1.लॉजिस्टिक सेक्टर में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का उदय
भारत 2003 में दुनिया की 12वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से बढ़कर 2023 में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. पिछले दो दशकों में आर्थिक विकास ने परिवहन, उद्योग और कृषि के क्षेत्र में ऊर्जा की मांग में बढ़ोतरी की है. इसके कारण कार्बन उत्सर्जन के स्तर में 142 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इसके अलावा, तेज़ शहरीकरण की वजह से सामानों और सेवाओं की प्रति व्यक्ति खपत में बढ़ोतरी हुई है. इसने 2003 से 2022 के बीच इन सामानों और सेवाओं के उत्पादन और परिवहन से प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में 93 प्रतिशत का इज़ाफ़ा किया है.
भारतीय ई-कॉमर्स उद्योग के उदय ने ख़ास तौर पर भारत के आर्थिक विकास और इसके नतीजतन उत्सर्जन में बढ़ोतरी को तेज़ किया है. भारत ने वित्तीय वर्ष 2023 में 4 अरब से ज़्यादा पैकेज भेजे हैं. इनमें इन-हाउस लॉजिस्टिक और थर्ड पार्टी प्लेयर शामिल हैं. उम्मीद की जा रही है कि 2030 तक इस बाज़ार में 10 गुना बढ़ोतरी होगी और तब हर साल 40 अरब पार्सल की डिलीवरी होगी. उस समय कार्बन उत्सर्जन बढ़कर 8 मिलियन टन तक हो सकता है. रिसर्च से ये भी पता चला है कि भारत में हर डिलीवरी पर लास्ट माइल यानी आख़िरी मील का उत्सर्जन (285 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड) दुनिया के औसत (204 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड) से काफी ज़्यादा है और भारत के पांच मेट्रो शहरों- दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु और चेन्नई- में आख़िरी मील की डिलीवरी के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन फ्रांस और कनाडा जैसे देशों के लॉजिस्टिक सेक्टर से ज़्यादा है.
भारतीय ई-कॉमर्स उद्योग के उदय ने ख़ास तौर पर भारत के आर्थिक विकास और इसके नतीजतन उत्सर्जन में बढ़ोतरी को तेज़ किया है. भारत ने वित्तीय वर्ष 2023 में 4 अरब से ज़्यादा पैकेज भेजे हैं.
हमारा मानना है कि भारत को ऐसे परिवहन समाधान (ट्रांसपोर्ट सॉल्यूशंस) को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है जो कि स्वच्छ और किफायती दोनों हैं. आख़िरी मील तक डिलीवरी के लिए एक समाधान इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बेड़े की तरफ बदलाव है. अगर ये गाड़ियां इलेक्ट्रिक हों तो उम्मीद की जाती है कि इससे 2025 तक हर साल 1.5 मिलियन टन उत्सर्जन में कमी आएगी. ये सड़कों से 3,00,000 कार को कम करने के बराबर है. इसके अलावा ये अनुमान लगाया जाता है कि अगर छोटी कमर्शियल गाड़ियों के सेगमेंट, जिसमें ख़ास तौर पर थ्री-व्हीलर (3W) होते हैं, को पूरी तरह से इलेक्ट्रिक गाड़ियों में तब्दील कर दिया जाता है तो 2030 तक हम कार्बन उत्सर्जन में 14 प्रतिशत की कमी देख सकते हैं. भारत में सरकारी नीतियों जैसे कि राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान (2013 में शुरू) और FAME II स्कीम (2019 में शुरू) के रूप में इस दिशा की तरफ ज़ोर लगाया गया है.
