Author : Ankita Dutta

Published on Oct 07, 2022 Updated 0 Hours ago

जैसा कि अलग-अलग ऊर्जा संकट को ख़त्म करने के लिए उठाए गए कदमों ने यूरोपीय संघ की विविधीकरण योजना के साथ तालमेल नहीं रखा है, लिहाज़ा ऊर्जा सुरक्षा की राह अभी भी चुनौतीपूर्ण है.

यूरोप में बढ़ते ऊर्जा संकट का आकलन

कुछ वर्षों से यूरोप में ऊर्जा संकट चिंता का विषय रहा है. हालांकि यूरोपीय देश विशेष रूप से रूस पर जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन इन कोशिशों से बहुत ज़्यादा सफलता हासिल नहीं हो पाई है. इसका एक प्राथमिक कारण यह है कि ऊर्जा की मांग में ज़बर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ है जबकि अक्षय संसाधनों और वैकल्पिक ऊर्जा के अन्य रूपों में निवेश की गति इसके बराबर नहीं है.

2014 के रूस-यूक्रेन ऊर्जा संकट ने यूरोपीय संघ (ईयू) को यह स्पष्ट कर दिया था कि रूसी ऊर्जा संसाधनों के विकल्प की बहुत ज़्यादा आवश्यकता है. यूरोपीय संघ ने ऊर्जा आयात के लिए रूस पर अपनी निर्भरता को धीरे-धीरे कम करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं. 2021 में यूरोपीय संघ ने रूस से 39.2 प्रतिशत गैस, 24.8 प्रतिशत कच्चे तेल और 46 प्रतिशत कोयले का आयात किया था. ऊर्जा  संसाधनों का हिस्सा “2021 में यूरोपीय संघ के आयात का 62 प्रतिशत (99 बिलियन यूरो) हिस्सा रूस से पूरा किया गया था, जो 2011 के मुक़ाबले लगभग 15 प्रतिशत कम है, जब रूस से यूरोपीय संघ क़रीब 77 फ़ीसदी (€ 148 बिलियन) ऊर्जा का आयात किया करता था. बहरहाल, यूरोपीय संघ अपने ऊर्जा आयात को कम करने में सफल रहा है लेकिन यूरोपीय संघ की रूसी ऊर्जा पर निर्भरता जारी है लेकिन यूक्रेन में गहराते संकट ने चरणबद्ध तरीक़े से इस निर्भरता को कम करने की ज़रूरत को उजागर कर दिया है.

यूरोपीय संघ अपने ऊर्जा आयात को कम करने में सफल रहा है लेकिन यूरोपीय संघ की रूसी ऊर्जा पर निर्भरता जारी है लेकिन यूक्रेन में गहराते संकट ने चरणबद्ध तरीक़े से इस निर्भरता को कम करने की ज़रूरत को उजागर कर दिया है.

प्रारंभिक चिंताएं क्रेमलिन को लेकर थीं जो संभावित प्रतिबंधों का सामना करने पर ऊर्जा निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए यूरोपीय ऊर्जा बाज़ार में अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल कर सकता था और इसे लेकर यूरोप में बहस का मुद्दा अब बदल चुका है, क्योंकि रूस यूक्रेन संघर्ष लगातार खिंचता ही जा रहा है. यूरोपीय संघ (ईयू) के सदस्य देशों ने ना केवल रूसी ऊर्जा संसाधनों पर प्रतिबंध लगाए हैं, बल्कि आवश्यक ऊर्जा संसाधनों  की आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों को भी तलाश रहे हैं और ऊर्जा की बढ़ी हुई क़ीमतों के दबाव को कम करने के लिए विभिन्न नीतियों और क़दम को उठाने में लगे हैं.

