Author : Shoba Suri

Published on Oct 19, 2022 Updated 0 Hours ago

महामारी ने लोगों पर जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला है, उसने यह दर्शाया है कि लोग कितने नाजुक हैं. ऐसे में सारी दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर और अधिक सहायता की जरूरत महसूस की जा रही है.

मानसिक स्वास्थ्य पर पड़े कोविड-19 के प्रभाव का आकलन

2020 में करवाए गए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सर्वे के अनुसार महामारी ने दुनिया के 90 प्रतिशत देशों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित किया है. 60 प्रतिशत देशों में यह भी देखा गया है कि नाजुक वर्ग के लोगों जिसमें बच्चेकिशोर कालीनबुजुर्गों तथा महिलाओं का समावेश हैं और जिन्हें प्रसव पूर्व एवं प्रसव पश्चात सुविधाओं की जरूरत होती हैउनके लिए उपलब्ध मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं भी इस वजह से बाधित हुई हैं. लान्सेट के अनुमान (2020) के अनुसार महामारी के वैश्विक स्वास्थ्य पर पड़े प्रभाव की वजह से अवसाद संबंधी मामलों में 28 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई हैजबकि चिंता को लेकर होने वाली परेशानियों में 26 प्रतिशत इजाफा हुआ है. एक अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च 2030 तक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगा. अवसाद और चिंता के लिए साक्ष्य-आधारित देखभाल में निवेश किया गया प्रत्येक डॉलर बेहतर स्वास्थ्य और उत्पादकता में अमेरिकी डॉलर का रिटर्न देता है. इसके अलावामानसिक स्वास्थ्यदीर्घकालीन विकास लक्ष्यों (एसडीजी)विशेष रूप से लक्ष्य 3 (अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण) को प्राप्त करने का अभिन्न अंग है. अत: मानसिक स्वास्थ्य को मानवाधिकार और आर्थिक दृष्टिकोण से प्राथमिकता देने की आवश्यकता है.

लान्सेट के अनुमान (2020) के अनुसार महामारी के वैश्विक स्वास्थ्य पर पड़े प्रभाव की वजह से अवसाद संबंधी मामलों में 28 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जबकि चिंता को लेकर होने वाली परेशानियों में 26 प्रतिशत इजाफा हुआ है.

व्यापक प्रभाव

महामारी की वजह से भयअलगाव और जीवन तथा आय की हानि होने के कारण मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होने के नए मामले देखे गए है या फिर पुराने मामलों में स्थिति और भी खराब हुई है. इसे देखते हुए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की मांग प्रमुखता से उठने लगी है. विभिन्न समाजों में महामारी के परिणामस्वरूप सामाजिक अलगाव और आर्थिक संकट के कारण मानसिक स्वास्थ्य की पीड़ा बढ़ गई है. संक्रमण के भयमृत्युपरिजनों को खोनेनौकरी गंवाने या जीवन यापन का रास्ता बंद होने और सामाजिक तौर पर अलगाव तथा अपनों के बिछड़ने या दूर जाने की वजह से लोगों की चिंताअवसादअलगाव और उदासी में वृद्धि देखी जा रही हैं. इसके साथ ही जिन लोगों को पहले से ही मानसिक बीमारी है अथवा मादक पदार्थों का सेवन करने की वजह से उनको मानसिक विकार ने जकड़ लिया है उनके कोविड-19 से संक्रमित होने की संभावनाएं ज्यादा है. इसी कारण ऐसे लोगों पर विपरीत मानसिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ने की भी आशंका है. दुर्भाग्यवश मध्यम से न्यूनतम आय वाले देशों में मानसिक बीमारियों से जूझने वाले 75 से 80 प्रतिशत नागरिकों को आवश्यक सहायता कभी मिल ही नहीं पाती. 

वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2021 के अनुसार महामारी और उसकी वजह से लगाए गए लॉकडाउन के कारण मानसिक स्वास्थ्य सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली चीजों में शायद एक सबसे बड़ी चीज हैइसके कारण महिलाएंयुवा और गरीब लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैंजिससे मानसिक स्वास्थ्य और हालचाल अथवा कल्याण में मौजूदा असमानताएं बढ़ रही हैं.

