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Published on Nov 18, 2024 Updated 22 Hours ago

अपने समृद्ध समुद्री संसाधनों का फायदा उठाकर और सार्थक सहयोग से जुड़कर भारत अपनी ब्लू इकॉनोमी रणनीति को सही दिशा में ले जा सकता है.

#BlueEconomy में प्रगति: विकास के उद्देश्य से साझेदारी

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यह लेख “सागरमंथन एडिट 2024” निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.


भारत की ब्लू इकॉनोमी समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग पर ज़ोर देती है. ब्लू इकॉनोमी देश की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है, क्योंकि ये जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी और जैव विविधता को होने वाले नुकसान को संबोधित करती है. ब्लू इकॉनोमी पर आगे बात करने से पहले ये समझना ज़रूरी है कि इसकी परिभाषा क्या है. ब्लू इकॉनोमी में समुद्री आवागमन, फिशिंग, एक्वाकल्चर, तटीय पर्यटन, रिन्यूएबल एनर्जी, वाटर डिसेलिनेशन, गहरे समुद्र में तार डालना, समुद्र से खनन, समुद्री संसाधन और बायोटेक्नोलॉजी को शामिल किया जाता है. ये बहुआयामी दृष्टिकोण आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण को प्राथमिकता देता है. अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रयासों के बीच तालमेल बिठाना ब्लू इकॉनोमी की क्षमता को साकार करने की दिशा में महत्वपूर्ण है. इससे भारत अपने आर्थिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाते हुए पर्यावरणीय प्रबंधन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को निभाने में सक्षम हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रयासों के बीच तालमेल बिठाना ब्लू इकॉनोमी की क्षमता को साकार करने की दिशा में महत्वपूर्ण है. इससे भारत अपने आर्थिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाते हुए पर्यावरणीय प्रबंधन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को निभाने में सक्षम हो सकता है.

भारत की ब्लू इकॉनोमी रणनीति के केंद्र में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग के लिए वचनबद्धता है. मैरीटाइम इंडिया विजन (एमआईवी) 2030 और मैरीटाइम अमृत काल (एमएके) विजन 2047 ब्लू इकॉनोमी के व्यापक ढांचे का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसका उद्देश्य भारत के समुद्री क्षेत्र को आर्थिक वृद्धि और सतत विकास के एक महत्वपूर्ण केंद्र में बदलना है. बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय (MoPSW) ने ब्लू इकॉनोमी ढांचे के भीतर एक समन्वय समिति की स्थापना की है. इसका उद्देश्य स्थायी प्रथाओं और नीति निर्माण के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण सुनिश्चित करना और हितधारकों के बीच सहयोग बढ़ाना है.

अंतरराष्ट्रीय साझेदारी भारत की कोशिशों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. विदेशी अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग से ज्ञान के हस्तांतरण और संसाधनों और तकनीकी नवाचारों के अवसर पैदा होते हैं. ऐसा किया जाना समुद्री संसाधनों के सतत विकास के लिए आवश्यक है. ये साझेदारी भारत के तटीय इलाके में रहने वाले समुदायों के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों का समाधान करने में मदद करती है. इससे स्थानीय संदर्भों के अनुकूल अत्याधुनिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी तक पहुंच आसान होती है. अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से, भारत ब्लू इकॉनोमी के अगुआ देशों से सीखता है और साथ ही दुनिया के महासागरों की रक्षा की सामूहिक कोशिशों में योगदान भी देता है.