रूस की सबसे बड़ी ऊर्जा कंपनी, गज़प्रोम ने भी 2021 के बाद से धीरे-धीरे यूरोप में अपने ऊर्जा आयात को प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया है. यूरोपीय संघ द्वारा प्रतिबंधों को अमल में लाने के बाद, रूस द्वारा यूरोपीय कंपनियों को रूबल में भुगतान करने की मांग के साथ आपूर्ति को और कम कर दिया गया था. इससे कई यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में आंशिक रूप से या पूरी तरह से ऊर्जा सप्लाई में बाधा पहुंची. हालांकि सितंबर 2022 की शुरुआत में मॉस्को के नॉर्ड स्ट्रीम 1 को पूरी तरह से बंद करने के फैसले के साथ ऊर्जा संकट और गहरा गया, रूस ने दावा किया कि उस पर लगे प्रतिबंधों के कारण पाइपलाइन में एक तेल रिसाव को ठीक नहीं किया जा सकता है. इससे यूरोप में प्राकृतिक गैस की क़ीमत में और तेजी देखी गई. स्थिति की गंभीरता के बारे में यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन ने सितंबर 2022 में अपने स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण के दौरान ज़िक्र भी किया था, जब उन्होंने कहा था कि ‘हमें पूरे यूरोप में इस निर्भरता से छुटकारा पाना होगा’.

क्या किया जा चुका है?


यूरोपीय संघ ने रूस से अलग अपने ऊर्जा विकल्पों में विविधता लाने के लिए निर्णायक क़दम उठाए हैं. यूरोपीय संघ ने अपने पांचवें और छठे दौर के प्रतिबंधों में रूसी कोयले के हर तरह के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है और सभी तरह के रूसी समुद्री कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर भी रोक लगा दी है. रूसी ऊर्जा संसाधनों पर प्रतिबंध लगाने के अलावा, यूरोपीय संघ ने मॉस्को से अलग अपने ऊर्जा संसाधनों में विविधता लाने के लिए दोआयामी उपाय किए हैं – पहला, संसाधनों की वैकल्पिक आपूर्ति हासिल करने को लेकर है. रूस के विकल्प के तौर पर गैस निर्यात को सुरक्षित करने के लिए यूरोपीय संघ कतर, अमेरिका, नॉर्वे, अज़रबैजान, अल्जीरिया, तुर्की, जापान, मिस्र और दक्षिण कोरिया जैसे देशों तक पहुंच चुका है.

यूरोपीय संघ ने अपने पांचवें और छठे दौर के प्रतिबंधों में रूसी कोयले के हर तरह के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है और सभी तरह के रूसी समुद्री कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर भी रोक लगा दी है.



दूसरा, यूरोपीय संघ ने ऊर्जा संकट के प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न नीतियां और कई पहल किए हैं. ईयू ने मार्च 2022 में रीपावरईयू योजना शुरू  की, जिसमें सदस्य देशों ने 2022 के अंत तक रूस से ऊर्जा आपूर्ति को दो-तिहाई कम करने का लक्ष्य रखा है. मई 2022 में एक व्यापक रीपावरईयू योजना जारी की गई, जिसने रूस के जीवाश्म ईंधन पर यूरोपीय संघ की निर्भरता को तेजी से कम करने के लिए रोडमैप तैयार किया. इसका मक़सद बिजली उत्पादन, उद्योग, भवन और परिवहन में रिन्युएबल एनर्जी के इस्तेमाल को बढ़ाकर क्लीन एनर्जी से होने वाले बदलावों की ओर क़दम बढ़ाना है. यूरोपीयन कमीशन ने 2030 तक रिन्युएबल एनर्जी डायरेक्टिव के टारगेट को बढ़ाकर 45 प्रतिशत करने का प्रस्ताव रखा है, जो 2021 में 40 प्रतिशत था. इससे 2030 तक कुल रिन्युएबल एनर्जी क्षमता 1235 जी डब्ल्यू हो जाएगी, जबकि 2030 तक ‘फिट फॉर 55’ फ्रेमवर्क के तहत 1067 जीडब्ल्यू की परिकल्पना की गई है.

अपने भाषण के दौरान यूरोपीय संघ आयोग के अध्यक्ष  द्वारा तीन प्रमुख उपायों का भी उल्लेख किया गया था – पहला पीक आवर्स के  दौरान अनिवार्य तौर पर यूरोपीयी संघ के सदस्य देशों द्वारा बिजली बचत करने की योजना. यूरोपीय संघ ने आगामी सर्दियों के लिए पहले से ही ऊर्जा संसाधनों  के संरक्षण के लिए एक स्वैच्छिक गैस कटौती योजना की शुरुआत कर दी है. अगस्त 2022 से मार्च 2023 तक रूसी गैस की मांग को 15 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है; दूसरा, जीवाश्म ईंधन कंपनियों के सरप्लस प्रॉफिट का उपयोग करना और तीसरा रिन्युएबल एनर्जी और परमाणु संयंत्रों द्वारा कमाए गए राजस्व पर एक सीमा तय करना. ऊर्जा की क़ीमतों और घरेलू बिलों को नियंत्रित  करने में सहायक इन उपायों के ज़रिए 140 बिलियन यूरो जुटाने की उम्मीद की जा रही है. इन उपायों पर 30 सितंबर 2022 को होने वाली आगामी ऊर्जा मंत्रियों की बैठक के दौरान चर्चा की जानी है.

