Published on May 07, 2021 Updated 0 Hours ago

5 मई को ममता बनर्जी ने तीसरी बार बंगाल के मुख्यमंत्री का कामकाज संभाल लिया.

बंगाल विधानसभा चुनाव 2021: एक पड़ताल

बंगाल विधानसभा चुनाव के 2 मई को घोषित नतीजों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने ज़बरदस्त जीत दर्ज की. इसके साथ ही चुनावी मुक़ाबले के बेहद रोमांचक होने को लेकर लग रही तमाम अटकलों पर विराम लग गया. भारत के राजनीतिक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बंगाल चुनाव कई मायनों में बेहद अहम रहा. पहला, इस बार का बंगाल चुनाव सत्तारूढ़ टीएमसी के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था. उसे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस-लेफ़्ट-इंडियन सेकुलर फ्रंट (आईएसएफ) से कड़ी टक्कर मिलती दिख रही थी. राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी ने 2014 से ही अपना दबदबा कायम कर रखा है. अगर बंगाल की बात करें तो 2021 के विधानसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी ने खुद को एक प्रभावी ताक़त के तौर पर पेश किया. ग़ौरतलब है कि पश्चिम बंगाल उन चंद राज्यों में से एक है जहां बीजेपी ने ना तो प्रत्यक्ष रूप से और न ही किसी पार्टी के सहयोगी दल के रूप में कभी राज किया है. दूसरा, पिछले कुछ वर्षों से कुछ मुद्दे लगातार सुर्ख़ियों में छाए रहे. इनमें नागरिकता संशोधन कानून, राजनीतिक हिंसा, अम्फ़ान तूफ़ान प्रबंधन, धार्मिक पहचान, जातीय राजनीति और पांव पसारती महामारी प्रमुख हैं. चुनाव में मुख्य मुक़ाबला टीएमसी और बीजेपी के बीच था. ऐसे में राजनीतिक तौर पर किसी पक्ष की जीत-हार को लेकर अटकलें लगाना बेहद कठिन हो गया था.

ग़ौरतलब है कि पश्चिम बंगाल उन चंद राज्यों में से एक है जहां बीजेपी ने ना तो प्रत्यक्ष रूप से और न ही किसी पार्टी के सहयोगी दल के रूप में कभी राज किया है.

किसको कितना सीट 

बंगाल चुनाव से पहले ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में 2016 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों के प्रमुख राजनीतिक मुद्दों और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच वोटों की हिस्सेदारी का विश्लेषण किया गया था. 2016 से 2019 के बीच के आंकड़ों पर ग़ौर करें तो हम पाते हैं कि विधानसभा की कुल 294 सीटों में से 118 सीट पर बीजेपी ने दूसरे दलों के मुक़ाबले बढ़त बनाई थी. बीजेपी ने इन सीटों पर टीएमसी समेत विभिन्न राजनीतिक दलों को पीछे छोड़ा था. दूसरी ओर टीएमसी ने दूसरे दलों से विधानसभा की 38 सीटें छीनने में कामयाबी हासिल की थी. हालांकि टीएमसी ने ये सफलता बीजेपी को छोड़कर बाक़ी राजनीतिक दलों को पछाड़कर हासिल की थी. मुर्शिदाबाद ज़िले की शमशेरगंज विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने टीएमसी के ऊपर बढ़त बनाने में कामयाबी पाई थी. बाकी की 137 सीटों पर 2016 से 2019 के बीच उन्हीं पार्टियों का दबदबा बरकरार रहा जिनका वहां पहले से ही कब्ज़ा था. इनमें से 126 सीटों पर टीएमसी सबसे आगे रही. बीजेपी ने अपनी जीती हुई तीनों सीट पर कब्ज़ा बरकरार रखा. कांग्रेस भी अपने कब्ज़े वाली विधानसभा की 8 सीटों पर बढ़त बनाने में कामयाब रही. बहरहाल 2021 के नतीजे साफ़ तौर से दो धुरों में बंटे हुए हैं. टीएमसी ने 213 सीटों पर जीत दर्ज की. जबकि बीजेपी ने विपक्षी दल के रूप में खुद को स्थापित करते हुए अपनी सीटों की संख्या को 2016 के 3 से बढ़ाकर 77 करने में कामयाबी पाई. कांग्रेस-लेफ़्ट-आईएसएफ़ गठजोड़ ने एक सीट जीती. आईएसएफ़ की राष्ट्रीय सेकुलर मजलिस पार्टी ने भानगर विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की. 

(नोट: 2016, 2019 और 2021 के तीनों चुनाव में कांग्रेस और लेफ़्ट फ्रंट ने राजनीतिक गठजोड़ बनाया था. 2019 में लोकसभा के चुनाव में पार्टियों द्वारा बनाई गई बढ़त का विधानसभावार विश्लेषण किया गया है: 2021 में 292 (294 की जगह) विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए हैं. बाकी की दो सीटों पर प्रत्याशियों के निधन की वजह से चुनाव टाल दिए गए हैं.)

अभी से ये नहीं कहा जा सकता कि टीएमसी जैसी क्षेत्रीय पार्टी की इस भारी जीत से केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार के ख़िलाफ़ मज़बूत विपक्ष खड़ा हो जाएगा.