समुद्री अनुसंधान

महासागर की रिन्यूएबल एनर्जी पर ध्यान केंद्रित करना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों रणनीतियों का एक प्रमुख घटक है. भारत में ज्वारीय (टाइडल) और तरंग (वेव) ऊर्जा में अपार क्षमता है. अनुमान है कि इसके माध्यम से क्रमशः 12,000 मेगावाट और 40,000 मेगावाट ऊर्जा पैदा की जा सकती है. हालांकि, इस क्षमता का दोहन करने के लिए अनुसंधान और विकास में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है. अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों और संस्थानों के साथ जुड़कर भारत उच्च पूंजी लागत और तकनीकी जटिलता से संबंधित बाधाओं को दूर कर सकता है. केरल के विझिंजम में 1 मेगावाट के इको वेव एनर्जी प्लांट और लक्षद्वीप में 65 किलोवाट ओसिन थर्मल एनर्जी कनवर्जन स्कीम (ओटीईसीएस) जैसी परियोजनाएं अंतरराष्ट्रीय सहयोग के सकारात्मक परिणामों का उदाहरण हैं. इस तरह की पहल भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को आगे बढ़ाती हैं. इतना ही नहीं इससे देश को सतत ऊर्जा समाधानों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन की समस्या को संबोधित करने में वैश्विक प्रयासों में योगदानकर्ता के रूप में भी स्थान मिलता है.

भारत ने अपनी विशाल समुद्री तटरेखा और समृद्ध जैव विविधता का फायदा उठाते हुए मैरीटाइम रिसर्च की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है. इस संबंध में की जा रही राष्ट्रीय पहलें समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की समझ को बढ़ाती है, स्थायी मत्स्य पालन को बढ़ावा देती है, और रिन्यूएबल ओसिन एनर्जी टेक्नोलॉजी का विकास करती है. गहरे समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र की खोज, समुद्री अनुसंधान में भारत के नेतृत्व पर प्रकाश डालती है. इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (आईएसए) के साथ साझेदारी में पॉलीमेटेलिक नोड्यूल के दोहन के लिए किए गए अभियान नई समुद्री प्रजातियों की खोज में मदद करते हैं. इसके अलावा इससे गहरे समुद्र में आवासों को लेकर समझ भी बनती है. इतना ही नहीं, भारत की समृद्ध समुद्री जैव विविधता से प्राप्त समुद्री फार्मास्यूटिकल्स पर ज़ोर ये दर्शाता है कि स्वास्थ्य और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान मिलकर क्या नतीजे हासिल हो सकते हैं. साझा कोशिशों से समुद्री संसाधनों के संरक्षण को सुनिश्चित करते हुए स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करते हुए नई दवाओं और उपचारों का विकास हो सकता है.

भारत की समृद्ध समुद्री जैव विविधता से प्राप्त समुद्री फार्मास्यूटिकल्स पर ज़ोर ये दर्शाता है कि स्वास्थ्य और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान मिलकर क्या नतीजे हासिल हो सकते हैं.

तटीय समुदायों को सशक्त बनाना भारत की ब्लू इकॉनोमी रणनीति का एक और महत्वपूर्ण पहलू है. भारत सरकार का मानना है कि सतत विकास में स्थानीय आबादी की आवाज़ और विशेषज्ञता शामिल होनी चाहिए. तटीय समुदायों को शिक्षित करने और उन्हें मछली पकड़ने के स्थायी तरीकों और समुद्री संसाधन प्रबंधन कौशल से लैस करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय कार्यक्रम ज़रूरी हैं. इन प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के माध्यम से काफी बढ़ाया जाता है, जो सफल सामुदायिक जुड़ाव मॉडल साझा करते हैं.

ब्लू इकॉनोमी की साझेदारी बढाने में यूनिवर्सिटीज़ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. ये विश्वविद्यालय सतत महासागर संसाधन प्रबंधन और आर्थिक विकास के लिए उद्योग, सरकार और समुदायों के बीच अनुसंधान, नवाचार और सहयोग को बढ़ावा देते हैं. दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला विश्वविद्यालय इसका श्रेष्ठ उदाहरण है. ये विश्वविद्यालय अपने महासागर विज्ञान परिसर के माध्यम से अपने कार्यक्रमों में तटीय समुदायों को भी शामिल करता है. मछली पकड़ने के टिकाऊ तरीके, पर्यटन और तटीय संरक्षण के मुद्दे पर यहां वर्कशॉप का आयोजन किया जाता है. नेल्सन मंडेला यूनिवर्सिटी स्थानीय आबादी को जिम्मेदारी से समुद्री संसाधनों का प्रबंधन करने और ब्लू इकॉनोमी में भाग लेने का अधिकार देती है. इन प्रथाओं को स्थानीय संदर्भों में अपनाकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि तटीय समुदाय सक्रिय रूप से ब्लू इकॉनोमी में भाग लें. समुद्री संसाधनों की सुरक्षा करते हुए अपनी आजीविका में सुधार करें. इसी तरह, इंडियन मैरीटाइम यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित तटीय समुदाय और समुद्री प्रदूषण (सीसीएमएआरपीओएल) अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन सक्रिय रूप से स्थानीय और वैश्विक क्षेत्र के वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, नियामक निकायों, वर्गीकरण समितियों और इस उद्योग के नेताओं को एक साथ लाता है. इस तरह के साझा कदम समृद्ध संवाद को बढ़ावा देते हैं. नए विचारों और सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करते हैं.

