Author : Premesha Saha

Published on Jul 15, 2020 Updated 0 Hours ago

पीएम मोदी की ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र पहल’ भी समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा और स्थायित्व चाहती है. लगता है कि ऑस्ट्रेलिया बहु-ध्रुवीय हिंद-प्रशांत व्यवस्था भी स्थापित करना चाहता है और इस बात को सुनिश्चित करना चाहता है कि कोई एक देश इस पर वर्चस्व स्थापित नहीं करे.

क्या हिंद-प्रशांत में भारत और ऑस्ट्रेलिया ‘बीच वाली ताक़त का गठबंधन’  बना सकते हैं?

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के साथ इस हफ़्ते 4 जून को पहली द्विपक्षीय वर्चुअल शिखर वार्ता की मेज़बानी करने वाले हैं. इस दौरान कोविड-19 के ख़िलाफ़ साझा लड़ाई और हिंद-प्रशांत साझेदारी समेत कई मुद्दों पर चर्चा होने वाली है. ये शिखर वार्ता पहले जनवरी में होने वाली थी जिसमें भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री मॉरिसन को भारत का दौरा करना था लेकिन ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग की वजह से ये दौरा रद्द करना पड़ा. दोनों पक्ष तब से शिखर वार्ता के आयोजन के लिए तारीख़ पर बातचीत कर रहे थे. लेकिन मौजूदा महामारी की वजह से ये आगे भी रुक गई. इस समय के दौरान भारत सार्क और जी20 के सदस्य देशों के साथ वर्चुअल शिखर वार्ता का आयोजन कर रहा है जिससे पता चलता है कि भारत राजनयिक साधनों के इस्तेमाल के ज़रिए अपने पड़ोस के साथ-साथ वैश्विक मंचों पर अपनी मौजूदगी और आवाज़ को मज़बूत कर रहा है. ऑस्ट्रेलिया ने पीएम मोदी की इस पहल का समर्थन किया है. पहली वर्चुअल द्विपक्षीय शिखर वार्ता ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री के साथ आयोजित करने का प्रधानमंत्री मोदी का फ़ैसला इस बात का संकेत है कि मौजूदा समय में दोनों देशों के बीच संबंध और बेहतर होते जा रहे हैं. भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच रणनीतिक साझेदारी है- दोनों देश विदेश सचिव और रक्षा सचिव 2+2 डायलॉग, इंडिया-ऑस्ट्रेलिया-इंडोनेशिया त्रि-पक्षीय डायलॉग, जापान-ऑस्ट्रेलिया-इंडिया डायलॉग में शामिल हैं. पिछले साल ऑस्ट्रेलिया और भारत का द्विपक्षीय नौसेना अभ्यास AUSINDEX अभी तक का सबसे शानदार था जिसमें हेलीकॉप्टर से लैस चार अगली कतार के जहाज़, एक पनडुब्बी और कई तरह के एयरक्राफ़्ट जिसमें P8I और P8A लंबी दूरी के मेरिटाइम जासूसी एंटी-सबमरीन वॉरफेयर एयरक्राफ़्ट शामिल थे.

वर्चुअल शिखर वार्ता के मौक़े पर दोनों पक्ष कई तरह के समझौते करना चाहते हैं जिनमें म्युचुअल लॉजिस्टिक्स शेयरिंग एग्रीमेंट (MLSA) और विज्ञान एवं तकनीकी और लोक प्रशासन के क्षेत्र में समझौते शामिल हैं. MLSA दोनों देशों की सेना के लिए जटिल अभ्यास और एक-दूसरे के सैन्य अड्डों तक पहुंच को आसान बना देगा. मोदी-मॉरिसन शिखर वार्ता के दौरान रक्षा सहयोग को मज़बूत करना प्रमुख मुद्दा रहेगा. भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बैरी ओ फैरेल के मुताबिक़ शिखर वार्ता में कई और महत्वाकांक्षी विषयों को आगे ले जाने की उम्मीद है. इनमें “क्षेत्रीय और बहुपक्षीय संस्थानों को बेहतर करने के लिए साथ काम करना, कोविड-19 और सार्वजनिक स्वास्थ्य, विज्ञान और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना, साइबर सुरक्षा और अहम तकनीकों में मज़बूत भागीदारी, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री मुद्दे, महत्वपूर्ण खनिज सप्लाई चेन, शिक्षा और जल संसाधन प्रबंधन शामिल हैं.” मौज़ूदा समय में ऑस्ट्रेलिया चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता को कम करने के लिए चिंतित है और इस संदर्भ में ऑस्ट्रेलिया भारत को और सामानों का निर्यात करना चाहेगा जिनमें जौ जैसे कृषि उत्पाद शामिल हैं. चीन ने पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया से आयातित अनाज पर 80 प्रतिशत टैरिफ लगाया था. 130 करोड़ की आबादी और उभरते हुए मध्य वर्ग के साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया के निर्यातकों के लिए बड़ा अवसर पेश करता है. शिक्षा में एक नई साझेदारी की भी चर्चा है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अपने यहां अलग-अलग देशों के छात्र चाहता है.

