Author : Gareth Price

Published on Mar 05, 2021 Updated 0 Hours ago

क्या महामारी हमें इस बात के लिए तैयार करने का ज़रिया हो सकती है कि हम दूसरी भूचाल लाने वाली घटनाओं, जो या तो घटित हो रही हैं या कुछ ही दिनों में होने वाली हैं, से ज़्यादा असरदार ढंग से निपट सकें?

भविष्य की आपातकालीन स्थितियों पर जीत हासिल करने के लिए ज़रूरी है लचीलेपन का निर्माण

भूचाल लाने वाली घटनाएं जैसे कोविड-19 महामारी हमारी सोच से भी बढ़कर नतीजे दे सकती है. ब्लैक डेथ ने ज़मींदारी प्रथा को ख़त्म करने में योगदान (यूके में) दिया क्योंकि इस महामारी की वजह से ग़ुलामों (बचने वाले) और उनके मालिकों के बीच जो शक्ति का संतुलन था वो थोड़ा बहुत ग़ुलामों के पक्ष में झुका. हाल के वर्षों में अमेरिका के ट्विन टावर पर 9/11 हमले के बाद निश्चित रूप से व्यापक भू-राजनीतिक बदलाव हुए. अफ़ग़ानिस्तान और उसके बाद मिडिल ईस्ट में युद्ध का असर अभी भी सामने आ रहा है. इन युद्धों ने डोनाल्ड ट्रंप के उदय में योगदान दिया: सैनिकों को वापस बुलाने की इच्छा और इसकी वजह से अमेरिका के अलग-थलग होने से चीन को आगे बढ़ने में मदद मिली.

कम ही लोगों ने 9/11 की वजह से आगे चलकर होने वाली घटनाओं के बारे में पूर्वानुमान लगाया होगा. उस वक़्त एक बड़ा दावा ये किया गया था कि हवाई जहाज़ की हाईजैकिंग की वजह से इस घटना के बाद हवाई यात्राएं कम होंगी. ये बात छह महीने तक तो सच साबित हुई लेकिन उसके बाद हवाई यात्रा ने 9/11 से पहले की रफ़्तार पकड़ ली और महामारी के आने तक हवाई यात्रा ऐसे ही बढ़ती रही. वैसे तो “सामान्य” हालात की तरफ़ लौटने में हवाई अड्डे पर बढ़ी हुई सुरक्षा की बड़ी भूमिका रही लेकिन इससे ये भी पता चलता है कि सदमे से उबरने के बाद लोगों की याददाश्त धुंधली पड़ जाती है.

ये दलील देना उचित लगता है कि महामारी का काफ़ी बुरा असर होगा. आने वाले दिनों में आर्थिक अराजकता के हालात पैदा हो सकते हैं. लेकिन ये अनुमान लगाना भी उतना ही मुमकिन है कि सामान्य हालात की तरफ़ लौटने की इच्छा भी स्पष्ट होगी. 

ये दलील देना उचित लगता है कि महामारी का काफ़ी बुरा असर होगा. आने वाले दिनों में आर्थिक अराजकता के हालात पैदा हो सकते हैं. लेकिन ये अनुमान लगाना भी उतना ही मुमकिन है कि सामान्य हालात की तरफ़ लौटने की इच्छा भी स्पष्ट होगी. एक चुनौती ये होगी कि महामारी की अच्छी बातों को काम में लाया जाए और शायद सबसे सकारात्मक बात होगी कि “ऐन समय पर” से “अगर ज़रूरत पड़े” मॉडल में बदला जाए.

भविष्य के संभावित परिदृश्य

अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया परिषद (एनआईसी) ने 2017 में भविष्य के लिए कई परिदृश्यों का सुझाव दिया था. इनमें अभी तक के मुताबिक़ सबसे भविष्यदर्शी परिदृश्य का नाम “द्वीप” रखा गया. इसमें कई घटनाओं की स्थिति रखी गई जिनकी वजह से “एक ज़्यादा रक्षात्मक, टुकड़ों में बंटी हुई दुनिया होगी क्योंकि बेचैन देश बाहरी चुनौतियों से ख़ुद की रक्षा करने के लिए लाक्षणिक और भौतिक तौर पर “दीवार” खड़ी करेंगे और इस तरह वो अस्थिरता के सागर में ‘द्वीप’ बन जाएंगे. वैश्विक मुद्दों जैसे आतंकवाद, नाकाम होते देश, प्रवासन और जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कम होने से मजबूर होकर ज़्यादा अलग-थलग देशों को अपने लिए जुगाड़ करना पड़ेगा.” एक मान्यता जिसकी वजह से एनआईसी को इस संभावित दुनिया के बारे में सोचना पड़ा, वो ये थी कि “2023 की वैश्विक महामारी के कारण नाटकीय ढंग से वैश्विक यात्रा कम हो गई क्योंकि बीमारी को फैलने से रोकने के लिए ऐसा करना ज़रूरी था लेकिन इससे वैश्विक व्यापार की रफ़्तार धीमी हो गई और उत्पादकता में गिरावट आई.”