भारत की रणनीति

भारत ने अंतरराष्ट्रीय साझेदारी बनाना जारी रखा है. इसीलिए साझा अनुसंधान और विकास पर ध्यान सर्वोपरि है. महासागरीय अनुसंधान नवाचार के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है. स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देता है. ये पर्यावरणीय स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए आर्थिक अवसरों को बढ़ाते हैं. जलवायु परिवर्तन प्रभाव, समुद्री प्रदूषण और जैव विविधता संरक्षण जैसे अनुसंधान के क्षेत्रों को, राष्ट्रीय विशेषज्ञता और अंतरराष्ट्रीय ज्ञान, दोनों से काफी लाभ होता है. अलग-अलग सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों और निजी क्षेत्र सहित विविध हितधारकों को एक साथ लाकर, भारत ब्लू इकॉनोमी के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक मज़बूत ढांचा तैयार कर सकता है.

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि भारत की ब्लू इकॉनोमी रणनीति एक संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाती है. ये राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के प्रयासों को प्राथमिकता देती है. अपने समृद्ध समुद्री संसाधनों का लाभ उठाकर और सार्थक सहयोग में संलग्न होकर, भारत महासागर के पारिस्थितिक स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए स्थायी आर्थिक प्रगति कर सकता है. विभिन्न देशों के बीच अनुसंधान में सहयोग का भी उसे फायदा मिल रहा है. ये पहल देशों को क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों के अनुरूप साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को सूचित करते हुए विविध विशेषज्ञता प्रदान करते हैं. 

ब्लू इकॉनोमी में साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए हमें कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है. विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच घनिष्ठ सहयोग के माध्यम से अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए. इसके अनुरूप प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ क्षमता निर्माण को बढ़ाना होगा.

राष्ट्रीय पहलों के साथ अंतरराष्ट्रीय ज्ञान और संसाधनों का एकीकरण भारत की क्षमताओं को मज़बूत कर रहा है. उसके सामने पेश आने वाली चुनौतियों का सामना करने, नवाचार को बढ़ावा देने और समुद्री संसाधनों के जिम्मेदार प्रबंधन के लिए मददगार साबित हो रहा है. 

ब्लू इकॉनोमी में साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए हमें कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है. विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच घनिष्ठ सहयोग के माध्यम से अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए. इसके अनुरूप प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ क्षमता निर्माण को बढ़ाना होगा. सरकार और शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग के माध्यम से साक्ष्य-आधारित नीतियां विकसित करनी होंगी. संसाधन प्रबंधन में स्थानीय समुदायों को शामिल करना उनके सशक्तिकरण और स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है. इसके अलावा, सार्वजनिक-निजी भागीदारी सतत विकास के लिए संसाधनों और विशेषज्ञता का लाभ उठा सकती है. वहीं अंतरराष्ट्रीय सहयोग, ज्ञान साझा करने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करेगा. आखिर में ये कहा जा सकता है कि निगरानी और मूल्यांकन के लिए रूपरेखा स्थापित करनी होगी. इन्हीं नई पहलों से इसकी प्रभावशीलता और अनुकूलन क्षमता सुनिश्चित होगी, जिससे ब्लू इकॉनोमी में सार्थक प्रगति होगी.


(मालिनी वी शंकर इंडियन मैरीटाइम यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर हैं.)

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