Published on Sep 19, 2018 Updated 0 Hours ago

पुनर्निर्माण प्रक्रिया लंबी और खर्चीली होती है इसलिए ये ज़रूरी है कि बेहतर पॉलिसी विकसित की जाएं।

6 सबक केरल के पुनर्निर्माण के लिए

घनघोर बारिश और उसके बाद आने वाली बाढ़ के चलते दक्षिण भारतीय राज्‍य केरल को साल की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदियों में से एक का सामना करना पड़ा। इसमें 470 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई जबकि 7 लाख से ज़्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा।

अब जबकि राहत का काम जारी है ये बेहद ज़रूरी हो जाता है कि लंबे समय को ध्‍यान में रखकर पुनर्निर्माण के काम को तेज़ी से किया जाए। राहत और मदद पहुंचाने के काम तो चलते ही रहेंगे उसके साथ लंबे समय के लिए पुनर्निर्माण काम भी ज़रूरी है। इस संकट को केरल की शानदार सामाजिक और आर्थिक तरक्‍की के रास्‍ते में रुकावट नहीं बनने देना चाहिए। पुनर्निर्माण के दौरान वो सबकुछ करना चाहिए जो केरल को आगे ले जाने में मदद करे। लंबे समय को ध्‍यान में रखते हुए इमारतों, सड़कों और संस्थाओं के साथ-साथ स्‍वास्थ्‍य, शिक्षा और पोषण जैसी सुविधाओं को विकसित करना होगा। जैसा केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने कहा है कि पांच R की तरफ़ ध्‍यान देने की ज़रूरत है। रेस्‍क्‍यू, रिलीफ़, रिस्‍क, रिहैबिलिटेशन और रिबिल्डिंग। मानवीय और पुनर्निर्माण के काम के बारे में अलग-अलग सोचना चाहिए लेकिन दोनों कामों को केरल के पुनर्निर्माण के मक़सद से मिलाकर भी देखना चाहिए।

इस प्रक्रिया को पुनर्निर्माण से हटकर देखना चाहिए कि चीज़ें कैसी थीं बल्कि निर्माण ये सोचकर किया जाना चाहिए कि हम कहां जाना चाहते हैं। पहला कदम ये होना चाहिए कि दुनियाभर के अनुभवों के बारे में अध्‍ययन किया जाए। केरल के विकास के लिए उन आम ग़लतियों से बचना चाहिए जो दुनिया भर में पुनर्निर्माण की प्रक्रिया के दौरान की गई हैं। इसके अलावा ज़मीन पर बाढ़ से पहले और बाद की परिस्‍थतियों का भी अध्‍ययन किया जाए ताकि पता लग सके कि करना क्‍या है।

1. लंबे समय की प्रक्रि‍या और राहत कार्यों को अलग-अलग करके प्‍लान नहीं जा सकता।

राहत से लेकर विकास तक कुछ काम सिलसिलेवार ढ़ंग से अलग से किए जा सकते हैं ले‍किन ज़्यादतर मामलों में पुनर्निर्माण और विकास को साथ में प्‍लान करना चाहिए, कुछ मामलों में तो राहत के काम के साथ ही पुन‍र्निर्माण भी शुरू कर देना चाहिए। लोगों की बेहतरी को ध्‍यान में रखते हुए प्‍लानिंग और कॉ‍स्टिंग का काम एक साथ करना चाहिए। प्‍लानिंग भी छोटी और लम्बी अवधी के हिसाब से हो।

कुदरती तबाही के बाद राहत के लिए लोगों को कैम्‍पों से निकालकर अस्थाई घरो में शिफ़्ट करना होगा इस बीच पुनर्निर्माण का काम जारी रहेगा। ये काम सराहनीय होगा

क्‍योंकि कैम्‍पों में हालात अच्‍छे नहीं हैं खासकर के मॉनसून के मौसम में। ये बहुत ज़रूरी है कि‍ लोगों को सुरक्षित माहौल दिया जाए ता‍कि वो जीवन को सामान्‍य करने की दिशा में कदम बढ़ा पाएं लेकि‍न जैसे 2004 की सुनामी और दुनियाभर में राहत कार्य में देखा गया कि‍ अस्‍थाई घरों के निर्माण में बजट से ज़्यादा पैसा लग गया। अक्‍सर ऐसा होता है कि‍ कंस्‍ट्रक्‍शन मटेरियल की मांग बढ़ने से लागत बढ़ जाती है जिससे घरों को लौटने वाले लोगों के लिए मकान बनाने में दिक़्क़त आती है।

