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शुरुआत में भारत में कोविड-19 टीकाकरण अभियान का सारा ज़ोर स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों और फ़्रंटलाइन वर्कस पर था लेकिन अब इस अभियान का फ़ोकस 45 साल से ऊपर की जनसंख्या पर है.
जनसंख्या के हिसाब से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश इन दिनों नोवल कोरोना वायरस (सार्स-कोव-2) की ‘दूसरी लहर’ की चपेट में है. देश में कोरोना के मरीज़ों की संख्या और इस बीमारी के चलते होने वाली मौतें लगातार बढ़ती जा रही हैं. इस बीच टीकाकरण अभियान भी देश के हर कोने में पूरी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. इस अभियान के केंद्र में देश की एक बड़ी और बेहद संवेदनशील आबादी है. अल्पकालिक तौर पर इसका मकसद महामारी के चलते होने वाली मौतों की रोकथाम करना है. शुरुआत में भारत में कोविड-19 टीकाकरण अभियान का सारा ज़ोर स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों और फ़्रंटलाइन वर्कस पर था लेकिन अब इस अभियान का फ़ोकस 45 साल से ऊपर की जनसंख्या पर है.
भारत में अबतक कोरोना टीके के कुल 8 करोड़ 70 लाख डोज़ लगाए जा चुके हैं. देश में मुख्य रूप से ऑक्सफ़ोर्ड एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड लगाई जा रही है. इसका उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने किया है. कोविशील्ड के साथ ही भारत बायोटेक की कोवैक्सीन भी टीकाकरण अभियान के अंतर्गत प्रयोग में लाई जा रही है. भारत में अबतक लगाए गए कुल डोज़ में कोविशील्ड का हिस्सा 91 प्रतिशत है. दुनिया के कई देशों ने कोरोना टीके के मामले में ‘पहले ख़ुद’ की नीति अपनाई है. इसके ठीक विपरीत भारत पिछले कई महीनों से दुनिया के कई देशों को वैक्सीन की आपूर्ति करता आ रहा है. विश्व के 84 देशों को भारत ने कोरोना टीके के 6 करोड़ 45 लाख से ज़्यादा डोज़ निर्यात किए हैं. इनमें से एक करोड़ 80 लाख डोज़ कोवैक्स पहल के तहत मुहैया कराए गए हैं. 3 करोड़ 57 लाख डोज़ वाणिज्यिक आपूर्ति के तौर पर और बाकी एक करोड़ 5 लाख डोज़ विभिन्न देशों को अनुदान के तहत भेजे गए हैं.
भारत में करीब एक करोड़ की आबादी को कोरोना टीके के दोनों डोज़ लगाए जा चुके हैं. इसमें कोई शक नहीं कि एक अरब 30 करोड़ की आबादी वाले देश के लिए टीकाकरण अभियान बहुत बड़ी चुनौती है.
भारत में करीब एक करोड़ की आबादी को कोरोना टीके के दोनों डोज़ लगाए जा चुके हैं. इसमें कोई शक नहीं कि एक अरब 30 करोड़ की आबादी वाले देश के लिए टीकाकरण अभियान बहुत बड़ी चुनौती है. टीकाकरण की मौजूदा रफ़्तार प्रतिदिन 30 लाख डोज़ है. अनुमानों के मुताबिक टीकाकरण की यही गति बरकरार रही तो देश की 75 फ़ीसदी आबादी को टीका लगाने में 21 महीने लगेंगे.
टीकाकरण के बाद के रुझानों पर दुनिया के कम से कम तीन देशों का अनुभव ये बताता है कि किसी देश की कुल जनसंख्या के 40 प्रतिशत हिस्से को टीका लग जाने पर कोरोना संक्रमण का ग्राफ़ नीचे आ जाता है. भारत में कोरोना संक्रमण की रफ़्तार पर इसी तरह का नियंत्रण पाने के लिए 52 करोड़ लोगों का टीकाकरण सुनिश्चित करना होगा. वैक्सीनेशन की मौजूदा रफ़्तार से इस लक्ष्य की प्राप्ति में अभी करीब 10 महीनों का समय लगेगा. ग़ौरतलब है कि भारत में टीकाकरण का शुरुआती लक्ष्य अगस्त तक करीब 30 करोड़ लोगों को टीका लगाने का है. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए टीकाकरण की रफ़्तार को प्रतिदिन औसतन 35 लाख डोज़ के स्तर पर लाना होगा.
