Author : Saranya Sircar

Published on Sep 03, 2021 Updated 0 Hours ago

जलवायु परिवर्तन एक ऐसा मुद्दा है जो चीन और अन्य शक्तियों के लिए सहयोग करने और प्रतिस्पर्धा नहीं करने और अपने संबंधों को फिर से तय करने के लिए एक बड़ी संभावना प्रदान करता है.

वैश्विक जलवायु परिवर्तन की भू-राजनीति: चीनी नेतृत्व के अलग-अलग पहलू

साल 2020 एक चुनौती भरा साल था. ऐसे साल बहुत कम देखने को मिलते हैं. इस साल पूरी धरती एक हिसाब से थम सी गई थी. उस साल कोविड-19 की बीमारी और उसके वैश्विक स्तर पर महामारी का रूप लेने की घटना दुनिया के केंद्र में रही, लेकिन बीते साल दुनिया ने जलवायु परिवर्तन की नज़र से कई अहम घटनाएं देखी. साल 2020 दूसरा सबसे गर्म साल रहा. वायुमंडल में रिकॉर्ड स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ और इस कारण सतह का तापमान काफ़ी बढ़ गया. जलवायु से जुड़े मौसमी आपदा ख़ासकर तूफान और जंगलों में आग की घटनाएं काफ़ी अधिक देखी गईं. यह साल पूरी दुनिया में भू-राजनीति के हिसाब से भी काफ़ी अस्थिर और अशांत रहा. विशेष तौर पर चीन के लिए 2020 एक अहम साल रहा. 2020 में भारत के साथ लगने वाली सीमा पर आक्रामक रूख, ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार युद्ध, हांगकांग में नया सुरक्षा कानून लागू करना और ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ के अलावा कोरोना वायरस को फैलाने के मुद्दे पर पश्चिम के साथ लगातार टकराव जैसे मुद्दों से उसे जूझना पड़ा

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सितंबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा की बैठक में वादा किया कि उनके देश में 2030 तक कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन अपने चरम पर रहेगा और उसके बाद ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती कर उसे 2060 तक शून्य तक लाया जाएगा.

शी जिनपिंग का संयुक्त राष्ट्र आम सभा की बैठक में वादा

ऊपर उल्लेखित सभी गतिविधियों के बावजूद चीन ने कुछ सकारात्मक पहल भी की. विशेष तौर पर जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ कार्रवाई से. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सितंबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा की बैठक में वादा किया कि उनके देश में 2030 तक कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन अपने चरम पर रहेगा और उसके बाद ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती कर उसे 2060 तक शून्य तक लाया जाएगा. उनकी इस घोषणा से पूरी दुनिया चौंक गई. इसके अलावा चीन के विदेश मंत्रालय ने तिब्बत की क्षेत्रीय सरकार के साथ मिलकर फरवरी 2021 में ट्रांस-हिमालय फोरम फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन के तत्वावधान में इकोलॉजिकल एनवारमेंट प्रोटेक्शन पर एक वर्चुअल सेमिनार का आयोजन किया. इस सेमिनार में संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की-मून और ऑस्ट्रेलिया के पूर्व राष्ट्रपति केविन रूड के साथ-साथ एशिया और यूरोप के देशों, अमेरिका और लैटिन अमेरिकी से लोगों ने भाग लिया.

सीसीपी के सामने पर्यावरण क्षरण की चुनौतियां

साल 2021 में अपनी स्थापना की 100वीं वर्षगांठ मना रही चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के सामने पर्यावरण क्षरण और जलवायु संकट अहम प्राथमिक चुनौतियों में से एक है. वैश्विक उत्सर्जन में करीब 30 फ़ीसदी हिस्सेदारी के साथ चीन ग्लोबल वार्मिंग पैदा करने वाला एक प्रमुख देश है. इसके बावजूद एक बार आर्थिक विकास और जीडीपी लक्ष्य कमजोर पड़ने पर पर्यावरणीय प्रोटोकॉल को सीसीपी ने आदतन दबा लिया. इसलिए देश में औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियों के कमजोर पड़ने की वजह से प्रदूषण बढ़ता है. हालांकि यह एक विडंबना है. जनता में बढ़ती जागरूकता की वजह से इस मुद्दे पर अधिक याचिकाओं और विरोध प्रदर्शनों को देखा गया. चीन की एकमात्र सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी ने असंतोष को दबाने के लिए अधिक संकल्प का प्रदर्शन किया.