2. पुनर्निर्माण का काम पीछे नहीं आगे देखकर करें।

अक्‍सर तबाही के बाद पुनर्निर्माण के लिए तय समय और तेज़ी से काम पूरा करने का दबाव होता है ऐसे में चीज़ों को वैसा बनाने की कोशिश होती है जैसी वो पहले थीं लेकि‍न बड़े स्‍तर पर कंस्‍ट्रक्‍शन का दौर कई सेक्‍टर में इंवेस्‍टमेंट के मौके देता है और पॉलिसी बनाने वाले इसका फ़ायदा इकोनॉमिक और सोशल इंफ्रास्‍ट्रक्चर को अपग्रेट करने में करते हैं। पुनर्निर्माण ऐसा न हो कि‍ बस पुरानी खामियों और कमज़ोरियों को दूर कि‍या जाए बल्कि ऐसा हो कि‍‍ जिससे लोगों को रहने के बेहतर हालात और अच्‍छी सेवाएं मिल सकें।

उदाहरण के तौर पर इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर को लें। बाढ़ और ज़मीन धंसने का असर इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर में दिखता है जिसमें रोड, पुल, बिजली, ईंधन की सप्‍लाई, पानी और सफ़ाई, रेल बंदरगाह और एयरपोर्ट, टेलीकम्‍युनिकेशन, शिक्षा और मेडिकल सुविधाएं शामिल है। इसके अलावा घरों के पुनर्निर्माण पर अलग से ध्‍यान देने की ज़रूरत है। बाढ़ के चलते करीब 83 हज़ार किलोमीटर सड़क को या तो नुकसान पहुंचा है या वो नष्‍ट हो गई हैं। इसमें 16 हज़ार

अहम रोड भी शामिल हैं (इन्‍हें पीडब्‍ल्‍यूडी रोड भी कहते हैं इसके अलावा लोकल सेल्‍फ़ गवर्नमेंट रोड हैं) दोनों तरह की सड़कों की मरम्मत करने के साथ रोड की क्‍वॉलिटी को बेहतर भी करना होगा। ये बहुत ज़रूरी है, इसके साथ ही इस मौके का इस्‍तेमाल पीडब्‍लूयडी रोड को अंदरूनी इलाक़ों तक बढ़ाने में किया जाना चाहिए। केरल के हाइवे देश के दूसरे हिस्‍सों के मुकाबले संकरे हैं, ये मौका है कि उन्‍हें पहले के मुक़ाबले बेहतर किया जाए।

ट्रांसपोर्टेशन के काम के लिए, सर्विस इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर के लिए राज्‍य को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप पर विचार करना चाहिए और इसके लिए निजी क्षेत्र के ऑपरेटर्स के साथ मिलकर काम करना चाहिए। उदाहरण के लिए ऊर्जा को लेते हैं। केरल अपनी एक तिहाई ऊर्जा हाइड्रोपावर से पैदा करता है। ये सेक्‍टर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के लिए बिल्‍कुल फिट है। केरल अपना हाइड्रोपावर उत्‍पादन बढ़ा सकता है खासतौर पर 10 मेगावाट तक के छोटे हाइड्रो प्रोजेक्‍ट का। डिज़ाइन, कंस्ट्रक्‍शन, ऑपरेट करने, और हाइड्रो प्रोजेक्‍ट को मेंटेन करने के काम में प्राइवेट सेक्‍टर को शामिल किया जा सकता है। इससे राज्‍य में इस सेक्‍टर में बड़े पैमाने पर ऊर्जा का उत्‍पादन हो सकेगा इसके लिए अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर के डोनर, निवेश की गारंटी दे सकते हैं

