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Published on May 22, 2024 Updated 0 Hours ago

ख़ून की माँग और आपूर्ति को बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ ने जिस तकनीकी उपाय पर अमल किया है, वह खून की कमी की समस्या से जूझ रहे अन्य राज्यों के लिए आदर्श साबित हो सकता है.

#BloodDonation: ख़ून की माँग और आपूर्ति के संकट के समाधान की कोशिश

स्वास्थ्य सेवा के लिए रक्तदान बेहद अहम है, क्योंकि इसकी वज़ह से हर वर्ष सैकड़ों लोगों की जान बच जाती है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार विभिन्न आय श्रेणियों में आने वाले लोगों के बीच रक्तदान की दर को लेकर काफ़ी असमानताएं है. उच्च-आय वाले देशों में जहां 1,000 लोग 31.5 रक्तदान करते है, वहीं मध्य-आय वाले देशों में यह संख्या 6.6 तथा कम-आय वाले देशों में यह केवल 5.0 की दर से ही होता है.


किसी जनसंख्या के लिए खून की आवश्यकता की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है: ट्रांसफ्यूजन यानी रक्त संचार की ज़रूरत वाले लोगों के लिए एक तय वक़्त में लगने वाला ब्लड यूनिट. क्लीनिकल मांग को स्वास्थ्य सुविधाओं में आपातकालीन और चयनित प्रक्रियाओं को एक तय समय में सारे ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए लगने वाले होल ब्लड और उसके कम्पोनेंट्‌स के यूनिट्स की कुल संख्या के रूप में समझा जा सकता है. 

भारत भी खून की कमी की समस्या से जूझ रहा है. लैंसेट की रिपोर्ट में ब्लड प्रॉडक्ट्‌स की आवश्यकता पर चर्चा की गई है, जिसके अनुसार भारत में खून की मांग 40.9 मिलियन यूनिट्स की है.

भारत भी खून की कमी की समस्या से जूझ रहा है. लैंसेट की रिपोर्ट में ब्लड प्रॉडक्ट्‌स की आवश्यकता पर चर्चा की गई है, जिसके अनुसार भारत में खून की मांग 40.9 मिलियन यूनिट्स की है. अर्थात 1,000 ज़रूरतमंद लोगों (0.4 बिलियन) में से 85 रक्तदान के बराबर है. 2018 तक 12.4 मिलियन रक्तदान के माध्यम से 19 मिलियन यूनिट्स रक्त हासिल हुआ था. हासिल रक्त को सही तरीके से रखने की कमी के कारण (संग्रह सुविधाओं की कमी के कारण) दान किया गया रक्त बर्बाद हो जाता है, जिसकी वज़ह से खून की कमी का संकट और भी गंभीर हो जाता है. एक अनुमान के अनुसार 2022 तक अच्छी गुणवत्ता वाले रक्त की अनुपलब्धता के कारण लगभग 12,000 लोगों को रोज़ाना अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. इस मांग तथा क्लीनिकल मांग के बीच के अंतर को दूर करना अनेक बातों पर निर्भर करता है और इसके लिए अनेक क्षेत्रों को प्रयास करने होंगे.



जशपुर का समाधान



पहले से ही बीमारी से परेशान मरीजों को ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है. वे अपने लिए एक के बाद दूसरे ब्लड बैंक से मैचिंग ब्लड हासिल करने के लिए पूछताछ करते हुए ब्लड बैंक के चक्कर लगाते रहते है. यह काम दूर-दराज़ के क्षेत्र में, जहां संग्रह सुविधा बेहद कम होती है, और भी मुश्किल हो जाता है. ऐसी स्थिति में वक़्त पर खून नहीं मिलने से समय पर उपचार नहीं हो पाता और तबीयत बिगड़ने की स्थिति पैदा हो जाती है. ऐसे में परिणाम मौत भी हो सकती है. विशेष रक्त टाइप्स यानी समूह और खून से जुड़ी बीमारियों (सिकल सेल, एनीमिया, थैलेसीमिया आदि) का सामना करने वाले मरीजों के लिए यह चुनौतीपूर्ण स्थिति होती है, क्योंकि उन्हें नियमित रूप से ब्लड ट्रांसफ्यूजन की ज़रूरत होती है.


इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए छत्तीसगढ़ के जशपुर जिला प्रशासन ने खून की उपलब्धता और मरीजों तक इसकी पहुंच बढ़ाने के लिए एक तकनीकी समाधान ख़ोजकर उसे लागू किया. जिला प्रशासन अब जिले की ब्लड बैंकों तथा ब्लड स्टोरेज यूनिट्स में रोज़ाना उपलब्ध खून की जानकारी लेकर इसे जिला NIC पोर्टल पर अपडेट कर रहा है. इस पारदर्शिता के कारण जिन लोगों को खून की ज़रूरत होती है वे इसकी उपलब्धता का पता लगाकर नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर इसे हासिल कर लेते है. पहले इस सुविधा का अभाव था. यह सुविधा उपलब्ध होने से यह जानकारी आसानी से मिल जाती है कि जिस ब्लड टाइप का खून चाहिए वह उपलब्ध है और ज़रूरत पड़ने पर यह आसानी से मिल भी जाता है.

रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए स्वैच्छिक रक्तदान करने के इच्छुक नागरिकों का रजिस्ट्रेशन करने के लिए जिला NIC पोर्टल पर एक लिंक भी मुहैया करवाई गई है. इस रजिस्ट्री की वज़ह से अब रक्तदान शिविरों एवं अस्पतालों को आवश्यकता पड़ने पर संभावित रक्तदाताओं तक पहुंचने में आसानी होती है.


healthjashpur.com वेब पोर्टल पर एक संस्थान वार लॉगिन ID भी तैयार की गई, जिसके माध्यम से यह सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है. ब्लड बैंक्स तथा स्टोरेज यूनिट की ज़िम्मेदारी संभालने वाले व्यक्तियों को प्रशिक्षण देकर रोज़ डाटा अपडेट करने को कहा गया. जिला NIC को भी विभागीय पोर्टल तक पहुंच उपलब्ध करवाई गई, ताकि जिले की आधिकारिक वेबसाइट पर इस जानकारी को अपडेट किया जा सके.

नागरिकों का रजिस्ट्रेशन


रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए स्वैच्छिक रक्तदान करने के इच्छुक नागरिकों का रजिस्ट्रेशन करने के लिए जिला NIC पोर्टल पर एक लिंक भी मुहैया करवाई गई है. इस रजिस्ट्री की वज़ह से अब रक्तदान शिविरों एवं अस्पतालों को आवश्यकता पड़ने पर संभावित रक्तदाताओं तक पहुंचने में आसानी होती है. इसी प्रकार आपातकालीन मामलों में संभावित रक्तदाताओं को रक्तदान करने में भी यह डाटाबेस काफ़ी मददगार साबित होता है.



तकनीक का उपयोग करते हुए सक्रिय एवं पारदर्शी प्रशासन का दृष्टिकोण



छह माह पूर्व जब इस योजना को शुरू किया गया तब से ज़रूरत पड़ने पर प्रत्येक मरीज को ब्लड टाइप, उसकी वर्तमान उपलब्धता और उसके मिलने वाले स्थान की जानकारी मिलना सुनिश्चित हो गया है. इस डाटा का अनुमान है कि अब तक जमा किए गए रक्त के कुल 3,734 यूनिट्स रक्त में से 3,565 यूनिट्स रक्त कुल 2,500 लाभार्थियों को बांटा जा चुका है.

लैंसेट के एक स्टडी में पता चला है कि देश में क्लीनिकल मांग को पूरा करने के लिए रक्तदान करने में धीरे-धीरे तेजी देखी जा रही है. इस मांग को लेकर एक सटीक आकलन तथा रक्तदाताओं को आपात स्थिति में रक्तदान करने के इच्छुकों को एक मंच उपलब्ध होने पर रक्तदान को बढ़ावा दिया जा सकता है. इस संबंध में डाटा ऑनलाइन उपलब्ध होने से इस मामले के सभी स्टेकहोल्डर्स यानी हितधारकों पर अच्छा प्रभाव पड़ सकता है. इसके लिए नीचे दिए गए उपाय अपनाए जा सकते हैं:

हेल्थ फैसिलिटी यानी स्वास्थ्य सुविधाएं: खून की रियल-टाइम उपलब्धता ऑनलाइन दिए जाने से हॉस्पिटल्स तथा क्लीनिक्स को अपनी खून संबंधी आवश्यकता का बेहतर नियोजन करने में सहायता होगी. सभी हॉस्पिटल्स एवं ब्लड स्टोरेज यूनिट्स  (BSUs) इस ऑनलाइन डाटा को देखकर वर्तमान में उपलब्ध खून के स्टॉक की जानकारी का उपयोग कर सकेंगे. अगर यह किसी और ब्लड बैंक में उपलब्ध है तो वहां से खून जल्दी से हासिल किया जा सकेगा. यदि किसी विशेष ब्लड टाइप यानी रक्त समूह की आवश्यकता होगी तो हॉस्पिटल्स आपात स्थिति में संभावित रक्तदाता से संपर्क साध सकेंगे. ब्लड स्टोरेज यूनिट्स भी अपने यहां उपलब्ध रक्त की जानकारी का प्रबंध कुशलता के साथ कर सकेंगे और आवश्यकता पड़ने पर विभिन्न ब्लड टाइप्स और कम्पोनेंट्‌स मांग के अनुसार उपलब्ध करवा पाएंगे. इसके साथ ही एक्सपायरी की वज़ह से बर्बाद होने वाला खून भी बचेगा.

