Author : Kanchan Gupta

Published on Feb 04, 2019 Updated 0 Hours ago

इस बजट में उल्‍लेख किए गए अहम प्रस्तावों के जरिए मुख्य रूप से ग्रामीण समुदायों और शहरी मध्यम वर्गों को लक्षित किया गया है।

बजट 2019: स्मार्ट राजनीति, स्मार्ट अर्थशास्त्र

अच्छी राजनीति और अच्छे अर्थशास्त्र का गठजोड़ अक्‍सर संभव नहीं हो पाता है। दूसरे शब्‍दों में, अच्‍छी राजनीति और अच्‍छा अर्थशास्त्र दोनों शायद ही कभी एक साथ संभव हो पाते हैं। हालांकि, स्मार्ट राजनीति और स्मार्ट अर्थशास्त्र का गठजोड़ वाकई संभव है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने शुक्रवार को यह कमाल कर दिखाया और इसके साथ ही यह सरकार अगले आम चुनाव में 100 दिन से भी कम का मामूली समय शेष रहते एक ही झटके में विपक्ष को पछाड़ते हुए काफी आगे निकल गई।

जब सरकार ने यह घोषणा की थी कि वह ‘बजट’ पेश करेगी, न कि चुनावी वर्ष वाला पारंपरिक‘लेखानुदान,’ तभी यह स्पष्ट हो गया था कि मोदी इस अवसर का उपयोग मतदाताओं के नाराज वर्गों का दिल जीतने में करेंगे। वैसे तो मोदी भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र के माध्यम से भी ऐसा कर सकते थे, लेकिन वैसी स्थिति में इसे महज ‘उनकी पार्टी के वादों बनाम विपक्ष, विशेषकर कांग्रेसके वादों’ के रूप में मान लिया जाता। दरअसल, कल्याणकारी उपायों या कदमों को इस वर्ष के बजट प्रस्तावों के तौर पर पेश करने से ये दृढ़ प्रतिबद्धताओं के रूप में सामने आए हैं जिन्‍हें आगे चलकर केवल बढ़ाया जा सकता है, लेकिन कम नहीं किया जा सकता है।

हमें ठीक इसी नजरिए से बजट में पेश किए गए अहम प्रस्तावों पर गौर करना चाहिए। ये प्रस्‍ताव मुख्य रूप से ग्रामीण समुदायों और शहरी मध्यम वर्गों को ध्‍यान में रखकर पेश किए गए हैं।इसके अलावा, बजट प्रस्‍तावों में बुजुर्गों (पेंशनभोगी) और चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण हिंदी भाषी राज्यों में विशिष्‍ट जातिगत पहचान वाले विभिन्न समुदायों के हितों का भी ख्‍याल रखा गया है। यही नहीं, मोदी ने गोवंश संसाधनों के कल्याण से जुड़ी ‘कामधेनु योजना’ के माध्यम से भाजपा के सबसे अहम निर्वाचन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आश्‍वस्‍त करने का भी भरपूर ख्‍याल रखा है।

कल्याणकारी उपायों या कदमों को इस वर्ष के बजट प्रस्तावों के तौर पर पेश करने से ये दृढ़ प्रतिबद्धताओं के रूप में सामने आए हैं जिन्‍हें आगे चलकर केवल बढ़ाया जा सकता है, लेकिन कम नहीं किया जा सकता है।

मोदी ने आर्थिक दृष्टि से नुकसानदेह मानी जाने वाली ‘कृषि ऋण माफी’या खैरात के जरिए आय की गारंटी देने की घोषणा करने के बजाय ऐसे छोटे किसानों को 6,000 रुपये प्रति वर्ष की आय सहायता प्रदान करने का विकल्प चुना है, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। इसके तहत भुगतान बीते दिसंबर 2018 से किया जाना है। उन्‍हें मिल रहे अन्य लाभों के अलावा इस राशि को भी सीधे उनके जन धन खातों में डाल दिया जाएगा। इतना ही नहीं, इस राशि का कुछ हिस्सा एक नई मेगा पेंशन योजना के लिए निर्धारित प्रीमियम पर खर्च करने से 60 वर्ष की आयु के बाद लाभार्थियों को प्रति माह 3,000 रुपये मिलेंगे। इसके अलावा, प्राकृतिक आपदाओं के समय किसानों के ऋणों पर उन्‍हें5 प्रतिशत तक ब्याज सब्सिडी भी मिलेगी।

5 लाख रुपये तक की आय अर्जित करने वालों को आयकर में छूट देने से 40 प्रतिशत से भी अधिक करदाता लाभान्वित होंगे। यदि स्मार्ट निवेश को भी ध्‍यान में रखा जाए, तो प्रति वर्ष 7.5 लाख रुपये तक की कमाई करने वाले लोग (कुछ विशेषज्ञ इसे 8.5 लाख रुपये आंक रहे हैं) अब कर का भुगतान करने से पूरी तरह मुक्‍त हो जाएंगे। तत्काल आयकर रिफंड की शुरुआत करने, टैक्‍स संबंधी जांच में करदाता से सीधे संपर्क को समाप्‍त कर देने, किराये पर अनुमानित कर को हटा देने इत्‍यादि सेभी मध्यम वर्गों का समर्थन जीतने में आसानी होगी। वैसे तो बचत से अर्जित ब्याज पर टीडीएस की सीमा बढ़ा देना कोई बड़ा कदम प्रतीत नहीं होता है, लेकिन ज्यादातर पेंशनभोगियों के लिए यह एक बड़ी प्रशासनिक राहत है।

