम उठाने के मामले में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिए 2020 तक प्रति वर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने में विकसित देशों की प्रतिबद्धता भरोसे और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के द्वारा जलवायु पर आगे बढ़ने की बुनियाद का एक बेहद महत्वपूर्ण संकेत है.
सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि इससे विकास का ज़्यादा आकर्षक रूप बनेगा जो कि अतीत में विकास के लिए गंदे और विनाशकारी रास्ते से काफ़ी बेहतर होगा. वास्तव में अब से सभी निवेश टिकाऊ होने चाहिए और ये विकास, जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को कम करने और अनुकूलता के लिए काम करे. विकासशील देशों के लिए इसका मतलब है जलवायु परिवर्तन के लिए लचीलेपन को सुनिश्चित करना जिससे कि अब परहेज नहीं किया जा सकता है. इसका मतलब गंदे चरणों को फांदकर अवसरों को काम में लाना भी है जिसका पालन ज़्यादातर विकसित देश करते हैं, ख़ास तौर से तब जब बात उनके आर्थिक मॉडल एवं रास्तों को स्पष्ट करने और उनके भौतिक आधारभूत ढांचों को बनाने की आती है ताकि वो नवीकरणीय स्रोतों के ज़रिए ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता को पूरा कर सकें. बड़े बदलाव के दौर में एक न्यायसंगत परिवर्तन को सुनिश्चित करने के लिए काम करना स्पष्ट प्राथमिकता होनी चाहिए.
जी20 नेतृत्व और जलवायु पर क़दम
कुल मिलाकर उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (चीन को छोड़कर) के लिए जिस पैमाने के निवेश की ज़रूरत है, वो 2025 तक 800 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष और 2030 तक क़रीब 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है. इस निवेश के बिना हम सतत विकास लक्ष्यों की तरफ़ मज़बूत विकास की प्रगति को नहीं देखेंगे और जिस रफ़्तार से हमें उत्सर्जन को कम करना है, वो करने में सक्षम नहीं होंगे. ये निवेश विकास के लिए है और इसे टिकाऊ और कम कार्बन वाला बनाने के लिए जो अतिरिक्त लागत चाहिए वो कम है.
अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त में महत्वपूर्ण पैमाने की ज़रूरत के लिए स्पष्टता के साथ इस निवेश को हर हाल में बढ़ावा मिलना चाहिए और इसका इंतज़ाम किया जाना चाहिए. इस संदर्भ में जलवायु को लेकर क़दम उठाने के मामले में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिए 2020 तक प्रति वर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने में विकसित देशों की प्रतिबद्धता भरोसे और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के द्वारा जलवायु पर आगे बढ़ने की बुनियाद का एक बेहद महत्वपूर्ण संकेत है.
अलग-अलग देशों के मंच में उपयोगी निवेश और उनके वित्त के लिए योजनाएं और शर्त शामिल हैं जिनके भीतर निवेशक फ़ैसला ले सकते हैं. केवल छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटने की प्रक्रिया या बाज़ार की शक्तियों पर निर्भर रहने से आवश्यकता पूरी नहीं हो पाएगी और इस हालत में अलग-अलग देशों के मंच वास्तविक अंतर पैदा कर सकते हैं.
लेकिन ज़रूरी निवेश का पैमाना साफ़ तौर पर दिखाता है कि विकसित देशों को हर हाल में तीन महत्वपूर्ण रास्तों के ज़रिए इस प्रतिबद्धता से आगे जाना चाहिए: महत्वाकांक्षा बढ़ाने के लिए ज़रूरी जलवायु वित्त का वादा पूरा करना; साधारण रूप से कुल संख्या पर ध्यान देने के बदले वित्त के अलग-अलग हिस्सों की अतिरिक्त मज़बूती का इस्तेमाल करना; और ठोस नतीजा देने के लिए ज़रूरी साझेदारी का निर्माण करना.
इसे सिर्फ़ मज़बूत सर्वसम्मति और जी20 के नेतृत्व के साथ हासिल किया जा सकता है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में ज़रूरी परिवर्तन के साथ एजेंडा को सहयोगपूर्ण और व्यापक होने की ज़रूरत होगी.
