Author : Dhaval Desai

Published on Jan 18, 2022 Updated 0 Hours ago

शहरी परिवहन में मेट्रो रेल के द्वारा एक और परत जोड़ने के साथ शहरी भारत में सार्वजनिक परिवहन का औसत हिस्सा बढ़ाने के लिए एक स्वायत्त यूएमटीए ज़रूरी है.

एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण (यूएमटीए) जो रास्ते में कहीं खो गया…!

ये लेख 2022 में शासन व्यवस्था के लिए सुझाव श्रृंखला का हिस्सा है.


कई नई परियोजनाओं की शुरुआत, मौजूदा लाइन के विस्तार या सुधार, कुछ नई लाइन को इस्तेमाल में लाने और कई अन्य परियोजनाओं के लिए डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार होने के साथ मेट्रो रेल के विकास ने 2021 में भारत के शहरी परिदृश्य पर छाप छोड़ी है. मेट्रो के लिए कई शहरों में जुनून है क्योंकि ये लोगों को आरामदायक और विश्वसनीय शहरी परिवहन विकल्प देती है. लेकिन मेट्रो को भारत में शहरी आवागमन की परेशानियों के लिए रामबाण समझना एक ग़लत धारणा होगी. 

कई दशकों तक अनियोजित शहरीकरण की वजह से शहरों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए निम्न स्तर का जीवन होने के बाद देश में पहली बार 2006 में योजनाबद्ध सार्वजनिक परिवहन की सख़्त ज़रूरत महसूस की गई. 

कई दशकों तक अनियोजित शहरीकरण की वजह से शहरों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए निम्न स्तर का जीवन होने के बाद देश में पहली बार 2006 में योजनाबद्ध सार्वजनिक परिवहन की सख़्त ज़रूरत महसूस की गई. राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (एनयूटीपी) ने सार्वजनिक परिवहन के विकास पर ज़ोर दिया. 10 लाख से ज़्यादा आबादी वाले सभी शहरों के लिए परिवहन नीति में व्यापक आवागमन योजना (सीएमपी) तैयार करने और एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण (यूएमटीए) की स्थापना करने की अनुशंसा की गई. इन दोनों ज़रूरतों पर जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत केंद्रीय अनुदान पाने के लिए शहरों के योग्य होने की पूर्व शर्त के तौर पर बल दिया गया. जेएनएनयूआरएम के तहत दूसरी चीज़ों के अलावा काफ़ी हद तक असफल रहे बस रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम (बीआरटीएस) को अपनाना भी अनिवार्य कर दिया गया. बीआरटीएस को शहरी सार्वजनिक परिवहन को बेहतर करने के लिए योजनाबद्ध क़दम बताया गया. 

2014 में जब से एनडीए सरकार ने सत्ता संभाली है तब से जेएनएनयूआरएम और यहां तक कि बीआरटीएस को भी ख़ामोशी से दफ़न कर दिया गया है. शहरी आवागमन के केंद्र में सार्वजनिक परिवहन बना हुआ है लेकिन अब व्यापक रूप से बदलाव मेट्रो की तरफ़ हो गया है. दिल्ली की सफलता और कई शहरों के द्वारा इसकी नक़ल करने की होड़ के बाद केंद्रीय कैबिनेट ने अगस्त 2017 में मेट्रो रेल नीति को स्पष्ट किया. उस समय से न सिर्फ़ बड़े महानगरीय इलाक़े बल्कि छोटे टियर 1 और 2 शहरों ने भी कई बड़ी मेट्रो परियोजनाओं की शुरुआत होते हुए देखा है. इन परियोजनाओं में से ज़्यादातर विकास के अलग-अलग चरण में हैं जबकि कुछ की शुरुआत भी हो गई है. सीएमपी और यूएमटीए को लेकर राज्यों और शहरों का सुस्त जवाब एनयूटीपी के 11 वर्षों के बाद उजागर हुआ क्योंकि मेट्रो नीति में सीएमपी और यूएमटीए- दोनों को मेट्रो के विकास के लिए केंद्रीय सहायता प्राप्त करने में पूर्व शर्त के तौर पर दोहराया गया. इस तरह की ज़रूरी योजना बनाने में कमी का ये मतलब निकला है कि पहले की किसी भी नीतियों या योजनाओं ने लोगों को कोई लाभ नहीं पहुंचाया है. ज़रूरी योजना की अनुपस्थिति ने सार्वजनिक परिवहन के प्राथमिकता प्राप्त साधन के रूप में मेट्रो रेल के इस्तेमाल को बेतरतीब बना दिया है. कई शहरों ने तो इसकी ज़रूरत का मूल्यांकन भी नहीं किया है. यूएमटीए की अनुपस्थिति में एक नये सार्वजनिक परिवहन को जोड़ने से शहरी आवागमन में और भी परेशानी खड़ी होगी. 

