Published on Mar 31, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत और यूरोपीय संघ को यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करने की ज़रूरत है कि उनकी साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र और उससे आगे स्थिरता और विकास के लिए सकारात्मक ताक़त बनी रहे. 

60 वर्षों में यूरोपीय संघ-भारत संबंध: 2023 में यह किस दिशा में जा रहा है?

पिछले साल 2022 में  यूरोपीय संघ और भारत ने अपने द्विपक्षीय संबंधों की 60वीं वर्षगांठ मनाई और इसी के साथ यूरोपीय संघ (ईयू) और एक एशियाई देश के बीच सबसे लंबे समय तक चलने वाले संबंधों में से यह एक बन कर उभरा. बतौर दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र, यूरोपीय संघ और भारत के साझा मूल्यों, राजनीतिक आदान-प्रदान और समान हितों का एक लंबा इतिहास रहा है. ईयू-भारत संबंध वैसे भी बहुआयामी एजेंडे पर निर्धारित है  जिसका विस्तार सामाजिक-आर्थिक मुद्दे, प्रभावी बहुपक्षवाद और नियम आधारित सुरक्षा सहयोग तक है. यह लेख ईयू-भारत संबंधों के कोर एलिमेंट (मूल तत्वों) की तलाश करेगा, जिसमें व्यापार, सुरक्षा सहयोग और हिंद-प्रशांत में साझेदारी की भूमिका शामिल होने के साथ इस बात पर विशेष ज़ोर दिया जाएगा कि कैसे इन डायनामिक्स (गतिशीलता) ने भविष्य में साझेदारी की संभावनाओं को आकार दिया है.

यह लेख ईयू-भारत संबंधों के कोर एलिमेंट (मूल तत्वों) की तलाश करेगा, जिसमें व्यापार, सुरक्षा सहयोग और हिंद-प्रशांत में साझेदारी की भूमिका शामिल होने के साथ इस बात पर विशेष ज़ोर दिया जाएगा कि कैसे इन डायनामिक्स (गतिशीलता) ने भविष्य में साझेदारी की संभावनाओं को आकार दिया है.

शुरुआत के लिए, यूरोपीय संघ-भारत संबंधों के मूल सिद्धांतों के बारे में जानना अहम है जो वास्तव में दो किरदारों के बीच 2004 के रणनीतिक साझेदारी समझौते के बाद से उभरा (भारत चीन, जापान और दक्षिण कोरिया को मिलाकर एशिया में केवल चार यूरोपीय संघ रणनीतिक भागीदार देशों में से एक है). 2004 के यूरोपीय संघ-भारत समझौते ने न केवल इन संबंधों की रणनीतिक रूपरेखा निर्धारित की बल्कि इसके अन्य क्षेत्रों में सहयोग के लिए एक आधार भी तैयार किया, जिसमें व्यापार, ऊर्जा दक्षता, खाद्य सुरक्षा, रोज़गार अधिकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य सहित व्यापक मुद्दों को संबोधित करने की ज़रूरत बताई गई. ऐसी साझेदारी को न केवल इसमें शामिल दो इकाइयों के लिए बल्कि वैश्विक हितों के लिए भी फायदेमंद बताया गया, क्योंकि इसने यूरोपीय आधारित तकनीक़ की क्षमताओं को उजागर किया, जिससे भारतीय कंपनियां अधिक प्रतिस्पर्धी बन गईं और अपने बाज़ार में विविधता लाने पर मज़बूर हुईं.

भारत-यूरोपीय संघ संबंध

इसके बावज़ूद 2007 में मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू करने के बाद भी बातचीत टलती रही और किसी ठोस चिंतन के अभाव में इसे 2013 में स्थगित करना पड़ा. हालांकि नौ साल और महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक परिदृश्य में हुए बदलाव के बाद ही इसके प्रभावों की पहचान की जा सकी. 2021 में यूरोपीय संघ और भारतीय नेताओं द्वारा महत्व दिए जाने के साथ यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष की यात्रा के बाद यह आख़िरकार मुमकिन हो पाया. उर्सुला वॉन डेर लेयेन अप्रैल 2022 में भारत आईं और लंबित वार्ता को अंततः जून 2022 में फिर से शुरू किया जा सका. नए सिरे से वार्ता के पहले दौर की मेज़बानी 2022 की गर्मियों में नई दिल्ली द्वारा की गई थी और दोनों पक्षों ने लक्ष्य के साथ-साथ बातचीत को पटरी पर लाने और 2023 के अंत तक डील पर सहमति बनाने पर ज़ोर दिया.