लेकिन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग मज़बूत करना, ख़ासतौर पर कोविड के बाद की दुनिया में, शिखर वार्ता के सबसे प्रमुख मुद्दों में से एक है. उच्चायुक्त बैरी ओ फैरेल ने हाल के एक बयान में इस बात की ज़रूरत पर ज़ोर दिया कि “कोविड के बाद की बहुपक्षीय व्यवस्था को आकार देने के लिए एक जैसे लोकतंत्र और ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे महत्वपूर्ण साझेदार एक साथ मिलकर काम करें. भारत और ऑस्ट्रेलिया मुक्त, खुले, समावेशी और सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं. साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था को और लचकदार बनाने और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को मज़बूत करने के लिए भी समर्पित हैं.” अप्रैल में फ़ोन पर अपनी आख़िरी बातचीत के दौरान दोनों नेता “जहां मौजूदा स्वास्थ्य संकट को हल करने वहीं हिंद-प्रशांत क्षेत्र समेत सभी जगह भारत-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी के व्यापक महत्व को लेकर सतर्क रहने” के लिए तैयार हुए.

130 करोड़ की आबादी और उभरते हुए मध्य वर्ग के साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया के निर्यातकों के लिए बड़ा अवसर पेश करता है. शिक्षा में एक नई साझेदारी की भी चर्चा है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अपने यहां अलग-अलग देशों के छात्र चाहता है

हिंद और प्रशांत महासागर की बढ़ती अहमियत ने ‘हिंद-प्रशांत’ को भू-रणनीतिक निर्माण के तौर पर नई रफ़्तार दी है. भारत और ऑस्ट्रेलिया ख़ासतौर पर महत्वपूर्ण देश हैं. भारत हिंद महासागर के बग़ल में है और ऑस्ट्रेलिया हिंद और दक्षिणी प्रशांत महासागर के बीच में है. वास्तव में भारत और ऑस्ट्रेलिया उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को रणनीतिक रूप से सहारा देते हैं. दोनों ने इस क्षेत्र को जोड़े रखने के लिए नया नज़रिया पेश किया है. भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण के ज़रिए है और ऑस्ट्रेलिया उस श्वेत पत्र के ज़रिए जिसमें “सुरक्षित, खुले और समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र” सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ संकल्प साझा किया गया है. अगर विश्व का हिंद-प्रशांत क्षेत्र दृष्टिकोण सार्थक साबित होना है तो इन दो देशों को व्यापक क्षेत्रों में अपनी रणनीतिक बातचीत और व्यावहारिक सहयोग गहरा करने के लिए नये रास्ते तलाशने होंगे.

ये शिखर वार्ता चीन के साथ भारत और ऑस्ट्रेलिया के तनावपूर्ण संबंधों की पृष्ठभूमि में हो रही है. भारत के मामले में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हाल के गतिरोध की वजह से तनाव है. ऑस्ट्रेलिया के मामले में तनाव इसलिए बढ़ गया है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने कोविड-19 महामारी और इसकी उत्पति को लेकर एक निष्पक्ष जांच की मांग की थी. चीन ने पिछले कुछ हफ़्तों में ऑस्ट्रेलिया को इस तरह का रुख़ अपनाने के लिए आर्थिक नतीजे भुगतने की धमकी दी है. ऑस्ट्रेलिया विवादित दक्षिणी चीन सागर (SCS), जहां चीन अपनी ताक़त दिखा रहा है, में साझा गश्त और फ्रीडम ऑफ नैविगेशन अभ्यास का हिस्सा रहा है और उसको समर्थन दे रहा है. पिछले साल भी राजनीतिक दखल, पश्चिमी चीन में मानवाधिकार हनन और हुवावे के 5जी उपकरण को लेकर ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंधों में तनातनी दिखी.