इस तरह की ज़रूरतों के लिए पूरा फाइनेंस उपलब्‍ध नहीं होगा, ऐसे में प्रा‍थमिकताएं तय करना ज़रूरी है लेकिन इसको लंबे समय को ध्‍यान में रखते हुए की गई प्‍लानिंग से अलग नहीं रखना चाहिए। छोटे और मझोले लक्ष्‍य बनाए जा रहे हों तो इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर का डिज़ाइन ज़रूरी स्‍केल के मुताबिक और कनेक्‍टविटी को ध्‍यान में रखकर बनाना चाहिए। इसकी एक अच्‍छी मिसाल है कोच्चि मेट्रो का विकास । जिसमें शुरू से तीन फेज़ विकसित किए गए और बाद में नए फेज़ को जोड़ा जाता रहा।

3. सुनिश्चित करें कि पुनर्निर्माण की प्रक्रिया लोगों के नेतृत्‍व में हो।

संकट के चलते केरल के लोगों के अंदर की अच्‍छाई सामने नज़र आ रही है, मुश्किल हालात से लड़ने के लिए सभी जाति और धर्म के लोग मिलकर काम कर रहे हैं।

यहां तक कि केरल के लोग बाहर से आकर केरल में रहने वालों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। खासतौर से नॉर्थ ईस्‍ट के लोग जो ब्‍लू कॉलर जॉब के लिए बड़ी संख्‍या में केरल के शहरों में आए हैं। इस तरह का जोश और दक्षता पुनर्निर्माण और विकास को सही दिशा में आगे ले जाता है। इससे पूरी प्रक्रिया के पहले और बाद में सबको साथ लेकर चलने का भी भाव आता है। ये धर्म और जातियों के बीच की दूरी को पाटने और पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया और राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक जैसे दक्षिणपंथी संगठनों को रोकने में भी मददगार होगा। जो सियासी फ़ायदों के लिए लोगों को बांटने का काम कर रहे हैं। पूरी प्रक्रिया में केरल के लोगों को शामिल करने से उनकी संवेदनशीलता बढ़ेगी।

वो काम के दौरान ये समझ पाएंगे कि कहां कमी रह गई थी, सकंट के समय क्‍या करना है, उन्‍हें इससे व्यावहारिक सीख मिलेगी

4. किसी सेक्‍टर में दिक़्क़त, लम्बी अवधी में उसके सुधर के लिए नुकसानदेह हो सकती है।

राज्‍य में बड़ी तादाद में आर्थिक कामकाज रुक गया है।

ऐसे में ज़रूरी है कि हर ज़ि‍ले में पता किया जाए कि कौन-कौन से सेक्‍टर प्रभावित हुए हैं, सबसे ज़्यादा किस सेक्‍टर पर असर हुआ है। कुछ पर तो इतने झटके लगे होंगे कि उस सेक्‍टर में काम करने वाले लोग अपनी नौकरी गंवा बैठे होंगे। आर्थिक तौर पर उनकी वापसी आसान नहीं होगी।

इनमें से एक है कृषि क्षेत्र। करीब 40 हज़ार हेक्‍टेयर ज़मीन पानी में डूब गई जिससे कटाई के लिए तैयार फसलें बर्बाद हो गईं। बाढ़ की वजह से खेती की ज़मीन को भी नुकसान हुआ है। इससे किसानों को बस इस साल ही नहीं बल्कि अगले साल भी तकलीफ़ का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में ख़तरा है कि किसान किसानी छोड़कर दूसरे कामों का रुख़ करेंगे, खेतों को उनके हाल में छोड़ देने से कृषि उत्‍पादन और उनके निर्यात में कमी आएगी। ऐसे में खेतों को पुरानी हालत में वापस लाने और कृषि कार्यों में सहयोग प्राथमिकता होनी चाहिए।

वहीं टूरिज़्म एक ऐसा क्षेत्र है जो राज्‍य की इकोनॉकी का 12% है और इससे 20% लोगों को रोजगार मिलता है।

हाल की तबाही से टूरिज़्म पर भी बेहद बुरा असर पड़ा है।

इंफ्रास्‍ट्रक्चर को हुए नुकसान के चलते अगले कई महीनों के रिज़र्वेशन रद्द कर दिए गए हैं। सितंबर, अक्‍टूबर पर्यटन क्षेत्र में सबसे ज्यादा तेज़ी देखि जाती है ,ऐसे में 20 से 25% की गिरावट देखने को मिलेगी।