वैसे तो बचत से अर्जित ब्याज पर टीडीएस की सीमा बढ़ा देना कोई बड़ा कदम प्रतीत नहीं होता है, लेकिन ज्यादातर पेंशनभोगियों के लिए यह एक बड़ी प्रशासनिक राहत है।

विभिन्‍न उपायों की तीसरी चाल चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाने वाले समुदायों पर लक्षित है। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोग स्‍वयं से जुड़े कल्याणकारी कार्यक्रमों पर बढ़ाए गए खर्च से लाभान्वित होंगे। पशुपालन और मत्‍स्‍य पालन पर निर्भर समुदाय इन व्यवसायों से जुड़े जातिगत पहचान वाले लोगों तक किसान क्रेडिट कार्डों का विस्तार होने से लाभान्वित होंगे।

इन सब कदमों के साथ-साथ अन्‍य उपायों के जरिएभी एनडीए या भाजपा इस आरोप को निराधार साबित करने का प्रयास कर रही है कि वह रोजगार सृजित करने में विफल रही है।सरकार और पार्टी दोनों ने हीयह भी स्‍पष्‍ट कह दिया है कि नौकरियों का संकट न तो वास्‍तविकता है और न ही यह बढ़ता जा रहा है। वित्त मंत्री पीयूष गोयल द्वारा एमएसएमई को कई संकेत दिए गए और इसके साथ ही उन्हें फिर से प्रेरित करने की आवश्यकता जताई। एक स्मार्ट राजनीतिज्ञ के रूप मेंउन्‍होंनेदांव पर लगी नौकरियोंसे जुड़ी अस्थिरता से स्‍वयं को दूर रखा।

हालांकि, यह बजट का केंद्रीय विषय नहीं है। इस बजट का उद्देश्य समाज के इन अंसतुष्‍ट वर्गों को आश्‍वस्‍त करके उनके असंतोष को दूर करना है — सबसे खराब आर्थिक स्थिति वाले किसान, नाराज मध्यम वर्ग, जिन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उनका दोहन किया जा रहा है, और सबसे बड़ी संख्या में सांसदों को निर्वाचित करने वाले राज्‍यों में निवास कर रहे अन्य पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां।

इस बजट का उद्देश्य समाज के इन अंसतुष्‍ट वर्गों को आश्‍वस्‍त करके उनके असंतोष को दूर करना है — सबसे खराब आर्थिक स्थितिवाले किसान, नाराज मध्यम वर्ग, जिन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उनका दोहन किया जा रहा है,और सबसे बड़ी संख्या में सांसदों को निर्वाचित करने वाले राज्‍यों में निवास कर रहे अन्य पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां।

सरकारों कोकिसानों की समस्‍याओं का निवारण करते वक्‍तउनके साथ खुशामदी बर्ताव करनेके लिए जाना जाता है। सरकारों को मध्यम वर्गों की समस्‍याओं से निपटने के दौरान सनकी और अक्खड़ अंदाज अपनाने के लिए भी जाना जाता है, जो उन्हें निरंतर कसूरवार बनाता है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि कोई सरकार वास्तव में मध्यम वर्गों के साथ अच्‍छा बर्ताव करती रही है, उनके द्वारा अदा किए गए करों और राष्ट्र-निर्माण में उनके योगदान के लिए उनकी सराहना करती रही है।इस बर्ताव कास्‍वयं हीराजनीतिक लाभ मिलना चाहिए।

जैसा कि पहले से ही पता था कि विपक्ष ने प्रस्तावों को ‘राजनीतिक बजट’ करार दिया है और इसके साथ ही सरकार पर मतदाताओं को बरगलाने का आरोप लगाया है। यदि विपक्ष बजट से कुछ और आस लगाए बैठा था, तो यह उनके नेताओं की सरासर नादानी है। मोदी ने स्मार्ट दांव खेला है। क्या इस दांव से इस साल गर्मियों में उन्‍हें बड़ी संख्‍या में वोट मिलेंगे, यह देखना अभी बाकी है। यदि मोदी फि‍र से सत्ता हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं, तो उनकी यह सौगात बहुत ज्‍यादा महंगी साबित नहीं होगी। इससे महज राजकोषीय घाटा 3.3 प्रतिशत से थोड़ा बढ़कर 3.4 प्रतिशत के स्‍तर पर पहुंच जाएगा। बढ़ते जीएसटी संग्रह और कर अनुपालन की बदौलत इस बोझ को वहन किया जा सकता है।

विपक्ष, अर्थात कांग्रेस अब महज मोदी के मुकाबले ज्‍यादा दांव लगा सकती है औरमतदाताओं को उनसे कहीं अधिक देने का वादा कर सकती है।इसलिए, महज दलील की ही खातिर, इसे ध्‍यान में अवश्‍य रखना होगा कि यदि भाजपा चुनाव हार भी जाती है, तो भी मोदी ने शुक्रवार को अपने एजेंडे के तहत जो वादा किया है, विपक्ष उसमें कांट-छांट करना भूल जाए और इसके लिए उसे दायरे के साथ-साथ खर्च भी बढ़ाना होगा। बिल का भुगतान विपक्ष को करना होगा, न कि मोदी को।

यही दांव बजट को स्मार्ट राजनीति और स्मार्ट अर्थशास्त्र दोनों के ही रूप में पेश करता है।

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