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Published on Nov 26, 2024 Updated 1 Days ago

राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप के अगले कार्यकाल के दौरान चीन को लेकर 2017 में शुरू सख्त रवैया और उग्र होने के साथ-साथ इसे संस्थागत रूप दिया जाना तय है. 

चीन पर ट्रंप का रुख: सख्ती की दिशा में एक और कदम

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ये लेख "#Trump 2.0, "एजेंडे की बहाली: ट्रंप की वापसी और दुनिया पर इसका असर" सीरीज़ का हिस्सा है. 


नवंबर के महीने में अमेरिका के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद तालमेल चीन का मंत्र बन गया है. अपने बधाई संदेश में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस बात पर ज़ोर दिया कि चीन और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों के इतिहास के दौरान टकराव से जहां दोनों देशों को नुकसान हुआ है, वहीं सहयोग से फायदा मिला है. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि दोनों देशों को इस नए युग में आगे बढ़ने के लिए सही रास्ता तलाश करना होगा. शी के बयान ने चीन और अमेरिका के साथ मिलकर चलने में नाकाम रहने की स्थिति में आशंका और छिपी हुई धमकी को दिखाया. साथ ही ये भी बताया कि इससे पूरी मानवता को नुकसान होगा. उनकी चिंताएं ठोस बुनियाद पर आधारित हैं. अमेरिका की सरकार तेज़ी से इस बात को स्वीकार कर रही है कि चीन के साथ लाभदायक संबंध का चीन को दोगुना फायदा मिला है. 

अमेरिका की सरकार तेज़ी से इस बात को स्वीकार कर रही है कि चीन के साथ लाभदायक संबंध का चीन को दोगुना फायदा मिला है. 

मुश्किल रिश्तों का इतिहास

1979 में अमेरिका-चीन के बीच सामान्य संबंध होने का उद्देश्य चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत करना था. इसके पीछे ये उम्मीद लगाई गई थी कि इससे अंततः चीन की अधिनायकवादी कम्युनिस्ट सत्ता उखड़कर लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त होगा. इस दृष्टिकोण ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में चीन के प्रवेश को भी निर्देशित किया. लेकिन ये उम्मीदें भ्रामक साबित हुईं. WTO में शामिल होकर चीन ने महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ हासिल किया लेकिन आर्थिक उदारीकरण का विस्तार राजनीतिक क्षेत्र में नहीं हुआ. इससे भी ख़राब बात ये थी कि चीन ने मुक्त व्यापार की कमियों का फायदा उठाया, करेंसी के हेरफेर में शामिल रहा, बौद्धिक संपदा की चोरी की और जबरन तकनीक का ट्रांसफर कराया. इसके साथ-साथ चीन ने सरकारी सब्सिडी की आक्रामक औद्योगिक नीति अपनाई जिसने अमेरिकी उत्पादन को कमज़ोर कर दिया.

2017 में अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप यथार्थवादी दृष्टिकोण से चीन को देखने वाले पहले राष्ट्रपति बने. महत्वपूर्ण मोड़ उस समय आया जब शी ने 'मेड इन चाइना 2025' योजना का ऐलान किया जिसका उद्देश्य रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और बायोटेक्नोलॉजी जैसे उभरते क्षेत्रों में दबदबा कायम करना है. सैन्य क्षेत्र में शी की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) का बड़े स्तर पर पुनर्गठन हुआ और PLA ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों पर एंटी-एयरक्राफ्ट और एंटी-शिप मिसाइल स्थापित की. इस तरह चीन अपने उस सार्वजनिक वादे से मुकर गया कि इस क्षेत्र का सैन्यीकरण नहीं करेगा. इस उकसावे वाली कार्रवाई से पहले चीन ने सेनकाकू द्वीप पर मुखरता से अपना दावा किया. ये द्वीप जापान के नियंत्रण में है और अमेरिकी संधि के ज़रिए इसकी रक्षा की जाती है. 

