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किसी भी देश के विकास के लिए ऊर्जा एक प्रमुख आवश्यकता है. हर प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च स्तर के क्षेत्र की गतिविधि जैसे कि कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, उत्पादन, निर्माण और परिवहन के लिए ऊर्जा की ज़रूरत होती है.
दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में ऊर्जा की आवश्यकता विभिन्न है. ऊर्जा की आवश्यकता को तय करने में महत्वपूर्ण फैक्टर जनसंख्या का आकार, बस्तियों की ग्रामीण-शहरी स्थिति और की गई गतिविधियों का पैमाना है. उदाहरण के लिए, कुछ कम आबादी वाले लेकिन तकनीक के मामले में उन्नत देश बहुत अधिक ऊर्जा की खपत कर सकते हैं. इसी तरह अधिक आबादी वाले शहरों की ऊर्जा आवश्यकता बहुत अधिक हो सकती है.
आम तौर पर अलग-अलग देश विभिन्न स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करते हैं. इनमें मुख्य रूप से कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस (या जीवाश्म ईंधन) शामिल हैं. कुछ देशों ने परमाणु ऊर्जा उत्पादन की क्षमता विकसित की है. लेकिन इस तथ्य को तेज़ी से स्वीकार किया जा रहा है कि जीवाश्म ईंधन से ऊर्जा प्राप्त करने के मौजूदा तरीके के नतीजतन पारिस्थितिक संतुलन में गिरावट और गड़बड़ी आ रही है.
एक और चिंता जीवाश्म ईंधन के जलने की वजह से हवा में प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों का निकलना है जिसका जीव-जंतुओं और पर्यावरण पर ख़राब असर पड़ता है. इन नकारात्मक प्रभावों में समुद्र का अम्लीकरण (एसिडिफिकेशन), ख़राब मौसम की स्थिति (यानी लंबे समय तक हीट वेव, तेज़ चक्रवाती गतिविधि और ऐसी बारिश जिसका नतीजा भूस्खलन और बाढ़ के रूप में निकलता है), ग्लोबल वार्मिंग, वायु एवं जल प्रदूषण, जैव विविधता का नुकसान और लोगों की सेहत में गिरावट शामिल हैं.
ऊपर जिन प्रभावों का ज़िक्र किया गया है वो स्वच्छ (यानी पर्यावरण के अनुकूल) और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों जैसे कि जलविद्युत, घरों से निकलने वाले कूड़े, पवन, सौर, बायोमास, जियो थर्मल और बायोगैस की तरफ तेज़ी से अलग-अलग देशों के बदलाव का एक महत्वपूर्ण कारण है.
इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र (UN) दुनिया भर के देशों को जीवाश्म ईंधन के लगातार उपयोग के ख़िलाफ़ सावधान करता है और निर्भरता कम करने के लिए उपायों का सुझाव देता है. इसके अलावा विश्व आर्थिक मंच ने एक रूप-रेखा और सूचकांक (इंडेक्स) विकसित किया है ताकि ये आकलन किया जा सके कि ऊर्जा परिवर्तन के मामले में अलग-अलग देश कहां खड़े हैं. एनर्जी ट्रांज़िशन इंडेक्स (ETI) की वैल्यू दो पहलुओं की समीक्षा के आधार पर निकाली जाती है: वर्तमान ऊर्जा प्रणाली का प्रदर्शन और परिवर्तन के लिए तैयारी. परिणाम बताते हैं कि स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड, स्विट्ज़रलैंड और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों को सबसे ज़्यादा ETI स्कोर मिला जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं (जिनमें ब्राज़ील और चीन शामिल हैं) ने उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है लेकिन निवेश और नियमों में असमानताएं बनी हुई हैं. 2024 में कुल मिलाकर 120 देशों की समीक्षा की गई, उनमें भारत की रैंकिंग 63 है.
ये लेख चुनिंदा देशों में शुरू की गई स्वच्छ ऊर्जा की पहल और इस प्रयास में हासिल की गई प्रगति का वर्णन करता है.
ये लेख चुनिंदा देशों में शुरू की गई स्वच्छ ऊर्जा की पहल और इस प्रयास में हासिल की गई प्रगति का वर्णन करता है.