साल 2021 में अपनी स्थापना की 100वीं वर्षगांठ मना रही चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के सामने पर्यावरण क्षरण और जलवायु संकट अहम प्राथमिक चुनौतियों में से एक है. वैश्विक उत्सर्जन में करीब 30 फ़ीसदी हिस्सेदारी के साथ चीन ग्लोबल वार्मिंग पैदा करने वाला एक प्रमुख देश है.

कोयला के संदर्भ में 2020 के आंकड़े देखते हैं. चीन के कुल ऊर्जा उपभोग का करीब 56.8 फ़ीसदी तापीय कोयले से प्राप्त होता है. अब भी इसका व्यापक स्तर पर इस्तेमाल बिजली उत्पादन में किया जाता है. चीन में करीब 3.84 अरब टन कोयले (2015 में सबसे ज्यादा) का उत्पादन होता है. यहां कोयले की खपत में 0.6 फ़ीसदी की बढ़त देखी गई. बीते लगातार चार बार से इसमें बढ़ोतरी देखी गई. इसके अलावा चीन ने 305 मिलियन टन कोयले का आयात किया, जो पिछले साल की तुलना में करीब 4 मिलियन अधिक है. साल 2020 के शुरुआती महीनों में कड़े लॉकडाउन लगाए गए. इस कारण अधिकतर उद्योग बंद हो गए. उस वक्त चीन में कोयले की खपत करीब 4.04 बिलियन टन रही. उत्सर्जन के आंकड़ों को देखते हैं. 2020 की दूसरी छमाही में चीन के कार्बन उत्सर्जन में करीब 4 फ़ीसदी की बढ़ोतरी देखी गई. हालांकि शुरुआती छह महीनों में महामारी की वजह से लगाए गए लॉकडाउन की वजह से इसमें 3 फ़ीसदी तक की कमी देखी गई. इस तरह 2020 में 2019 की तुलना में चीन में CO2 उत्सर्जन में 1.5 फ़ीसदी की बढ़त हुई. कार्बन (CO2 ) उत्सर्जन के संदर्भ में देखें तो चीन में वायु प्रदूषण ने महामारी के पहले की स्थिति यानी मध्य अप्रैल 2020 के स्तर को पार कर लिया. इसके साथ ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आने लगी. सच्चाई यह है कि मार्च 2020 में वायु प्रदूषण में नाटकीय रूप से गिरावट आई. इतना ही नहीं सबसे कड़े लॉकडाउन के वक्त कुछ ग्रीन हाउस गैसों का घनत्व स्तर यानी कॉन्सनट्रेशन लेवेल में क़रीब 40 फ़ीसदी की गिरावट आई. अब चीन कार्बन तटस्थता हासिल करने के लिए तैयार है.