मौज़ूदा समय में, भारत-यूरोपीय संघ व्यापार संबंधों में कई वैल्यू चेन (मूल्य श्रृंखलाएं) हैं जिनमें विज्ञान और तकनीक़, रिन्यूएबल एनर्जी(नवीकरणीय ऊर्जा), सेवाओं, वस्तुओं और बुनियादी ढांचे में निवेश शामिल हैं. ये निवेश पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़े हैं और उम्मीद है कि यह बढ़ोतरी भविष्य में भी जारी रहेगी. उदाहरण के लिए भारत, यूरोपीय संघ का दसवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और अमेरिका और चीन के बाद यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जो इसके कुल व्यापार का लगभग 11 प्रतिशत हिस्सा है. दोनों पक्षों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार अब 95.5 बिलियन यूरो के आंकड़े से अधिक को छू चुका है और आने वाले वर्षों में इसके बढ़ने की ही उम्मीद है.

सुरक्षा सहयोग के संदर्भ में, ईयू-भारत साझेदारी विशेष रूप से पिछले कुछ वर्षों में ज़्यादा बढ़ी है. यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए व्यापक असर के साथ स्थिरता का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है, जिसमें रक्षा मुद्दों पर क़रीबी सहयोग भी शामिल है.

ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर वैल्यू चेन दबाव में है, यूरोपीय संघ-भारत व्यापार के रणनीतिक महत्व के अलावा, यह प्रमुख व्यापार साझेदारी बाज़ार तक पहुंच बनाने के साथ आर्थिक सहयोग के संदर्भ में वैश्विक लाभ का अवसर देती है. यूरोपीय संघ-भारत व्यापार समझौते को आख़िरी दौर में लाने की कोशिश और ई-कॉमर्स के लिए नई व्यवस्था के विकास से निकट भविष्य में उदारीकरण को और बढ़ावा मिलेगा ख़ास कर तब जबकि फ्री इंटरनेशनल ट्रेड को लेकर ज़्यादा ख़तरा होगा. यह न केवल अधिक वाइब्रेंट (जीवंत) ईयू-भारत आर्थिक संबंधों का नतीज़ा होगा और बढ़ते आर्थिक तनाव और जीवन यापन की बढ़ती लागत के मुक़ाबले समग्र यूरोपीय और भारतीय विकास ट्राजेक्टरिज (प्रक्षेपवक्रों) के लिए ज़रूरी गति देगा, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी आगे बढ़ने में मदद करेगा.

इसके साथ ही  2021 में, यूरोपीय संघ ने भारत के साथ एक कनेक्टिविटी साझेदारी को अंतिम रूप दिया जो उसी वर्ष से यूरोपीय संघ की ग्लोबल गेटवे स्ट्रैटेजी पर आधारित है और चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट के लिए यूरोपीय संघ का अपना जवाब जैसा है. ईयू-इंडिया कनेक्टिविटी पार्टनरशिप - जापान के साथ इसी तरह के समझौते (2020) के बाद एकमात्र समझौता – जिसका उद्देश्य स्थायी डिजिटल, परिवहन और ऊर्जा नेटवर्क को बढ़ावा देना है, और लोगों, वस्तुओं, सेवाओं, डेटा और पूंजी के प्रवाह को म्यूचुअल इक्विटी और इनक्लुसिविटी (समावेशिता) पर केंद्रित करना है.

सुरक्षा सहयोग के संदर्भ में, ईयू-भारत साझेदारी विशेष रूप से पिछले कुछ वर्षों में ज़्यादा बढ़ी है. यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए व्यापक असर के साथ स्थिरता का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है, जिसमें रक्षा मुद्दों पर क़रीबी सहयोग भी शामिल है. विशेष रूप से आतंकवाद के ख़िलाफ़ अभियान, समुद्री सुरक्षा और साइबर सुरक्षा पर सहयोग आपसी हितों के क्षेत्र में शामिल रहे हैं. यह अलग-अलग स्तरों पर विभिन्न प्रकार के डिफेंस एन्गेजमेंट जैसे मंत्रिस्तरीय आदान-प्रदान और हाई-प्रोफाइल संवादों के ज़रिए प्रदर्शित किया गया है.

फिर भी जून 2021 में अदन की खाड़ी में अंजाम दिए गए संयुक्त नौसैनिक अभ्यास विशेष रूप से यहां पर उल्लेखनीय है, जब भारतीय नौसेना फ्रिगेट त्रिकंद यूरोपीय संघ और इसके कुछ दूसरे सदस्य राष्ट्रों की नौसेना के एंटी-पायरेसी ऑपरेशन अटलांटा का हिस्सा बना. ये युद्धाभ्यास ईयू में शामिल राष्ट्रों के बीच भरोसा, उनके सुरक्षा सहयोग के प्रति प्रतिबद्धता और क्षेत्र के विकास और स्थिरता पर व्यापक प्रभाव डालने वाली मज़बूत साझेदारी की क्षमता की ओर इशारा करती है. आख़िरकार  इससे एक मज़बूत और ज़्यादा एकीकृत दुनिया की संभावना पैदा होती है जिसमें सभी हितधारकों के लिए ज़्यादा सुरक्षित माहौल शामिल है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ की बढ़ती दिलचस्पी के साथ, विशेष रूप से 2021 में हिंद-प्रशांत रणनीति को अपनाने के बाद से, यूरोपीय संघ और भारत ने भी एक शांतिपूर्ण, समृद्ध और सुरक्षित भारत के साझा दृष्टिकोण के लिए अपनी पारस्परिक प्रतिबद्धता को अलग-अलग संयुक्त पहल और क्षेत्रीय सुरक्षा संवादों के ज़रिए बताया है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ और भारत के बीच अधिक सुरक्षा सहयोग क्षेत्रीय सुरक्षा को आवश्यक बढ़ावा देगा और एक स्थिर और समृद्ध क्षेत्र को बढ़ावा देगा. इस संबंध में, संयुक्त नौसैनिक अभ्यास जैसी पहल अहम है क्योंकि यह बताता है कि साझा हितों के लिए कई राष्ट्रों के एक साथ आने पर क्या हासिल किया जा सकता है.

