Author : Rajen Harshé

Published on Apr 28, 2023 Updated 0 Hours ago

रूस की विदेश नीति इस बात को रेखांकित करती है कि चीन और अफ्रीका, दोनों ही उसके लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे.

रूस की विदेश नीति में चीन और अफ्रीका की अहमियत

फ़रवरी 2022 में यूक्रेन और रूस का युद्ध शुरू होने के बाद से ही रूस, पश्चिमी देशों से अलग थलग पड़ता जा रहा है. इसकी बड़ी वजह ये थी कि पश्चिमी देशों ने रूस पर अभूतपूर्व आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे. अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के उसके साथी देश, यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए उसे पूरा सहयोग दे रहे हैं. अप्रैल 2023 में फिनलैंड भी उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के पूर्णकालिक सदस्य बनने के साथ साथ, नेटो देशों द्वारा यूक्रेन को लगातार समर्थन देने के कारण आज रूस की हालत ये है कि वो अमेरिका जैसे दुश्मन देश को अपनी दहलीज पर खड़ा देख रहा है. इसी का नतीजा है कि रूस ने अमेरिका और उसके साथी देशों का मुक़ाबला करने के लिए, चीन के प्रति झुकाव बढ़ाने का विकल्प चुना है, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ताक़त और अमेरिका का कट्टर दुश्मन भी है. इसी के साथ साथ, रूस दुनिया के विकासशील और अविकसित देशों के साथ भी अपने रिश्ते आगे बढ़ा रहा है. न केवल मध्य और पश्चिमी एशिया की राजनीति में रूस की उल्लेखनीय उपस्थिति है. बल्कि वो अफ्रीकी महाद्वीप के देशों के साथ भी दोस्ती बढ़ाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र के 54 सदस्य देशों के साथ साथ अपने अब तक इस्तेमाल नहीं किए गए असीमित संसाधनों के कारण अफ्रीका, धीरे धीरे बढ़ रहे रूस के विस्तारवाद के लिए काफ़ी अवसर मुहैया कराता है. इन परिस्थितियों को देखते हुए रूस की विदेश नीति में एक तरफ़ चीन और दूसरी ओर अफ्रीका महाद्वीप की बढ़ती अहमियत का मूल्यांकन करना उपयोगी होगा.

रूस दुनिया के विकासशील और अविकसित देशों के साथ भी अपने रिश्ते आगे बढ़ा रहा है. न केवल मध्य और पश्चिमी एशिया की राजनीति में रूस की उल्लेखनीय उपस्थिति है. बल्कि वो अफ्रीकी महाद्वीप के देशों के साथ भी दोस्ती बढ़ाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा है.

इस समय चीन और रूस के आपस में मिलने वाले सामरिक हित उन्हें एक नज़दीकी सामरिक साझेदारी की डोर से बांधते है, जिससे वो अमेरिका के नेतृत्व वाली ‘नियम आधारित’  अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को चुनौती दे सकें. इसीलिए, अगर रूस के राष्ट्रपति पुतिन, यूक्रेन को जीतकर रूस के गौरवशाली दिनों की वापसी का इरादा रखते है. तो वहीं, चीन 2027 तक ताइवान को अपने साथ दोबारा मिलाने को बेक़रार है. दोनों ही देश, मौजूदा विश्व व्यवस्था से असंतुष्ट है, और अमेरिका के नेतृत्व वाली यथास्थिति को चुनौती दे रहे है. इस मामले में उनका एक दूसरे पर निर्भर होना लाज़मी है और दोनों देश मिलकर नई विश्व व्यवस्था की रूपरेखा तय कर सकते है.