इलेक्ट्रिफिकेशन के लिए ज़ोर हमें अलग-अलग मोर्चों में आर्थिक विकास और इनोवेशन जैसे कि बैटरी तकनीक, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल लॉजिस्टिक प्लैटफॉर्म में इनोवेशन की तरफ ले गया है. फिर भी, ज़्यादा लागत, भरोसेमंद चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और उपभोक्ताओं की कम जागरूकता की वजह से थ्री-व्हीलर के सेगमेंट में इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV) को अपनाने की प्रक्रिया धीमी है. आख़िरी मील की डिलीवरी के लिए किफायती लॉजिस्टिक सीधे तौर पर गाड़ी के उपयोग के अनुपात में है. दूसरे शब्दों में, कोई इलेक्ट्रिक गाड़ी जितनी ज़्यादा दूरी तय करती है, उस गाड़ी को ख़रीदने और चलाने की लागत उतनी कम हो जाती है. इस्तेमाल की यही दलील एक सफल EV चार्जिंग नेटवर्क को स्थापित करने पर भी लागू होती है. अगर कोई चार्जिंग स्टेशन किसी दिन ज़्यादा EV को चार्ज करता है तो पैमाने की अर्थव्यवस्था (इकोनॉमी ऑफ स्केल) के ज़रिए एक EV को चार्ज करने की लागत ज़्यादा किफायती हो जाती है. क्षमता से कम उपयोग की वजह से EV अपना सही महत्व प्रदर्शित करने में नाकाम रहे हैं. इसका असर चार्जिंग नेटवर्क को बड़े पैमाने पर सफलतापूर्वक स्थापित करने और उसे फायदेमंद बनाने पर भी पड़ा है.
चार्जिंग से जुड़ी परेशानियों का मुकाबला करने के लिए गाड़ियों के उत्पादक अक्सर EV में बड़े बैटरी पैक लगाते हैं. इससे गाड़ियों की कीमत बढ़ जाती है और इस तरह इलेक्ट्रिक गाड़ी सर्विस प्रोवाइडर और फ्लीट ऑपरेटर के लिए एक अव्यवहारिक विकल्प बन जाती है.
लॉजिस्टिक में इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर के कम इस्तेमाल के पीछे एक मुख्य कारण चार्ज में लगने वाला ज़्यादा समय है. आख़िरी मील तक डिलीवरी करने वाले ऑपरेटर एक दिन में औसतन 150 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं जबकि बड़े बैटरी पैक से युक्त इलेक्ट्रिक गाड़ियां सिंगल चार्ज के बाद केवल 100 किलोमीटर की दूरी तय करने में सक्षम हैं. चार्जिंग के ज़्यादा समय के कारण लॉजिस्टिक कंपनियों को आवश्यक दूरी तय करने के लिए दो गाड़ियों का सहारा लेना पड़ता है और इस तरह उनके संचालन की लागत अधिक हो जाती है. इसके अलावा इलेक्ट्रिक गाड़ियों के ऑपरेटर या मालिक को अपनी गाड़ी चार्ज करने के लिए तीन से पांच घंटे तक का पार्किंग चार्ज भी देना पड़ता है.
चार्जिंग से जुड़ी परेशानियों का मुकाबला करने के लिए गाड़ियों के उत्पादक अक्सर EV में बड़े बैटरी पैक लगाते हैं. इससे गाड़ियों की कीमत बढ़ जाती है और इस तरह इलेक्ट्रिक गाड़ी सर्विस प्रोवाइडर और फ्लीट ऑपरेटर के लिए एक अव्यवहारिक विकल्प बन जाती है. एक और चुनौती जिसका सामना EV को अपनाने में आख़िरी मील के लॉजिस्टिक प्रोवाइडर को करना पड़ता है वो बैटरी की लाइफ से जुड़ी है. मौजूदा समय में कमर्शियल थ्री-व्हीलर में लगने वाली बैटरी 1,500 बार चार्ज होती है और नतीजा 30 प्रतिशत बैटरी के नुकसान में निकलता है. बैटरी को नुकसान चार्जिंग की वजह से होता है और अलग-अलग उत्पादकों के द्वारा निर्मित बैटरी और चार्जर अक्सर असरदार ढंग से काम करने में नाकाम होते हैं. ऑटोमोटिव उद्योग में पहली बार जो ऊर्जा किसी गाड़ी को पावर देती है, उसका सीधा असर ख़ुद गाड़ी के जीवन और प्रदर्शन पर पड़ता है. इसलिए, EV के चार्जिंग प्रोवाइडर के लिए ये महत्वपूर्ण है कि वो बैटरी और EV के उत्पादकों के साथ मिलकर काम करें.