सीएमपी और यूएमटीए को लेकर राज्यों और शहरों का सुस्त जवाब एनयूटीपी के 11 वर्षों के बाद उजागर हुआ क्योंकि मेट्रो नीति में सीएमपी और यूएमटीए- दोनों को मेट्रो के विकास के लिए केंद्रीय सहायता प्राप्त करने में पूर्व शर्त के तौर पर दोहराया गया.

सार्वजनिक परिवाहनों के लिये साझी टिकट व्यवस्था

सफल सार्वजनिक परिवहन देने वाले दुनिया के बड़े शहरों ने मुख्य रूप से आख़िरी मील तक संपर्क के नज़रिए से सभी विकल्पों पर एकीकृत दृष्टिकोण से भरोसा किया है. आख़िरी मील तक संपर्क ही आम लोगों के लिए व्यापक स्तर पर किसी सार्वजनिक परिवहन के साधन को अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. न्यूयॉर्क, लंदन, सिंगापुर, हॉन्ग-कॉन्ग इत्यादि जैसे सफल सार्वजनिक परिवहन सेवा के रूप में प्रसिद्ध सभी शहरों में एक अति महत्वपूर्ण और अधिकार युक्त संस्थान हैं जो इन शहरों द्वारा दिए जाने वाले परिवहन के विकल्पों के बारे में समग्र दृष्टिकोण रखते हैं. इन शहरों में सभी तरह के सार्वजनिक परिवहनों के लिए साझा टिकट हैं जो बिना किसी बाधा के बस, मेट्रो, लाइट रेल और यहां तक कि फेरी सेवा में भी इस्तेमाल होते हैं. ये शहर बीच के विकल्पों जैसे ऑटो रिक्शा पर भी ग़ौर करते हैं और सबसे बड़ी बात ये है कि यहां पैदल चलने वालों, जिनमें दिव्यांग भी शामिल हैं, की ज़रूरत का भी पूरा ख़्याल रखा जाता है. 

इस तरह के एकीकृत दृष्टिकोण का ये मतलब है कि सार्वजनिक परिवहन ने इनमें से ज़्यादातर शहरों में आवागमन के साधन पर कब्ज़ा किया है. उदाहरण के लिए, 2017 में लंदन में किसी सामान्य दिन में सक्रिय, कार्य-कुशल और टिकाऊ साधनों, जिनमें टहलना, साइकिल चलाना और सार्वजनिक परिवहन शामिल हैं, का हिस्सा 62.7 प्रतिशत था. सिंगापुर में भी व्यस्त समय में सार्वजनिक परिवहन का हिस्सा 67 प्रतिशत है. भारत में सुविधा और विश्वसनीयता का ध्यान रखे बिना अलग-अलग तरह के दृष्टिकोण का ये नतीजा निकला है कि सार्वजनिक परिवहन का हिस्सा न्यूनतम बना हुआ है. पिछले एक दशक में हो सकता है कि आंकड़े में बदलाव हुआ हो लेकिन 2011 की जनगणना के सबसे सटीक आंकड़े संकेत देते हैं कि सिर्फ़ 18 प्रतिशत लोग अपने रोज़ाना के काम-काज पर जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देते हैं. दूसरी तरफ़ ताज़ा अध्ययनों से संकेत मिलता है कि 2000-01 में 75.5 प्रतिशत के मुक़ाबले 2030-31 में सार्वजनिक परिवहन का कुल हिस्सा घटकर 44.7 प्रतिशत होने की संभावना है. कोविड-19 के असर की वजह से लोगों के द्वारा सार्वजनिक परिवहन के बदले निजी गाड़ी की तरफ़ रुख़ करने से इस तरह का पूर्वानुमान ग़लत नहीं लगता है. जैसे-जैसे शहरों का विस्तार हो रहा है और अपने काम पर जाने के लिए लोगों का लंबी दूरी तय करना ज़रूरी होता जा रहा है, वैसे-वैसे सार्वजनिक परिवहन की तरफ़ एकीकृत दृष्टिकोण का अभाव इस असमानता को और बढ़ाएगा.

न्यूयॉर्क, लंदन, सिंगापुर, हॉन्ग-कॉन्ग इत्यादि जैसे सफल सार्वजनिक परिवहन सेवा के रूप में प्रसिद्ध सभी शहरों में एक अति महत्वपूर्ण और अधिकार युक्त संस्थान हैं जो इन शहरों द्वारा दिए जाने वाले परिवहन के विकल्पों के बारे में समग्र दृष्टिकोण रखते हैं.

