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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बख़ूबी प्रगति और निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देने का संतुलन जनकल्याण और रोज़गार के साथ बिठाया है.
एक राजनीतिक जनादेश जिसमें सरकार अपने सहयोगियों पर निर्भर है, उसे देखते हुए निर्मला सीतारमण ने अपना 7वां आम बजट पेश करते हुए एक सधा हुआ संतुलन दिखाया है. बजट ने फ़ुर्ती दिखाते हुए चुनाव पूर्व के अपने रवैये ‘सब ठीक है’, से अपना रुख़ बदलते हुए 2024 के जनादेश के पीछे के सबसे बड़े राजनीतिक नैरेटिव यानी रोज़गार पर अपना ध्यान केंद्रित किया है. 2024 के बजट में ऐसी नीतियां बनाने और ऐसे फंड जुटाने पर ज़ोर दिया गया है, जिससे निजी क्षेत्र को रोज़गार पैदा करने के लिए प्रोत्साहन और पूंजी दी जा सके. इस प्रक्रिया में केंद्रीय बजट ने अपने पुराने नुस्खे को आज़माते हुए कारोबार करना आसान बनाने की कोशिश की है और अगली पीढ़ी के सुधारों का एलान किया है. बजट को लेकर शोर शराबे से दो क़दम पीछे हटकर देखें, तो ये देखते हैं ये सुधार और वित्तीय प्रोत्साहन छोटी और बड़ी कंपनियों को प्रोत्साहित करेंगे कि वो रोज़गार के मौक़े पैदा करें, उद्यमों का विस्तार करें या नए कारोबार शुरू करें और उनके ज़रिए देश की प्रगति को आगे ले जाएं.
बजट ने फ़ुर्ती दिखाते हुए चुनाव पूर्व के अपने रवैये ‘सब ठीक है’, से अपना रुख़ बदलते हुए 2024 के जनादेश के पीछे के सबसे बड़े राजनीतिक नैरेटिव यानी रोज़गार पर अपना ध्यान केंद्रित किया है.
आर्थिक सुधारों की बात करें, तो इसके पीछे का नैरेटिव बिल्कुल सियासी है. वित्त मंत्री सीतारमण ने अगली पीढ़ी के सुधारों के दायरे को ‘रोज़गार के अवसर बढ़ाने’ वाला बताया है. ये देखकर ख़ुशी होती है कि इन सुधारों में उत्पादन के सामान्य कारकों यानी ज़मीन, श्रम और पूंजी के अलावा, वित्त मंत्री ने उद्यमिता और तकनीक को नए कारकों के तौर पर जोड़ा है. ये पहली बार है कि उद्यमिता उत्पादन के एक फैक्टर के तौर पर देखा और शामिल किया गया है. जैसा कि हम सबको पता है कि ज़मीन, श्रम और पूंजी के पहले तीन फैक्टर बिना उद्यमिता के काम नहीं कर सकते हैं. श्रम को नौकरियों से जोड़ने का काम कौशल विकास का एक विशाल प्रस्ताव है. इसमें भारत की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में इंटर्नशिप के लिए पूंजी उपलब्ध कराना और कौशल विकास व इंटर्नशिप के लिए कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) का दायरा बढ़ाना भी शामिल है.
चूंकि ज़मीन का विषय राज्य सरकारों के अंतर्गत आता है, इसलिए निर्मला सीतारमण ने उसकी संवैधानिक पवित्रता बरक़रार रखी है. ऐसा लगता है कि 2024 के बजट ने राज्य सरकारों को उस विचार पर काम करने का इशारा किया है, जिसका जन्म तो दशकों पहले हुआ था, पर ऐसा लगता है कि उसका वक़्त अब आया है. वित्त मंत्री ने, सभी तरह की ज़मीनों की पहचान के लिए एक अनूठे नंबर या ‘भू-आधार’ का डेटा तैयार करने का प्रस्ताव रखा है; यानी ज़मीनों का डिजिटलीकरण; ज़मीन की एक रजिस्ट्री की स्थापना करना; और, इसको किसानों की रजिस्ट्री के साथ जोड़ना. ऐसा मूलभूत ढांचा क़र्ज़ के प्रवाह में मददगार साबित होगा. शहरी इलाक़ों के लिए वित्त मंत्री ने संपत्ति के रिकॉर्ड के प्रशासन, अपडेट करने और टैक्स प्रशासन के लिए आईटी पर आधारित व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव रखा है.