इसके जवाब में दिसंबर 2017 में जारी ट्रंप प्रशासन की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति ने औपचारिक रूप से महाशक्तियों की उभरती हुई प्रतिस्पर्धा को स्वीकार किया. ट्रंप प्रशासन ने चीन की पहचान ऐसे देश के रूप में की जो अपना प्रभाव और विस्तार चाहता है और इस तरह अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है. ट्रंप ने चीन के सामानों पर भारी टैरिफ लगाकर व्यापार घाटे और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े ख़तरे का समाधान करने का फैसला लिया. उन्होंने अमेरिकी तकनीक तक हुआवे की पहुंच पर प्रतिबंध लगाया और आधुनिक तकनीक को विकसित करने के लिए STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स) रिसर्च प्रोग्राम में PLA के अधिकारियों की घुसपैठ को रोकने के उद्देश्य से स्टूडेंट-वीज़ा पर पाबंदियों को लागू किया. इन निर्णायक कदमों ने मूलभूत रूप से चीन के साथ अमेरिका की भागीदारी के दृष्टिकोण को बदल दिया. 

ट्रंप ने चीन के सामानों पर भारी टैरिफ लगाकर व्यापार घाटे और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े ख़तरे का समाधान करने का फैसला लिया.

डोनाल्ड ट्रंप के बाद राष्ट्रपति बनने वाले जो बाइडेन ने चीन को लेकर ट्रंप के नज़रिए का और विस्तार किया. बाइडेन प्रशासन ने सुरक्षा ख़तरे के मामले में कमज़ोर क्षेत्रों की पहचान की. उनकी “स्मॉल यार्ड, हाई फेंस” रणनीति ने या तो चीनी निवेश को पूरी तरह से रोक दिया या नए उपक्रमों की मंज़ूरी के लिए सख्त जांच-पड़ताल को लागू किया. इसके नतीजतन सेमीकंडक्टर और दूसरी महत्वपूर्ण तकनीकों को हासिल करने में चीन को अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. बाइडेन ने अमेरिकी नागरिकों पर सेमीकंडक्टर के उत्पादन में शामिल चीनी कंपनियों के लिए काम करने या उन्हें तकनीकी विशेषज्ञता मुहैया कराने पर रोक लगा दी. इसके अलावा चीन में अमेरिकी निवेश अधिक छानबीन के दायरे में आ गया. अमेरिका ने आधुनिक माइक्रोचिप तक चीन की पहुंच पर रोक लगाने के लिए नीदरलैंड और जापान जैसे अपने सहयोगियों को एकजुट कर इन प्रतिबंधों को कई देशों में लागू किया. 

इस तरह चीन से जुड़ी नीति को लेकर रिपब्लिकन्स और डेमोक्रेट्स ने बेहद दुर्लभ एकता का प्रदर्शन किया है. ये एकजुटता गहरे ध्रुवीकरण वाले राजनीतिक परिदृश्य में भी है. अगर अतीत में शुरुआत हुई थी तो रेगुलेटरी उपकरणों का लगातार उपयोग चीन को लेकर अमेरिका की वित्तीय और निवेश नीतियों की भविष्य की दिशा को बदल देगा. ये स्थिति ट्रंप के अगले प्रशासन में भी होगी. 

ट्रंप की कैबिनेट

“कर्मचारी ही नीति है” के कथन का पालन करते हुए ट्रंप के अगले प्रशासन में प्रमुख पदों पर तैनात लोग चीन को लेकर अमेरिका की नीतियों को काफी हद तक तय करेंगे. अभी तक नियुक्त ज़्यादातर लोग, जिनमें माइक वाल्ट्ज़, मार्को रुबियो, तुलसी गबार्ड, पीट हेगसेठ और क्रिस्टी नोएम शामिल हैं, या तो चीन को लेकर आशंकित हैं या काफी उग्र हैं. ये रवैया उनकी नीतियों में भी दिखने की संभावना है. 