दुख़ की बात ये है कि एक-के-बाद-एक नीतियों में दोहराए जाने के बाद भी ज़्यादातर राज्यों ने अधिकार युक्त यूएमटीए की स्थापना को तो छोड़ दीजिए, सीएमपी की तैयारी के नाम पर सिर्फ़ दिखावा किया है. मेट्रो नीति के भी जेएनएनयूआरएम जैसी हालत होने की आशंका है. जेएनएनयूआरएम के तहत केंद्रीय अनुदान हासिल करने के नाम पर राज्यों ने ज़्यादातर ज़रूरी शासन व्यवस्था और व्यवस्थात्मक सुधार को लागू करने के बदले ज़रूरी सेवा के मानदंडों में हेराफेरी की थी. एनयूटीपी ने 2006 में ही यूएमटीए की स्थापना की अनुशंसा की थी लेकिन भोपाल, हैदराबाद, जयपुर, कोच्चि, लखनऊ, तिरुचिरापल्ली और विजयवाड़ा जैसे कुछ ही शहरों ने यूएमटीए बनाने की तरफ़ कोई निर्णायक क़दम उठाए थे. लेकिन यूएमटीए के साथ मुंबई और दिल्ली का अनुभव केंद्र के द्वारा इस तरह की आवश्यकता की ओर रवैये के बारे में बताता है. 

एकीकृत दृष्टिकोण से होगा सार्वजनिक लाभ

महाराष्ट्र सरकार ने 2008 में सरकारी प्रस्ताव (जीआर) के द्वारा एमएमआरडीए की देखरेख में यूएमटीए की स्थापना की थी. इसमें मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक ‘मुख्य समिति’ और उप समितियों के गठन का उल्लेख किया गया था. दो साल के बाद सरकार ने एक और जीआर जारी किया जिसमें ‘मुख्य समिति की सहायता के लिए’ एक ‘मूल समिति’ का गठन किया गया था. मुंबई की यूएमटीए ने किसी वैधानिक और अधिकारिता के दर्जे के बिना सिर्फ़ केंद्र सरकार के एक आदेश को पूरा किया. इसी तरह 2006 में बना दिल्ली एकीकृत मल्टी मॉडल ट्रांज़िट सिस्टम (डीआईएमटीएस) भी उसी बेरुख़ी का शिकार बना है और ये सिर्फ़ शहर की क्लस्टर बसों के संचालन तक सीमित है जिसकी शुरुआत 2010 में की गई थी. दिल्ली परिवहन निगम के व्यापक संचालन में इसकी कोई भूमिका नहीं है. हाल के दिनों में यूएमटीए के साथ हैदराबाद का अनुभव भी बिना किसी अधिकार वाले संस्थान का मामला है जिसकी स्थापना बहुत से सरकारी विभागों के सदस्यों के साथ की गई थी और इस वजह से परस्पर विरोध और लड़ाई शुरू हो गई. 

भारत में मेट्रो के विकास की पहल करने वाले आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय (एमओएचयूए) का पूर्वानुमान है कि 2031 तक शहरों में नये सार्वजनिक परिवहन के बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने और निर्माण के लिए 39,20,000 करोड़ (600 अरब अमेरिकी डॉलर) के निवेश की ज़रूरत पड़ेगी. इसमें सड़क निर्माण पर 44 प्रतिशत का अनुमानित आवंटन है जबकि सार्वजनिक परिवहन के लिए सिर्फ़ 11.5 प्रतिशत का निवेश है. सार्वजनिक परिवहन पर बराबर मात्रा में फंड खर्च किए बिना सड़क पर इस तरह का विशाल निवेश विनाशकारी होगा और इससे निजी गाड़ियों के इस्तेमाल का चलन और बढ़ेगा. महानगरीय क्षेत्र के लिए मेट्रो की एक व्यापक योजना के अलावा मुंबई जैसे शहर में सार्वजनिक परिवहन के लिए जलमार्ग को इस्तेमाल में लाने का तरीक़ा तलाशा जा रहा है. मुंबई और मांडवा के बीच रोपैक्स फेरी सेवा पहले से काम कर रही है, अब मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई जैसे शहरों को वॉटर टैक्सी से जोड़ने की योजना विकास के अंतिम चरण में है.

सार्वजनिक परिवहन पर बराबर मात्रा में फंड खर्च किए बिना सड़क पर इस तरह का विशाल निवेश विनाशकारी होगा और इससे निजी गाड़ियों के इस्तेमाल का चलन और बढ़ेगा. महानगरीय क्षेत्र के लिए मेट्रो की एक व्यापक योजना के अलावा मुंबई जैसे शहर में सार्वजनिक परिवहन के लिए जलमार्ग को इस्तेमाल में लाने का तरीक़ा तलाशा जा रहा है.

 

इस तरह की योजनाओं का सामाजिक लाभ तभी होगा जब राज्य योजना बनाने और उन्हें लागू करने को लेकर एकीकृत दृष्टिकोण अपनाएंगे. भविष्य की आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर पूनर्मूल्यांकन के साथ सीएमपी की तैयारी एक अच्छी शुरुआत होगी. लेकिन बड़ी मेट्रो परियोजनाओं की योजना बनाने से भी पहले शहरों और राज्यों के लिए परिवहन के सबसे “अच्छे” तरीक़े की पहचान करने की ज़रूरत है. भारत को अपनी ज़्यादातर कोशिशें राज्य और शहर के स्तर पर यूएमटीए की स्थापना में लगाने की ज़रूरत है ताकि शहरों में रहने वाले निवासियों को एक अच्छा जीवन स्तर दिया जा सके. 

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