ऐसा लगता है कि 2024 के बजट ने राज्य सरकारों को उस विचार पर काम करने का इशारा किया है, जिसका जन्म तो दशकों पहले हुआ था, पर ऐसा लगता है कि उसका वक़्त अब आया है. वित्त मंत्री ने, सभी तरह की ज़मीनों की पहचान के लिए एक अनूठे नंबर या ‘भू-आधार’ का डेटा तैयार करने का प्रस्ताव रखा है; यानी ज़मीनों का डिजिटलीकरण
इसी से संबंधित नीतिगत निरंतरता के एक और प्रस्ताव में निर्मला सीतारमण ने जनविश्वा विधेयक 2.0 का ज़िक्र किया है, जिस पर काम चल रहा है, जिससे कारोबार करना और आसान बनाया जा सके. संसद ने पिछले साल जनविश्वास (प्रावधानों का संशोधन) क़ानून 2024 पारित किया था, जिसने अनुपालन के 183 प्रावधानों से आपराधिक धाराएं हटा दी थीं. इनमें से 113 धाराएं कारोबार करने से जुड़ी हुई थीं. ये एक अच्छी शुरुआत थी. लेकिन, अगर हम इस क़दम को एक सच्चे संदर्भ में रखकर देखें, तो ये अनुपालन के क़ानूनों के विशाल भंडार का एक मामूली सा हिस्सा मात्र है; ये जेल में डालने की उन 26 हज़ार 134 धाराओं का मात्र 0.4 प्रतिशत है, जिनका सामना कारोबारियों को करना पड़ता है. यानी अभी भी 26 हज़ार 21 धाराओं को तार्किक बनाया जाना बाक़ी है.
इनमें से केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में केवल 5,239 धाराएं आती हैं और बाक़ी राज्य सरकारों के दायरे में आती हैं. किसी उद्यमी को कारोबार करने के लिए जेल भेजा जा सकता है, ये हक़ीक़त अफ़सरशाही के हाथों में हफ़्ता वसूली और भ्रष्टाचार का औज़ार बन गई है. अनुपालन को तार्किक बनाना और उनमें सुधार करना, पूंजी और उद्यमियों को आकर्षित करने और प्रगति के रास्ते पर तेज़ी से बढ़ने का एक आसानी से हासिल किया जाने वाला लक्ष्य है. इससे कारोबार में नई जान डालने में बहुत अधिक मदद मिलेगी. ऐसे में जनविश्वास 2.0 को और साहसिक और व्यापक होना चाहिए. इसको रोज़गार के साथ जोड़ने से एक नैरेटिव भी बनेगा. निर्मला सीतारमण ने अपनी ओर से एक क़दम उठाते हुए स्रोत से ही टैक्स काटने (TDS) में देरी की एक धारा के आपराधिक प्रावधान को ख़त्म कर दिया है.
भविष्य के लिए भारत को तैयार करने के लिहाज़ से बजट 2024 में तीन छोटे मगर बेहद अहम क़दम भी उठाए गए हैं. पहला, बजट में क्रिटिकल मिनरल मिशन का एलान किया गया है, जो घरेलू उत्पादन, रिसाइकिल करने और अहम खनिज संपत्तियों को विदेश से हासिल करना आसान बनाएगा. ऊर्जा परिवर्तन के भारत के ज़्यादातर प्रयास गैलियम, मोलिब्डेनम और कोबाल्ट जैसे दुर्लभ खनिज तत्वों की उपलब्धता पर निर्भर करते हैं. दूसरा, बजट में छोटे परमाणु रिएक्टरों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया गया है. बजट में कहा गया है कि ये काम निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करके किया जाएगा. और तीसरा, वित्त मंत्री ने प्रस्ताव रखा है कि अगले दस साल में अंतरिक्ष की अर्थव्यवस्था में पांच गुने का विस्तार किया जाएगा. इसके लिए, निर्मला सीतारमण ने बजट में एक हज़ार करोड़ के वेंचर फंड का प्रस्ताव रखा है.
वित्त मंत्री ने टैक्स स्लैब को 11 से घटाकर छह कर दिया है. हो सकता है कि आप इस बात पर खीझें कि सात लाख रुपए से 15 लाख रुपए के बीच तीन टैक्स स्लैब क्यों रखे गए हैं. लेकिन, ये कोई बहुत नुक़सान वाली बात नहीं है.