जबरन एकांतवास में रखे जाने की वजह से बच्चों की मानसिक अवस्था भी प्रभावित हुई है. बच्चे और विशेषत: किशोर कालीन के साथ महामारी में दुर्व्यवहार होने का काफी खतरा था. स्कूल बंद होने के साथ ही आवागमन पर लगाई गई रोक की वजह से बच्चों के पास बातचीत करने और कुछ नया सीखने के अवसरों की कमी थी और इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ा है. यूके में हुई एक स्टडी में यह देखा गया कि पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य को लेकर परेशानी महसूस कर रहे 32 प्रतिशत युवाओं ने कहा है कि महामारी ने उनके मानसिक स्वास्थ्य को और प्रभावित कर दिया हैपारिवारिक स्वास्थ्यस्कूल और विश्वविद्यालयों का बंद होनारोजमर्रा की जिंदगी अचानक बदल जाने और सामाजिक संबंधों में कमी आना चिंताओं का प्रमुख कारण माने गए. अध्ययन यह बता रहे है कि इस वजह से स्वभाव और बरताव में बदलाव देखा गया है. कुछ लोग चिड़चिड़े हो गए हैजबकि कुछ में बेसब्री देखी जा रही है. इसी प्रकार स्कूल जाने वाले बच्चों की एकाग्रता भंग होती दिखाई दे रही है. तनाव और सामाजिक अलगाव मस्तिष्क के स्वास्थ्य और विकास को प्रभावित करते हैंजिससे बच्चों में आजीवन चुनौतियों के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है. 

दुर्भाग्यवश मध्यम से न्यूनतम आय वाले देशों में मानसिक बीमारियों से जूझने वाले 75 से 80 प्रतिशत नागरिकों को आवश्यक सहायता कभी मिल ही नहीं पाती.

महिलाओं की दशा तो और भी ज्यादा खराब है. घर के लिए भोजन की सुरक्षा करने में अहम भूमिका तो उनकी ही होती है. इसी प्रकार पुरुषों के मुकाबले उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति के कारण वे पहले से ही तनाव और चिंता का शिकार रहती हैं. रोजाना घर के काम का बोझ उठाने वाली महिलाओं का इसी वजह से मानसिक स्वास्थ्य ज्यादा प्रभावित होने का खतरा है. भारत में 34 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 66 प्रतिशत महिलाओं के महामारी के दौरान चिंता और तनाव से परेशान होने की बात स्वीकारी गई हैं. कोविड-19 के दौरान गर्भवती एवं नवप्रसूता महिलाओं में स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने में होने वाली परेशानीसंक्रमण की आशंका और सामाजिक आधार के अभाव में चिंता ज्यादा देखी गई. विकासशील देशों में महिला सशक्तिकरण की कमीनिर्णय लेने की क्षमता से इंकार और घरेलू हिंसा महिलाओं के बीच खराब मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं. इसी तरह का आकलन विकसित देश की महिलाओं के बारे में भी निकलकर सामने आया है. ऐसे में अब यह बात उठने लगी है कि महामारी के दौरान महिलाओं को प्राथमिकता देकर उनके मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने वाली नीतियां बनाई जानी चाहिए. 

फ्रंटलाइन वर्कर्स के भी सामने अंदरुनी खराब स्वास्थ्य का खतरा हैजिसमें आत्महत्या के प्रयासपतन की धमकी और कलंक शामिल हैं. स्वास्थ्यकर्मियों के बीच की गई स्टडी में पाया गया कि उनमें अवसादपरेशानीअनिद्रा में वृद्धि देखी गई और इन्हें भी मनोवैज्ञानिक सहयोग प्रदान की जरूरत महसूस की गई. चिलीइटलीस्पेनफिलीपींससंयुक्त अरब अमीरातयूके और यूएस की रिपोर्टें बताती हैं कि कैसे समर्पित टीमें स्वास्थ्य कर्मियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करती हैं.

मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी का प्रभाव अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों है. और लॉकडाउन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और समर्थन में व्यवधान आने से यह और भी बढ़ गया है (फिगर देखें). इसके अतिरिक्तयह नकारात्मक प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य संकट को बढ़ा सकता है. इस वजह से और एक समानांतर महामारी हमारे सामने होगीजो लंबे समय तक चल सकती है.

