Author : Dhaval Desai

Published on Dec 23, 2019 Updated 0 Hours ago

केंद्र, राज्य और शहरी स्तर पर प्रशासन को ड्रामा बंद कर तुरंत शहरों में पानी की गुणवत्ता सुधारने के काम में जुट जाना चाहिए

राज्यों की राजधानी में कैसा पानी पी रहे हैं लोग?

मुंबई में नल का पानी इकट्ठा करने वाला एक आदमी

स्रोत: गेटी इमेज

इस साल नवंबर के मध्य में मीडिया में ऐसी ख़बरें आईं, जिनमें दावा किया गया कि देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई में नगर निगम सौ प्रतिशत सुरक्षित पानी की सप्लाई कर रहा है. इन ख़बरों में बताया गया कि मुंबई में अलग-अलग क्षेत्रों से लिए गए टैप वॉटर (नलके के पानी) के सैंपल ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) के गुणवत्ता के सभी 11 पैमानों पर न सिर्फ खरे उतरे हैं बल्कि वे मानकों से भी बेहतर पाए गए हैं. BIS ने 15 राज्यों की राजधानी में यह परीक्षण कराया था. दूसरी तरफ, दिल्ली में पानी के सैंपल सभी 11 पैमानों पर फेल हो गए. यहां तक कि केंद्र में उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान के घर और दफ़्तर के पानी की गुणवत्ता भी ख़राब निकली. इसका मतलब यह है कि दिल्ली में सप्लाई की जाने वाली पानी की क्वालिटी सबसे  ख़राब है. जिन 11 पैमानों पर BIS ने पानी की गुणवत्ता परखी, उनमें ऑर्गेनोलेप्टिक, फिजिकल, केमिकल, बैक्टीरियोलॉजिकल और जहरीले तत्वों का पता लगाने सहित अन्य परीक्षण शामिल हैं.

स्रोतः प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो, भारत सरकार, 16 नवंबर 2019

ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स की इस घोषणा से जहां मुंबई में पानी की सप्लाई करने वाली एजेंसी  ख़ुश हुई, वहीं दिल्ली जल बोर्ड में मातम पसर गया. मुंबई में म्यूनिसिपल कमिश्नर ने अपने हाइड्रॉलिक इंजीनियरिंग स्टाफ की  तारीफ़ की. उन्होंने कहा कि ये लोग पानी की बेहतर गुणवत्ता बनाए रखने के लिए दिन-रात काम करते हैं. इधर, मीडिया ने इस मुद्दे को लेकर दिल्ली जल बोर्ड की लानत-मलामत की, जिसकी उम्मीद भी थी. दिल्ली विधानसभा चुनाव में तीन महीने से भी कम समय बचा है. ऐसे में इसी बहाने विपक्ष के हाथ एक मुद्दा लग गया और उसने आम आदमी पार्टी की सरकार की जमकर खिंचाई की. जगह-जगह अचानक से ऐसे पोस्टर लग गए, जिनमें दिल्ली सरकार पर लोगों को ‘जहरीला पानी’ पिलाने का आरोप लगाया गया था. ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स की इस रैंकिंग की प्रामाणिकता जो भी हो, दिल्ली में पानी सप्लाई व्यवस्था की जो हालत है, उस पर इसका शायद ही कोई असर हो.