असमान रिश्ते मगर साझा नज़रिया

मोटे तौर पर रूस और चीन के संबंध बुनियादी रूप से असमान है. क्योंकि, चीन की अर्थव्यवस्था रूस से छह गुना अधिक ताक़तवर है. 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर क़ब्ज़ा कर लिया था, तो उसके बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे. इसके कारण, चीन पर रूस की व्यापारिक निर्भरता बढ़ने लगी थी. इस प्रक्रिया में, साल 2022 के आते आते, रूस का 30 प्रतिशत निर्यात अकेले चीन को हो रहा था. वहीं, ख़ुद रूस अपना चालीस फ़ीसद सामान चीन से आयात कर रहा था. आज अपने सस्ते उत्पादों की बदौलत चीन, धीरे धीरे रूस के बाज़ार पर क़ब्ज़ा करता जा रहा है. चीन पर रूस की बढ़ती निर्भरता निश्चित रूप से चीन के नज़रिए से फ़ायदेमंद है. ऐसी निर्भरता से चीन के लिए और अधिक संभावनाओं के द्वार खुल सकते हैं. जैसे कि वो रूस से रियायती दाम पर तेल और गैस हासिल कर सकता है; आर्कटिक क्षेत्र में अपनी नौसेना की मौजूदगी के लिए चीन, रूस को राज़ी कर सकता है; चीन को रूस से संवेदनशील तकनीक हासिल हो सकती है; और रूस की मदद से चीन, संसाधन बहुल मध्य एशियाई देशों में प्रवेश पा सकता है.

20 से 22 मार्च के बीच चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का रूस दौरा और इस दौरान चीन और रूस के बीच सुरक्षा, उद्योग, विज्ञान एवं तकनीक, अर्थव्यवस्था और वाणिज्य क्षेत्र के दर्जन भर द्विपक्षीय समझौते होना इस बात का सुबूत है कि दोनों देश किस तरह एक दूसरे पर निर्भर होते जा रहे है. शी जिनपिंग के मॉस्को दौरे से ठीक पहले चीन ने सऊदी अरब और ईरान के बीच शांति समझौता कराने में अहम भूमिका अदा की थी. वैसे तो शी जिनपिंग के मॉस्को दौरे के दौरान यूक्रेन और रूस के बीच शांति के समझौते की संभावनाओं पर भी चर्चा हुई थी. लेकिन, चीन को इस परियोजना में अभी कोई ठोस कामयाबी नहीं मिली है. विचित्र बात ये है कि शी जिनपिंग ने रूस का ये दौरा उस वक़्त किया, जब अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी का वारंट जारी किया, क्योंकि उन्होंने रूस के क़ब्ज़े वाले यूक्रेन के इलाक़ों से अवैध तरीक़े से यूक्रेन के बच्चों को रूस भेजा था और उनके अधिकारों का हनन किया था. इन मुश्किल परिस्थितियों में चीन, मज़बूती से रूस के साथ खड़ा रहा है. 

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का रूस दौरा और इस दौरान चीन और रूस के बीच सुरक्षा, उद्योग, विज्ञान एवं तकनीक, अर्थव्यवस्था और वाणिज्य क्षेत्र के दर्जन भर द्विपक्षीय समझौते होना इस बात का सुबूत है कि दोनों देश किस तरह एक दूसरे पर निर्भर होते जा रहे है.

चीन के साथ मज़बूत संबंध क़ायम करने के साथ साथ रूस, विकासशील देशों के बीच और ख़ास तौर से अफ्रीका महाद्वीप में भी अपनी उपस्थिति को और मज़बूत करने में जुटा है. एक बार फिर कहना होगा कि रूस की तुलना में अफ्रीका में चीन की उपस्थिति कई गुना अधिक है. लेकिन दोनों शक्तियों का लक्ष्य एक है. दोनों ही देश अफ्रीका में पारंपरिक नव-उपनिवेशवाद/ साम्राज्यवादी पश्चिमी ताक़तों के प्रभाव को सीमित करना चाहते हैं. इसीलिए, रूस और चीन दोनों ही देश, अपनी पहुंच अहम सामरिक क्षेत्रों तक बनाने में जुटे हुए है. जहां तक चीन की बात है, तो जिबूती में उसका सैनिक अड्डा है. वहीं रूस, सूडान में अपनी नौसेना के लिए एक ठिकाना बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है. दोनों ही देशों ने अफ्रीका में तानाशाही शासकों का खुलकर समर्थन किया है और उदारवादी लोकतंत्र एवं मानव अधिकारों को लेकर पश्चिमी देशों के नज़रिए के प्रति बेरुख़ी का अंदाज़ अपनाया है. निश्चित रूप से, पश्चिमी देशों के उलट, अफ्रीका में चीन, रूस का दोस्त है. अफ्रीका को लेकर रूस की विदेश नीति का मूल्यांकन हम बेहतर ढंग से तब कर सकते है, जब हम विश्व राजनीति और अफ्रीका जैसे विकासशील क्षेत्रों में दोनों देशों के साझा नज़रिए का संज्ञान लें.