आने वाले दिनों में ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनने वाले माइक वाल्ट्ज़ के बारे में हर किसी को पता है कि वो चीन को लेकर उग्र रवैया रखते हैं. वो अक्सर बयान देते हैं कि चीन के साथ अमेरिका एक नए शीत युद्ध में शामिल है और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व को उखाड़ने का इरादा रखती है. एक से अधिक सप्लाई चेन और महत्वपूर्ण खनिजों पर चीन के नियंत्रण को लेकर वाल्ट्ज़ ने गहरी चिंता जताई है क्योंकि ये ऐसी कमज़ोरियां हैं जिनका फायदा चीन ताइवान को लेकर आपात स्थिति के दौरान उठा सकता है. वाल्ट्ज़ ने अक्सर चीन की सैन्य तैयारियों, व्यवस्थित रूप से बौद्धिक संपदा की चोरी, कन्फ्यूशियस संस्थानों के माध्यम से जासूसी, रूस के साथ नज़दीकी गठबंधन और मानवाधिकार एवं पर्यावरण को लेकर ख़राब रिकॉर्ड की आलोचना की है. इन कारणों का उल्लेख करके उन्होंने 2022 में बीजिंग ओलंपिक के बहिष्कार की अपील भी की थी. 

ट्रंप के रक्षा मंत्री पीट हेगसेग भी वाल्ट्ज़ की तरह उग्र रवैया रखते हैं. वो अक्सर ‘वोक’ संस्कृति के लिए अमेरिकी सेना का मज़ाक उड़ाते हैं क्योंकि वो रणनीति और तकनीक के मामले में चीन से पीछे है. इसी तरह ट्रंप प्रशासन में सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) के निदेशक जॉन रैटक्लिफ ने लंबे समय से चेतावनी दे रखी है कि चीन की कई सार्वजनिक पहल और प्रमुख कंपनियां CCP के छिपे हुए नियंत्रण के तहत है. 2020 में रैटक्लिफ ने चीन को अमेरिका के लिए “सबसे बड़ा ख़तरा” बताया था और अमेरिकी कंपनियों एवं संगठनों में हुआवे के उत्पादों पर पाबंदी लगाने की वकालत की थी. साथ ही उन्होंने चीन की जासूसी, विशेष रूप से महत्वपूर्ण तकनीकों में, पर रोक लगाने के लिए मज़बूत उपाय करने का अनुरोध किया था. 

ट्रंप प्रशासन में सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) के निदेशक जॉन रैटक्लिफ ने लंबे समय से चेतावनी दे रखी है कि चीन की कई सार्वजनिक पहल और प्रमुख कंपनियां CCP के छिपे हुए नियंत्रण के तहत है.

अगले ट्रंप प्रशासन में नेशनल इंटेलिजेंस की निदेशक तुलसी गबार्ड भी चीन को लेकर आशंकित हैं. इस बीच संयुक्त राष्ट्र में ट्रंप के संभावित राजदूत एलिस स्टीफेनिक चीन की नीतियों की आलोचना करने में मुखर रही हैं. इसी तरह होमलैंड सुरक्षा मंत्री के लिए ट्रंप की पसंद क्रिस्टी नोएम ने अक्सर चीन की कंपनियों पर संदिग्ध व्यावसायिक सिद्धांत अपनाने का आरोप लगाया है. वो अमेरिका में चीन की कंपनियों के द्वारा खेती की ज़मीन ख़रीदने को लेकर चिंतित रहती हैं. आर्थिक भूमिका में रॉबर्ट लाइटहाइजर की बहाली चीन की मुश्किलें और बढ़ाएंगी. 

