Author : Rumi Aijaz

Published on Sep 02, 2022 Updated 25 Days ago

दिल्ली में वायु गुणवत्ता पर अलग-अलग अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण में ट्रांसपोर्ट सेक्टर (परिवहन क्षेत्र) का बड़ा योगदान है.

#वायु प्रदूषण: दिल्ली में मोटर वाहन द्वारा पैदा होने वाले उत्सर्जन पर कार्रवाई

भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण बहुत ज्यादा दर्ज़ की जा रही है. इसकी भौगोलिक स्थिति और अलग-अलग जलवायु परिस्थितियां इस समस्या को और बढ़ाती हैं. हालांकि इसका एक सबसे महत्वपूर्ण कारण अनुचित तरीक़े से कई मानव गतिविधियों का संचालन भी है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिल्ली को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में पहचाने जाने के बाद ही दिल्ली की ख़राब वायु गुणवत्ता के मुद्दे पर ध्यान दिया गया. इसके बाद से ही वैज्ञानिक अध्ययनों के साथ-साथ मीडिया रिपोर्ट में इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत पर जोर दिया गया. इस संबंध में ख़राब वायु गुणवत्ता के मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर नकारात्मक असर के साथ ही दिल्ली शहर और देश पर इसके परिणामों की ओर भी ध्यान आकृष्ट कराया गया.

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिल्ली को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में पहचाने जाने के बाद ही दिल्ली की ख़राब वायु गुणवत्ता के मुद्दे पर ध्यान दिया गया. इसके बाद से ही वैज्ञानिक अध्ययनों के साथ-साथ मीडिया रिपोर्ट में इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत पर जोर दिया गया.

अनुचित तरीक़े से संचालित गतिविधि का एक उदाहरण ट्रांसपोर्ट सेक्टर (परिवहन क्षेत्र) में देखा गया. मिसाल के तौर पर, कई मामलों में सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं कम और असंतोषजनक हैं. और ऐसी स्थिति के पीछे प्रशासनिक लापरवाही ज़िम्मेदार है, जिसके परिणामस्वरूप निजी गाड़ियों की तादाद में भारी बढ़ोतरी हुई है. शहर में बड़ी संख्या में मोटर वाहन पेट्रोल और डीजल से चलते हैं और इससे हवा में हानिकारक प्रदूषक तत्वों का भारी उत्सर्जन होता है. दिल्ली में वायु गुणवत्ता पर अलग-अलग अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण में ट्रांसपोर्ट सेक्टर की बड़ी भूमिका है.

इस दिशा में उठाए गए कदम

पिछले दो दशकों में, प्रशासन द्वारा मोटर वाहनों से उत्सर्जन को कम करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. साल 2001 में, सभी सार्वजनिक परिवहन वाहनों (बसों, ऑटो और टैक्सियों सहित) को पेट्रोल/डीजल से कंप्रेस्ड नैचुरल गैस (सीएनजी) आधारित प्रणाली में बदल दिया गया था. सीएनजी को इसकी स्वच्छ विशेषताओं के कारण ही प्राथमिकता दी गई थी. 2015 में डीजल से चलने वाले कमर्शियल व्हीकल (वाणिज्यिक वाहनों) (जैसे ट्रक) पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाया गया था, जो अन्य राज्यों में जाने के लिए शॉर्ट-कट के तौर पर सड़कों का इस्तेमाल करने के लिए दिल्ली शहर में प्रवेश कर रहे थे. ऐसे वाहनों को अब रिजनल रिंग रोड कॉरिडोर का इस्तेमाल करना होता है, जिसे दिल्ली के आसपास विकसित किया गया है.

इसी साल  पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने की नीति के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में 10 साल पुराने डीजल वाहनों के संचालन पर रोक लगा दिया गया था. इसके बाद 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों पर भी रोक लगा दी गई थी. इसका मतलब यह है कि एनसीआर में रहने वाले वाहन मालिक इस तय अवधि के बाद अपने पुराने वाहनों के पंजीकरण को रिन्यू नहीं कर सकते हैं, और उन्हें नए (या सेकंड हैंड) वाहन ख़रीदने होंगे जो आवश्यक समय सीमा के भीतर मान्य हैं. हालांकि, उनके पास एनसीआर की सीमा से बाहर रहने वाले इच्छुक ख़रीदारों को अपने पुराने वाहन बेचने का विकल्प मौज़ूद है.

15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों पर भी रोक लगा दी गई थी. इसका मतलब यह है कि एनसीआर में रहने वाले वाहन मालिक इस तय अवधि के बाद अपने पुराने वाहनों के पंजीकरण को रिन्यू नहीं कर सकते हैं, और उन्हें नए (या सेकंड हैंड) वाहन ख़रीदने होंगे जो आवश्यक समय सीमा के भीतर मान्य हैं.

सरकार की एक और पहल साल 2016 में ऑड-इवन कार नंबर प्लेट योजना के तौर पर सामने आई थी. इस व्यवस्था को सीमित दिनों के लिए सबसे ज़्यादा प्रदूषण के दौरान आजमाया गया था. इससे सड़क पर कारों की संख्या सीमित हो गई थी लेकिन तब सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की कमी के कारण कई यात्रियों को कठिनाई का सामना भी करना पड़ा था.
इसके अलावा 2018 में स्वच्छ ईंधन में बदलाव की प्रक्रिया शुरू की गई थी. वर्तमान में भारत स्टेज एमिशन स्टैंडर्ड सिक्स (या बीएस – 6) ग्रेड ईंधन ही दिल्ली में मोटर चालकों के लिए उपलब्ध है और इस सुविधा को पूरे एनसीआर में बढ़ाया जा रहा है.