अंतरराष्ट्रीय पहल
विभिन्न देश ऊर्जा परिवर्तन के अलग-अलग चरणों में हैं. उदाहरण के लिए, स्वीडन को कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था का निर्माण करने के मामले में नेतृत्व करने वाले देश के रूप में परिभाषित किया जाता है. वहां की सरकार ने अपने प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठाया है और नवीकरणीय ऊर्जा के अलग-अलग स्रोतों का उपयोग करती है. टैक्स (कार्बन टैक्स), परमिट, नियम, लक्ष्य आधारित अनुसंधान एवं विकास (R&D), जलवायु फंडिंग की योजनाओं और निवेश अनुदान जैसे नीतिगत उपकरणों के माध्यम से जीवाश्म ईंधन पर स्वीडन की निर्भरता कम की गई है.
ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) में ब्राज़ील, भारत, मोरक्को और केन्या इस दिशा में प्रगति कर रहे हैं. वैसे तो ब्राज़ील में जीवाश्म ईंधन का उपयोग जारी है लेकिन ऊर्जा के अलग-अलग स्रोतों में नवीकरणीय, जैव-ऊर्जा एवं कूड़ा और बायोमास का हिस्सा महत्वपूर्ण है. सरकार ने ग्रिड के विस्तार और आधुनिकीकरण के साथ पवन, सौर और बायोमास के विकास में निवेश किया है. ब्राज़ील की सरकार स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादकों की भागीदारी का भी समर्थन करती है. ब्राज़ील की कुछ उपलब्धियों में इथेनॉल मिश्रण की वजह से तेल के आयात में कमी और सौर ऊर्जा का उपयोग करके वितरित बिजली उत्पादन शामिल हैं.
मोरक्को में 3,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला एक बड़ा सोलर पावर प्लांट काम कर रहा है. इसकी लोकेशन सालाना सौर विकिरण की तीव्रता के आधार पर चुनी गई. 580 मेगावॉट बिजली का उत्पादन 23 लाख लोगों के घरों को रोशन करने के लिए पर्याप्त है. प्लांट के काम-काज के लिए हर साल लगभग 30 लाख क्यूबिक मीटर पानी और हर दिन 19 टन डीज़ल की ज़रूरत पड़ती है. दूसरी तरफ केन्या ने बिजली उत्पादन के लिए पवन ऊर्जा का इस्तेमाल किया है. उसकी 310 मेगावाट की तटवर्ती पवन ऊर्जा परियोजना राष्ट्रीय ग्रिड, जो लगभग 10 लाख घरों को ऊर्जा की आपूर्ति करती है, को विश्वसनीय और कम लागत वाली बिजली प्रदान करती है.
भारत में प्रगति
भारत का ETI स्कोर मोरक्को और केन्या की तुलना में थोड़ा बेहतर है. 30 सितंबर 2024 तक भारत में 453 गीगावॉट (GW) की स्थापित बिजली क्षमता थी. कुल स्थापित क्षमता में अलग-अलग ऊर्जा के स्रोतों का हिस्सा इस प्रकार है: कोयला 48 प्रतिशत, सौर ऊर्जा 20 प्रतिशत, पवन ऊर्जा 10.5 प्रतिशत, जलविद्युत 10 प्रतिशत, गैस 6 प्रतिशत, जैव-ऊर्जा 2.5 प्रतिशत, परमाणु 2 प्रतिशत और लघु जलविद्युत 1 प्रतिशत. 2015-16 से 2023-24 तक स्थापित क्षमता और ऊर्जा के स्रोत से उत्पादन के सालाना आंकड़े बताते हैं कि कोयला का जहां अभी भी दबदबा है, वहीं नवीकरणीय (विशेष रूप से सौर ऊर्जा) की हिस्सेदारी बढ़ रही है.
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के अनुसार 30 सितंबर 2024 तक भारत की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता (बड़ी पनबिजली परियोजनाओं समेत) 201.46 गीगावॉट थी. इस तरह भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता (453 GW) में नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता (201.46 GW) का हिस्सा लगभग 44 प्रतिशत था. नवीकरणीय ऊर्जा में महत्व के क्रम में सौर ऊर्जा (90.76 GW), पवन ऊर्जा (47.36 GW), बड़ी पनबिजली परियोजना (46.93 GW), बायोमास सह-उत्पादन (10.72 GW), लघु पनबिजली परियोजना (5.08 GW) और कूड़े से बिजली (0.60 GW) शामिल हैं. राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक- ये चार राज्य कुल स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता में आधे से थोड़ा अधिक योगदान देते हैं.
भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में प्रगति का कारण अलग-अलग स्वच्छ ऊर्जा की पहल जैसे कि राष्ट्रीय सौर मिशन, राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा कार्यक्रम, हरित ऊर्जा गलियारा और राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत केंद्र सरकार के द्वारा प्रदान किया गया समर्थन है.
भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में प्रगति का कारण अलग-अलग स्वच्छ ऊर्जा की पहल जैसे कि राष्ट्रीय सौर मिशन, राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा कार्यक्रम (जिसमें कूड़े से ऊर्जा, बायोमास और बायोगैस कार्यक्रम शामिल हैं), हरित ऊर्जा गलियारा और राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत केंद्र सरकार के द्वारा प्रदान किया गया समर्थन है. इसके अलावा, उपलब्ध क्षमता के आधार पर देश में अलग-अलग जगहों पर पवन और लघु जलविद्युत परियोजनाओं को समर्थन प्रदान किया गया है और पवन-सौर हाइब्रिड प्रणाली के विकास पर काम जारी है.
इसके अलावा पेट्रोल में इथेनॉल- जो कि गन्ना प्रसंस्करण का एक उप-उत्पाद है- मिलाने की प्रथा को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि आयातित तेल पर निर्भरता कम किया जा सके और पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं का समाधान किया जा सके. सितंबर 2024 तक देश में 16.23 अरब लीटर इथेनॉल का उत्पादन किया गया था.
साल 2024-25 के दौरान योजनाओं और परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) को 191 अरब रुपये का आवंटन किया गया है. कुल आवंटित राशि (191 अरब रुपये) में अलग-अलग पहल का हिस्सा इस प्रकार है: सौर ऊर्जा 87 प्रतिशत, पवन ऊर्जा 4 प्रतिशत, हरित ऊर्जा कॉरिडोर 3 प्रतिशत, ग्रीन हाइड्रोजन 3 प्रतिशत, जैव-ऊर्जा 2 प्रतिशत और जलविद्युत 0.3 प्रतिशत. पिछले साल के 78.48 अरब रुपये के आवंटन की तुलना में ये पर्याप्त बढ़ोतरी है.
ऊपर जिन अलग-अलग स्वच्छ ऊर्जा की पहल का ज़िक्र किया गया है, उनमें सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की गई है. देश में 748 GW सौर ऊर्जा की क्षमता है और केंद्र सरकार इसके उपयोग के लिए कई तरह के प्रोत्साहन की पेशकश करती है जैसे कि 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI), अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन सिस्टम शुल्क में छूट और उपभोक्ताओं एवं हितधारकों को वित्तीय समर्थन. इस समर्थन के साथ सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइट मुहैया कराई जाती है, छात्रों को सोलर लैंप दिया जाता है, सरकारी संस्थानों में सोलर पावर प्लांट लगाया जाता है, रिहायशी क्षेत्रों में रूफटॉप सोलर सिस्टम लगाया जाता है, साझा बुनियादी ढांचे के साथ सोलर पार्क एवं मेगा बिजली परियोजनाएं विकसित की जाती हैं, किसानों के लिए सोलर पंप लगाया जाता है और विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों के द्वारा बसाए गए क्षेत्रों में बिजली प्रदान की जाती है.
भारत में भी कई सौर, पवन, लघु जलविद्युत और जैव-ऊर्जा की परियोजनाओं को लागू किया गया है.
राजस्थान के थार रेगिस्तान में विकसित भादला सोलर पार्क का ज़िक्र करना ज़रूरी है. पार्क में लाखों सोलर पैनल हैं और 5,666 हेक्टेयर इलाके में सहयोगी बुनियादी ढांचा फैला है. इस पार्क की क्षमता 2.25 गीगावाट बिजली उत्पादन की है. ये सोलर पार्क आस-पास के क्षेत्रों में विश्वसनीय बिजली आपूर्ति की सुविधा देता है. हालांकि कभी-कभी धूल भरी आंधी की वजह से बिजली उत्पादन कम होता है क्योंकि सोलर पैनल पर धूल जमा हो जाती है.
निष्कर्ष
दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा की तरफ बदलाव का एजेंडा सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक चिंताओं से प्रेरित है. इन समस्याओं के समाधान के लिए स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का इस्तेमाल करने वाले देशों की संख्या बढ़ रही है. भारत में भी कई सौर, पवन, लघु जलविद्युत और जैव-ऊर्जा की परियोजनाओं को लागू किया गया है. लेकिन दुनिया को इस दिशा में अभी लंबी दूरी तय करनी है. विकास के लक्ष्यों, ऊर्जा की मांग, वर्तमान ऊर्जा प्रणाली का प्रदर्शन और बदलाव के लिए तैयारी विभिन्न देशों में अलग-अलग है और इसके साथ-साथ प्रदूषण पैदा करने वाले ईंधन पर निर्भरता अभी भी बहुत अधिक बनी हुई है.
रूमी एजाज़ ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
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