Published on Dec 31, 2020 Updated 0 Hours ago

हम एक नई विश्व व्यवस्था का उदय होते देखेंगे, जो राष्ट्रीय हितों, साझीदारों की विश्वसनीयता और हां, आर्थिक कारकों से निर्मित होगी. इस परिवर्तन को अपनाने के लिए भारत को ‘गेटेड ग्लोबलाइज़ेशन’ के फ्रेमवर्क की मदद लेनी होगी.

सीओवीआईडी ​​​​19 के बाद: भारत के सबसे बड़े प्राकृतिक दृश्यों में से एक

कोविड-19 की वैक्सीन आने लगी हैं. महामारी से निजात दिलाने की इस संजीवनी के साथ ही जियो-पॉलिटिक्स का नया युग भी आ रहा है. कोविड-19 की वैक्सीन कई तरह की हैं, जिनकी क़ीमतें और सहज उपलब्धता अलग अलग हैं. बहुत से देशों ने अपने लिए इन वैक्सीन की आपूर्ति, उन देशों और उन कंपनियों के साथ मिलकर सुनिश्चित कर ली है, जिन पर वो भरोसा करते हैं. जिस तरह रूस और चीन में बनी वैक्सीन पर संदेह जताया जा रहा है, वो इस बात का संकेत है कि महामारी के बाद की दुनिया में भरोसा ही सबसे अहम शब्द बन गया है, और इसका इस्तेमाल केवल अपने लिए उचित टीके के चुनाव तक सीमित नहीं है. 

बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था

अब जबकि हम 21वीं सदी के तीसरे दशक में प्रवेश कर रहे हैं, तो आने वाले समय में बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था हमारा इंतज़ार कर रही है. दुनिया पर इस महामारी के हमले से पहले अमेरिका और चीन के बीच अव्वल नंबर पर आने की होड़ लगी हुई थी. लेकिन, अब इन दोनों देशों को ब्रिटेन, फ्रांस, भारत और ब्राज़ील जैसी पारंपरिक और उभरती हुई ताक़तों की चुनौती का भी सामना करना होगा. हर देश, दूसरे राष्ट्र के साथ चुनिंदा विषयों पर संवाद करेगा. यानी दो देशों के बीच ये संवाद हर क्षेत्र में नहीं होगा. आने वाले समय में हम एक नई विश्व व्यवस्था का उदय होते देखेंगे, जो राष्ट्रीय हितों, साझीदारों की विश्वसनीयता और हां, आर्थिक कारकों से निर्मित होगी. इस परिवर्तन को अपनाने के लिए भारत को ‘गेटेड ग्लोबलाइज़ेशन’ के फ्रेमवर्क की मदद लेनी होगी.

जिस तरह रूस और चीन में बनी वैक्सीन पर संदेह जताया जा रहा है, वो इस बात का संकेत है कि महामारी के बाद की दुनिया में भरोसा ही सबसे अहम शब्द बन गया है, और इसका इस्तेमाल केवल अपने लिए उचित टीके के चुनाव तक सीमित नहीं है.

सुरक्षा संबंधी मामले तमाम देशों के बीच साझेदारी का आधार बने रहेंगे, लेकिन ऐसी साझेदारियों का रूप बहुत व्यापक हो, ये ज़रूरी नहीं होगा. भारत इस समय हिमालय की चोटियों पर चीन की आक्रामकता का सामना कर रहा है. अमेरिका और उसके पारंपरिक सहयोगी देश पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मज़बूत कर रहे हैं. हिंद प्रशांत क्षेत्र में एक नया ‘ग्रेट गेम’ चल रहा है, जहां चतुर्भुज सहयोग संगठन (QUAD) आकार ले रहा है. मध्य पूर्व में ज़बरदस्त उठा-पटक चल रही है और अरब देश व इज़राइल ने पाया है कि उनके  आपसी संबंधों में कई साझा हित छुपे हैं. पिछले कई दशकों में हासिल की हुई विविधता के बीच आज यूरोप अपने मूल्यों को बचाए रखने के संघर्ष में उलझा हुआ है.