मरीज: आपात स्थिति में हमेशा खून की मांग रहती है.  लेकिन अनेक बार मरीज और उनके परिजनों को इस संबंध में जानकारी हासिल करने में काफ़ी परेशानी होती है. इस वज़ह से खून की उपलब्धता को लेकर अपनाई जाने वाली पारदर्शिता, मरीज को ये जानकारी हासिल करने का अधिकार देकर अनिश्चितता को कम करेगी.

सरकार: प्रशासन ने इस बात की ज़िम्मेदारी स्वीकारी है कि वह इस जानकारी को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करेगा. ऐसा होने से स्वास्थ्य सुविधा मोर्चे पर रक्तदान को बढ़ावा मिलेगा, जिसमें नागरिकों का रजिस्टर सहायक साबित होगा. इस वज़ह से प्रशासन को आपात स्थिति के दौरान संभावित आपूर्ति का आकलन करने में सहायता मिलेगी और वह समय-समय पर रक्तदान शिविरों का आयोजन भी कर पाएगा. नीति के मोर्चे पर यह दृष्टिकोण एक सफ़ल पायलट को दर्शाता है, जिसे प्रशासन के अन्य क्षेत्र में पारदर्शिता लाने के लिए लागू किया जा सकता है.



अन्य क्षेत्रों के लिए एक आदर्श 


जशपुर प्रशासन का दृष्टिकोण रक्तदान से जुड़े संकट का अनेक मोर्चों पर समाधान है. इस मॉडल ने यह सुनिश्चित किया है कि संस्थान वार डाटा एंट्री के चलते अप-टू-डेट तथा सटीक जानकारी उपलब्ध होती है और आपात स्थितियों में बेहतर समन्वय स्थापित किया जा सकता है. इसके माध्यम से उपलब्ध होने वाले सिटिजन रजिस्ट्रेशन यानी नागरिक रजिस्ट्रेशन के कारण स्वैच्छिक यानी अपनी इच्छा से किये जाने वाले रक्तदान को भी बढ़ावा मिल रहा है. और अंततः रक्त की आपूर्ति में भी संभावित वृद्धि हो रही है.

यह पहल भारत सरकार की ओर से उपलब्ध ईब्लडबैंक तथा ईरक्तकोष प्रयोग को आगे ले जा रही है. इसकी वज़ह से जिले की आधिकारिक वेबसाइट के साथ डैशबोर्ड का इंटीग्रेशन यानी एकीकरण संभव हुआ है. साथ ही यह कस्टमाइज्ड डैशबोर्ड का लचीलापन उपलब्ध करवाते हुए विश्लेषण के लिए जिला स्तर पर डाटा उपलब्ध करवाने आदि काम भी करता है. आगे चलकर इसे आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) के तहत लागू किए जा रहे इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड्स (EHR) के साथ एकीकृत किया जा सकता है. ऐसा होने पर ABHA ID से जुड़े ब्लड यूनिट के प्रत्येक आवंटन और रक्तदान की जानकारी सिस्टम में रियल टाइम में ही अपडेट की जा सकेगी और यह जानकारी मानवीय श्रम से अपडेट करने की प्रक्रिया से बचा जा सकेगा.

निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि भले ही रक्तदान से जुड़ा संकट बहुमुखी हो लेकिन जशपुर की ओर से सुझाए गए समाधान ने स्थानीय स्तर पर उठाए गए सकारात्मक कदमों को सबके सामने लाकर रख दिया है. 

निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि भले ही रक्तदान से जुड़ा संकट बहुमुखी हो लेकिन जशपुर की ओर से सुझाए गए समाधान ने स्थानीय स्तर पर उठाए गए सकारात्मक कदमों को सबके सामने लाकर रख दिया है. इस समाधान में नागरिक केंद्रित प्रक्रियाओं पर ध्यान देकर पारदर्शिता तथा प्रभावी अमल के लिए तकनीक का उपयोग किया गया है. डाटा को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराकर एक पारदर्शी तथा प्रोएक्टिव यानी सक्रिय दृष्टिकोण का उदाहरण पेश किया गया है. इस वज़ह से जानकारी मुहैया करवाने तथा उस जानकारी तक पहुंच सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी प्रशासन पर ही आ गई है. इसके साथ ही यह वर्तमान में उपलब्ध समाधानों के लिए भी एक सबक का काम करता है कि कैसे इन्हें अधिक प्रभावी और नागरिक केंद्रित बनाया जाए.


(रवि मित्तल, भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अफसर हैं और वर्तमान में छत्तीसगढ़ में जिलाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं.)

(संबित मिश्रा, भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अफसर हैं और वर्तमान में छत्तीसगढ़ के कोरबा में जिला पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में तैनात हैं.)

उपरोक्त विचार लेखकों के हैं.

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Ravi Mittal

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Dr Ravi Mittal is an Indian Administrative Services (IAS) officer currently posted as the District Collector of the District Jashpur Chhattisgarh. He has an academic ...

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Sambit Mishra

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Sambit Mishra is an Indian Administrative Services (IAS) officer currently posted as the Chief Executive Officer of the Zila Panchayat Korba Chhattisgarh. He has an ...

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