आयकर को लेकर छोटे मोटे बदलाव करने का सिलसिला भी जारी है. वित्त मंत्री ने टैक्स स्लैब को 11 से घटाकर छह कर दिया है. हो सकता है कि आप इस बात पर खीझें कि सात लाख रुपए से 15 लाख रुपए के बीच तीन टैक्स स्लैब क्यों रखे गए हैं. लेकिन, ये कोई बहुत नुक़सान वाली बात नहीं है. स्टैंडर्ड डिडक्शन को 50 हज़ार से बढ़ाकर 75 हज़ार रुपए कर दिया गया है. इसके साथ ही साथ इस बार के बजट में मध्यम वर्ग को प्रतीकात्मक राहत दी गई है. लेकिन, टैक्स का दायरा बढ़ाने का मसला अभी भी अधूरा है. हो सकता है कि शायद ये कभी न हो.
इसके अलावा, इस बार के बजट में कैपिटल गेन्स टैक्स को भी सरल और तार्किक बनाया गया है. शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स पर 20 प्रतिशत की दर से टैक्स लगेगा. वहीं, लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स की टैक्स दर 12.5 प्रतिशत रखी गई है. वित्त संपत्तियों के लिए लॉन्ग और शॉर्ट टर्म की परिभाषा को भी अधिक तार्किक बनाया गया है. सूचीबद्ध निवेश एक साल के बाद लॉन्ग टर्म माना जाता है. वहीं, ग़ैर सूचीबद्ध और ग़ैर वित्तीय संपत्तियां दो साल के बाद लॉन्ग टर्म की श्रेणी में गिनी जाएंगी. ये तो ऊपरी स्तर का बदलाव है. ज़रूरत तो कैपिटल गेन्स की व्यवस्था की पूरी तरह मरम्मत करने की है. अभी के लिए शेयर में निवेश करने वालों को 2.5 प्रतिशत टैक्स अधिक देना पड़ेगा. वहीं, रियल एस्टेट में निवेश करने वालों को 7.5 प्रतिशत कम टैक्स देना होगा. पर चूंकि, इंडेक्सेशन के लाभ को रियल एस्टेट से हटा दिया गया है, ऐसे में इसमें निवेश करने वालों को बहुत ज़्यादा टैक्स भरना पड़ेगा. ये तरह से ये अच्छा भी है. क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था का अधिक वित्तीयकरण होगा. यही नहीं, निर्मला सीतारमण ने ‘एंजेल टैक्स’ को भी ख़त्म कर दिया है. ये टैक्स अनलिस्टेड कंपनियों पर लगता है और इससे स्टार्ट-अप के लिए वित्त जुटाने वाले बरसों से परेशान होते रहे हैं.
टैक्स के मामलों के आख़िरी हिस्से में वित्त मंत्री ने अगले छह महीने के दौरान 1961 के इनकम टैक्स क़ानून की व्यापक समीक्षा करने का प्रस्ताव रखा है. ये काम 1 फ़रवरी 2025 को उनके अगला बजट पेश करने से पहले पूरा किया जाना है. इसका मक़सद, इनकम टैक्स के क़ानून को ‘संक्षिप्त, स्पष्ट और पढ़ने व समझने में आसान बनाना’ है, जिससे इस क़ानून से जुड़े विवाद और क़ानूनी मसले कम हों और करदाताओं को ‘टैक्स के मामले में निश्चितता’ प्रदान की जा सके. इससे टैक्स की उस मांग को भी कम किया जा सकेगा, जो क़ानूनी विवादों में फंसी हैं. लेकिन, एक तरफ़ टैक्स के टारगेट के षडयंत्र और दूसरी तरफ़ बेलगाम भ्रष्टाचार और जवाबदेही से मुक्त अफ़सरशाही को देखते हुए, ये काम कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल होगा. प्रक्रिया की बात करें तो वित्त मंत्री ये प्रस्ताव रखकर अपना वादा निभाया है कि किसी के टैक्स का मूल्यांकन तीन साल के बाद उसी स्थिति में दोबारा खोला जा सकता है, अगर उसकी आमदनी 50 लाख या उससे ज़्यादा है, और ये मूल्यांकन भी अधिक से अधिक पांच सालों का हो सकेगा.
व्यापक स्तर पर देखें तो इस साल के बजट में कई दिलचस्प आंकड़े पेश किए गए हैं. पहला, ब्याज के भुगतान की हिस्सेदारी जो सरकार का सबसे बड़ा ख़र्च है, वो घटकर 19 प्रतिशत रह गया है. ये पिछली बार की तुलना में एक फ़ीसद कम है. इसको आगे भी जारी रहना चाहिए. दूसरा, घाटे के आंकड़े भी कम हुए हैं: वित्तीय घाटा 4.9 प्रतिशत है (जो 0.7 प्रतिशत कम है). वहीं, राजस्व घाटा 1.8 फ़ीसद है (जो 0.8 प्रतिशत कम है). बजट कुल 4.8 लाख करोड़ रुपए का है, जो पिछले साल की तुलना में 7.3 प्रतिशत अधिक है. अर्थव्यवस्था का आकार जो भी हो, भारत का बजट लगातार 11.1 प्रतिशत की वार्षिक चक्रवृद्धि दर (CAGR) से बढ़ रहा है.