गेटेड ग्लोबलाइज़ेशन फ्रेमवर्क से हितों की सुरक्षा

इस उठा-पटक के दौर में भारत को चाहिए कि वो गेटेड ग्लोबलाइज़ेशन के फ्रेमवर्क की मदद से अपने हितों की हिफ़ाज़त करे. इसके लिए मज़बूत घेरेबंदी की ज़रूरत है. लेकिन, भारत के लिए आपसी विश्वास और साझा हितों पर आधारित नई साझेदारियों (जैसे कि QUAD) के विकास की भी आवश्यकता है. गेटेड ग्लोबलाइज़ेशन के सिद्धांत में ‘गुट निरपेक्षता’ जैसे टाइम पास खेल की कोई गुंजाईश नहीं है; ये भारत की ‘सामरिक स्वायत्तता’ के शक्तिशाली लचीलेपन का इम्तिहान लेगा. डोकलाम संकट के दौरान ही भारत को नई साझेदारी की ज़रूरत महसूस हुई थी. लद्दाख में तनातनी के बाद तो ऐसी साझेदारी अनिवार्य लग रही है. आज भारत को ऐसे दोस्त की ज़रूरत है, जो ज़ुबानी ही नहीं, ज़रूरी क़दम उठाकर उसका साथ दे.

आज भारत को ऐसे दोस्त की ज़रूरत है, जो ज़ुबानी ही नहीं, ज़रूरी क़दम उठाकर उसका साथ दे.

साझेदारों का चुनाव 

सुरक्षा से इतर, किसी भी अन्य देश की तरह भारत को व्यापार, पूंजी के प्रवाह और श्रम की आवाजाही को लेकर साझेदारियां बनाने के चुनाव करने होंगे. विश्व व्यापार संगठन की बहुपक्षीय व्यवस्था इतनी बिखर चुकी है कि उसकी मरम्मत कर पाना अब संभव नहीं रहा. ऐसे में फिर चाहे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में RCEP हो या उत्तरी अमेरिका के मुक्त व्यापार समझौते (NAFTA) का नया रूप USMCA, या फिर यूरोपीय संघ में नए सिरे से बन रहे तालमेल, तमाम देशों को ये फ़ैसला करना होगा कि वो ऐसी बंद व्यापार व्यवस्थाओं का हिस्सा बनना चाहते हैं, या नहीं. भारत ने RCEP से बाहर रहने का निर्णय लिया है, तो ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ को अलविदा कह दिया है.

चीन के साथ व्यापार पर पाबंदियां लगाने से भारत के सामने पूंजी का प्रवाह बाधित होने की चुनौती खड़ी हो गई है. लेकिन, इसका अर्थ ये नहीं है कि भारत ने नए साझीदारों से पूंजी हासिल करने के दरवाज़े भी बंद कर दिए हैं. अवैध फंड अपने देश में आने देने से रोकने के लिए भारत ने कम नियमन वाले क्षेत्रों से पूंजी के प्रवाह को रोका है. निवेश के लिए भारत का पूंजी खाता मोटे तौर पर खुला है, वहीं चालू खाते का सावधानी से प्रबंधन किया जा रहा है.  इसी तरह, क़र्ज़ की आमद पर कुछ पाबंदियां लगाकर, भारत ने दोस्ताना देशों से शेयरों के प्रवाह के द्वार खुले रखे हैं. अन्य देश भी ऐसी ही नीतियां अपना रहे हैं. बाहर से आ रही पूंजी का इस तरह से प्रबंधन करके बहुत से देशों ने अपने गिने-चुने साझीदारों के साथ वित्तीय संबंधों को मज़बूत किया है, और उन देशों से निवेश के लिए अपने द्वार बंद कर लिए हैं, जो उनके हितों के लिए ख़तरा हैं.

आज दुनिया में अप्रवासी भारतीयों की संख्या तीस करोड़ से भी अधिक हो गई है. ये अप्रवासी भारतीय हर साल भारत को जो पैसे भेजते हैं (80 अरब डॉलर प्रति वर्ष), वो विदेशी पूंजी के प्रवाह से कहीं अधिक है. महामारी के कारण जिस तरह वर्क फ्रॉम होम को अपनाया गया है, उससे हुनरमंद कामकाजी लोगों का एक नया वर्ग तैयार होगा, जो वर्चुअल दुनिया के बंद समुदायों में जीवन यापन करेगा. इससे ऐसी नौकरियों से आमदनी बढ़ेगी, जो ज़मीनी तौर पर कहीं अन्य स्थित हैं. इसके अतिरिक्त, विदेशों में रह रहे भारतीय समुदाय के लोगों का नीति निर्माण में प्रभाव बढ़ रहा है, जैसे कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया. इन देशों में भारतीय मूल के लोगों ने राजनेताओं, टेक्नोक्रेट, इनोवेटर और इंफ्लुएंसर्स, अरबपतियों और क्रिकेट टीम के कप्तानों के रूप में योगदान दिया है.