  • पानी साफ करने वाले प्लांट्स से मुमकिन है कि अच्छी गुणवत्ता वाला पानी निकलता हो, लेकिन लोगों को पहुंचाने के क्रम में इसकी क्वालिटी ख़राब होती जाती है. इसकी वजह यह है कि पानी की आपूर्ति के लिए जो पाइपलाइन बने हैं, उनका ठीक से रखरखाव नहीं होता. कई मामलों में, ख़ासतौर पर झुग्गियों वाले इलाके में उन्हें ओपन स्टॉर्मवॉटर ड्रेन से निकाला गया है या वे नगर निगम के सीवर के करीब हैं. पानी की सप्लाई रुक-रुक कर की जाती है, इसलिए पाइपलाइन में पूरा दबाव भी रोज कुछ घंटों तक ही रहता है. जब पानी की सप्लाई नहीं की जाती, तब आसपास का दूषित जल इन पाइप में रिस कर आ जाता है क्योंकि तब इनमें दबाव घटकर शून्य तक पहुंच गया होता है. इसके बाद जब निगम की तरफ से पानी की सप्लाई शुरू होती है, तब यही दूषित जल उसके साथ मिलकर नलों तक पहुंचता है. इससे आप उन शहरों की हालत का अंदाजा लगा सकते हैं, जहां एक दिन के अंतराल पर पानी की सप्लाई की जाती है.
  • जहां से ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स ने जांच के लिए पानी के सैंपल लिए होंगे, रिजल्ट पर उनका असर पड़ने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता. मिसाल के लिए, शहर के नए बसे इलाकों में अगर नल का पानी जांच के लिए गया होता तो उसकी गुणवत्ता कहीं बेहतर हो सकती थी. वहीं, जहां पानी की सप्लाई का इंफ्रास्ट्रक्चर पुराना और ढह रहा हो, वहां नल के पानी की गुणवत्ता ख़राब रहने की आशंका अधिक है. अख़बारों में आई ख़बरों से पता चलता है कि दिल्ली में जांच के लिए सैंपल कम आय वर्ग वाले इलाकों से लिए गए थे. अगर मुंबई में भी कुर्ला और गोवंडी से सैंपल लिए जाते तो वे कई मानकों पर फेल हो सकते थे क्योंकि ये दोनों क्षेत्र पानी से होने वाली कई बीमारियों के गढ़ रहे हैं. मुंबई जैसे बड़े शहर में पानी की सप्लाई का नेटवर्क हजारों किलोमीटर लंबा है. इसलिए अलग-अलग क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता में काफी अंतर होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
  • इस साल मुंबई में मॉनसून देर से आया था. उसके ठीक पहले यहां पानी से होने वाली बीमारियां बढ़ी थीं. तब वहां के जलाशय तेजी से सूख रहे थे और नगर निगम जैसे-तैसे और यहां-वहां से पानी का इंतज़ाम कर रहा था. उस वक्त शहर के स्वास्थ्य विभाग ने लोगों से पानी उबाल कर पीने की अपील की थी. आखिर, सीजनल बदलाव के कारण पानी की गुणवत्ता तो प्रभावित नहीं हुई होगी.
  • ठीक उसी वक्त हैदराबाद भी पानी से होने वाली बीमारियों की गिरफ़्त में था, जिसे ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स की रैंकिंग में भुवनेश्वर के साथ दूसरा स्थान मिला है. इससे इस आशंका को बल मिला था कि वहां भी लोगों तक दूषित पानी पहुंच रहा है. यही हाल रांचीरायपुर और अमरावती का था, जिन्हें क्रमशः तीसरी, चौथी और पांचवीं रैंकिंग मिली है.
  • BIS की रैंकिंग जारी होने के हफ्ते भर के अंदर दिल्ली जल बोर्ड की सप्लाई वाले तीन नगर निगम इकाइयों के इलाकों में पानी के सैंपल की जांच के अलग-अलग परिणाम सामने आए थे. बीजेपी के कब्ज़े वाले पूर्वी, उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगमों से लिए गए 4,523 सैंपल में सिर्फ 130 दूषित पाए गए. यह कुल सैंपल का सिर्फ तीन प्रतिशत था. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के 5 प्रतिशत की सीमा से कम है.
  • दिलचस्प बात यह है कि सितंबर 2019 में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी दिल्ली जल बोर्ड की तरफ से सप्लाई की जाने वाली पानी की गुणवत्ता की तारीफ़ की थी. उन्होंने कहा था कि दिल्ली में 20 जगहों से पानी के सैंपल लिए गए और उनकी जांच की गई. इनकी गुणवत्ता ‘यूरोपीय मानकों’ से भी बेहतर थी. इसलिए अगर इसका पता लगाया जाए कि कैसे दो महीने में ही जल बोर्ड का पानी यूरोपीय मानकों से बेहतर से फिसलकर पीने लायक नहीं रह गया तो उसके नतीजे दिलचस्प होंगे.

कई शहरों, खासतौर पर मुंबई में पिछले कुछ वर्षों में पेयजल की गुणवत्ता सुधारने की काफी कोशिश हुई है. मिसाल के लिए, 2012-13 के बाद से म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ ग्रेटर मुंबई (MCGM) ने सरफेस डिस्ट्रीब्यूशन के लिए स्टील के पाइपों का इस्तेमाल बंद कर दिया. अब कंक्रीट के बने 14 अंडरग्राउंड सुरंगों के जरिये पानी की सप्लाई की जा रही है. कई झुग्गी-बस्तियों में पानी के पाइपों का जाल था, जिसे छह इंच के पाइपों से बदला गया. नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) की मदद से पानी की जांच करने वाली प्रयोगशालाओं को अपग्रेड किया गया. जांच के लिए पानी के सैंपल लेने की व्यवस्था को भी बेहतर बनाया गया ताकि सही नतीजे मिल सकें. इन उपायों के बावजूद मुंबई में नॉन-रेवेन्यू वॉटर (NRW) की दर ऊंची बनी हुई है. साफ किए गए पानी की सप्लाई की कुल मात्रा और उसमें से जितने की बिलिंग नहीं की जाती, उसके अंतर को NRW कहते हैं. जिस पानी का वितरण हो रहा है, अगर उसकी बिलिंग नहीं की जा रही है तो उससे नगर निगम को नुकसान हो रहा है. यह सिस्टम का डिस्ट्रीब्यूशन लॉस है. इस नुकसान की वजह पानी का लीकेज या चोरी या बिलिंग न होना हो सकता है. MCGM ने ख़ुद माना है कि चार घंटे की अनियमित सप्लाई के बावजूद NRW 27 प्रतिशत के साथ काफी ऊंचा बना हुआ है. इस वजह से रोज 470 करोड़ लीटर की सप्लाई में से 100 करोड़ से अधिक सिस्टम में ‘ग़ायब’ हो रहा है.

