Published on May 18, 2019 Updated 0 Hours ago

साफ़ है कि हमें खाद्य की आपूर्ति में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है. चाहे वह फसल हो, मांस हो या मछली. इसके प्रभाव से लाखों छोटे और लघु किसानों की आय पर प्रभाव पड़ने की संभावना है.

क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर: हम इसके लिए स्मार्ट कैसे बनें?

खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में दुनिया काफी आगे आ चुकी है. हालांकि, पहले किया हुआ सारा अच्छा काम जलवायु परिवर्तन के खतरे के कारण कभी भी बिगड़ सकता है. सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) 1 और 2 एक ऐसी दुनिया का सपना देखते हैं जहां कोई गरीबी नहीं हो, जहां कोई भूख नहीं हो. भोजन की मांग को पूरा करने के लिए 2006 की तुलना में 2030 तक खाद्य आपूर्ति को 60 प्रतिशत तक बढ़ाना पड़ेगा. [i] भोजन की अनुमानित मांग को पूरा करने के लिए हम लोगों को बढ़ी हुई उपज की जरूरत होगी, जबकि हो सकता है कि प्रति एकड़ उपज को ज्यादा बढ़ाना मुमकिन ही न हों.

परन्तु, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) या सरकारों के जलवायु परिवर्तन के लिए बने पैनल के अनुसार, साल 2050 [ii] तक हमें उपज में 10-25 प्रतिशत तक की कमी देखने को मिल सकती है. इसकी पूरी दुनिया की खाद्य उपलब्धता पर भारी प्रभाव होगा. इस बात में कोई संदेह ही नहीं है कि पूरी दुनिया की खाद्य उपलब्धता इससे प्रभावित होगी. जलवायु परिवर्तन के कारण पशुधन के क्षेत्र में भी उत्पादकता, भोजन और चारे की उपज में और जंतुओं की सेहत में गिरावट होगी. पौधों पर आधारित और जंतुओं पर आधारित बीमारियों का फैलाव बढ़ जाने की भी संभावना होगी. समुद्रों पर निर्भर समुदायों को भी जीविकोपार्जन में अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा. यह अनुमान लगाया गया है कि बढ़ते हुए तापमान के कारण 2050 तक मछलियों की प्रजाति को पकड़ने में 40 प्रतिशत तक की कमी आ जाएगी. [iii]

साफ़ है कि हमें खाद्य की आपूर्ति में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है. चाहे वह फसल हो, मांस हो या मछली. इसके प्रभाव से लाखों छोटे और लघु किसानों की आय पर प्रभाव पड़ने की संभावना है. छोटे और लघु किसानों की आय पर प्रभाव पड़ने से गरीबी के स्तर में भी वृद्धि हो सकती है. फूड और एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (खाद्य और कृषि संगठन) ने अनुमान लगाया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हमें 122 मिलियन लोग गहन गरीबी में देखने को मिल सकते हैं. [iv] भारत के आर्थिक सर्वेक्षण ने खेती की आय में कमी होने की बात को दोहराया है. [v] इसका नतीजा यह होगा कि उपभोक्ता की क्रय शक्ति कम होगी और भोजन के लोगों तक पहुंचने में समझौता करना पड़ेगा. साथ ही, हमें पोषण में गिरावट भी देखने को मिल सकती है, क्योंकि भोजन तक पहुँच सीमित हो जाएगी. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मांग और आपूर्ति दोनों पर महसूस किए जाएंगे. इसलिए, भविष्य के लिए अपने को तैयार करने के लिए हमें तुरंत कदम उठाने की जरूरत है.

क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर (सीएसए) आख़िर है क्या? मोटे तौर पर कहें तो, सीएसए तीन आपस में जुड़ी हुई चुनौतियों से निबटने की कोशिश करती है: उत्पादकता और आय बढ़ाना, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होना और जलवायु परिवर्तन को कम करने में योगदान देना. इसका अर्थ है कि हमें खेतों में डाली जाने चीजों को लेकर ज्यादा योग्य होना होगा. उदाहरण के लिए सिंचाई को ही लें — जल के उचित इस्तेमाल के लिए माइक्रो-इरिगेशन को लोकप्रिय बनाना होगा. भारत में, फसल के बाद होने वाले 92,000 करोड़ रुपये (रु.920 बिलियन) सालाना तक के नुकसान को एक प्रभावी कोल्ड चेन विकसित करके कम किया जा सकता है.

जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होना यह दर्शाता है कि खेतों को जलवायु परिवर्तन को झेलने लायक बनाना होगा. यानि, जब हम सीएसए की पहल को डिज़ाइन कर रहे होते हैं तो सीएसए ‘एक-साइज़-सबके-लिए-फिट’ वाला नहीं होता है. इसलिए, मुख्यधारा की सीएसए के लिए पहले हमें प्रमाणों के आधार को विस्तृत करता होगा. जैसे — उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन के अनुमानित प्रभावों से कृषि क्षेत्र में ख़ासतौर से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों की पहचान करनी होगी. इसी तरह से, उतना ही महत्वपूर्ण है नीतियों का ऐसा माहौल बनाना जो स्थानीय और राष्ट्रीय संस्थानों को मजबूत करे. सीएसए को विभिन्न प्रकार के आर्थिक अपकरणों का भी पीछे से सहयोग होना चाहिए.