मानसिक स्वास्थ्य सेवा में निवेश 

वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ के अध्यक्ष इंग्रीड डैनियल्स ने 2020 में कहा था कि, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर पहले से ही भारी बोझ है. ऐसे में अब कोविड-19 महामारी के कारण मानसिक स्वास्थ्य की जरूरतों में असाधारण वृद्धि इससे प्रभावित हर महाद्वीप के अनेक देशों में पहले से ही पैसों और संसाधनों की कमी का सामना कर रही मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं. कोविड-19 ने मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं की गंभीर खामियों को भी उजागर कर दिया है. अत: अब वैश्विक नेताओं को चाहिए कि वे इसकी जरूरत को प्राथमिकता बनाकर यह सुनिश्चित करें कि गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य सहयोग प्रत्येक के लिए हर जगह आसानी से उपलब्ध करवाया जाएं’’.

80 वर्षों में चिंताअवसाद और आत्महत्या को संबोधित करने वाले स्कूल-आधारित हस्तक्षेपों में निवेश किए गए प्रत्येक एक अमेरिकी डॉलर ने 21.5 अमेरिकी डॉलर का रिटर्न दिया हैं. दरअसलदुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर महामारी की चोट होने से पहले ही कम खर्च किया जा रहा था. अनेक देश अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य बजट की दो प्रतिशत से भी कम की राशि ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हुए अपने नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने में परेशानी का सामना कर रहे थे. दुनिया के कुछ गरीब देशों में तो सरकार किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति का उपचार करने पर एक अमेरिकी डॉलर से भी कम पैसा खर्च कर रही है. यहां उल्लेखनीय है कि मानसिक बीमारी के इलाज में आने वाले खर्च के मुकाबले नकारात्मक लाभदायक परिणाम या निष्क्रियता की कीमत ज्यादा होती है. 

विकासशील देशों में महिला सशक्तिकरण की कमी, निर्णय लेने की क्षमता से इंकार और घरेलू हिंसा महिलाओं के बीच खराब मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं.

मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की व्यापकता में दशकों से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. लेकिन कोविड-19 की महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता को और बढ़ा दिया है. महामारी के बीच चिंता की व्यापकता काफी बढ़ गई है (फिगर और देखें).

मध्यम आय वाले देशों को कोविड-19 महामारी ने अनेक कारणों की वजह से विशेष रूप से प्रभावित किया हैं : मानव संसाधनोंव्यक्तिगत सुरक्षा के उपकरणों की कमी और अपर्याप्त बेड्स और उपचार औषधियां मसलन मैकेनिकल वेंटिलेटर्स. महामारी की वजह से मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों में कमी के कारण अनेक कम और मध्यम आय वाले देशों को नौकरी गंवानेआय में कमी और खाद्य असुरक्षा में वृद्धि के कारण लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव से निपटने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा स्वास्थ्य बजट में मानसिक स्वास्थ्य के बजट के लिए रखी जाने वाली राशि में काफी खामियां हैं. एक ओर जहां उच्च आय वाले देशों में इस पर तीन प्रतिशत खर्च होता हैवहीं विकासशील देशों में इस पर 0.5 प्रतिशत से भी कम खर्च किया जाता है. 

विकासशील देशों में खराब मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध होने की वजह से इसके कारण प्रतिकूल सामाजिक आर्थिक परिणाम और अपरिहार्य मनोवैज्ञानिक संकट खड़े हो सकते हैं. विकासशील देशों में मध्यम और लघु उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. एक ओर जहां इन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता अपर्याप्त हैवहीं असंगठित क्षेत्र पर निर्भर करने वाले लोगों ने देखा है कि कैसे उनकी आय प्रभावित हुई और उन्हें खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा है. निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों की सरकारों ने अभी तक अपने नियमित स्वास्थ्य प्रणालियों में मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं दी है. उदाहरण के तौर पर जहां यूएस के राज्यों ने कोविड-19 महामारी के पहले ही अपने यहां की स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागृति अनिवार्य कर दी थीवहीं भारत में 75 प्रतिशत किशोर अवस्था के नागरिकों ने कभी भी मानसिक स्वास्थ्य जागृति सत्र में हिस्सा नहीं लिया था. 

मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की व्यापकता में दशकों से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. लेकिन कोविड-19 की महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता को और बढ़ा दिया है.