वैसे 2060 तक कार्बन तटस्थता हासिल करने की योजना के बारे में विस्तृत जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन कोयले के सबसे बड़े उत्पादक और उपभोक्ता होने और दुनिया में सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन कर्ता होने के कारण शी द्वारा तय किया गया लक्ष्य चीन के लिए काफ़ी महत्वाकांक्षी दिख रहा है. ऐसे में इस वादे का तथ्यों के साथ विश्लेषण करने की जरूरत है. 1990 के दशक के अंतिम वर्षों से जलवायु परिवर्तन का मुद्दा चीन की नीतिगत प्राथमिकता में शामिल है और हाल के वर्षों में नेतृत्व ने अधिक विस्तृत और अभिलाषी जलवायु नीतियों को पेश किया है. इसके सबूत पंचवर्षीय योजनाओं और 2015 में पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में चीन की ओर से पेश इंटेंडेड नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशनंस (Intended Nationally Determined Contributions) से जुड़े दस्तावेजों में देखे गए हैं. इसके अलावा, चीन ने कोयले और इसकी खपत पर से अपनी निर्भरता कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) का उपयोग करने के लिए क्रियान्वयन, कानूनों और नीतियों पर ध्यान दिया है. इन सबके सकारात्मक परिणाम मिले हैं. इनमें से कुछ हैं- वायु प्रदूषण कार्य योजना, राष्ट्रीय एमिशन ट्रेडिंग स्कीम, मेड इन चाइना 2025, रिन्यूएबल एनर्जी लॉ, क्लीन एनर्जी कंजम्पशन एक्शन प्लान, एनर्जी डेवलपमेंट स्ट्रेटजी एशक्न प्लान आदि. दरअसल, चीन रिन्यूएबल एनर्जी ख़ासकर सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया का नेता बनकर उभरा है. राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासन (National Energy Administration, NEA) यानी एनईए के आंकड़ों के मुताबिक 71.67 गीगावाट पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई और न्यू सोलर पावर क्षमता बढ़कर 48.2 गीगावाट हो गई. इस तरह 2020 में चीन की नई रिन्यूएबल क्षमता बढ़कर दोगुना हो गई. इसके अलावा चीन इलेक्ट्रिक वाहन के इस्तेमाल और बैटरी उत्पादन में भी काफ़ी आगे है. अन्य स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के प्राप्त किए जाने की प्रतीक्षा करते हुए प्राकृतिक गैस, जिसे एक सेतू ईंधन के रूप में माना जाता है, को तेजी से अपनाया जा रहा है. इनके साथ ही जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में परमाणु ऊर्जा के विकास और कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने पर नए सिरे से जोर दिया जा रहा है. 2025 तक 70 गीगावाट उत्पादन क्षमता की चाहत रखी गई है.

वैसे 2060 तक कार्बन तटस्थता हासिल करने की योजना के बारे में विस्तृत जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन कोयले के सबसे बड़े उत्पादक और उपभोक्ता होने और दुनिया में सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन कर्ता होने के कारण शी द्वारा तय किया गया लक्ष्य चीन के लिए काफ़ी महत्वाकांक्षी दिख रहा है.

जलवायु के प्रति जागरूक दुनिया की ओर 

इस बीच जो बाइडेन के औपचारिक रूप से अमेरिका के नए राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के साथ अमेरिका फिर से वैश्विक जलवायु समुदाय में शामिल होने के लिए तैयार है. जलवायु परिवर्तन से निपटना बाइडेन के एजेंडे के रूप में उनके प्रचार के दिनों से ही एक सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य रहा है. वादे के मुताबिक उनके पद संभालने के तुरंत बाद फरवरी 2021 में अमेरिका आधिकारिक तौर पर पेरिस जलवायु समझौते में चार साल की अनुपस्थिति के बाद फिर से शामिल हो गया. अमेरिका को अब महत्वाकांक्षी लक्ष्य बनाकर और अन्य देशों को भी ऐसा करने में सहायता करके निष्क्रियता के अंतराल (inactivity hiatus) को पाटने के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है. चीन ने संकेत दिया है कि अमेरिका सहित अन्य देशों के कदमों की परवाह किए बिना उसके लिए जलवायु के मसले पर नेतृत्व एक अहम प्राथमिकता है. उस दिशा में राष्ट्रपति शी ने उदार पर्यावरणवाद (liberal environmentalism) के पारंपरिक पश्चिमी सिद्धांतों से चीनी दृष्टिकोण को अलग करने का सोच-विचारकर विकल्प चुना है. साल 2007 में राष्ट्रपति हू जिंताओ ने चीन की पर्यावरणवाद की अपनी शैली का चित्रण करते हुए मूल रूप से पारिस्थितिक सभ्यता’ (“ecological civilisation) शब्द को लागू किया था. इसके बाद एक निरंतरता के रूप में राष्ट्रपति शी ने इसे सीसीपी के कोश (lexicon) में शामिल कर लिया और इसे अपने देश की प्रगति के लिए एक बेहद अहम बना दिया. वैश्विक मंच पर चीन हमेशा ‘सामान्य लेकिन अलग अलग ज़िम्मेदारियां और संबंधित क्षमताएं’ (Common but Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities) यानी (सीबीडीआर-आरसी) की वकालत करता था. सीबीडीआर-आरसी, अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ता में एक मार्गदर्शन करने वाला सिद्धांत है जिसमें कहा गया है कि विकासशील देशों को विकसित और औद्योगिक देशों (जिनके यहां दशकों से बेरोकटोक उत्सर्जन जारी है) की तुलना में उत्सर्जन कम करने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए.