जलवायु वित्त की मौजूदा स्थिति
वैसे तो 2013 से द्विपक्षीय और बहुपक्षीय- दोनों तरह के सार्वजनिक वित्त के प्रवाह में प्रगति दर्ज की गई है लेकिन विकसित देशों की तरफ़ से जलवायु वित्त का प्रवाह 2019 के 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष के लक्ष्य से क़रीब 20 अरब अमेरिकी डॉलर कम था. कॉप26 में कनाडा के प्राकृतिक संसाधन मंत्री जोनाथन विल्किंसन और जर्मनी के पर्यावरण मंत्रालय में सचिव जोचेन फ्लैसबार्थ के द्वारा तैयार जलवायु वित्त मूल्यांकन और सुपुर्दगी योजना में पाया गया कि दान देने वाले देश सामूहिक रूप से 2020 के लक्ष्य से पीछे रह गए लेकिन द्विपक्षीय दाताओं और बहुपक्षीय संस्थानों के द्वारा जलवायु वित्त की प्रतिबद्धता के व्यापक आकलन के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया कि 2023 तक ये लक्ष्य पूरा होने की उम्मीद है और उसके बाद इसमें बढ़ोतरी भी होगी.
रक़म के अलावा हम सार्वजनिक जलवायु वित्त की गुणवत्ता में भी पीछे रह गए हैं. लगातार कमियों में इसका कमज़ोर अनुमान, अनुकूलता पर अपर्याप्त ध्यान एवं कमज़ोर देश, अनुदान का कम हिस्सा और जलवायु वित्त तक पहुंचने में कठिनाई शामिल हैं, ख़ास तौर से ग़रीब और कमज़ोर देशों में. इन मुद्दों का भी समाधान करने की ज़रूरत होगी.
एक नया वित्तीय एजेंडा
निवेश तथा इनोवेशन को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन और एक सतत आर्थिक बहाली को बढ़ावा देने एवं नेट-ज़ीरो के रास्ते के लिए वित्त की भूमिका केंद्रीय होगी. सार्वजनिक वित्त को इसका नेतृत्व करना चाहिए जिसमें वित्तीय रवैये समेत वृहत आर्थिक रूप-रेखा निवेश में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी का सामंजस्य करे. लेकिन जलवायु संकट की मांग को पूरा करने के लिए सिर्फ़ सार्वजनिक वित्त पर्याप्त नहीं होगा. इसके लिए पूरी वित्तीय प्रणाली को तैयार करना होगा, उसमें बदलाव करना होगा. हमें हर हाल में ये मानना चाहिए कि कई देश, ख़ास तौर पर ग़रीब देश, गंभीर राजकोषीय परेशानी का सामना कर रहे हैं.
सार्वजनिक वित्त पोषित अरबों डॉलर के जलवायु निवेश को निजी वित्त कुल मिलाकर ट्रिलियन डॉलर के जलवायु निवेश में बदलाव करने में मदद कर सकते हैं. लेकिन आज के समय में निजी पूंजी जुटाने का काम बेहद कम होता है. इसे बढ़ाने के लिए उभरते निजी सेक्टर के गठबंधनों जैसे कि नेट-ज़ीरो के लिए ग्लासगो वित्तीय गठबंधन और आधिकारिक सेक्टर के बीच ज़्यादा साझेदारी की ज़रूरत है.
अब इस बात को लेकर सर्वसम्मति बन रही है कि अलग-अलग देशों के मंच निवेश के कार्यक्रमों और उनके वित्त पोषण को तेज़ करने में बुनियाद का काम कर सकते हैं. अलग-अलग देशों के मंच में उपयोगी निवेश और उनके वित्त के लिए योजनाएं और शर्त शामिल हैं जिनके भीतर निवेशक फ़ैसला ले सकते हैं. केवल छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटने की प्रक्रिया या बाज़ार की शक्तियों पर निर्भर रहने से आवश्यकता पूरी नहीं हो पाएगी और इस हालत में अलग-अलग देशों के मंच वास्तविक अंतर पैदा कर सकते हैं. इन्हें अलग-अलग देशों के राष्ट्रीय निर्धारित योगदान और दीर्घकालीन रणनीतियों, दृष्टिकोण एवं नीतिगत रूप-रेखा के इर्द-गिर्द बनाना चाहिए और कई वर्षों की स्थायी व्यवस्था के लिए इसमें जगह होनी चाहिए जो पैमाने और ज़रूरत से जुड़ी हों. वो देश के स्तर पर जुड़ने में सार्वजनिक और निजी वित्त में प्रमुख किरदारों के लिए अवसर भी पैदा करते हैं
बहुपक्षीय विकास बैंकों को निजी वित्त जुटाने में मदद के लिए अपनी भूमिका ज़रूर बढ़ानी चाहिए. इसके लिए प्रतिकूल निजी फंड जुटाने के मंच, परियोजना विकास समर्थन और जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को कम करने वाले बेहतर औज़ार और प्रोत्साहन संरचना चाहिए.