विश्व बैंक का कहना है कि देश के ज्यादातर शहरों में NRW 40 प्रतिशत या उससे भी अधिक है. वैसे इसे भी सही नहीं माना जा सकता क्योंकि ज्यादातर शहरों में पानी के मीटर नहीं लगे हैं. मुंबई में भले ही अंडरग्राउंड कंक्रीट ट्रंक लाइन के जरिये ज्यादातर पानी की सप्लाई की जा रही है, लेकिन उन्हें पुराने और ध्वस्त हो रहे सीवर नेटवर्क के साथ बिछाया गया है. इसलिए जब पानी की सप्लाई नहीं होती, उन घंटों में सीवर के सीपेज की वजह से इस पानी के दूषित होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

राष्ट्रीय स्तर पर नीति आयोग के कंपोजिट वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स (CWMI) ने भी पुष्टि की है कि देश में सप्लाई किया जाने वाला 70 प्रतिशत पानी दूषित है. वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वॉटरएड के वॉटर क्वालिटी इंडेक्स में कुल 122 देशों में भारत 120वें नंबर पर है. इन परिस्थितियों में पानी की गुणवत्ता के आधार पर रैंकिंग करना फ़िजूल की कवायद है. कुछ शहरों को बदनाम करने के अलावा इससे कुछ भी हासिल नहीं होगा. किसी भी शहर में पानी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए निकायों की जवाबदेही तय करनी होगी. पानी की सप्लाई के लिए समुचित व्यवस्था बनानी होगी और पूरे सिस्टम में सुधार लाना होगा. जब तक हम यह नहीं कर लेते, तब तक लोगों को साफ पानी की सप्लाई की उम्मीद करने का कोई मतलब नहीं है. अधिकतर शहरों में पानी के मीटर पुराने पड़ चुके हैं और वे ठीक से काम भी नहीं करते. इसलिए वहां से पानी की खपत के आंकड़े जुटाना भी मुश्किल है. देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 84 प्रतिशत घरों को पाइप से पेयजल की सप्लाई मुहाल है. ऐसे में शहरों में पाइप से पेयजल की सप्लाई की कमियों को तुरंत दूर करना होगा. अगले 10 वर्षों में म्यूनिसिपल वॉटर सप्लाई की अहमियत काफी बढ़ने वाली है क्योंकि CWMI के मुताबिक़ 21 शहरों में 2020 तक भूजल खत्म हो जाएगा. बेढंगे शहरीकरण, क्लाइमेंट चेंज और कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण शहरी वॉटर सप्लाई व्यवस्था तेजी से ध्वस्त हो रही है. ऐसे में केंद्र, राज्य और शहरों के स्तर पर एजेंसियों को बहुत कुछ करना होगा. इन हालात में ब्यूरो ऑफ स्टैंडर्ड्स की बेतुकी और गलत रैंकिंग जैसी कवायद से कुछ हाथ नहीं लगेगा.

इसलिए भारतीय शहरों को अपने वॉटर डिस्ट्रीब्यूशन मैनेजमेंट में व्यापक सुधार के लिए बुनियादी स्तर से शुरुआत करनी होगी. इसके लिए पहले तो हर घर में पानी के मीटर लगाए जाने चाहिए. इसके साथ NRW लेवल को घटाकर 10 प्रतिशत के करीब लाना होगा. झुग्गियों में साफ-सफाई और हाइजीन मेंटेन करने के साथ बेहतर सीवेज और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम बनाना होगा ताकि पानी कम से कम दूषित हो. केंद्र और राज्य सरकारों को सिविक एजेंसियों को अधिक अधिकार देने होंगे और संविधान के 74वें संशोधन के मुताबिक़ उनकी जवाबदेही बढ़ानी पड़ेगी. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य सरकारों को संबंधित वित्त आयोग के जरिये फंड देना होगा ताकि नगर निगमों की फंड की कमी दूर हो सके.

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