अपने नेता की ऐतिहासिक घोषणा के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने सीबीडीआर-आरसी पर अपनी पिछली स्थिति से आगे बढ़ने का संकेत दिया है. अब वह एक महाशक्ति बनने के इच्छुक देश की तरह उपयुक्त लक्ष्य निर्धारित कर मार्ग दिखाने की प्रतिज्ञा कर रहा है. वास्तव में, चीन की घोषणा के बाद जापान और कोरिया ने शीघ्र ही 2050 तक शून्य उत्सर्जन का वादा किया. अमेरिका भी शीघ्र इसकी घोषणा करेगा. इस तरह नवंबर में ग्लासगो में होने वाले अगले अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन से पहले 124 देशों ने शून्य उत्सर्जन की शपथ ले ली है.

चीन ने संकेत दिया है कि अमेरिका सहित अन्य देशों के कदमों की परवाह किए बिना उसके लिए जलवायु के मसले पर नेतृत्व एक अहम प्राथमिकता है

अब बीजिंग को अपने महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों सहित दुनिया भर में कार्बन-सघन बुनियादी ढांचे की व्यापक स्तर पर समर्थन को लेकर वास्तव में सतर्क रहने की ज़रूरत है. उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि यह चीन की ब्राउन इंडस्ट्रीज (उच्च कार्बन उत्सर्जन करने वाले उद्योग) को डंप करने का एक गंतव्य न बन जाए. जलवायु परिवर्तन को एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार कर लिया गया है और दुनिया के सभी देश अब इससे निपटने के लिए सहमत हो गए हैं. जैसा कि कई लोगों ने बताया है कि सार्थक वैश्विक एक्शन चीन की अहम प्रतिबद्धताओं के बिना आगे नहीं बढ़ सकता है, जो अब जलवायु परिवर्तन की नई भू-राजनीति के केंद्र में खड़ा है, ख़ासकर अमेरिका के निष्क्रिय रहने वाले समय काल (dormancy period) के बाद. दरअसल, जलवायु परिवर्तन एक ऐसा मुद्दा है जो चीन और अन्य शक्तियों के लिए सहयोग करने और प्रतिस्पर्धा नहीं करने और अपने संबंधों को फिर से तय करने के लिए एक बड़ी संभावना प्रदान करता है.

दुनिया के देशों के लिए यह ज़रूरी है कि वे एशियाई देशों की तरह पर्यावरण के क्षेत्र (environmental domain) में तत्काल काम करें. ख़ासकर चीन और भारत की तरह, जो जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के कारण जोख़िम में हैं. जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर और अधिक कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध होना एक शुभ संकेत है. यह कम से कम चीन के ख़िलाफ़ बढ़ती नाराजगी (उसके तमाम गलत कामों के कारण) को संतुलित कर सकता है. इससे चीन को अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि और संबंधों को सुधारने में मदद मिल सकती है.

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