Author : Harsha Kakar

Published on Jan 19, 2018 Updated 0 Hours ago

2018 में, पाकिस्तान आंतरिक बदहाली के दलदल में और अधिक धंसता जाएगा, उसकी सीमा के दोनों तरफ तनाव पसरे होने के कारण पड़ोसी देशों के साथ उसके रिश्ते और ज्यादा खराब होंगे।

2018: पाकिस्तान के लिए परीक्षा का वर्ष

दिसंबर 2017 पाकिस्तान के लिए बेहद उलझन के साथ खत्म हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति ने उसकी जमीन से पनपने वाले आतंकी समूहों को मदद के मामले में पाकिस्तान के असहयोगपूर्ण रवैये पर नाराज होकर उसे फंड जारी करना रोक दिया। कुलभूषण जाधव के परिवार के लिए ‘मानवतावादी आधार पर’ मुलाकात की पेशकश , जिसका उद्वेश्य पाकिस्तान के दृष्टिकोण में आई नरमी का संकेत देना था, महज एक नाटकीय विफलता साबित हुई, और उससे पाकिस्तान की बात पर यकीन न करने का भारत का निश्चय सही साबित हुआ। मुलाकात के एक दिन के बाद, भारत ने सीमा पार सैन्य ऑपरेशन किया और पाकिस्तान द्वारा पहले किए गए हमलों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए कम से कम तीन पाक सैनिकों को मार गिराया। इस प्रकार, सीमा पर तनाव में इजाफे के साथ वर्ष समाप्त हुआ।

2017 के दौरान, भारत ने कश्मीर घाटी में 200 से ज्यादा पाक घुसपैठियों को मार गिराया और ज्यादातर आतंकी समूह के सरगनाओं का खात्मा कर हालात पर फिर से पूरी तरह नियंत्रण कर लिया। साल के अंतिम दिन पुलवामा में सीआरपीएफ प्रशिक्षण शिविर पर एक आतंकी हमले में पांच जानें गईं जिससे यह संकेत मिला कि पाक प्रायोजित आतंकवाद भले ही थोड़ा ठंडा पड़ा हो, लेकिन अभी तक पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ। ऐसी आतंकी गतिविधियां जारी रहेंगी लेकिन जैसे जैसे भारतीय सेना को कामयाबी मिलती जाएगी, उनका असर कम से कम होता जाएगा।

हुर्रियत को हाशिये पर धकेले जाने एवं हवाला फंडों के प्रवाह पर अंकुश लगाए जाने से घाटी में भारत विरोधी हिंसा और संघर्ष में कमी आई है जिससे उत्साहित होकर भारत सरकार ने एक संभाषी (इंटरलोक्यूटर) की नियुक्ति की, जिनसे ऐसे छात्रों, जो पहले हिंसा में शामिल थे, सहित कई प्रतिनिधिमंडलों ने मुलाकात की है। पहली बार पत्थर फेंकने वाले पांच हजार से अधिक लोगों के खिलाफ अभियोग वापस लेने से युवाओं के दिलों में उम्मीद लौटी है। पाक समर्थित हुर्रियत द्वारा बंद के आह्वानों को अब बहुत हद तक नजरअंदाज किया जा रहा है। इससे पाकिस्तान को चिंता हो रही है क्योंकि उसकी कश्मीर नीति विफल होती प्रतीत हो रही है।

नवाज शरीफ साल के आखिर में सऊदी अरब गए और वहां उन्होंने सऊद राजघराने के प्रभाव का उपयोग कर अपने खिलाफ चल रहे विचाराधीन मामलों एवं उनके तथा सेना के बीच मतभेद खत्म कर सुलह कराने की गुजारिश की। इससे भी बड़ी बात यह हुई कि पाकिस्तानी सेनाप्रमुख ने सीनेट को संबोधति करते समय एवं बहस में तो यह बयान दिया कि सेना भारत एवं अफगानिस्तान के बीच रिश्ते बेहतर करने का विरोध नहीं करती लेकिन दूसरे ही दिन उसने हफीज सईद की तारीफ कर दी जिससे दोनों देशों के बीच दूरियां और बढ़ गईं। फलस्तीन ने हफीज सईद के साथ मंच साझा करने वाले अपने पाकिस्तान स्थित राजदूत को वापस बुला लिया और यह संकेत दिया कि वह पाकिस्तान के बजाये भारत के साथ अपने रिश्तों को अधिक तवज्जो देता है।