दूसरा क्षेत्र है खुदरा क्षेत्र । फसलों की कटाई से जुड़ा त्‍योहार है, ओणम जो अगस्‍त में मनाया जाना था लेकिन उसको मनाने की खुशी बाढ़ में बह गई। ओणम बस त्‍योहार नहीं है बल्कि ये खरीदारी का भी मौसम होता है. इसमें लोग खाने पीने की चीज़ों से लेकर बड़े सामान तक खरीदते हैं, फूल, आचार से लेकर फ़र्नीचर और कार तक।

ओणम पर असर होने का मतलब है पूरे राज्‍य के रीटेल सेक्‍टर पर असर यानी कई कारोबारों पर निचले स्‍तर तक असर हुआ है। नुकसान की भरपाई के लिए उन्‍हें अब और अधिक मेहनत करनी होगी।

5. दुसरे देशों का ध्यान इधर बनाये रखना मुश्किल है ,और अक्‍सर ऐसे मदद ज़रूरत से काफ़ी कम होती हैं।

एक साफ़ पैटर्न है कि संकट के समय दुनियाभर से डोनेशन और मदद मिलने की बात होती है लेकिन ध्‍यान किसी और तरफ़ जाने पर ऐसी मदद घटती जाती हैं

क्‍यों कि पुनर्निर्माण और विकास के काम जब तेज़ी पकड़ते हैं तो और ज़्यादा पैसों की ज़रूरत होती है।

ऐसे में इन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए केरल सरकार को ड्राइविंग सीट पर बैठना होगा न कि वो दान देने वालों के भरोसे रहें। शुक्र है‍ कि देश और राज्य स्‍तर पर मज़बूत संस्‍थाओं के चलते इस चुनौती से पार पाना मुश्किल नहीं है। इसके बावजूद इमरजेंसी के दौर के बाद फंडिंग की ज़रूरत होगी।

संयुक्‍त राष्‍ट्र (UN) में केरल के पुनर्निर्माण के लिए बैठक से मनचाहे नतीजे नहीं मिलने वाले, बुरे दौर से गुज़र रहे देशों के लिए भी इस तरह की इंटरनेशनल कॉन्‍फ्रेंस से कुछ खास मदद नहीं मिल पाई। उदाहरण के तौर पर

सीरिया के लिए फंड जुटाने के लिए हुई कॉन्‍फ्रेंस में शरणार्थियों के लिए 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर इकट्ठा करने का मक़सद था लेकिन बस 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर ही इकट्ठा हो पाए। जिसमे से 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का तो कॉन्‍फ्रेंस से पहले ही वादा किया जा चुका था। इसीलिए केरल को अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय की तरफ़ देखने की बजाय पुनर्निर्माण और विकास का अपना प्‍लान बनाना चाहिए जिसमें प्रोजेक्‍ट और खर्च की प्राथमिकताओं की लिस्‍ट हो। जिसे बड़े पैमाने पर साझा किया जाए और जनता के सामने भी लाया जाए। इसके साथ ही सरकारी विभागों और दान देनेवालों के बीच तमाम प्रोजेक्‍ट्स की फंडिंग के लिए बातचीत हो। इस प्रक्रिया में केंद्र सरकार को नेतृत्‍व करना चाहिए।

6. पर्यावरण को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते।

पुन‍र्निर्माण, पर्यावरण को ध्‍यान में रखकर करना होगा क्‍यों कि क्‍लाइमेट चेंज की वजह से बहुत ज़्यादा बारिश होने पर इस तरह की तबाही फि‍र आ सकती है

ऐसे में हमें इस तरह का मॉडल विकसित करना होगा जिससे हम पहले ही कुदरती आपदा का अंदाज़ा लगा पाएं। पुनर्निर्माण इन बातों को ध्‍यान में रखकर करना होगा।

कई सबूत हैं जो बताते हैं कि केरल इस तरह की तैयारियों के मामले में पीछे है। केरल के 61 में से एक भी बांध में इमरजेंसी एक्‍शन प्‍लान या ऑपरेशन एंड मेंटीनेंस मैन्‍यूअल नहीं है जो बताए कि बाढ़ जैसी स्थिति से कैसे निपटा जाए। इसके अलावा CAG की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक 61 बांधों में से एक का भी ‘डैम ब्रेक एनालिसिस’ नहीं किया गया। इस एनालिसिस के ज़रिए अंदाज़ा लगाया जाता है कि बांध से बड़ी मात्रा में पानी निकलने पर कौन-कौन से इलाके उसकी जद में आएंगे और कितना नुकसान हो सकता है।