इस उग्र कतार को ट्रंप के अगले विदेश मंत्री मार्को रुबियो पूरा करते हैं जो ताइवान के समर्थक और चीन के विरोध में सबसे आगे हैं और जिन पर चीन ने जुलाई 2020 में प्रतिबंध लगाया था. उन्होंने “वीगर मानवाधिकार नीति अधिनियम” और “हॉन्ग कॉन्ग मानवाधिकार एवं लोकतंत्र अधिनियम” को बढ़ावा दिया था. साथ ही उन्होंने अक्सर नाम लेकर शी की आलोचना की है और उन पर अधिनायकवादी होने का आरोप लगाया है. ये प्रमुख चेहरे अगले प्रशासन के दौरान चीन को लेकर ट्रंप के सख्त रुख को जारी रखेंगे. 

अच्छा रवैया, बुरा रवैया 

हालांकि ट्रंप अपने प्रशासन की चीन नीति को दो अलग-अलग कैंप के ज़रिए चला सकते हैं- एक प्रतिस्पर्धा पर केंद्रित और दूसरा लेन-देन पर. चीन के प्रति उग्र रवैया रखने वाले अलग-अलग मुद्दों पर चीन को झुकाने के लिए बहुत ज़्यादा दबाव डाल सकते हैं, वहीं चीन के नेतृत्व से सौदेबाज़ी करने के लिए ट्रंप लेन-देन वाले गुट का व्यक्तिगत रूप से नेतृत्व कर सकते हैं. 

ट्रंप के प्रमुख समर्थक इलॉन मस्क यहां एक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं. चीन के लिए बहुत कुछ मस्क के साथ उसके गहरे व्यावसायिक संपर्क पर निर्भर करता है जिन्होंने शी के साथ मुलाकात की थी और चीन में बहुत ज़्यादा निवेश किया है. ये स्थिति उन्हें दोनों नेताओं के लिए फायदेमंद समझौता कराने के उद्देश्य से बहुत अधिक ताकत देती है. 

अतीत में मस्क ने विवादास्पद रूप से सलाह दी थी कि ताइवान को हॉन्ग कॉन्ग की तरह विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में चीन में शामिल हो जाना चाहिए. हालांकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अच्छी तरह से मालूम है कि किस तरह से CCP ने हॉन्ग कॉन्ग की स्वायत्तता को कमज़ोर किया और वहां के लोगों के अधिकारों को कुचल दिया. इसके बावजूद मध्यस्थता करने में मस्क की सहज प्रवृत्ति, व्लादिमीर पुतिन से उनकी नज़दीकी और चीन में उनका महत्वपूर्ण निवेश एक विस्फोटक मिश्रण बनाते हैं. ये उन्हें ताइवान के संबंध में अमेरिका और चीन के बीच एक बहुत बड़ी सौदेबाज़ी के संभावित सूत्रधार के रूप में स्थापित करता है. 

कुल मिलाकर चीन को लेकर नये ट्रंप प्रशासन का नज़रिया चीन के लिए बहुत बड़ी चुनौती पेश करता है.

कुल मिलाकर चीन को लेकर नये ट्रंप प्रशासन का नज़रिया चीन के लिए बहुत बड़ी चुनौती पेश करता है. नये ट्रंप प्रशासन में ऐसे उग्र लोगों का वर्चस्व है जो 2017 में शुरू किए गए बदलावों को संस्थागत रूप देने का इरादा रखते हैं. चीन का नेतृत्व इस स्थिति से भयभीत है और वो ट्रंप से जुड़ी आने वाली चुनौती का मुकाबला करने के लिए रणनीति बना रहा है, सहयोगियों को एकजुट कर रहा है. इस हालात से निपटने के लिए चीन ट्रंप की लेन-देन वाली प्रवृत्ति, मस्क के बहुत अधिक प्रभाव और कोविड के बाद की दुनिया के आर्थिक दबावों पर भरोसा कर रहा है. हालांकि आसमान में अमेरिका-चीन संबंध के संकेत अंधेरे होते जा रहे हैं. 


अतुल कुमार और कल्पित ए. मंकिकर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं. 

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