Published on Oct 29, 2021 Updated 0 Hours ago

बेलारूस और बाक़ी दुनिया के लिए ये ज़रूरी है कि वो इस बात की जागरूकता बढ़ाएं कि भारत के साथ कामयाबी से कारोबार कैसे किया जा सकता है.

ग्रेट गेम 2.0 के संदर्भ में बेलारूस और भारत के संबंध: आगे का सफ़र

भारत और बेलारूस के विदेश मंत्रियों के बीच राजनीतिक विचार-विमर्श का अगला दौर एक नवंबर को बेलारूस की राजधानी मिंस्क में होगा. दोनों देशों के बीच ये बातचीत तीन साल के अंतराल के बाद होने जा रही है. पिछले तीन सालों में ये संवाद न हो पाने की कई वजहें रहीं. इनमें कोविड-19 महामारी के कारण लगी पाबंदियों का भी योगदान रहा. अब दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की इस बातचीत के दौरान ये मौक़ा होगा कि दोनों देश अपने द्विपक्षीय संबंधों की तमाम बातों और भविष्य को लेकर एक ही नज़रिया क़ायम करें.

भारत और बेलारूस के बीच कूटनीतिक रिश्ते 1992 में स्थापित किए गए थे. अगले साल अप्रैल में हम इसकी तीसवीं सालगिरह मनाने जा रहे हैं.

भारत और बेलारूस के बीच कूटनीतिक रिश्ते 1992 में स्थापित किए गए थे. अगले साल अप्रैल में हम इसकी तीसवीं सालगिरह मनाने जा रहे हैं.

बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्ज़ेंडर लुकासेंको, 1997, 2007 और 2017 में, यानी तीन बार भारत की राजकीय यात्रा पर आ चुके हैं. दोनों देशों के आपसी संबंधों में तब एक नया मोड़ आया, जब 2015 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पहली बार बेलारूस का दौरा किया. बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्ज़ेंडर लुकाशेंको, SCO सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद की बैठक में तीन बार, 2016 में ताशकंद, 2018 में क़िंगडाओ और 2019 में बिश्केक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात कर चुके हैं.

बेलारूस के प्रधानमंत्री 1993, 2002 और 2012 में भारत के दौरे पर आ चुके हैं. वहीं, बेलारूस के विदेश मंत्री 1998, 2002, 2007 और 2015 में भारत का दौरा कर चुके हैं. बेलारूस के विदेश मंत्री व्लादिमिर मकेई, 2019 में न्यूयॉर्क और 2021 में दुशांबे में भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर से मुलाक़ातें कर चुके हैं.

भारत और बेलारूस के बीच संसदीय संवाद बहुआयामी तरीक़े से आगे बढ़ रहा है. इसमें अंतरराष्ट्रीय संगठनों की बैठकों में होने वाला आपसी संवाद भी शामिल है. 1997 से दोनों देशों के बीच आर्थिक, व्यापारिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग का आयोग भी काम कर रहा है.

बेलारूस और भारत के बीच सहयोग के क्षेत्र

बेलारूस से भारत को पोटाश खाद की आपूर्ति करने  में इंडियन पोटाश लिमिटेड बेलारूस का एक अग्रणी साझीदार है. खनन क्षेत्र की एक बड़ी भारतीय कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड के साथ भी बेलारूस का सहयोग काफ़ी तेज़ी से बढ़ रहा है. 2020-21 के दौरान बेलारूस ने भारत को 136 टन ट्रक डंपर निर्यात किए थे. 2021 से 2023 के दौरान बेलारूस से भारत को 240 टन मशीनों की आपूर्ति के सौदे पर भी रज़ामंदी बन गई है. 2017 में जेएससी गोमसेलमैश और डीवीआर इन्फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड ने मिलकर भारत में गोमसेलमैश इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के नाम से एक साझा कंपनी बनाई थी. 2021 में एमटीज़ेड ने भारत को ट्रैक्टरों की आपूर्ति दोबारा शुरू की थी. 2017-2018 में RUE ‘बेलोरूसनेफ्ट’ ने असम के डिग्बोई और चौबा क्षेत्रों में तेल की खोज के दो साझा प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक लागू किया था. 2020 में देश की सबसे बड़ी तेल और गैस कंपनी ONGC के साथ भी ऐसे ही समझौते पर दस्तख़त हुए थे.

दोनों देशों के बीच मानवीय क्षेत्र में भी संपर्क बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं. ट्रैवल कंपनियों के बीच रिश्तों में नई जान डाली जा रही है. 2020 में निवेश का एक बडा समझौता भी हुआ था. उसी साल भारत और बेलारूस के इन्वेस्टमेंट फ़ोरम की पहली बैठक भी नई दिल्ली में हुई थी.

दोनों देशों के बीच मानवीय क्षेत्र में भी संपर्क बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं. ट्रैवल कंपनियों के बीच रिश्तों में नई जान डाली जा रही है. 2020 में निवेश का एक बडा समझौता भी हुआ था. उसी साल भारत और बेलारूस के इन्वेस्टमेंट फ़ोरम की पहली बैठक भी नई दिल्ली में हुई थी.