खेतों के स्तर तक प्रभावी पहुँच, विस्तार और तकनीकी सहायता शायद सबसे जरूरी लिंक है. सीएसए के तरीकों को अपनाने के लिए किसानों को उनकी भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप तकनीकी और आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने की ज़रूरत है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी बेहद महत्वपूर्ण है. योजनाओं को लागू करने के लिए निजी क्षेत्र को भी साझीदार बनाया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, वूना (अनेक पूर्वी और दक्षिण अफ़्रीकी भाषाओं में फसल) कार्यक्रम, जिसे एडम स्मिथ इंटरनेशनल द्वारा लागू किया जाता है और यूके के अंतर्राष्ट्रीय विकास के विभाग (डीएफआईडी) द्वारा वित्तीय सहयोग दिया जाता है, निजी क्षेत्र की कंपनियों को मुख्यधारा सीएसए में साझीदार बना रहा है. ऐसे प्रोजेक्ट को और आगे बढ़ाने की जरूरत है ताकि पूरी तरह से सस्टेनेबल (संवहनीय) खेती की तरफ जाया जा सके. इसके अलावा, इन प्रोजेक्ट को सेवाओं की प्रभावी आपूर्ति के लिए वर्तमान सरकारी योजनाओं के साथ मिला कर काम करना होगा.

देश के स्तर पर चलाए जा रहे कार्यक्रम को भी वैश्विक स्तर पर ले जाना होगा. उदाहरण के लिए ज़ीरो बजट खेती को भारत में कुछ बढ़ावा मिल रहा है. यह एक इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (समेकित कृषि प्रणाली) है जो रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक से दूर रह कर स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री का समर्थन करती है. बुनियादी रूप से सस्टेनेबल प्रकृति की होने के कारण यह तरीका खेतों की जलवायु परिवर्तन को झेलने की क्षमता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन को कम करने में काफी कारगर है. अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां — इससे जुड़े दस्तावेज तैयार करने और संभावित रूप से अपनाने और पूरी दुनिया में इस तरीके को दोहराने के लिए पायलट प्रोजेक्ट पर ध्यान दे सकती हैं. फ्रांस ने भी, कृषि के भविष्य पर कानून पास किया है, [vi] जिसका लक्ष्य अलग ढंग से विकसित करना, शोध करना और सिखाना है. इस अनुभव से सीखे हुए सबक को वैश्विक स्तर पर बढ़िया तरीके से दोहराया जा सकता है. एक बार फिर, अंतर्राष्ट्रीय संगठन जानकारी साझा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गंभीर होंगे. इनको कम करने की रणनीति में वैश्विक साझीदारी और जानकारी को साझा करना सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ हैं. सीएसए को अपनाने के लिए नीतियों और कार्य योजना के प्रचार के लिए ग्लोबल एलायंस फॉर क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर या क्लाइमेट स्मार्ट कृषि के लिए वैश्विक गठबंधन (जीए-सीएसए) की ख़ास भूमिका होगी. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पता लगाने को, ख़ासतौर पर क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय स्तर पर, काफी बढ़ावा देना होगा. अंतर्राष्ट्रीय अकादमिक समुदाय को इस काम को पूरा करने के लिए पर्याप्त अनुदान दे कर सहयोग करना होगा. इसके साथ, किसानों को तकनीकी और आर्थिक सहयोग दिया जाना ज़रूरी है ताकि, वे जलवायु परिवर्तन को झेल जाने वाले और योग्य खेत बना सकें, यह शायद सबसे ख़ास लिंक है.

बहुदिशीय कर्ज देने वाले संस्थान, जैसे विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) राशि को दिशा देने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे. डीएफआईडी और यूएसएआईडी जैसी विकास एजेंसी को सरकारों, नागरिक संस्थाओं और निजी क्षेत्र के साथ मिल कर काम करना होगा, ताकि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल रणनीतियों को खेतों के स्तर तक पहुंचाया जा सके.


[i] Alexandratos, N. and Bruinsma, J., 2012. World Agriculture towards 2030/2050, The 2012 Revision FAO, http://www.fao.org/docrep/016/ap106e/ap106e.pdf

[ii] IPCC, 2014. http://www.ipcc.ch/pdf/assessment-report/ar5/wg2/WGIIAR5-Chap7_FINAL.pdf

[iii] IPCC, 2014. http://www.ipcc.ch/pdf/assessment-report/ ar5/wg2/WGIIAR5-Chap7_FINAL.pdf

[iv] FAO, 2017 http://www.fao.org/3/a-i7175e.pdf

[v] Economic Survey 2017-18.

[vi] https://www.gouvernement.fr/en/law-on-the-future-of-agriculture-major-advances-for-farmers-and-citizens

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