इसके अलावा कई यूरोपीय देशों ने ऊर्जा की बढ़ती क़ीमतों से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर उपाय किए हैं, जैसे जर्मनी ने घरों पर दबाव कम करने के लिए 65 बिलियन यूरो के राहत पैकेज को अधिकृत किया है; इटली ने फर्मों और परिवारों को बढ़ती ऊर्जा लागत से बचाने के लिए 16 सितंबर को 14 बिलियन यूरो के सहायता पैकेज को मंजूरी दी है, ब्रिटेन ने अगले दो वर्षों के लिए प्रति वर्ष 2500 जीबीपी पर घरेलू गैस और बिजली के बिलों को सीमित कर दिया है.

आकलन


यूक्रेन पर रूसी हमले ने ऊर्जा के विकल्पों की तलाश पर बहस को ऊर्जा निर्भरता के सवाल के साथ जोड़ दिया है. इसके पीछे वज़ह यह है कि ऊर्जा  संसाधनों के निर्यात से जो राजस्व रूस को मिलेगा उसके ज़रिए यूक्रेन में वह अपने जंगी मंसूबों की फंडिंग करेगा.

अपनी विभिन्न नीतियों और उठाए गए क़दमों के ज़रिए यूरोपीय संघ आम लोगों के लिए बढ़ी हुई ऊर्जा क़ीमतों और आर्थिक मंदी के दबाव को कम करने के तरीक़े  खोजने के लिए हाथ-पांव मार रहा है. हालांकि ऐसा कहना इसे पूरा करने के मुक़ाबले आसान है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने जुलाई 2022 के अपने आकलन में कहा है कि रूस से पूरी तरह ऊर्जा संसाधनों के बंद होने की स्थिति में, मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों जैसे हंगरी, स्लोवाकिया और चेक गणराज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 6 फ़ीसदी तक गिरावट आ सकती है जबकि वैश्विक आर्थिक विकास दर में 2022 में 2.6 प्रतिशत और 2023 में 2 प्रतिशत की कमी आ सकती है.

यूरोपीय संघ के लिए प्रमुख चुनौतियों में से एक ऊर्जा की आपूर्ति और इसकी मांग का प्रबंधन करना है. ईयू ने प्राकृतिक गैस और एलएनजी के समझौतों को अंतिम रूप देने के लिए अमेरिका, कतर आदि जैसे देशों को देखकर रूस से अलग अपने संसाधनों में विविधता लाकर आपूर्ति पक्ष को मज़बूत करने की कोशिश की है. हालांकि इसमें चुनौती यह है कि इन देशों से ऊर्जा सप्लाई को बढ़ाने के लिए नई पाइपलाइन इन्फ्रास्ट्रक्टर और एलएनजी के लिए अधिक समर्पित टर्मिनलों की आवश्यकता होगी. ज़ाहिर है इन प्रक्रियाओं में वक़्त लगेगा और इन्हें चालू होने में दो से पांच साल तक का समय लग सकता है. मांग पक्ष का प्रबंधन करने के लिए, यूरोपीय संघ की वॉलंट्री गैस रिजर्वेशन प्लान के मुताबिक़ जर्मनी, स्पेन आदि जैसे कई यूरोपीय देशों ने अपने संबंधित गैस भंडार को 80 प्रतिशत से आगे ले जाने के लिए ऊर्जा संरक्षण उपायों को मंजूरी दी है. हालांकि गैस के ऐसे भंडारों की स्थिरता सर्दियों के मौसम की स्थितियों पर निर्भर करेगी क्योंकि ज़्यादा ठंड पड़ने पर मौज़ूदा भंडार के मुक़ाबले मांग बढ़ सकती है.