तीन साल आगे की बात को छोड़ दें तो महामारी का आना पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं था. इसका अनुमान व्यापक तौर पर लगाया गया था

तीन साल आगे की बात को छोड़ दें तो महामारी का आना पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं था. इसका अनुमान व्यापक तौर पर लगाया गया था. क्या महामारी हमें इस बात के लिए तैयार करने का ज़रिया हो सकती है कि हम दूसरी भूचाल लाने वाली घटनाओं, जो या तो घटित हो रही हैं या कुछ ही दिनों में होने वाली हैं, से ज़्यादा असरदार ढंग से निपट सकें? इनमें डिजीटाईज़ेशन का असर और काम-काज के भविष्य के बारे में सवाल शामिल हैं. साथ ही साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों से जुड़े उभरते जोख़िम भी शामिल हैं. इन सबके ऊपर मौसम के प्रचंड रूप के साथ जलवायु परिवर्तन का असर आएगा जो कुछ लोगों को अभी से दिख रहा है. इससे भी ख़राब बात ये है कि इसी तरह के रुझान एक साथ आपदा की वजह बन सकते हैं चाहे वो बेहद ख़राब मौसम हो या जैसा कि पिछले साल उत्तरी अफ्रीका, मिडिल ईस्ट और दक्षिण एशिया में महामारी के साथ देखा गया टिड्डी दल का हमला हो या दक्षिण एशिया के लिए चक्रवाती तूफ़ान हो.

सामाजिक लचीलेपन का निर्माण

इस तरह के ख़तरों के ख़िलाफ़ हम सामाजिक लचीलेपन का निर्माण कैसे कर सकते हैं? कोविड-19 से निपटने में किस देश ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया, इस सवाल का निश्चित जवाब पाने में हमें महामारी के ख़त्म होने तक इंतज़ार करना पड़ सकता है लेकिन ब्लूमबर्ग ने नवंबर के आख़िर में अलग-अलग हालातों के आधार पर एक रैंकिंग तैयार की है जिसका नाम है- कोरोना वायरस महामारी: सर्वश्रेष्ठ, सबसे ख़राब जगहों की रैंकिंग. इस रैंकिंग में न्यूज़ीलैंड को सर्वश्रेष्ठ देश बताया गया है जिसके बाद जापान और ताइवान का स्थान है. कुछ निरंकुश देशों ने अच्छा प्रदर्शन किया (विशेषकर चीन आठवें नंबर पर) लेकिन लोकतांत्रिक देशों ने भी अच्छा किया. अच्छा प्रदर्शन करने वाले कई देशों में एक समानता ये है कि वो छोटे हैं या वहां सरकार की संघीय प्रणाली असरदार है. जिन देशों में निचले स्तर तक सत्ता का जितना ज़्यादा हस्तांतरण हुआ, उन्होंने उतना बेहतर प्रदर्शन किया (कुछ अपवादों को छोड़कर). एक और बात ये देखी गई कि जिन देशों को हाल के दिनों में महामारी का अनुभव था (ख़ासतौर पर पूर्वी एशिया के देश) उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया. इससे कमज़ोरी के विरोधाभास का पता चलता है यानी जो लोग आपदा के ज़्यादा अभ्यस्त हो चुके हैं वो उनसे लड़ने में बेहतर हैं.

अच्छा प्रदर्शन करने वाले कई देशों में एक समानता ये है कि वो छोटे हैं या वहां सरकार की संघीय प्रणाली असरदार है.

लचीलेपन का निर्माण खर्चीला हो सकता है लेकिन आमतौर पर आपदा के जोख़िम को कम करने के सामान्य नियम यानी एक डॉलर खर्च करके सात डॉलर बचाने में उपयुक्त बैठते हैं. 2016 में ब्रिटेन की रिटेल कंपनी टेस्को ने एक “प्रलय के दिन” का अभ्यास किया ताकि उस परिदृश्य की कल्पना की जा सके जब उसके मुख्यालय को बंद करने की नौबत आ जाए. इस परिदृश्य की वजह से एक ब्लूप्रिंट तैयार किया गया कि कैसे आपदा की स्थिति में कर्मचारी घर से काम कर सकते हैं. इसकी वजह से टेस्को के कर्मचारी महामारी के दौरान प्रभावी रूप से काम करने में सक्षम हो सके. इसमें दूसरों के मुक़ाबले ज़ूम पर लंबे समय तक काम करने का अनुभव भी उपयोगी रहा. लेकिन इस तरह की दूरदर्शिता स्पष्ट तौर पर सामान्य होने के बदले अपवाद है.

ख़तरों को देखते हुए इसे सामाजिक स्तर पर दोहराना साफ़तौर पर जटिल है और संभवत: खर्चीला भी. लेकिन तब भी ब्लूमबर्ग की रैंकिंग में जो बात ख़ास है वो ये कि जो देश सामान्यत: पर “ख़ुश” जनसंख्या की रैंकिंग में आगे हैं उन्होंने इस रैंकिंग में भी अच्छा प्रदर्शन किया है. प्रसन्न समाज लचीला समाज भी हो सकता है और शायद उनका पहले से मौजूद लचीलापन उनकी प्रसन्नता में योगदान करता है. दूसरे देशों को शायद ये ध्यान में रखना चाहिए.

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