टेबल 1: टीके के डोज़ की ज़रूरत का औसत अनुमान और भारत में प्राथमिकता वाली 30 करोड़ की आवादी के टीकाकरण में लगने वाला समय
अगस्त 2021 तक कोरोना टीकाकरण के लिए लक्षित आबादी | 300,000,000 |
भारत में टीका लगा चुकी कुल आबादी (अब तक) | 11,140,459 |
कोरोना वैक्सीन का एक डोज़ लगवा चुके लोगों की तादाद | 75,937,015 |
अबतक टीकाकरण से वंचित लक्षित आबादी (अगस्त 2021 के लक्ष्य पर आधारित) | 288,859,541 |
लक्षित आबादी को टीका लगाने के लिए ज़रूरी डोज़ की संख्या (दो डोज़ के हिसाब से) | 501,782,067 |
टीकाकरण के तहत लगाए जा रहे दैनिक औसत डोज़ (7 दिनों का आवर्ती औसत) | 3,093,861 |
लक्षित आबादी को टीका लगाने में लगने वाले दिन (मौजूदा दैनिक औसत दर के आधार पर) | 162 |
लक्षित आबादी को टीका लगाने के लिए लगने वाले महीने (मौजदा दैनिक औसत दर के आधार पर) | 5.4 |
अगस्त 2021 के अंत तक (146 दिन) लक्षित आबादी के संपूर्ण टीकाकरण के लिए औसत दैनिक डोज़ की आवश्यकता | 3,436,863 |
एक ओर जहां दुनिया भर में वैक्सीन पहुंचाने के अपने कूटनीतिक प्रयासों के लिए भारत की सराहना हो रही है तो वहीं दूसरी ओर भारत में बढ़ते कोरोना केसों के मद्देनज़र घरेलू आबादी के टीकाकरण को लेकर देश की क्षमताओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं. हाल में आई ख़बरों में ये कहा गया है कि भारत विश्व बिरादरी को अपनी मदद जारी रखते हुए वैक्सीन उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी होने तक अपनी घरेलू ज़रूरतों पर और अधिक ध्यान लगाएगा.
एक ताज़ा शोध से ये बात साबित हो चुकी है कि टीकाकरण से जुड़े प्रयासों का विस्तार कर दोगुनी आबादी का टीकाकरण सुनिश्चित करने से संक्रमण की रफ़्तार और वायरस के रूपांतरण की प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है. एक बड़ी आबादी तक टीकाकरण की सुविधा पहुंचाने के कई फ़ायदे हैं. इसके लिए टीके की दूसरी डोज़ में 6-12 हफ़्तों की देरी करना लाभदायक जान पड़ता है.
भारत में टीके की प्रमुख उत्पादक कंपनी एसआईआई फ़िलहाल हर महीने औसतन करीब 5-6 करोड़ डोज़ बना रही है. सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक मार्च के अंत तक (अनुमानित मूल्यांकन के हिसाब से) कंपनी ने करीब 27 करोड़ डोज़ का उत्पादन किया है. इसके अलावा कोवैक्सीन के करीब 5 करोड़ डोज़ भी देश को उपलब्ध कराए गए हैं. 17 मार्च 2021 तक कोरोना वैक्सीन के 7 करोड़ 60 लाख डोज़ विभिन्न राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को मुहैया कराए गए हैं.
सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक मार्च के आख़िर तक भारत में कोरोना वैक्सीन के लगभग 31 करोड़ 60 लाख डोज़ तैयार किए गए हैं (टेबल-2). भारत में टीकाकरण अभियान के तहत कोरोना वैक्सीन 8 करोड़ 70 लाख के डोज़ लगाए गए हैं जबकि 6 करोड़ 45 लाख डोज़ दुनिया के दूसरे देशों को निर्यात किए गए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि वैक्सीन के बाकी बचे डोज़- जो करीब 16 करोड़ 45 लाख हैं- कहां गए? शायद ये ‘गुमशुदा टीके’ गोदामों में ही अटके पड़े हैं या राज्यों के वैक्सीन कोल्ड चेन में हैं. राज्यों के कोल्ड चेन से जुड़े आंकड़ों की अभी प्रतीक्षा की जा रही है.
हाल ही में भारत सरकार ने राज्यसभा में ये जानकारी दी है कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की उत्पादन क्षमता को 15 करोड़ डोज़ सालाना करने की योजना है. भारत सरकार द्वारा उत्पादन में बढ़ोतरी की मांग किए जाने के बाद भारत बायोटेक ने बायोटेक्नोलॉजी विभाग से डेढ़ अरब रु का अतिरिक्त कोष मुहैया कराने का अनुरोध किया है. कंपनी इस रकम के ज़रिए अपनी उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी करना चाहती है. इस कोष से भारत बायोटेक की हैदराबाद और बेंगलुरु स्थित निर्माण सुविधाओं में 75-75 करोड़ रु खर्च किए जाने की योजना है.
भारत में टीकाकरण अभियान के तहत कोरोना वैक्सीन 8 करोड़ 70 लाख के डोज़ लगाए गए हैं जबकि 6 करोड़ 45 लाख डोज़ दुनिया के दूसरे देशों को निर्यात किए गए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि वैक्सीन के बाकी बचे डोज़- जो करीब 16 करोड़ 45 लाख हैं- कहां गए?