दूसरा, इसकी रीपावरईयू पहल को ज़मीन पर उतारना है. चूंकि इस पहल का उद्देश्य यूरोपीय संघ के व्यापक एनर्जी मैट्रिक्स में रिन्युएबल एनर्जी योगदान को बढ़ाकर क्लीन एनर्जी से होने वाले बदलावों को तेजी से आगे बढ़ाना है – और इसके लिए ईयू के सभी सदस्य देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में भारी निवेश करने की आवश्यकता होगी. इसमें पवन और सौर परियोजनाओं को तेजी से ज़मीन पर उतारना होगा जो अभी भी प्रारंभिक अवस्था में ही हैं. चूंकि योजनाओं की समय-सीमा कम हो गई है और परियोजनाओं का समय पर वितरण एक महत्वपूर्ण प्रश्न बना हुआ है. इसके अलावा, जीवाश्म ईंधन को पूरी तरह से बदलने में समय लगने वाला है और सदस्य देशों की रिन्युएबल एनर्जी के इस्तेमाल को बढ़ाने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी तभी जाकर ऊर्जा ख़पत के उच्च स्तर पर लगाम लगाया जा सकेगा. 

प्रमुख चुनौती यह है कि सदस्य देशों के बीच एकजुटता कब तक बनी रह पाएगी. रूस से कच्चे तेल के आयात पर प्रतिबंधों ने ईयू के भीतर ही दरार पैदा कर दी है. कुछ सदस्य देशों ने संघ द्वारा लगाए गए समय-सीमा का पालन करने में असमर्थता ज़ाहिर की है.

तीसराप्रमुख चुनौती यह है कि सदस्य देशों के बीच एकजुटता कब तक बनी रह पाएगी. रूस से कच्चे तेल के आयात पर प्रतिबंधों ने ईयू के भीतर ही दरार पैदा कर दी है. कुछ सदस्य देशों ने संघ द्वारा लगाए गए समय-सीमा का पालन करने में असमर्थता ज़ाहिर की है. चार सदस्य देशों – हंगरी, स्लोवाकिया, चेक गणराज्य और बुल्गारिया ने यूरोपीय आयोग द्वारा छह महीने में सभी रूसी कच्चे तेल और सभी परिष्कृत तेल उत्पादों को 2022 के अंत तक पूरी तरह से समाप्त करने की प्रारंभिक समय-सीमा का विरोध किया है. रूसी तेल पर उनकी उच्च निर्भरता को देखते हुए, वे अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को ख़तरे में डाले बिना, कम समय में दूसरे विकल्पों पर स्विच नहीं कर सकते हैं. इन आपत्तियों के कारण पाइपलाइन से होने वाली सभी आपूर्ति को छोड़कर, केवल समुद्री आयात पर प्रतिबंध लगाए गए थे. इसके बाद हंगरी ने प्रति दिन 5.8 मिलियन क्यूबिक मीटर गैस प्राप्त करने के लिए गजप्रोम के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किए. यह समझौता वर्ष 2021 में 4.5 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस की आपूर्ति के लिए बुडापेस्ट के साथ गज़प्रोम के साथ हस्ताक्षर किए गए 15 साल के सौदे से अलग था. इसी तरह, नॉर्वे की अगस्त 2022 में नॉर्डिक देशों द्वारा आलोचना की गई क्योंकि नॉर्वे ने अपने उपभोक्ताओं की ऊर्जा मांग को सुरक्षित करने के लिए ऊर्जा के निर्यात पर नॉर्वे के उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए ऊर्जा निर्यात में कमी लाने का फैसला कर लिया था.

संक्षेप में, जो निष्कर्ष निकाला जा सकता है वह यह है कि यूरोपीय संघ ने ऊर्जा संकट की स्थिति से निपटने के लिए व्यवस्था बहाल की है और कई क़दम भी उठाए हैं लेकिन इनसे होने वाले बदलाव को ज़मीन पर उतरने में अभी वक़्त लगेगा और बहुत कुछ मौसम की स्थिति पर निर्भर करने वाला है. इसलिए  ऊर्जा संकट के फौरन सुधरने के संकेत बेहद सीमित हैं और यूरोपीय संघ के लिए ऊर्जा सुरक्षा हासिल करने की राह महंगी और लगातार चुनौतीपूर्ण बनी हुई है.

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