जानकार मानते हैं कि अगर पहले के पर्यावरण को लेकर किए गए आंकलन को नज़रंदाज़ नहीं किया गया होता तो बाढ़ से इतनी तबाही न हुई होती।

वेस्‍टर्न घाट केरल समेत 5 दूसरे राज्‍यों के लिए पानी का स्रोत है। 2010 की पर्यावरण संरक्षण का मूल्‍यांकन करने वाली रिपोर्ट कहती है कि खनन और पत्‍थर निकालने के काम पर रोक लगनी चाहिए। इसके अलावा घाट में चलने वाली आर्थिक गतिविधियों को कम करने की ज़रूरत है। ये रिपोर्ट लागू नहीं हुई और उसे ठंडे बस्‍ते में डाल दिया गया। एक वजह ये भी हो सकती है कि वेस्‍टर्न घाट में हद से ज़्यादा खनन और कैचमेंट एरिया (जहां पानी भरता है) में जंगल की कटाई के चलते केरल को भयानक बाढ़ और तबाही का सामना करना पड़ा।

बिना देर किए इस चलन में तब्‍दीली ज़रूरी है, केवल आपदा से बचने के लिए ही नहीं बल्कि अर्थव्‍यवस्था और बेहतर जीवन के लिए भी।

केरल में पानी के स्रोत पहले से ही ख़तरे में हैं। राज्‍य की 44 नदियां इंडस्ट्रियल एक्टिविटी के चलते प्रभावित हो रही हैं। फ़ैक्‍टरियों के ठोस और बहने वाले कचरे को नदियों में डाला जा रहा है जिससे नदियां प्रदूषित हुई हैं।

इसके अलावा नदियों से बड़े पैमाने पर निकाली जा रही रेत की वजह से नदियों का दायरा , या वो जगह जहाँ से नदी बहती हुई गुज़रती है, वो सिकुड़ता जा रहा है .डराने वाली बात ये भी है कि न सिर्फ़ नदियां बल्कि तालाब भी प्रभावित हुए हैं जो भूजल स्‍तर बनाए रखने में मदद करते हैं।

भूजल कृषि‍ कार्यों के लिए 50% पानी मुहैया कराता है, गांवो में 80 और शहरों में 50% घरेलू ज़रूरत के पानी की पूर्ति भी भूजल से होती है, वो भी घट रहा है। केरल में कुओं का धनत्‍व देश में सबसे ज़्यादा है। तटीय इलाकों में प्रति वर्ग किलोमीटर 200 कुएं तक हैं। भूजल की क्‍वॉलिटी भी गिरी है क्‍यों कि उसमें समंदर का पानी भी मिल गया है।

घटते जंगल और प्रदूषित मिट्टी का भी ऐसा ही हाल है जंगलों में अवैध क़ब्‍ज़े और ज़रूरत से ज़्यादा कीटनाशकों के इस्‍तेमाल से जंगल और मिट्टी पर बुरा असर पड़ा है।

लंबे समय के लिए विकास की योजना बनाते समय इन चिंताओं को ध्‍यान में रखना चाहिए। पुनर्निर्माण में ये सुनिश्‍चित किया जाए कि पेड़ों और नदियों की कीमत पर विकास न हो। सीमा से ज़्यादा मिट्टी या पत्‍थरों का खनन न हो और न ही लोगों के सामने प्रदूषण का ख़तरा पैदा हो।

केरल को फि‍र से खड़ा करने की प्रक्रिया लंबी और महंगी होगी। शुक्र है कि केरल के लोगों ने साबित किया है कि वो किसी भी मुसीबत के सामने डटकर खड़े हैं। ये अहम है कि एक बेहतर पॉलिसी बनाई जाए ताकि हम भविष्‍य में इस तरह की आपदाओं के लिए तैयार रहें और साथ ही इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर और सर्विस को ऊंचे स्तर का किया जाए ताकि हर केरलवासी को जीने के बेहतर हालात मिल सकें


मोहम्‍मद एल दहशन OXCON के मैनेजिंग डायरेक्‍टर हैं। OXCON एक इकोनॉमिक डेवलपमेंट कंसल्टिंग फर्म है जो मुश्किलों के जूझ रहे इलाकों के लिए काम करती है।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.