मेट्रो रेल परियोजना का अहम योगदान 

ऊपर बताए गये पहल के अलावा  दिल्ली की मेट्रो रेल परियोजना ने उत्सर्जन को सीमित करने में मदद की है. (391 किमी लंबा) रेल नेटवर्क पड़ोसी एनसीआर राज्यों के शहरों तक विस्तारित किया गया है और यह एक बड़ी आबादी की आने जाने की ज़रूरतों को पूरा करता है. इस सेवा की उपलब्धता के साथ, कई लोग अपने निजी वाहनों का उपयोग करने से बचते हैं. वास्तव में कोविड-19 महामारी की घटना से पहले, मेट्रो रेल भीड़ भाड़ के दौरान खचाखच भरी रहती थी. मेट्रो रेल प्रणाली के साथ दूसरा मुद्दा पहले और अंतिम गन्तव्य की कनेक्टिविटी में अंतर का है.

यह मानते हुए कि जीवाश्म ईंधन (यानी कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस) द्वारा संचालित गाड़ियां हानिकारक पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं, इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के इस्तेमाल पर जोर देने की बात इन दिनों हो रही है. ईवी, रिचार्जेबल बैटरी पर चलते हैं और टेलपाइप एमिशन पैदा नहीं करते हैं. इस संबंध में सभी व्हीकल सेगमेंट में (यानी दो/तीन/चार पहिया वाहन) में ईवी अपनाने की गति में तेजी लाने के लिए एक नीति 2020 में बनाई गई थी. यह 2024 तक सभी नए वाहन पंजीकरण में 25 प्रतिशत ईवी के लक्ष्य को पूरा करने के लिए है. ऐसी जानकारी है कि जुलाई 2022 के अंत तक  दिल्ली में पंजीकृत कुल (13.65 मिलियन) वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी एक प्रतिशत (159,180) से थोड़ी अधिक हो सकती है.

ऐसे नीतिगत लक्ष्य कई उपायों के संयोजन के ज़रिए पूरे किए जा सकते हैं. उदाहरण के लिए, ख़रीदार  ईवी के ख़रीद मूल्य और अपने पुराने वाहनों को स्क्रैप करने पर वित्तीय लाभ प्राप्त कर सकते हैं. ख़रीद मूल्य पर छूट विभिन्न ईवी सेगमेंट के लिए अलग-अलग हैं. उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया वाहनों पर अधिकतम 30,000 रुपये की छूट दी जाती है, जबकि पहली 1,000 इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री पर अधिकतम छूट 150,000 रुपये है.

ईवी सेक्टर की ग्रोथ से बिजली की मांग में बढ़ोतरी होगी. इसका मतलब यह हुआ कि भविष्य में अधिक मात्रा में कोयला जलाया जाएगा. इसलिए कोयले पर निर्भरता कम करना और बिजली उत्पादन के लिए सौर, पवन और पनबिजली जैसी स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अधिक प्राथमिकता देना आवश्यक होगा.

पारंपरिक वाहनों (जैसे पेट्रोल/डीजल से चलने वाली कार) के ख़रीदारों को रोड टैक्स और पंजीकरण शुल्क के रूप में लगभग 100,000 रुपये का भुगतान करना पड़ता है. हालांकि ईवी ख़रीदारों के लिए इस तरह के ख़र्च माफ कर दिए गए हैं.

ईवी बैटरी को इस्तेमाल करने के बाद उसे बेहतर हैंडलिंग की आवश्यकता होती है, क्योंकि इनमें लिथियम और कोबाल्ट जैसे विषाक्त पदार्थ होते हैं. अगर इस पहलू की अनदेखी की जाती है तो इससे पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में और ज़्यादा लागत आएगी. इसलिए इससे जुड़ी किसी भी नीति के तहत ईवी और इसकी बैटरी के निर्माताओं के साथ बैटरी रीसाइक्लिंग कारोबार को बढ़ाने और उसके विकास को प्रोत्साहन देती है.

पर्यावरण के अनुकूल हैं ईवी 

ईवी पर्यावरण के अनुकूल हैं क्योंकि ये प्रदूषकों का उत्सर्जन नहीं करते हैं. हालांकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उनकी बैटरी बिजली से चार्ज होती है, जो कोयले को जलाकर उत्पादित होती है. बिजली उत्पादन की इस प्रक्रिया के गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभाव हैं. ईवी सेक्टर की ग्रोथ से बिजली की मांग में बढ़ोतरी होगी. इसका मतलब यह हुआ कि भविष्य में अधिक मात्रा में कोयला जलाया जाएगा. इसलिए कोयले पर निर्भरता कम करना और बिजली उत्पादन के लिए सौर, पवन और पनबिजली जैसी स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अधिक प्राथमिकता देना आवश्यक होगा.

दिल्ली में वाहन प्रदूषण को कम करने के मक़सद से की जा रही इन कोशिशों के सकारात्मक परिणाम दिखाई दे रहे हैं. सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मज़बूत कर, पैदल चलने वालों और साइकिल चालकों के लिए सुविधाओं के प्रावधान तैयार कर, लोगों की फ्यूल एफिसिएंट व्हीकल तक पहुंच बढ़ाने और यातायात प्रबंधन को बेहतर कर, स्वच्छ पर्यावरण की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है.

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