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल चाहने वाले लोगों के व्यवहारों में मानसिक बीमारी के प्रति सार्वजनिककथित और स्वयं को कलंकित करने वाले रवैये की पहचान को महत्वपूर्ण बाधा माना गया है. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सामाजिक भ्रांतियां और टैबू ही लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने अथवा उपचार करवाने से रोकता है. शर्म और शर्मिंदगी और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के खुलासे को लेकर लगातार बना हुआ आंतरिक कलंक भी लोगों को उपचार करवाने से रोकता है. 2018 में हुए एक सर्वे में 42 प्रतिशत जवाब देने वालों ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने में उनके सामने सबसे बड़ी बाधा इस पर होने वाला बेशुमार खर्च और बीमा कवरेज की कमी है. इसमें से चार में से एक व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य उपचार के मुकाबले अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने पर मजबूर होना पड़ा था. अत: इस तरह उपचार तक पहुंच को रोकने वाली कीमतेंबीमा कवरेज की कमी और मानसिक तथा मादक द्रव्यों के सेवन के विकारों से जुड़े सामाजिक कलंक के कारणव्यवहार संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करने वाले अधिकांश लोग अब भी उपचार सुविधा का लाभ नहीं ले पाते हैं.

विकासशील देशों से मिलने वाले साक्ष्य घरेलू खाद्य असुरक्षा का सामना करने वाली महिलाओं में उच्च तनाव स्तर और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों की ओर इशारा करते हैं. महामारी के दौरान मध्यम आय वाले सात देशों के आम नागरिकों के बीच मानसिक स्वास्थ्य पर की गई तुलनात्मक स्टडी ने खराब मानसिक स्वास्थ्य के खतरे को बढ़ाने वाले कारकों को उजागर किया. इसमें उम्र (30 वर्ष से कम)उच्च शिक्षाएकल (सिंगल) और विभक्त अवस्था यानी सेपरेटेड स्टेट्स के साथ कोविड-19 को लेकर चिंताओं का समावेश हैं. अफ्रीका और एशिया में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और नागरिकों के निम्न सामाजिक आर्थिक दर्जे के कारण इन देशों पर मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के बढ़ते बोझ का सामना करने का खतरा बढ़ गया है. कुछ विकासशील देशों में महामारी के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और सार्वजनिक सुरक्षा को लेकर किए गए उपायों ने चिंता और अवसाद के स्तर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. 

आगे बढ़ने का रास्ता 

बहुविषयक और अंतरक्षेत्रीय समाधान की मांग करने वाले एसडीजी को पूरा करने की प्रक्रिया में मानसिक स्वास्थ्य एक अभिन्न अंग है. महामारी के बीच डब्ल्यूएचओ ने मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बनाए रखने के लिए विभिन्न देशों को अपनी राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और महामारी के बाद बहाली योजनाओं में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए संसाधनों के समर्पित आवंटन की सिफारिश की थी. डब्ल्यूएचओ ने मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक विशेष पहल भी स्थापित की हैजो सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के हिस्से के रूप में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ाने पर केंद्रित है. गुणवत्ता हस्तक्षेप और सेवाओं को बढ़ाकर यह सुनिश्चित किया गया है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर खराब स्थिति का सामना करने वाले प्रत्येक व्यक्ति तक इसका लाभ पहुंचाया जाए.

दुनिया में टेलीहेल्थ को तेजी से अपनाया जा रहा है. अतः निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देश इस तकनीकी बदलाव का उपयोग करते हुए अपने यहां लिंग और क्षेत्र को लेकर विशेषत: महिलाओं और नस्लीय अल्पसंख्यकों में मौजूद डिजिटल विभाजन का  मुकाबला करने के लिए इसका सक्रियता से लाभ उठा सकते हैं. दरअसलवैश्विक स्तर पर टेलीहेल्थ सेवाओं को मनोचिकित्सा ने सबसे ज्यादा अपनाया है. अब मानसिक स्वास्थ सेवाओं को दुनिया भर में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए. संसाधनों की कमी से जूझने वाले देशों में कम खर्च वाले उपायों की आवश्यकता हैताकि वे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना कर सके.

महामारी ने लोगों पर जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला हैउसने यह दर्शाया है कि लोग कितने नाजुक हैं. ऐसे में सारी दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर और अधिक सहायता की जरूरत महसूस की जा रही है. इस गति को समग्र कल्याण में सुधार के लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता में निवेश के प्रभावी तरीकों पर विचार करके कमजोर समूहों की अधूरी जरूरतों को पूरा करने के अवसर के रूप में देखा जा सकता है. मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को सामान्य स्वास्थ्य नीतियों और योजनाओं में शामिल किया जाना चाहिए. इसके बाद वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए इसकी सावधानीपूर्वक निगरानी और मूल्यांकन किया जाना चाहिए.

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Shoba Suri

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Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...

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