पृथ्वी के भविष्य के लिए अगला दशक महत्वपूर्ण साबित होगा. हमें मज़बूत क़दम अभी उठाना होगा ताकि सभी लक्ष्यों को पूरा किया जा सके और सतत विकास के लिए एक सकारात्मक और नई ख़बर पहुंचाई जा सके. वित्तीय प्रणाली के अलग-अलग हिस्सों को जुटाने की ज़रूरत होगी और जोखिम लेना होगा ताकि वो असर डालने और देखभाल करने के लिए सबसे उपयुक्त हों. इसके तहत उपयोग नहीं किए गए विशेष आहरण अधिकार; निजी दानकर्ताओं से मज़बूत योगदान; और स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार का इस्तेमाल शामिल हैं.
निवेश और वित्त पर जी20 का समझौता
इस एजेंडे पर वादे को पूरा करने के लिए बदलावों का समन्वय करना होगा और वित्त के अलग-अलग स्रोतों को एकजुट करना होगा. इस काम में जी20 का नेतृत्व असरदार हो सकता है.
आवश्यक संसाधनों में से क़रीब आधा घरेलू स्तर पर मिल सकता है. इसके लिए बेहतर घरेलू संसाधन को जुटाना होगा जिसके लिए कर एवं सब्सिडी सुधार और कार्बन मूल्य निर्धारण पर ध्यान देना होगा. न्यूनतम कर सीमा, कर बचाव एवं लाभ साझा करने, और कर राजस्व के समान रूप से साझा करने को लेकर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से राष्ट्रीय कोशिशों को बढ़ावा मिल सकता है. अक्टूबर 2021 में जी20 के द्वारा वैश्विक कर समझौते की अभूतपूर्व उपलब्धि महत्वाकांक्षा के पैमाने को विशेष रूप से दिखाती है जिसकी उम्मीद उस दिशा में सुधार शुरू करने में हो सकती है. घरेलू पूंजी बाज़ार घरेलू वित्त का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा और यहां भी प्रगति की आवश्यकता होगी.
जी20 इस एजेंडे का नेतृत्व करने में मज़बूती से खड़ा है और इसने 2015 से ये किया भी है जब जी20 ने वित्तीय स्थिरता बोर्ड को जलवायु जोख़िम पर विचार करने के लिए कहा और उस वक़्त से सतत वित्त कार्यकारी समूह की शुरुआत की गई जो आज भी सक्रिय बना हुआ है.
अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त को भी बढ़ाना चाहिए जिसमें बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) की भूमिका केंद्र में होगी. जुलाई 2021 में एमडीबी की पूंजी पर्याप्तता की समीक्षा करने के लिए जी20 आयोग का गठन ज़्यादा असर को हासिल करने में इन शक्तिशाली किरदारों को आगे बढ़ाने में इनोवेशन के लिए एक उपजाऊ जगह के तौर पर काम कर सकता है.
महामारी की वजह से सरकारों की कमज़ोर बैलेंस शीट को देखते हुए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय- दोनों प्रकार के निजी वित्त को आने वाले दिनों में ज़्यादा बड़ी भूमिका अदा करनी चाहिए. इसके लिए वित्तीय प्रणाली को वित्त पोषण और असली अर्थव्यवस्था के कायापलट में समर्थन की तरफ़ बदलना होगा. इसमें बदलाव और वित्त जुटाने के लिए कई तरह के उपायों की ज़रूरत है. जी20 इस एजेंडे का नेतृत्व करने में मज़बूती से खड़ा है और इसने 2015 से ये किया भी है जब जी20 ने वित्तीय स्थिरता बोर्ड को जलवायु जोख़िम पर विचार करने के लिए कहा और उस वक़्त से सतत वित्त कार्यकारी समूह की शुरुआत की गई जो आज भी सक्रिय बना हुआ है.
आगे की तरफ़ देखें तो आर्थिक समृद्धि के वादे को पूरा करने के लिए वित्तीय प्रणाली को सतत विकास से जोड़ना होगा. तभी ऐसी आर्थिक समृद्धि आ पाएगी जो पेरिस सम्मेलन के 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे या 1.5 डिग्री सेल्सियस से भी बेहतर लक्ष्य के अनुकूल होगी. इस काम में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, राष्ट्रीय नीति-निर्माताओं और रेटिंग एजेंसी, स्टॉक एक्सचेंज एवं निवेशक समेत निजी क्षेत्रों के नियामकों को मिलाकर वित्तीय प्रणाली के सभी किरदारों को शामिल करने की ज़रूरत पड़ेगी. जी20 के काम-काज ने महत्वपूर्ण गति पैदा की है. ये महत्वपूर्ण है कि इससे एजेंडा आगे बढ़ता रहे और इसे मज़बूती दी जाए.
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