2.कॉमर्शियल EV के लिए एक्सपोनेंट एनर्जी का रैपिड चार्जिंग सॉल्यूशन
एक्सपोनेंट एनर्जी में हमने एक समाधान विकसित किया है जो निम्नलिखित समस्याओं को हल करता है:
(1) चार्जिंग का ज़्यादा समय;
(2) छोटी बैटरी लाइफ; और
(3) कॉमर्शियल गाड़ियों के संचालन की अधिक लागत.
एक्सपोनेंट एक फुल-स्टैक एनर्जी कंपनी (ऊर्जा से जुड़े बिज़नेस मॉडल के लिए समाधान विकसित करने वाली कंपनी) है जो बैटरी पैक (e^पैक) और चार्जिंग स्टेशन (e^पंप) का निर्माण करती है जो साथ मिलकर 0 प्रतिशत से 100 प्रतिशत चार्ज 15 मिनट में करती है और नियमित लिथियम आयन सेल्स का उपयोग करके 3,000 साइकल लाइफ की वॉरंटी प्रदान करती है.
नया AIS-156 स्टैंडर्ड EV बनाने वाली कंपनियों को गाड़ियों के विकास में सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों का पालन करने का अनुरोध करता है. इसकी वजह से सड़कों पर अच्छी क्वॉलिटी की गाड़ियां आ रही हैं.
हम गाड़ियों के उत्पादक के साथ साझेदारी करके i) बैटरी पैक को उनकी मौजूदा गाड़ियों में एकीकृत करते हैं; ii) 15 मिनट की रैपिड चार्जिंग वेरिएंट तैयार करते हैं; और iii) एक साथ अलग-अलग शहरों में चार्जिंग स्टेशन के साथ चार्जिंग नेटवर्क स्थापित करते हैं. आज के समय में हमने दुनिया में सबसे तेज़ी से चार्ज होने वाले थ्री-व्हीलर, जिसका नाम neEV तेज़ है, का उत्पादन करने के लिए एल्टीग्रीन प्रोपल्शन लैब के साथ साझेदारी की है. neEV तेज़ में 8.2 kWh बैटरी पैक है जो सामान्य neEV वेरिएंट की तुलना में 30 प्रतिशत छोटा है. 3,000 साइकल लाइफ की वॉरंटी के साथ छोटा बैटरी पैक और पांच साल की फाइनेंसिंग सुनिश्चित करती है कि ये EV 30 प्रतिशत ज़्यादा किफायती है.
आख़िरी मील की लॉजिस्टिक कंपनियों जैसे कि मजेंटा मोबिलिटी, FYN मोबिलिटी और अन्य के साथ साझेदारी के ज़रिए एक्सपोनेंट ने अपने बैटरी पैक वाली 300 से ज़्यादा गाड़ियां तैनात की हैं और इस समय तक 20 लाख किलोमीटर से ज़्यादा की दूरी तय की है. हमने बेंगलुरु के अलग-अलग इलाकों में फैले 30 चार्जिंग स्टेशन के नेटवर्क के माध्यम से 40,000 से ज़्यादा बार रैपिड चार्जिंग पूरी की है. 30 चार्जिंग स्टेशन में से कम-से-कम 10 चार्जिंग स्टेशन हर रोज़ औसतन 25 EV को चार्ज करते हैं. वैसे तो फिलहाल हम बेंगलुरु में काम कर रहे हैं लेकिन हमारी योजना वित्तीय वर्ष 2023 के ख़त्म होते-होते भारत के पांच नए शहरों में काम शुरू करने की है.
3.मुख्य चुनौती
ऑटोमोबाइल की दुनिया में ऊर्जा मूलभूत रूप से बदल गई है. पेट्रोल पर चलने वाली गाड़ियों, जिन्हें इंटरनल कंबस्टन इंजन (ICE) के नाम से जाना जाता है, में ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियां गाड़ी बनाने वाली कंपनियों से अलग हो गई हैं क्योंकि इन गाड़ियों में ऊर्जा का गाड़ी के जीवन (लाइफ) और प्रदर्शन (परफॉर्मेंस) पर बहुत कम असर पड़ता है. इन गाड़ियों में ऊर्जा को हस्तांतरित (ट्रांसफर) करने की प्रक्रिया आसान और मशीनी (मेकेनिकल) है.