अफ्रीका में रूस का विस्तारवाद

अक्टूबर 2019 में रूस के सोची शहर में रूस और अफ्रीका का शिखर सम्मेलन हुआ था. इस सम्मेलन ने इस बात की साफ़ झलक दिखलाई थी कि रूस ने किस तरह अफ्रीकी देशों के बीच अपनी मज़बूत पैठ बनाई है. इस शिखर सम्मेलन में अफ्रीका के सभी 54 देश और 43 मौजूदा शासनाध्यक्षों ने हिस्सा लिया था. इस सम्मेलन के दौरान रूस ने अलग अलग देशों के साथ सैन्य सहयोग के 21 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. इसके अलावा, जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ गया. तो मार्च 2022 में हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठख में केवल 28 अफ्रीकी देशों ने यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा की थी. इसका मतलब था कि लगभग आधे अफ्रीका महाद्वीप ने रूस के ख़िलाफ़ खुले तौर पर बयान देने से परहेज़ किया था. इसके अलावा, यूक्रेन युद्ध के दौरान हाल ही में रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने ऐलान किया था कि रूस, अफ्रीका के साथ अपने संबंधों को ‘प्राथमिकता’ देगा. पुतिन ने भरोसा दिया था कि अगर अगले दो महीनों में यूक्रेन के अनाज के निर्यात से जुड़े अहम समझौते की समीक्षा नहीं होती है, तो वो सबसे ज़्यादा तलबगार अफ्रीकी देशों को अनाज की आपूर्ति करेंगे. रूस ने दवाएं हासिल करने में सहयोग देने का प्रस्ताव रखा और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का भरोसा दिया, और वादा किया कि वो रूस के विश्वविद्यालयों में अफ्रीकी छात्रों का हिस्सा बढ़ाकर दो गुना कर देंगे. राष्ट्रपति पुतिन ने ये दावा भी किया कि 2022 में रूस ने अफ्रीकी देशों के लगभग 20 अरब डॉलर के पुराने क़र्ज़ माफ़ कर दिए है और कहा कि रूस और अफ्रीका के बीच व्यापार 2022 में बढ़कर 18 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. इसके अतिरिक्त रूस ने दूसरे अफ्रीका रूस सम्मेलन की तैयारी पहले ही शुरू कर दी है, जो 26 से 29 जुलाई के बीच पीटर्सबर्ग में होना है.

सुरक्षा के क्षेत्र की बात करें, तो बड़े और छोटे हथियारों समेत अफ्रीका के 49 प्रतिशत सैन्य संसाधन रूस से ही आते हैं. अल्जीरिया, अंगोला, बर्किना फासो, मिस्र, इथियोपिया, माली, मोरक्को, रवांडा और युगांडा जैसे अफ्रीका के बड़े देश रूस से हथियारों का आयात करते है. रूस से अफ्रीकी देशों को हथियारों का आयात मुख्य रूप से रूस की सरकारी कंपनी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के ज़रिए होता है. इसके अलावा रूस की निजी सैन्य कंपनियां (PMC) कई देशों को सुरक्षा प्रदान करती है. येवगेनी प्रिझगिन, जिनके बारे में कहा जाता है कि वो पुतिन के बेहद क़रीबी हैं, वो एक ऐसे कारोबारी के तौर पर उभरे हैं, जो वैगनर ग्रुप नाम की बहुराष्ट्रीय निजी सैन्य कंपनी चलाते हैं. रूस, वैगनर के भाड़े के सैनिकों का इस्तेमाल मध्य अफ्रीकी गणराज्य (CAR), यूक्रेन, सूडान, सीरिया और लीबिया करता रहा है. इसके अलावा, येवगेनी प्रिझगिन पर अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में दख़लंदाज़ी करने वाली इंटरनेट रिसर्च एजेंसी को पैसे देने को लेकर अमेरिका ने प्रतिबंध भी लगाए हैं.