सरकार के ख़र्च में बढ़ोत्तरी ने अर्थव्यवस्था की विकास दर को पीछे छोड़ दिया है. यही नहीं, व्यक्तिगत करदाताओं का इनकम टैक्स 15.4 प्रतिशत की दर से बढ़ते हुए 11.9 लाख करोड़ पहुंच गया है. ये तो सेंसेक्स से भी तेज़ी से बढ़ रहा है, और इसने कॉरपोरेट टैक्स को भी पीछे छोड़ दिया है, जो 10.2 लाख करोड़ ही है.
सरकार के ख़र्च में बढ़ोत्तरी ने अर्थव्यवस्था की विकास दर को पीछे छोड़ दिया है. यही नहीं, व्यक्तिगत करदाताओं का इनकम टैक्स 15.4 प्रतिशत की दर से बढ़ते हुए 11.9 लाख करोड़ पहुंच गया है. ये तो सेंसेक्स से भी तेज़ी से बढ़ रहा है, और इसने कॉरपोरेट टैक्स को भी पीछे छोड़ दिया है, जो 10.2 लाख करोड़ ही है. ये एक असामान्य बात है, जिसे टैक्स देने वालों का दायरा बढ़ाकर दूर किया जाना चाहिए. हो सकता है कि ये बात राजनीतिक तौर पर तसल्ली देने वाली लगे कि केवल 1.6 प्रतिशत लोग ही व्यक्तिगत कर देते हैं. लेकिन, इसकी वजह से करदाताओं के बीच नाराज़गी बढ़ रही है, और उनके ऊपर टैक्स का बढ़ता बोझ एक नाइंसाफ़ी है. विदेश में ख़र्च करने वाले भारतीय नागरिकों पर सोर्स पर ही टैक्स वसूलना, कर के दायरे में आने वाले नागरिकों पर नक़दी के प्रवाह का एक और हास्यास्पद बोझ है. छह महीने बाद आने वाले 2025 के बजट को विदेश में व्यय पर लगने वाले इस टैक्स को ख़त्म करना ही चाहिए और व्यक्तिगत कर के बोझ को कम करने पर काम करना चाहिए.
2024 के बजट में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिनेश का एक विशाल मौक़ा गंवा दिया है. फरवरी 2021 में निर्मला सीतारमण ने सामरिक विनिवेश के लिए एक नीति का एलान किया था. इस नीति के अंतर्गत, चार सेक्टरों- परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा, परिवहन और दूससंचार; पावर, पेट्रोलियम, कोयला और अन्य खनिजों; और बैंकिंग, बीमा एवं वित्तीय सेवाओं को सामरिक माना गया था और इनमें सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी को ‘न्यूनतम संभव स्तर’ लाने के साथ साथ बाक़ी का हिस्सा निजी क्षेत्र में होने की बात कही गई थी. कहा गया था कि इस बचे हुए हिस्से के निजीकरण, विलय या फिर बंद किया जाएगा. पिछले 12 महीनों के दौरान केंद्र सरकार के उद्यमों का मूल्य दोगुना होकर 50 लाख करोड़ रुपए (लगभग 600 अरब डॉलर) हो चुका है. सरकार ये लिए ये अच्छा समय है कि वो इसके एक हिस्से का या तो विनिवेश करे या फिर सरकारी क्षेत्र की कुछ कंपनियों की रणनीतिक बिक्री करे.
कुल मिलाकर, निर्मला सीतारमण ने नौकरियों के मामले में तो नैरेटिव को बख़ूबी बनाया है, पर आर्थिक सुधारों को भी जारी रखा है. 2024 का बजट सुधारों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मज़बूत विश्वास के मुताबिक़ नीतिगत निरंतरता को जारी रखने वाला है, और इसके साथ ही साथ बजट ने आंध्र प्रदेश और बिहार के साथ राजनीतिक आम सहमति बनाने की भी कोशिश की है. अगले पांच सालों के लिए भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था की दशा दिशा यही रहने वाली है.
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Gautam Chikermane is Vice President at Observer Research Foundation, New Delhi. His areas of research are grand strategy, economics, and foreign policy. He speaks to ...
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