जियोपॉलिटिक्स में आ रहे बदलाव और वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र धीरे धीरे एशिया की तरफ़ खिसकने से भारत के साथ सहयोग बढ़ाकर बेलारूस के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश की अतिरिक्त संभावनाएं पैदा होंगी. भारत की अर्थव्यवस्था को भी ताक़त मिलनी तय है. वहीं, भारत के विकास में एक टिकाऊ मोड़ आना अभी बाक़ी है. हालांकि कोविड-19 के चलते अभी भी विकास की राह में रोड़े अटके हुए हैं.

एशिया में बेलारूस को अलग अलग भोगोलिक क्षेत्रों में अपने पांव ज़माने की ज़रूरत है. दक्षिण एशिया में भारत उसके लिए एक मज़बूत स्तंभ बन सकता है. लेकिन, इसके लिए बेलारूस की तरफ़ से की जाने वाली तमाम पहलों को भारत के राष्ट्रीय हितों और पवित्र अर्थों के अनुरूप ढालने की ज़रूरत होगी.

दिक़्क़त ये है कि अभी बेलारूस भारत की विशेषताओं को ठीक से नहीं समझता है. यूरोप ध्यान केंद्रित करने की रोज़मर्रा की आदत और उससे पैदा हुई अक्रियता से बेलारूस में भारत की संस्कृति और सभ्यता को लेकर समझ का अभाव बना हुआ है. बेलारूस को भारत के इतिहास, धर्म, संस्कृति और भाषाओं, कारोबार के तौर-तरीक़ों, व्यापार के नियम क़ायदों के प्रति अपनी समझ को बढ़ाना होगा. इस कमी की वजह बार-बार के दौरों या नेताओं और बड़े अधिकारियों के बीच निजी ताल्लुक़ात का न होना नहीं है. इस समझ की कमी की असली वजह बेलारूस के कारोबारियों द्वारा मध्यम अवधि के साथ व्यापार के दूरगामी अवसरों पर विचार करने और सत्ता के शिखर पर बैठे लोगों और विशेषज्ञ समुदाय के बीच आपसी तालमेल का अभाव है.

 दिक़्क़त ये है कि अभी बेलारूस भारत की विशेषताओं को ठीक से नहीं समझता है. यूरोप ध्यान केंद्रित करने की रोज़मर्रा की आदत और उससे पैदा हुई अक्रियता से बेलारूस में भारत की संस्कृति और सभ्यता को लेकर समझ का अभाव बना हुआ है. 

दोनों देशों के बीच काफ़ी संभावनाएं

द्विपक्षीय संबंधों में मज़बूत राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्तों को अगर कारोबारी, आर्थिक और निवेश संबंधी फ़ायदों में तब्दील करना है, तो भारत और बेलारूस के बीच बड़े प्रोजेक्ट की दरकार है. उच्च तकनीक से जुड़े समाधान के क्षेत्र में काफ़ी संभावनाएं छुपी हुई हैं. भारत इन क्षेत्र को काफ़ी अहमियत भी देता है.

इसी तरह, शिक्षा के क्षेत्र में (मेडिकल की पढ़ाई के अलावा) सहयोग की संभावना का भी पूरी तरह दोहन नहीं किया गया है, ख़ास तौर से गणित, कंप्यूटर साइंस और साइंस व तकनीक के क्षेत्र में. इलेक्ट्रिक परिवहन को भी आपसी सहयोग के एक बड़े अवसर के रूप में देखा जा रहा है. ख़ास तौर से तब और जब भारत ने तय किया है कि वो 2025 तक दुपहिया और तिपहिया गाड़ियों को पूरी तरह से इलेक्ट्रिक कर लेगा. बेलारूस के उपकरणों की आपूर्ति के साथ साथ सेवाओं के साझा पैकेज में पेशेवर लोगों के प्रशिक्षण के विकल्प को भी जोड़ा जा सकता है.

इसी तरह साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग की भी काफ़ी संभावनाएं छुपी हुई हैं. बेलारूस गणराज्य, भारत की दवा कंपनियों के लिए यूरेशियाई बाज़ार में पैठ बनाने का द्वार बन सकता है. भारत की सिप्ला कंपनी और बेलारूस की नेशनल अकादेमी ऑफ़ साइंसेज़ के बीच ‘अकादेमफार्म’ नाम का साझा प्रोजेक्ट और इसी के ढांचे के तरह डॉक्टर वाई के हमीद वैज्ञानिक एवं तकनीक केंद्र की शुरुआत इस दिशा में अच्छी शुरुआत कही जा सकती है.

भारत जैसे विशाल देश को देखते हुए, बेलारूस के लिए बेहतर यही होगा कि वो क्षेत्रीय सहयोग और स्थानीय सामुदायिक स्तर पर साझीदारियां विकसित करने की रणनीति पर काम करे. 