सरकार ने मार्च में संसद को सूचित किया कि एसआईआई की निर्माण क्षमता करीब 7-10 करोड़ डोज़ प्रति माह है. हाल में दिए एक साक्षात्कार में एसआईआई के अदार पूनावाला ने ज़ोर देकर कहा कि अगर एसआईआई अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 10 करोड़ डोज़ प्रति माह कर ले तब भी भारत में टीकाकरण अभियान की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अनेक उत्पादकों की मदद की ज़रूरत पड़ेगी. उत्पादन क्षमता के विस्तार को लेकर सरकार द्वारा किए गए अनुरोध पर पूनावाला ने कहा कि उन्हें “अपनी वैक्सीन उत्पादन क्षमता को 10 करोड़ डोज़ प्रति माह से आगे बढ़ाने के लिए तीन हज़ार करोड़ के अनुदान” की आवश्यकता है.
सबसे पहले देश को अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन को मंज़ूरी देने की प्रक्रिया में तेज़ी लानी होगी. इस संदर्भ में ख़ासकर जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल-शॉट वैक्सीन का नाम लिया जा सकता है. इस वक़्त देश वैक्सीन की रसद को लेकर कई समस्याओं से जूझ रहा है. अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन की मंज़ूरी से उन समस्याओं को काफ़ी हद तक दूर किया जा सकता है. ग़ौरतलब है कि भारतीय कंपनियां रूसी अधिकारियों के साथ स्पूतनिक V वैक्सीन के 80 करोड़ से अधिक डोज़ तैयार करने को लेकर करार कर चुकी हैं. भारत सरकार को इससे जुड़ी मंज़ूरी प्रक्रिया की रफ़्तार भी बढ़ानी होगी.
दूसरी बात ये कि देश में फ़िलहाल एक दिन में कोरोना संक्रमण के रिकॉर्ड 1 लाख 15 हज़ार 312 केस तक दर्ज किए जा रहे हैं. इस भयावह स्थिति से निपटने और आबादी के उच्च प्राथमिकता वाले हिस्से तक पहुंच बनाने के लिए स्वास्थ्य से जुड़े निजी क्षेत्र की भागीदारी को और आगे बढ़ाना ज़रूरी हो जाता है. एसआईआई का कहना है कि उनकी कोविशील्ड वैक्सीन की औसत क़ीमत 20 अमेरिकी डॉलर (1500 रु) है लेकिन वो भारत सरकार को 2 अमेरिकी डॉलर (150 रु) की क़ीमत पर ये वैक्सीन मुहैया करवा रही है. सरकारी मदद के साथ अगर एसआईआई और भारत बायोटेक अपने उत्पादन को योजनानुसार बढ़ाने में कामयाब हो जाते हैं तब शायद वैक्सीन निर्माताओं और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच और अधिक सीधे संपर्क की सुविधाओं की संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं.
सबसे पहले देश को अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन को मंज़ूरी देने की प्रक्रिया में तेज़ी लानी होगी. इस संदर्भ में ख़ासकर जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल-शॉट वैक्सीन का नाम लिया जा सकता है. इस वक़्त देश वैक्सीन की रसद को लेकर कई समस्याओं से जूझ रहा है.
इसी बीच, पिछले कुछ महीनों में वैक्सीन उत्पादन और देश में टीके की आपूर्ति के आंकड़ों के संतोषजनक होने के दावों के बावजूद कई जगहों से टीके की किल्लत की ख़बरें आनी शुरू हो गई हैं. मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र ने केंद्र सरकार से तेज़ गति से कोरोना वैक्सीन के अतिरिक्त डोज़ उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है. महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि उनके पास अभी वैक्सीन का जो स्टॉक है वो अगले कुछ ही दिनों में ख़त्म हो जाएगा. राज्य सरकार ने केंद्र से हर हफ़्ते 40 लाख डोज़ की आपूर्ति सुनिश्चित कराने का अनुरोध किया है ताकि मौजूदा टीकाकरण अभियान को पूरी सक्रियता के साथ जारी रखा जा सके. केंद्र सरकार को राज्यों के पास उपलब्ध वैक्सीन डोज़ के बारे में समय पर पूरी सूचनाएं सार्वजनिक करनी चाहिए. इससे वैक्सीन की उपलब्धता से जुड़ी चिंताओं और तेज़ी से फैल रही ग़लत जानकारियों से पैदा होने वाली दहशत पर लगाम लगाई जा सकेगी. एक ऐसे वक़्त में जब हमारी उत्पादन क्षमता और वैक्सीन की उपलब्धता के बीच बड़ा भारी अंतर देखने को मिल रहा है जनता तक सही जानकारी पहुंचाना और भी ज़रूरी हो जाता है.
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Kriti Kapur was a Junior Fellow with ORFs Health Initiative in the Sustainable Development programme. Her research focuses on issues pertaining to sustainable development with ...
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