मध्य अफ्रीकी गणराज्य में प्रिझगिन लोबाये इनवेस्ट नाम की एक बहुधंधी कंपनी चलाते है. ये कंपनी गणराज्य में रेडियो स्टेशनों को पैसे देती है और रूस के 250 भाड़े के लड़ाकों द्वारा मध्य अफ्रीकी गणराज्य के सैनिकों को ट्रेनिंग देने का ख़र्च भी उठाती है. इसके अलावा, लोबाये इन्वेस्ट को मध्य अफ्रीकी गणराज्य में सोने और हीरे की खोज के भारी रियायती ठेके भी मिले हुए हैं. मध्य अफ्रीकी गणराज्य में रूस, राष्ट्रपति टुआडेरा की डगमगाती तानाशाही हुकूमत को बनाए रखने में दिलचस्पी रखता है. इसीलिए, रूस इस बात के लिए उत्सुक है कि मौजूदा राष्ट्रपति टुआडेरा, दो से ज़्यादा कार्यकाल हासिल करें. जबकि गणराज्य (CAR) के मौजूदा संविधान के मुताबिक़ कोई व्यक्ति दो कार्यकाल से ज़्यादा राष्ट्रपति नहीं रह सकता है. टुआडेरा ने अपने तीसरे कार्यकाल में बाधा बन रहे प्रेसिडेंट ऑफ द कोर्ट डेनियल डारलान को एक आदेश के ज़रिए उनके पद से हटा दिया था. मध्य अफ्रीकी गणराज्य की तरह ही रूस ने गिनी और माली की अंदरूनी राजनीति में भी दख़लंदाज़ी की है. कुल मिलाकर रूस की नीतियों का नतीजा ये रहा है कि फ्रांस को अपने पूर्व उपनिवेशों जैसे कि गिनी, माली और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में अपनी ताक़त गंवाकर वहां से पीछे हटना पड़ा है. ये ऐसा नतीजा है, जो रूस और चीन दोनों के लिए स्वीकार्य है.

कुल मिलाकर रूस की नीतियों का नतीजा ये रहा है कि फ्रांस को अपने पूर्व उपनिवेशों जैसे कि गिनी, माली और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में अपनी ताक़त गंवाकर वहां से पीछे हटना पड़ा है. ये ऐसा नतीजा है, जो रूस और चीन दोनों के लिए स्वीकार्य है.

अफ्रीका के खनन उद्योग में रूस की बढ़ती दिलचस्पी का ख़ास तौर से ज़िक्र किए जाने की ज़रूरत है. गाज़प्रोम, लुकोल, रोस्टेक, और रोसाटम (ऊर्जा कंपनियां); अलरोसा (हीरे का खनन); और रूसाल (बॉक्साइट का खनन) जैसी रूस की कई कंपनियां पहले ही अफ्रीका में कारोबार कर रही है. सच तो ये है कि रूस की कंपनियां, अल्जीरिया, अंगोला, लीबिया, नाइजीरिया, घाना, आइवरी कोस्ट और मिस्र में तेल और गैस के उद्योगों में शामिल हैं. मध्य अफ्रीकी गणराज्य (CAR) और कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) में रूस की कंपनियों को सोने, हीरे, कोबाल्ट और कोल्टन वग़ैरह के खनन में काफ़ी रियायतें मिली हुई है. रूस की कंपनियां गिनी से बॉक्साइट, मैडागास्कर में क्रोमाइट, सूडान में सोना और तेल, दक्षिण अफ्रीका में हीरे और प्लैटिनम, और अंगोला और ज़िंबाब्वे में हीरों के खनन के कारोबार में जुटी है. रूस, मिस्र में परमाणु बिजली घर बनाने में भी शामिल है. इससे भी बड़ी बात ये कि 2022 में यूक्रेन में युद्ध के दौरान, शोधित पेट्रोलियम उत्पादों में अकेले तेल का ही निर्यात 214,000 बैरल प्रतिदिन था, जो उससे पहले के साल की तुलना में तीन गुना अधिक था.

निष्कर्ष

यूक्रेन में युद्ध और पश्चिमी देशों से अलग थलग पड़ने के कारण, चीन पर रूस की निर्भरता बढ़ती जा रही है. हालांकि, दोनों देशों के बीच असमान रिश्ते हैं. लेकिन आज दोनों ही ताक़तें अमेरिका की अगुवाई वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं. भले ही रूस इसमें जूनियर पार्टनर क्यों न हो. अगर देशों के दर्जे के हिसाब से देखें तो रूस और चीन के बीच छोटे और बड़े क़द के रिश्ते हैं. इसी हिसाब से अफ्रीकी देशों के बीच भी रूस का क़द दबदबे वाला ही है. कम से कम अफ्रीका में तो रूस और चीन पश्चिमी प्रभाव को कमज़ोर करके एक साथ अपना विस्तार कर रहे है.


Rajen Harshé, प्रयागराज की इलाहाबाद केंद्रीय यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति रहे है.

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