मुक्त, खुले, नियम आधारित समाज की चाह रखने वाले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्वपूर्ण देश के तौर पर और वायरस से निपटने और उसकी उत्पति को लेकर अमेरिका-चीन की मौजूदा लड़ाई को देखते हुए दक्षिण-पूर्व एशिया के छोटे देशों का किसी एक पक्ष की तरफ़ झुकाव हो गया है. ऐसे में भारत और ऑस्ट्रेलिया “मध्य और उभरती हुई ताक़तों का गठबंधन” बना सकते हैं. ऐसा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों जैसे वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, जो कि दक्षिणी चीन सागर में चीन के आक्रामक रुख़ का शिकार बने हुए हैं, को जोड़कर किया जा सकता है. भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों के अपने दक्षिणी-पूर्व एशियाई पड़ोसियों के साथ मज़बूत संबंध हैं और कुछ मामलों में दक्षिणी चीन सागर के मुद्दे में शामिल हैं. ऐसे में तर्कसम्मत बात यही होगी कि दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था का नेतृत्व करें और हिंद-प्रशांत की क्षेत्रीय संरचना को और समावेशी बनाएं. भारत की एक्ट ईस्ट नीति का मक़सद दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ गहरे आर्थिक संबंध और पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों के साथ व्यापक सहयोग स्थापित करना है. हाल में पेश पीएम मोदी की ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र पहल’ भी समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा और स्थायित्व चाहती है. लगता है कि ऑस्ट्रेलिया बहु-ध्रुवीय हिंद-प्रशांत व्यवस्था भी स्थापित करना चाहता है और इस बात को सुनिश्चित करना चाहता है कि कोई एक देश इस पर वर्चस्व स्थापित नहीं करे.

मुक्त, खुले, नियम आधारित समाज की चाह रखने वाले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्वपूर्ण देश के तौर पर और वायरस से निपटने और उसकी उत्पति को लेकर अमेरिका-चीन की मौजूदा लड़ाई को देखते हुए दक्षिण-पूर्व एशिया के छोटे देशों का किसी एक पक्ष की तरफ़ झुकाव हो गया है

दोनों देश बहुपक्षीय व्यवस्था स्थापित करने और महामारी के ख़िलाफ़ दुनिया के जवाब को लेकर सक्रिय क़दम उठा रहे हैं. भारत जहां सार्क और जी20 के सदस्य देशों और नेताओं के साथ संबंध स्थापित करने की पीएम मोदी की कोशिश और अब WHO के कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष होने के नाते सक्रिय क़दम उठा रहा है वहीं ऑस्ट्रेलिया वायरस की उत्पति को लेकर जांच की मांग के ज़रिए. दोनों देश जापान और अमेरिका के अलावा हिंद-प्रशांत क्षेत्र क्षेत्र में मिलते-जुलते विचार वाले देशों जैसे वियतनाम, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, न्यूज़ीलैंड को साथ ला सकते हैं और उनको क्वॉड प्लस मंच से जोड़ सकते हैं ताकि बहुपक्षीय संस्थानों ख़ासतौर पर WHO में और ज़्यादा ज़िम्मेदारी और बदलाव आ सके. जी20 शिखर वार्ता में पीएम मोदी का एक महत्वपूर्ण संदेश था WHO को मज़बूत करने की ज़रूरत. वियतनाम, दक्षिण कोरिया, न्यूज़ीलैंड जैसे देश कोविड-19 से लड़ाई में कुछ कामयाब देशों के उदाहरण हैं. इसलिए ऐसा मंच होना चाहिए जो इस स्वास्थ्य संकट के संदर्भ में मिली-जुली रिसर्च की कोशिशों समेत तमाम अनुभवों को बांटने के लिए प्रोत्साहित कर सके. भारत और ऑस्ट्रेलिया हिंद-प्रशांत क्षेत्र के इन देशों को शामिल करके शिखर वार्ता आयोजित करने की ज़िम्मेदारी ले सकते हैं. हिस्सेदार देशों के अनुभव पर आधारित एक रिपोर्ट तैयार की जा सकती है और बाद में WHO के मंच पर कोविड-19 से निपटने में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साझा ज़वाब के तौर पर इसे पेश किया जा सकता है.

इस तरह हिंद-प्रशांत क्षेत्र का दीर्घकालीन रणनीतिक स्थायित्व काफ़ी हद तक दोनों देशों और वो एक-दूसरे से कैसे बातचीत करते हैं, पर निर्भर है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय अनिश्चितता और मौजूदा बहुपक्षीय संस्थानों और द्विपक्षीय साझेदारी की सीमा को देखते हुए दोनों देशों के बीच मज़बूत सहयोग और गठबंधन क्षेत्रीय स्थायित्व बढ सकता है और दोनों के लिए रणनीतिक तौर पर फ़ायदेमंद हो सकता है.

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