जंगल महल के ज़िलों ख़ासतौर से बांकुड़ा, पुरुलिया, पश्चिमी मिदनापुर और झारग्राम ने 2021 में टीएमसी की ज़बरदस्त जीत में बड़ी भूमिका निभाई. यहां दिलचस्प बात ये है कि बांकुड़ा, पश्चिमी बर्द्धमान और दार्जिलिंग जैसे ज़िले 2016 से 2019 तक पूरी तरह से बीजेपी के खाते में आ गए थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में इन ज़िलों में विधानसभावार सारी सीटों पर बीजेपी ने बाक़ी तमाम पार्टियों पर बढ़त बना ली थी. 2019 में पुरुलिया और झारग्राम में टीएमसी सिर्फ़ एक विधानसभा सीट में बढ़त बरकरार रखने में कामयाब रही थी. इन दोनों ज़िलों की बाक़ी तमाम सीटों पर 2019 में बीजेपी सबसे आगे रही थी. बहरहाल 2021 के नतीजों ने इन रुझानों को सिर के बल पलट दिया. दार्जिलिंग को छोड़कर ज़्यादातर ज़िलों में टीएमसी एक बार फिर से अपना दबदबा बनाने में कामयाब रही. 

हालांकि अभी से ये नहीं कहा जा सकता कि टीएमसी जैसी क्षेत्रीय पार्टी की इस भारी जीत से केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार के ख़िलाफ़ मज़बूत विपक्ष खड़ा हो जाएगा. एनडीए के पास अब भी लोकसभा में 336 सीटें (543 में से) और राज्यसभा में 118 सीटें (245 में से) हैं. बंगाल के चुनाव से पहले टीएमसी से बड़ी तादाद में नेताओं ने पाला बदला. चुनाव में बीजेपी ने ज़बरदस्त प्रचार अभियान चलाया. प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने पिछले कुछ महीनों में अनेक बार प. बंगाल की यात्राएं कीं. इन सबके बावजूद टीएमसी की इस जीत से 2024 के संसदीय चुनावों से पहले क्षेत्रीय दलों की एकजुटता और संगठित शक्ति के सामने आने की संभावनाएं बढ़ गई हैं. पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्रीय दलों के बीच ऐसी एकता दिखाई नहीं दी है.

बंगाल में बीजेपी का एक ताक़त के रूप में उदय

इसमें कोई शक नहीं कि चुनाव से पहले ही बंगाल में बीजेपी का एक ताक़त के रूप में उदय हो चुका था. 2016 के मुक़ाबले 2021 में बीजेपी की सीटों में 26 गुणा का इज़ाफ़ा हुआ है. बीजेपी अब पश्चिम बंगाल की विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल बन गई है. भारत की आज़ादी के बाद से पारंपरिक तौर पर बंगाल में राजनीतिक दबदबा रखने वाली कांग्रेस और लेफ़्ट के समर्थन में साल दर साल भारी गिरावट आती गई है. इस बार इन दोनों ही राजनीतिक पक्षों में से कोई भी एक भी सीट जीतने में नाकाम रहा. दोनों का साझा वोट प्रतिशत 2009 के लोकसभा चुनाव में 56.8 प्रतिशत था, जो 2021 के विधानसभा चुनाव में घटकर सिर्फ़ 7.7 प्रतिशत रह गया. वास्तव में लेफ़्ट और कांग्रेस के समर्थन में आई इस गिरावट से बीजेपी के लिए नए अवसर पैदा हुए हैं. बीजेपी इस मौके का फ़ायदा उठाकर राज्य में अपने जनाधार को और विस्तार दे सकती है. 

कोलकाता नगर निगम का चुनाव भी इस साल

5 मई को ममता बनर्जी ने तीसरी बार बंगाल के मुख्यमंत्री का कामकाज संभाल लिया. बंगाल की नई सरकार को तत्काल कोविड 19 संकट और चुनाव के बाद की हिंसा से निपटने के उपाय करने होंगे. बंगाल के कई हिस्सों से इस तरह की हिंसा की ख़बरें आ रही हैं. बहरहाल चुनावी नतीजे आ जाने के बाद बंगाल में मार्च से चढ़ा राजनीतिक पारा नीचे आने की उम्मीद है. वैसे राज्य में आगे चलकर उपचुनावों की एक श्रृंखला तय है. इसके साथ ही कोलकाता नगर निगम के बहुप्रतीक्षित चुनाव भी इस साल होने हैं. कोरोना महामारी के चलते 2020 से ही ये चुनाव टलता आ रहा है. इस चुनाव से ही ये तय होगा कि राज्य की राजधानी का मेयर कौन होगा. ग़ौरतलब है कि प. बंगाल एक ऐसा राज्य है जो पिछले पांच दशकों में केंद्र और राज्यों के बीच की तनातनी का केंद्र रहा है. 5 मई को मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में राज्यपाल ने इस बात पर बल दिया कि इस बार संघीय शासन व्यवस्था की दशा दिशा टकराव की बजाए सहयोगात्मक होनी चाहिए ताकि राज्य और देश के विकास से जुड़े दीर्घकालिक लक्ष्य हासिल किए जा सकें. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.