भारत और बेलारूस के बीच सैन्य और तकनीकी सहयोग और साझा विकास की संभावनाओं को अभी तक पुरी तरह खंगाला नहीं गया है. इसी तरह सिनेमा (बॉलीवुड) भी भारतीय कारोबारी समुदाय और पर्यटकों की दिलचस्पी बेलारूस में जगा सकता है. इस मसले का हल मिंस्क और दिल्ली के बीच सीधी उड़ान से निकाला जा सकता है, जो लंबे समय से शुरुआत का इंतज़ार कर रही है. पर्यटन और मेडिकल सेवाओं में और वृद्धि इस तरह से सुनिश्चित की जा सकती है कि बेलारूस में भारत के पारंपरिक औषधीय तरीक़ों (आयुर्वेद + योग) से जुड़े केंद्र खोले जाएं. ये भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए निजी दिलचस्पी का भी विषय हो सकता है.

कुछ ख़ास क्षेत्रों को लेकर काम करने के विषय में भी काफ़ी संभावनाएं हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों के अपने आर्थिक विकास के कार्यक्रम होते हैं. इसलिए, बेलारूस की कामयाब कंपनियों को चाहिए कि वो ‘भारत के लिए अपनी रणनीति’ बनाते वक़्त हर राज्य के बाज़ार पर अलग अलग ध्यान देने का नज़रिया विकसित करें. इस तरह से बेलारूस और भारत के बीच क्षेत्रों के एक स्थायी मंच का गठन एक अच्छा आइडिया हो सकता है.

भारत जैसे विशाल देश को देखते हुए, बेलारूस के लिए बेहतर यही होगा कि वो क्षेत्रीय सहयोग और स्थानीय सामुदायिक स्तर पर साझीदारियां विकसित करने की रणनीति पर काम करे. ऐसे नज़रिए से राष्ट्रीय स्तर पर उपस्थिति का लक्ष्य पाने की रफ़्तार और धार दोनों ही बढ़ेगी. क्योंकि क्षेत्रीय स्तर पर साझेदारियां विकसित करके बेलारूस, भारत के तेज़ी से बदल रहे आर्थिक माहौल के हिसाब से ख़ुद को ढाल सकेगा.

इस रणनीति को पारिस्थितिकी और कृषि क्षेत्र के लिए आपस में मिलकर नए उत्पाद विकसित करने के लिए भी आज़माया जा सकता है. नदियों के शुद्धिकरण की व्यवस्था, बिजली से चलने वाले कचरे का प्रबंधन करने वाले प्लांट, बिजली और हाइड्रोजन का उत्पादन, हरित ऊर्जा और अर्थव्यवस्था का विकास, पर्यावरण के लिए मुफ़ीद उत्पादों का निर्माण और ‘अंतिम संस्कार’ के लिए ईंधन की ईंटों की आपूर्ति के क्षेत्र में संभावनाओं को गहराई से खंगालने की ज़रूरत है.

इनके अलावा, दोनों देशों के बीच शहरी योजना और उसके हिसाब से मूलभूत ढांचे के विकास की परियोजनाओं के क्षेत्र में सहयोग की भी काफ़ी संभावनाएं दिखती हैं.

एक दूसरे में दिलचस्पी बढ़ाने के लिए, विकास के नए नए अवसरों की संभावनाएं तलाशने और नए विचारों और सक्रिय विशेषज्ञ कूटनीतिक संवाद सबसे अहम होते हैं. दोनों देशों के बीच सहयोग की अगुवाई बढ़ाने में बेलारूस और भारत के अग्रणी ‘थिंक टैंक’ भी अहम भूमिका निभा सकते हैं.

 भारत के धार्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर की एक बात याद दिलाना उचित होगा. अपने एक भाषण में उन्होंने कहा था कि सरकारें ही सभी मसलों का हल नहीं निकाल सकतीं. इसके लिए संपूर्ण समाज- कारोबारियों, स्वतंत्र नागरिक संगठनों और सार्वजनिक संस्थानों के बीच एकजुटता बहुत अहम हो जाती है. 

इस संदर्भ में भारत के धार्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर की एक बात याद दिलाना उचित होगा. अपने एक भाषण में उन्होंने कहा था कि सरकारें ही सभी मसलों का हल नहीं निकाल सकतीं. इसके लिए संपूर्ण समाज- कारोबारियों, स्वतंत्र नागरिक संगठनों और सार्वजनिक संस्थानों के बीच एकजुटता बहुत अहम हो जाती है. एशिया के अन्य देशों की तरह, भारत में भी काम करना एक बड़ी चुनौती है. हर क्षेत्र की अपनी अलग ख़ूबी है; सांस्कृतिक, आबादी संबंधी, भाषायी और धार्मिक विशेषताएं हैं; इसके अलावा हर क्षेत्र के खान-पान और आमदनी के स्तर में भी अतंर है. फिर हर दिन बदलते नियम क़ानून और अन्य बातों का भी ध्यान रखने की ज़रूरत होती है.

लेकिन, भविष्य में किसी ऐस विश्व व्यवस्था की कल्पना नहीं की जा सकती, जिसमें भारत की अहम जियोपॉलिटिकल, आर्थिक और सांस्कृतिक भूमिका न हो. इसलिए, ये जानकारी बढ़ानी ज़रूरी है कि भारत के साथ किस तरह सफलतापूर्वक व्यापार किया जा सकता है.

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