2017 ऐसा साल था जब पाकिस्तान की सेना ने देश पर अपना पूरा नियंत्रण स्थापित कर लिया। उसने निर्वाचित प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बेवजह के आरोपों के आधारों पर सत्ता से हटा दिया, एक सियासी पार्टी बनाने की कोशिश कर रहे कट्टरपंथियों की मदद की एवं मजहबी दलों का समर्थन किया, आाखिरकार एक सुलह की पेशकश की, नतीजतन सरकार को समर्पण करना पड़ा। जब पाक सेना को लगा कि उसकी कश्मीर नीति विफल साबित हो गई है तो उसने हाफिज को नजरबंदी से रिहा कराने की गुप्त योजना बनाई। उसने सईद को पाकिस्तान की सियासी पार्टियों और भारत की निंदा करने की इजाजत दे दी है जिसकी वजह से पाकिस्तान के आंतरिक एवं विदेशी दोनों ही प्रकार के तनावों में और बढोतरी ही होगी।

पाकिस्तान के लिए वर्ष की समाप्ति आर्थिक मदद, विकास एवं राजनयिक समर्थन के लिए केवल चीन पर आश्रित रहने के रूप में हुई। केवल चीन ही हाफिज सईद के एक वैश्विक आतंकवादी के रूप में घोषित किए जाने की राह में रोड़ा बनता रहा है। हालांकि आंशिक रूप से सीपीईसी परिचालनगत हो गया है, इसकी वास्तविक लागत, पुनर्भुगतान और अंततः इससे पाकिस्तान को लाभ अभी तक गोपनीय बना हुआ है। चीन की यह मांग कि पाकिस्तान की सेना सीधे सीपीईसी से जुड़ जाए, वैधता और हुकूमत पर सवाल खड़े करती है। चीन ने निवेश की अपनी शर्तो में बदलाव किया है जिसके बारे में जानकारी बाद में प्राप्त होगी, लेकिन इस बात के आसार अधिक है कि इससे पाकिस्तान के लिए पुनर्भुगतान की समस्याएं और बढेंगी ही।

2018 पाकिस्तान के लिए एक चुनावी वर्ष होगा जो संभवतः देश को और गहरे रसातल में धकेल देगा। पाकिस्तान की सेना कट्टरपंथियों और धार्मिक समूहों को समर्थन दे रही है और इसका नतीजा सीनेट के निर्वाचित सदस्यों में दोनों तरह के लोगों की मौजूदगी के रूप में आ सकता है जिससे सरकार पर सेना का दबदबा और बढ़ जाएगा। सेना का पूरी तरह वर्चस्व और नियंत्रण हो जाएगा जबकि उसके ऊपर न तो किसी के प्रति कोई जवाबदेही होगी और न ही कोई जिम्मेदारी।

अपने पड़ोसियों, भारत एवं अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान के संबंध और भी खराब हो जाने के आसार हैं। पिछले वर्ष के अंत में बैंकॉक में दोनों देशों के एनएसए की मुलाकात के बावजूद परस्पर विश्वास में कमी ही आएगी, खासकर, यह देखते हुए कि चुनाव के बाद पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति के शांति विरोधी होने की उम्मीद ही अधिक है। इसलिए, नियंत्रण रेखा पर तनाव बना रहेगा और यह और अधिक सक्रिय हो जाएगा क्योंकि हताश पाकिस्तान कश्मीर घाटी को भड़काने के लिए और अधिक संख्या में घुसपैठियों को भेजने का षडयंत्र करेगा जिसका भारत द्वारा जोरदार प्रतिरोध किया जाएगा। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में कुलभूषण जाधव मामले में भारत के पक्ष में निर्णय की संभावना को देखते हुए, आपसी तनाव में और वृद्धि ही होगी।

अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबान एवं हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तानी समर्थन जारी रहेगा। इसका अर्थ यह हुआ दानों देशा के बीच तनाव और बढ़ेगा क्योंकि तालिबान एवं हक्कानी नेटवर्क के हमलों में और अधिक नागरिक मारे जाएंगे। अफगानिस्तान की जमीन से पनपने वाले पाक विरोधी आतंकी समूहों के हमलों से पाक-अफगान के बीच तनाव और बढ़ेगा तथा दोनों देशों के बीच की सीमाओं के बंद होने के मामलों में वृद्धि होगी जिसका अंत आरोप-प्रत्यारोप के नए दौर के साथ होगा।

आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव और बढ़ेगा। पाकिस्तान द्वारा कोई ठोस कदम न उठाए जाने, तालिबान स्प्रिंग ऑफेंसिव के आरंभ के बाद सहयोगी सैन्य बलों पर हमलों के बाद अमेरिका सीमा पार द्रोन हमले करने को मजबूर हो जाएगा जिससे पाक का गुस्सा और बढ़ेगा और अमेरिका के साथ उसके रिश्ते बदतर हो जाएंगे। अफगानिस्तान के साथ भारत की बढ़ती निकटता और अफगान को भारत के बढ़ते सहयोग से अफगान में भारत की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी, जिसकी वजह से पाक की पेशानी पर और भी बल पड़ेंगे।

इस प्रकार, 2017 के आखिर तक, पाकिस्तान के सामने समस्याएं वर्ष की शुरुआत की तुलना में और अधिक बढ़ गई हैं। 2018 का आगाज आंतरिक अस्थिरता और अपने पड़ोसी देशों के साथ उसकी बढ़ती शत्रुता के साथ हुआ है। पिछले पूरे वर्ष के दौरान, पाकिस्तान ने एक बार भी बातचीत शुरु करने, अपने पड़ोसी देशों के साथ अपने रिश्ते सुधारने और आंतरिक अराजकता पर काबू पाने की कोई इच्छा तक नहीं जताई है। सेना ने अपने निजी स्वार्थ और ताकत के लिए खुलेआम कट्टरपंथी और धार्मिक समूहों को समर्थन देने के जरिये देश को राजनीतिक स्थिरता से अस्थिरता की खाई में धकेल दिया है।

इसलिए, 2018 में पाकिस्तान आंतरिक अराजकता के दलदल में और अधिक धंसता जाएगा और अपनी दोनों सीमाओं पर तनाव की वजह से अपने पड़ोसी देशों से इसके रिश्ते और भी खराब होते जाएंगे। चुनावों में कट्टरपंथी और धार्मिक समूहों के नेताओं सहित सभी प्रकार के नेता जीत कर आएंगे जिससे देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों की समस्याएं और बढेंगी अरैर सेना के दबदबे में भी बढोतरी होगी। चुनाव के बाद बनने वाली किसी भी सरकार में अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति और सुलह से संबंधित बातचीत शुरु करने की प्रक्रिया पर विचार करने की हिम्मत भी नहीं होगी।

पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता जाएगा, जबकि भारत नियंत्रण रेखा के इर्दगिर्द अपनी आक्रमकता और अपना जोर बनाये रखेगा। कश्मीर आम तौर पर शांतिपूर्ण बना रहेगा जिससे पाकिस्तान और बेचैन होगा। भारत की बढ़ती सैन्य शक्ति पाकिस्तान को रक्षा पर अपनी बजटीय क्षमता से और अधिक खर्च करने को मजबूर करेगा जिससे उसकी माली हालत और भी बदतर हो जाएगी। कुल मिला कर, वर्ष 2018 पाकिस्तान के लिए एक कड़ी परीक्षा का साल साबित होगा क्योंकि उसकी आंतरिक और बाहरी चुनौतियां कई गुना बढ़ जाएंगी।

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