यूरोपीय संघ और भारत दोनों एक-दूसरे की सुरक्षा चिंताओं को भौगोलिक रूप से दूर के मुद्दे के रूप में नहीं बल्कि मौज़ूदा संकट के रूप में देखते हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों और अंतरराष्ट्रीय मामलों दोनों को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं.

भारत एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी के रूप में सामने आ रहा है और यूरोपीय संघ आपस में गहराई से जुड़े हुए विश्व में अपने हितों की रक्षा के तरीक़ों की तलाश कर रहा है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि ये दोनों राष्ट्र मिलकर काम करें जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी साझेदारी भारत में स्थिरता और विकास के लिए हिंद-प्रशांत और उससे आगे के क्षेत्र में एक सकारात्मक शक्ति बनी रहे. यूरोपीय संघ-भारत संबंधों की सफलता दोनों संस्थाओं के भरोसे जगाने, एक-दूसरे के हितों का सम्मान करने और भविष्य में पारस्परिक लाभ हासिल करने की क्षमता पर निर्भर करेगी.

यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के हमले, जिसने यूरोपीय संघ-भारत संबंधों पर असर डाला है, उसपर प्रतिक्रिया देने के  तरीक़े पर शुरुआती मतभेदों के बावज़ूद ऐसा लगता है कि भारत धीरे-धीरे यूरोपीय संघ के क़रीब आ रहा है. क्योंकि यह युद्ध एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं है और इसका वैश्विक प्रभाव है, जो दुनिया भर में ऊर्जा और खाद्य संकट से लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सहित अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की लाचारी तक फैला हुआ है.

यूक्रेन युद्ध के अलावा, ताइवान स्ट्रेट और दक्षिण चीन सागर के साथ-साथ भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव स्पष्ट रूप से यह बताते हैं कि क्षेत्रीय अखंडता और राज्य की सीमाओं की अखंडता के सवाल अब पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो चुके हैं. इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि यूरोपीय संघ और भारत दोनों एक-दूसरे की सुरक्षा चिंताओं को भौगोलिक रूप से दूर के मुद्दे के रूप में नहीं बल्कि मौज़ूदा संकट के रूप में देखते हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों और अंतरराष्ट्रीय मामलों दोनों को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं.

पिछले 60 वर्षों में यूरोपीय संघ और भारत ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अंदर और बाहर सामाजिक-आर्थिक विकास और सुरक्षा सहयोग के सामान्य एज़ेंडे के आधार पर मज़बूत और गहरे संबंध विकसित किए हैं. यह साझेदारी साझा मूल्यों और हितों के आधार पर विकसित की गई है  जो कि कई ट्रेड लिंक और रक्षा सहयोग से प्रमाणित होता है. अगर यह साझेदारी आने वाले वर्षों में बढ़ती रहती है, तो वैश्विक स्थिरता के एक महत्वपूर्ण स्रोत और हिंद-प्रशांत और उससे आगे आर्थिक विकास के ड्राइवर के रूप में इसके बने रहने की संभावना है. इसके अलावा, यूरोपीय संघ और भारत के बीच बढ़ते सहयोग के द्विपक्षीय संबंधों से परे भी कई निहितार्थ है, क्योंकि यह व्यापक क्षेत्र में शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता की ओर इशारा करता है. भारत के जी 20 की अध्यक्षता संभालने के साथ, बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था को बचाने के लिए नई दिल्ली की और भी बड़ी ज़िम्मेदारी बनेगी - जो कि मुख्य मुद्दा है और जो यूरोपीय संघ की विदेश नीति के केंद्र में भी है. इसलिए नए साल यानी 2023 में यूरोपीय संघ-भारत संबंध के और भी फलने-फूलने के सभी ज़रूरी शर्तें मौज़ूद है. हालांकि यह राजनीतिक नेताओं के साथ-साथ दोनों क्षेत्रों के लोगों पर निर्भर करेगा कि वे इस संभावना को इस साल कैसे पूरा कर पाते है.

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