महामारी के कारण जिस तरह वर्क फ्रॉम होम को अपनाया गया है, उससे हुनरमंद कामकाजी लोगों का एक नया वर्ग तैयार होगा, जो वर्चुअल दुनिया के बंद समुदायों में जीवन यापन करेगा. इससे ऐसी नौकरियों से आमदनी बढ़ेगी, जो ज़मीनी तौर पर कहीं अन्य स्थित हैं.

और आख़िर में तकनीक के प्रवाह और मानक भी सिर्फ़ आपस मे संबंध रखने वाले बंद समुदायों को परिभाषित करेंगे. आज इंटरनेट चीन और बाक़ी दुनिया के बीच बंट चुका है. चीन की ग्रेट फायरवॉल ने गूगल, फेसबुक और नेटफ्लिक्स जैसी बहुत सी बड़ी तकनीकी कंपनियों के लिए अपने दरवाज़े बंद किए हुए हैं. इसके बजाय, चीन ने अपने यहां बायडू, अलीबाबा और टेंसेंट जैसी कंपनियां विकसित कर ली हैं. 5G तकनीक की आमद के साथ ही विश्वसनीयता और निष्ठा की ये दरार और गहरी और बड़ी होती जाएगी.

यूरोपीय संघ द्वारा तैयार जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेग्यूलेशन (GDPR) गेटेड ग्लोबलाइज़ेशन का बेहतरीन उदाहरण है. यूरोपीय संघ ने इसके माध्यम से तकनीकी कंपनियों के साथ संबंध रखने की शर्तें तय कर दी हैं; जो तकनीकी कंपनियां इन शर्तों को नहीं मानेंगी, उन्हें यूरोप में कारोबार की इजाज़त नहीं होगी. डेटा संरक्षण को लेकर भारत में अभी जिस क़ानून को लेकर चर्चा चल रही है, वो भी इसी तरह के संप्रभु मार्ग को अपनाने वाला है. हालांकि, ये देखना बाक़ी है कि, क्या इन नियमों और शर्तों की मदद से चीन की डिजिटल निगरानी वाली व्यापक व्यवस्था के विस्तार को रोका जा सकेगा या नहीं.

डेटा संरक्षण को लेकर भारत में अभी जिस क़ानून को लेकर चर्चा चल रही है, वो भी इसी तरह के संप्रभु मार्ग को अपनाने वाला है. हालांकि, ये देखना बाक़ी है कि, क्या इन नियमों और शर्तों की मदद से चीन की डिजिटल निगरानी वाली व्यापक व्यवस्था के विस्तार को रोका जा सकेगा या नहीं.

बड़ी ताक़तों के बीच प्रतिद्वंदिता

बड़ी ताक़तों के बीच प्रतिद्वंदिता पर केंद्रित कई अन्य क्षेत्र भी आकार ले रहे हैं. चीन ने अपनी वैश्विक रणनीति बनाने के लिए हर संभव दिशा में क़दम बढ़ाए हैं. चीन ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव और क़र्ज़ के कार्यक्रम से जोड़ दिया है. अब चीन तमाम देशों को अपनी 5G तकनीक के साथ नए टेलीकॉम नेटवर्क के पैकेज का प्रस्ताव दे रहा है. चीन ने अमेरिका से अच्छी तरह सीख ली है.

महामारी के बाद तेज़ी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत को ऐसे साझीदारों को जल्द से जल्द पहचानना होगा, जिन पर वो भरोसा कर सके, और जो उसके राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के साथ साथ उन्हें आगे बढ़ा सकें. अब दुविधा, आलस्य और दिखावे भर से काम नहीं चलने वाला है.


ये समीक्षा मूल रूप में द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुई थी.

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