EV के साथ जो बदलाव आया वो है एक तरफ बैटरी पैक (जटिल केमिकल के साथ) और दूसरी तरफ चार्जिंग स्टेशन (बड़ी मात्रा में बिजली को ट्रांसमिट करना) का आना. कैसे एक चार्जर बैटरी को चार्ज करता है वो मूलभूत रूप से गाड़ी के जीवन और प्रदर्शन पर असर डालता है (चूंकि बैटरी का दाम EV की लागत के 50 प्रतिशत के बराबर होता है). इसलिए EV में ऊर्जा को ट्रांसफर करने की प्रक्रिया एक जटिल दो-तरफा समस्या है.
इस समस्या को हल करने के लिए हमें एक मूलभूत रूप से अनूठे DNA के साथ कंपनी बनाने की ज़रूरत थी. हमें न सिर्फ आधुनिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) और इंजीनियरिंग की क्षमता को बनाए रखने की ज़रूरत थी, बल्कि एक ख़ास बिज़नेस और ऑपरेशनल कुशाग्र बुद्धि भी विकसित करनी थी ताकि ग्राहकों को बिना किसी रुकावट के चार्जिंग अनुभव मुहैया कराया जा सके जो दिन में दो बार भी हो सकता है. इस संतुलन को हासिल करना हमारे लिए सबसे चुनौतीपूर्ण अनुभव रहा है.
4.प्रमुख भागीदारों के लिए सिफारिशें
प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (PLI) स्कीम के अलावा FAME स्कीम के साथ अभी तक सरकार ने अलग-अलग कंपनियों को EV के क्षेत्र में बढ़ावा देने की दिशा में अच्छा काम किया है. ये दोनों ही योजनाएं उपभोक्ताओं को EV ख़रीदने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. इसके अलावा, नया AIS-156 स्टैंडर्ड EV बनाने वाली कंपनियों को गाड़ियों के विकास में सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों का पालन करने का अनुरोध करता है. इसकी वजह से सड़कों पर अच्छी क्वॉलिटी की गाड़ियां आ रही हैं.
आगे की तरफ देखें तो इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के लिए परफॉर्मेंस-लिंक्ड इन्सेंटिव को लागू करके पूरे इकोसिस्टम को फायदा पहुंचाया जा सकता है. ये इन्सेंटिव पूरी तरह से इन कंपनियों के द्वारा हासिल की जाने वाले चार्जिंग की उपलब्धि के आधार पर हो. इससे ये सुनिश्चित किया जा सकेगा कि जो चार्जिंग नेटवर्क लगातार चार्जिंग की सुविधा मुहैया कराते हैं, उन्हें वित्तीय रूप से प्रोत्साहन मिलेगा. इस तरह अच्छा प्रदर्शन करने वाले और मज़बूत चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास होगा.
- आगे का रास्ता
चूंकि हम अपने समाधान को अधिक शहरों तक ले जा रहे हैं, ऐसे में हम कई वाहन निर्माता कंपनियों के साथ साझेदारी जारी रखने की योजना बना रहे हैं ताकि हमारे बैटरी पैक को गाड़ी में लगाया जा सके और 15 मिनट में चार्ज करने वाले कई रैपिड चार्जिंग वेरिएंट का निर्माण किया जा सके. हम ये सुनिश्चित करने की योजना भी बना रहे हैं कि हम जिस शहर में जा रहे हैं, वहां हमारे चार्जिंग स्टेशन का नेटवर्क बहुत बड़ा हो (हर 2 किलोमीटर के दायरे में एक चार्जिंग स्टेशन हो). भारत में सतत (सस्टेनेबल) मोबिलिटी के उम्मीद से भरे भविष्य पर विचार करते हुए और लॉजिस्टिक सेक्टर में EV की बढ़ती मांग को देखते हुए हमारी चाहत पर्याप्त मात्रा में एक्स्पोनेंट के EV को सड़कों पर तैनात करने की है ताकि एक कुशल, व्यापक रूप से इस्तेमाल में आने वाला और फायदेमंद चार्जिंग नेटवर्क तैयार किया जा सके.
अरुण विनायक एक्सपोनेंट एनर्जी के को-फाउंडर और CEO हैं.
संजय ब्यालाल एक्सपोनेंट एनर्जी के को-फाउंडर हैं.
सिद्धार्थ सिकची एक्सपोनेंट एनर्जी में ब्रैंड मैनेजर हैं.
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