Author : Anchal Vohra

Published on Dec 12, 2020 Updated 0 Hours ago

लगभग आधे अमेरिकी नागरिकों ने चुनाव में ट्रंप के हक में मतदान किया, इसलिए अमेरिका ने एक महाशक्ति के रूप में खुद को स्वतंत्र दुनिया के नेता के रूप में स्थापित करने का नैतिक अधिकार खो दिया है.

क्या है मध्यपूर्व के लिए नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की जीत का मतलब?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद  अमेरिका द्वारा स्थापित की गई नियम-आधारित विश्व व्यवस्था को पूरी तरह से नकारने की कोशिश की. अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन अब इसे फिर से पटरी पर ला सकते हैं. हालांकि, क्योंकि लगभग आधे अमेरिकी नागरिकों ने चुनाव में ट्रंप के हक में मतदान किया, इसलिए अमेरिका ने एक महाशक्ति के रूप में खुद को स्वतंत्र दुनिया के नेता के रूप में स्थापित करने का नैतिक अधिकार खो दिया है.

अमेरिका के सबसे कट्टर पश्चिमी सहयोगियों में से कुछ ने ट्रंप की विदाई की कामना की थी क्योंकि उन्होंने बेहद खुले रूप में, लेन-देन वाली ऐसी विदेश नीति को अपनाया था, जो केवल अल्पकालिक स्थानीय फायदों पर आधारित थी. अमेरिका के सबसे विवादास्पद चुनाव परिणाम बाइडेन के पक्ष में घोषित होने के बाद, उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में घोषित किया गया. इस बीच कनाडा, फ्रांस, और जर्मनी उन्हें बधाई देने वालों में सबसे आगे रहे और उन्होंने समान विचारधारा वाले नेता के रूप में बाइडेन के साथ काम करने की इच्छा जताई.

अमेरिका के सबसे कट्टर पश्चिमी सहयोगियों में से कुछ ने ट्रंप की विदाई की कामना की थी क्योंकि उन्होंने बेहद खुले रूप में, लेन-देन वाली ऐसी विदेश नीति को अपनाया था, जो केवल अल्पकालिक स्थानीय फायदों पर आधारित थी

बाइडेन के नेतृत्व में यूरोप और बहुत हद तक मध्य पूर्व में भी ट्रंप की नीतियों को काफी हद तक उलट दिए जाने की संभावना है. हालांकि, मध्य पूर्व में, अमेरिकी नीति के दूरगामी परिणाम होंगे और इसका असर ख़तरनाक हो सकता है. मध्य पूर्व के कई देश अभी भी सत्तावादी-धार्मिक नेताओं, राजशाही और निरंकुश शासकों के अधीन हैं. इस्लामी दुनिया के दो स्तंभ हैं, सुन्नी सऊदी अरब और शिया ईरान. साल 1979 में ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद से यह फ़ारसी देश, सउदी अरब के आधिपत्य को चुनौती दे रहा है, जो खुद को मुस्लिम दुनिया के नेता के रूप में देखता है.

बम बनाने के करीब ईरान

जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने इराक़ और अफगानिस्तान पर बमबारी की,  ओबामा ने सीरिया और यमन युद्ध में सैन्य रूप से भाग लेने से किनारा कर लिया और ईरान के साथ परमाणु समझौते या संयुक्त व्यापक कार्ययोजना समझौते (JCPOA) पर हस्ताक्षर किए. इस संधि को अमेरिका द्वारा ईरान को अपना प्रभाव क्षेत्र विकसित करने के लिए अमेरिकी समर्थन दिए जाने के रूप में देखा गया. यह कदम सऊदी अरब को रास नहीं आया. जब ट्रंप सत्ता में आए और उनके दामाद और मध्य पूर्व के सलाहकार जारेड कशनर ने सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) से मित्रता की, तो ट्रंप रियाद की ओर बड़े पैमाने पर झुक गए. साल 2018 में ट्रंप संयुक्त व्यापक कार्ययोजना समझौते से बाहर हो गए, बावजूद इसके कि अमेरिका के यूरोपीय सहयोगियों, जिन्होंने इस मसौदे के अमेरिका के साथ हस्ताक्षरकर्ता किए थे, उन्होंने इसे लेकर कड़ी आपत्ति जताई.

जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने इराक़ और अफगानिस्तान पर बमबारी की,  ओबामा ने सीरिया और यमन युद्ध में सैन्य रूप से भाग लेने से किनारा कर लिया और ईरान के साथ परमाणु समझौते या संयुक्त व्यापक कार्ययोजना समझौते (JCPOA) पर हस्ताक्षर किए. 

ईरान कठोर प्रतिबंधों से गुज़रा, लेकिन ट्रंप के साथ समझौते पर पुनर्विचार करने के लिए आगे नहीं आया. उस दिन से वह प्रतीक्षा कर रहे थे कि कब ट्रंप के बजाय कोई डेमोक्रेट सत्ता पर काबिज़ हो, और आखिरकर उनकी प्रार्थना सुन ली गई. अगर ईरान अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करता है और परमाणु बम बनाने से परहेज़ करता है तो बाइडेन, ईरान-अमेरिका परमाणु समझौते पर लौटने का वादा कर चुके हैं.

अंततराष्ट्रीय समाचार नेटवर्क सीएनएन के एक ऑप-एड में बाइडेन ने लिखा है कि पहले के मुकाबले ईरान अब, बम बनाने के कहीं अधिक करीब है, और इसका श्रेय ट्रंप द्वारा ईरान के साथ इस मसले पर बातचीत ख़त्म किए जाने को जाता है, जिसके तहत अमेरिका द्वारा उस करार से पैर खींच लिए गए जो बराक ओबामा की सरकार ने किया था, जब जो बाइडेन उपराष्ट्रपति थे. उन्होंने कहा कि ईरान के साथ सौदा करने के लिए उनके पास एक “बेहतर और कुशल तरीका” था. बाइडेन ने लिखा कि, “ऐसी खबरें हैं कि ईरान ने 10 गुना अधिक यूरेनियम का भंडारण कर लिया है, तब की तुलना में जब राष्ट्रपति बराक ओबामा और मैंने कार्यालय छोड़ा था.” उन्होंने कहा, “मैं तेहरान को कूटनीतिक रूप से वापस लौटने के लिए एक विश्वसनीय मार्ग प्रदान करूंगा. यदि ईरान परमाणु समझौते का कड़ाई से अनुपालन करता है, तो अमेरिका बातचीत के प्रारंभिक बिंदु के रूप में समझौते में फिर से शामिल होगा.”

सऊदी अरब के लिए चिंता की बात

ईरानी नागरिक भले ही चुपचाप राहत की सांस ले रहे हैं, लेकिन सऊदी अरब के पास चिंतित होने के कई कारण हैं.

बाइडेन ने ईरान के साथ एक बार से बातचीत शुरु करने की बात कही, लेकिन उन्होंने वहाबी साम्राज्य और विशेष रूप से इसके अभेद्य राजकुमार की कड़ी आलोचना की है. बाइडेन ने सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी  की हत्या का आदेश देने और यमन में जारी युद्ध में खून-ख़राबे के लिए एमबीएस को दोषी ठहराया. उन्होंने कहा कि उनका प्रशासन रियाद को हथियार बेचना बंद कर देगा और उन्हें “वास्तव में उसी तरह परित्यक्त बना देगा, जैसे वो हैं. ” उन्होंने कहा कि “सऊदी अरब की वर्तमान सरकार का सामाजिक मूल्य बेहद कम है.”

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र के एक ब्लॉक के रूप में लामबंद होने और दूसरा ओर ईरान, कतर और तुर्की के साथ आने से, बाइडेन के लिए कोई भी कदम उठाना और नीतिगत फैसला लेना टेढ़ी खीर है. 

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र के एक ब्लॉक के रूप में लामबंद होने और दूसरा ओर ईरान, कतर और तुर्की के साथ आने से, बाइडेन के लिए कोई भी कदम उठाना और नीतिगत फैसला लेना टेढ़ी खीर है. वह एक बार फिर ईरान के साथ वार्ता में शामिल हो सकते हैं, लेकिन पारंपरिक अमेरिकी सहयोगियों के रूप में सउदी अरब को बहुत दूर तक धकेलना मुश्किल हो सकता है.

हालांकि, ईरान के साथ अमेरिका का तालमेल दोबारा स्थापित होना, भारत जैसे उन देशों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है, जो कम कीमतों पर ईरानी कच्चा तेल ख़रीद रहे थे. ट्रंप ने प्रतिबंधों के साथ कुछ देशों को दी गई छूट को हटा लिया था और इससे भारतीय करदाताओं को सस्ता कच्चा तेल खरीदने का मौका मिला. लेकिन बाइडेन इज़रायल समर्थक भी है और सऊदी अरब के भय के लिए न सही लेकिन इज़रायल की सुरक्षा चिंताओं के लिए, ईरान के क्षेत्रीय विस्तार और तेहरान से बग़दाद, सीरिया और लेबनान तक फैले उसके सशस्त्र सैन्य बल पर नज़र रखना व लगाम कसना उनके लिए ज़रूरी होता. ऐसे में क्या ईरान यह वादा कर सकता है कि यदि बाइडेन इस सौदे में फिर से शामिल हो जाते हैं, तो क्या वह इस क्षेत्र में अपने प्रतिनिधित्व को नियंत्रित करने का काम करेगा?

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